Você está na página 1de 1

भीतर के तार

पल भर वो तूझे न भूला पल भर वो कब तेरी ि म्रित म आएगा


काम, क्रोध और लोभ की दलदल म नीत ही धँसता जाएगा
गहराई म जो उतरा वो ही मोती पाएगा
सोच ले केवल एक घड़ी िफर वो हर दम साथ िनभाएगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

पदवी, उन ्नित, धन और दौलत कब तक यह ही माँगे जाएगा


कामनाओं की पिू तर् म जीवन यथर् गँवाएगा
मेरा और मेरे बाद इसम ही हर िदन कटता जाएगा
तू प्रेम याला थाम तो यारे वो भर-भर तुझे िपलायेगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

माता-पीता, ी और ब चे, कब तक माया म गोते खाएगा


न संगी, न कोई मीत यहाँ, िकस नाँव बैठ पार तू जाएगा
पहचान-संभल है र ता दरु ग
् म कैसे मंिज़ल को पाएगा
मौन हो और आवाज़ लगा, वो दौड़ा-दौड़ा आएगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

िनराश न हो, िहम ्मत मत हार


जो है आकाश आज कल िमटटी म िमल जाएगा
भले-बुरे कम का फ़ल तो िनि त ही तू पाएगा
तू ज्ञान की अखीयाँ खोल वो दोन बाह खोले आयेगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

भाषा को रख, श द को याग


कान से दे ख, आख से सन

वो हर पल तझ
ु े बुलाता है
क्षण भर जो सुन लेगा उसको वो मुख तेरे से गाएगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

सहज़ है युिक्त, सहज़ जो होगा, सहज़े ही तर जाएगा


िकतना भी तू जोड़ भले ही सब छोड़ यहीं मर जाएगा
लौ म लौ हो जाने को -2
तू सहज़ पथ पर एक कदम तो रख, वो उड़न खटोला ले आएगा
होगा सब पर केवल तब जब तू भीतर के तार बजाएगा |

27 िसतम ्बर 2010


िरशी कािलया

Você também pode gostar