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***मह भटनागर
(१) सं ाम; और
जस व न को
संघष
अनवरत संघष,
सव व जीवन- याग;
वह
हआ
ु आगत !
*
कर गया अं कत
हर अधर पर हष,
चमके िशखर-उ कष !
ो वल हई
ु
हर य के अंतःकरण म
आग,
सं ा-शू य आहत दे श
नूतन चेतना से भर
हआ
ु जा त,
हआ
ु गितमान जन-जन
प दन-यु कण-कण !
आततायी िनदयी
सा ा यवाद श को
उतारा था समय-पट पर
जस व न का आकार
वह,
हाँ, वह हआ
ु साकार*!
ले कन तभी....
अ यािशत-अचानक
ती गामी / धड़धड़ाते / सव ाह ,
वाथ-िल सा से भरे
भूक प ने
कर दए खं डत-
म- विनिमत
गगन-चु बी भवन,
इसिलए; फर
ढ़ संक प करना है ,
वचन को पूण करना है ,
वकृ त और धुँधले व न म
नव रं ग भरना है ,
कमर कस कर
फर क ठन संघष करना है !
(२) अमानु षक
आज फर
खं डत हआ
ु व ास,
आज फर
धूिमल हई
ु
अिभनव ज दगी क आस !
ढह गये
बह गये
उफनते वार म,
युग-युग सहे जे
भ य-जीवन-धारणाओं के अचल !
*
आज छाये; फर
लय-घन,
फर हण-आहत हआ
ु ,
ष यं -िघरा
यह दे श मेरा
आज फर
ममाहत हआ
ु !
वषैली ाणहर बा द क ,
व फोटक से
पट गयी धरती,
सुर ा-दग ू
ु टटे
और हर ाचीर
त- व त हई
ु !
ज मा जाितगत व े ष,
फैला धमगत व े ष,
भूँका ांत-भाषा े ष,
सव दानव वेश !
घुट रह साँस
द ू षत वायु,
वष-घुला जल
छटपटाती आयु !
(३) फतहनामा
आतंक:◌ः िसयापा !
छलनी / खून-सनी
बेगुनाह लाश,
खेत -खिलयान म
िछतर लाश,
सड़क पर
बखर लाश !
िनर ह
रोके आवेग
थामे आवेश
नत म तक
मूक ववश !
ज मनाता
पूजा-घर म
सतगु -ई र-भ
खुदा-पर त !
दहशत : स नाटा
दरू-दरू तक स नाटा !
सहमे-सहमे कु े
सहमे-सहमे प ी
चुप ह।
लगता है -
ू र द र द ने
िनममता से मारा है !
रात -रात
स नाटे को गहराता
खातरा,
बेहद खातरा है !
रात गुजरते ह
घबराए कु े रोएंगे,
भय- व ल प ी चीखगे !
हम
*
एक आदमी / झुका-झुका / िनराश
दद से कराहता हआ
ु
गुजर गया।
चोट से लहलु
ू हान
चीखता हआ
ु / पनाह माँगता / अभी-अभी
गुजर गया।
(६) हॉकर से
यह या
रोज-रोज
तरबतर खून से
घर म मेरे ?
*********
लगता है डर,
लपट लहराता
जहर उगलता
य प
यह खबर सुन कर
क कोई कह ं
अ य घटना नह ं घट ,
तनाव है
क तु िनयं ण म है सब !
हम खुद
ता जुब क
नह ं करते महसूस दद !
इसिलए क
नशा बन कर
हावी है
दल पर सोच-समझ पर।
हम खुद
पागलपन म
अपने ह घर म
हम खुद
गुराते ह
छ नने-झपटने जान
अपने ह वंशधर क !
*** (८) लोग
चल रहे ह लोग
जाना कहाँ
नह ं मालूम,
ह बेखबर
िनपट मह म,
घूमते या इद -
छाया इधर-
उधर जो शोर,
आया कह ं
न आदमखोर ?
सरसराहट आज
जंगल म चीड़ के !
(९) आपा काल
तूफान
अभी गुजरा नह ं है !
बहत ू चुका है
ु कुछ टट
ू रहा है ,
**** टट
मनहस
ू रात
शेष है अभी !
जागते रहो
हर आहट के ित सजग
जागते रहो !
न जाने
कब.....कौन
द तक दे बैठे-
शरणागत।
जहर उगलता
फुफकारता
सब कुछ लीलती
हो जाएगी ओझल !
हर पल
अल सुबः का इं तजार
अ त व के िलए !
**** मु हो हर य कारा से
ू
हं सक के टटने - कमजोर होने तक !
****
(११) *ज र
इस थित को बदलो
इन हालात को हटाओ
हमारे बुजुग
हम नसीहत द क
पशुओं से, प य से
िन छल ेम करो,
कोिशश करो क
वे तुमसे न डर
तु ह दे ख न भग,
चाहे वह
व-र ा हे तु
ले कन
दरू-दरू रहना
सजग-सतक
इस आदमजाद से !
जो-
न फुफकारता है , न दहाड़ता है ,
सीधा डसता है ,
कभी-कभी य ह
फर चाहे वह
अपना, बस अपना
उ लू सीधा करने
यह आदमी
ले कन
दरवाजे पर सादर द तक दे ता है ,
और फर
सब कुछ तबाह कर
हर तरफ से तु ह तोड़ कर
भूख-े नंगे रह लो
ऐसा करोगे तो
इस थित को बदलना है
उसे लहलु
ू हान करे,
िन नृशस
ं हार करे ,
अ याचार करे !
और फर
भजन करे ,
(१२) इितहास का एक पृ
सच है -
िघर गये ह हम
चार ओर से
हर कदम पर
नर-भ य के च यूह म,
भ चक-से खड़े ह
लाश -ह डय के
ू म !
ढह
सच है -
फँस गये ह हम
चार ओर से
हर कदम पर
नर-भ य के दरू तक
छल-छ क
बा द सुरंग से जकड़ कर
कर दया िन य
हमारे लौह-पैर को
दग
ु ध से
चार दशाओं क हवाओं को !
सच है -
उनके ू र पंज ने
भींच डाले ह
दहकते र म अधर !
म त क क नस-नस
ठठक कर रह गये ह हम !
खं डत परा म
अ त व / स ा का अहम ् !
सच है क
अब न हम ललकार पाते ह
न चीख पाते ह,
वर अव
सूया त जैसे
गित- गित क आस का !
अब न मेधा म हमार
ांितकार धारणाओं-भावनाओं क
कडकती ती व ुत क धती है ,
चेतना जैसे
हो गयी है सु न जड़वत ् !
चे ाह न ह / मजबूर ह,
है रान ह,
ले कन
नह ं अब और
थर रह सकेगा
आदमी का आदमी के ित
ढ़ संक प करते ह
भेद- वभेद,
कसी को िन न
कसी को ठहराना े ,
आज के उभरते-सँवरते नये व म
गंभीर अपराध है ,
अ य अपराध है ।
करना होगा न -
ऐसे य को / ऐसे समाज को
जो आदमी-आदमी के म य
वभाजन म रखता हो व ास
अथवा
स दय के अनवरत संघष का
सह-िच तन का
िन कष है क
हमार -सबक
जाित एक है - मानव,
हमारा-सबका
वंश एक है - मनु- ा,
हमारा-सबका
धम एक है - मानवीय,
हमारा-सबका
वग एक है - िमक।
रं ग प क विभ नता
सु दर व वध पा कृ ित है ,
इस पर व मय है हम
इस पर गव है हम,
सुदरू आ दम युग म
ल बी स फ द ू रय ने
क तु आज
इन द ू रय को
ान- व ान के आलोक म
जगमगा दया है
मै ी-चाह के अद य आवेग ने
जो बाँटती ह हम
गाजर घास-सा
चार तरफ
या खूब फैला है !
दे श को हर ण
पतन के गत म
गहरे ढकेला है ,
करोड़ के
बहमू
ु य जीवन से
ू र वहशी
खेल खेला है !
व जत गिलत
यवहार है ,
द ू षत
आचार है ।
** (१५) अंत
जमघट ठग का
कर रहा जम कर
पर पर मु जय-जयकार !
शीतक-गृह म बस
फलो-फूलो,
वजय के गान गा
िन त च कर खा,
हर सम या शी हल हो !
धन सव व है , वच व है ,
जानते ह ठग !
क तु;
सब पकड़े गये
अच भा ह अच भा !
ह डं बा है ; नह ं र भा !
मुखाकृ ित दख रह असली !
(१६) र ा
दे श क नव दे ह पर
िचपक हई
ु
जो अनिगनत ज के-जलौक,
र -लोलुप
लोभ-मो हत
बुभु त
ज के-जलौक-
आओ
उ ह नोच-उखाड़े ,
धधकती आग म झ क !
उनक
फैलने से
अ वल ब रोक !
दे श क नव दे ह
ू नह ,ं
य टटे
वकिसत दे श क स प नता
लूटे नह ं !
(१७) तमाशा
फक कर चले गये*?
अफसोस
दे खो-
खोटा िस का है न
’धम-िनरपे ता‘ का ?
और दसरा
ू यह
मा ये नह ं
जो तुम इस बार भी
वदषक
ू के काय-कलाप -सम
फक कर चले गये*!
तुमसे तो
चाँद -सोने के िस क क
क थी उ मीद,
क तु क कैसी िम ट पलीद !
अ त
ु अंधेरे तमाशा है
घनघोर िनराशा है ,
यह कस जनतं - णाली का ढाँचा है ?
जनता के मुँह पर
दिलत क गिलय से
उनक झोप प ट के
ऊबड़-खाबड़, ऊँचे-नीचे
िनकल रहा है
दिलत का
भ य जुलूस !
नह ं कराये के
मु टं डे-प ठे ,
सब दे ख रहे ह कौतुक-
दिलत के
नंग-धड़ं ग घुटमुंडे
काले-काले ब चे,
मैली और फट
च ड -बिनयान वाले
लड़के-फड़के,
झ पडय के बाहर
या कहने !
िच -िलखी-सी दे ख रह ह,
दिलत का र क, दिलत के हत म
कल नाना ट वी-पद पर
दिनया
ु दे खग
े ी
यह ह , हाँ यह ह -
दिलत का भ य जुलूस !
अफसोस !
नह ं है शािमल इसम
दिलत क टोली,
अफसोस !
नह ं है शािमल इसम
दिलत क बोली !
(१९) घटनाच
हमने नह ं चाहा
क इस घर के
गगन पर
घन आग बरसे !
*
हमने नह ं चाहा
क इस घर का
अबोध-अजान बचपन
और अ हड़ सरल यौवन
यार को तरसे !
हमने नह ं चाहा
क इस घर क
खामोश हो जाएँ,
यहाँ क भूिम पर
कोई
घृणा ितशोध हं सा के
हमने नह ं चाहा
लय के मेघ छाएँ
और सब-कुछ द बहा,
गरजती आँिधयाँ आएँ
चमकते इं धनुषी
व न-महल को
हला कर
एक पल म द ढहा !
पर,
अनचाहा सब
हम
सब सामने
मशः
ू
उजड़ता टटता हटता गया !
*** (२०) िन कष
उसी ने छला
उसी ने सताया
उसी ने डसा
दध
ू जसको पलाया,
या खूब र ता िनभाया !
अप रिचत गया बन
वह आज
अजनबी बन गया
यार,
हमसफर
और हर बार हारा !
हर आदमी
अपनी मुसीबत म
**** अकेला है !
यातना क रािश-सार
मा उसक है !
साँसत के ण म
संकट क रात
घुप अँधेरे म
हर चोट
हर स य
बहलाना उसी को है !
उसे ह
झेलने ह हर कदम पर
आँिधय के वार,
ओढने ह व पर चुपचाप
दभा
ु य क,
अिभश जीवन क ,
क ठन चढ़ती-उतरती राह पर
कटु यं य करतीं
**** ू र- ड़ाएँ
अशुभ ार ध क !
उसे ह
अनुभूत करना है
असर वष-कूट का !
अकेले
हाँ, अकेले ह !
य क सच है यह-
क अपनी हर मुसीबत म
अकेला ह जया है आदमी !
(२२) दशा-बोध
िनर ह को
दय म थान दो
सूनापन-अकेलापन िमटे गा !
जनको ज रत है तु हार -
जाओ वहाँ,
मुसकान दो उनको
अकेलापन बँटेगा !
अनजान ाणी
जो क
मनहस
ू स नाटा छँ टेगा !
*
ज दगी म य द
अँधेरा-ह अँधेरा है ,
न राह ह, न डे रा है ,
रह-रह गुनगुनाओ
यह णक वातावरण गम का
******* हटे गा !
ऊब से बो झल
अकेलापन कटे गा
(२३) वीकार
हष से
झेलो इसे !
अकेलापन कृ ित है ,
कामना-अनुभूित से
ले लो इसे !
*
इससे भागना-बचना-
वकृ ित है !
मा अंगीकार करना-
एक गित है !
इसिलए वे छा वरण,
मन से नमन !
(२४) अवधान
कश-म-कश क ज दगी म
आदमी को चा हए
कुछ ण अकेलापन !
कर सके
गुजरे दन का आकलन !
कसका सह था आचरण !
कौन कतना था ज र
क उपे ा
और झुलसाया
घृणा-भरती लपट से !
जानना य द स य जीवन का
**** त य जीवन का
अकेलापन बताएगा तु ह,
वरदान -
सूनापन अकेलापन !
कसी को मत पुकारो,
पा इसे
मन म न हारो !
अवधान है !
(२५) सामना
प थर-प थर
जतना पटका
उतना उभरा !
प थर-प थर
जतना कुचला
उतना उछला !
क चड़ - क चड़
जतना धोया
उतना सुथरा !
कािलख - कािलख
जतना साना
जतना पोता
उतना िनखरा !
असली सोना
बन कर िनखरा !
जंजीर से
तन को जब - जब
कस कर बाँधा
खुल कर बखरा
उ र - द ण
पूरब - प म
बह - बह बखरा !
भार भरकम
चंचल पारा
बन कर लहरा !
हर खतरे से
जम कर खेला,
वार तु हारा
बढ़ कर झेला !
(२६) अकारथ
डू बा व उतराया सतत
रख ज दगी को दाँव पर
** (२७) असह
बहत
ु उदास मन
थका-थका बदन !
बहत
ु उदास मन !
नह ं कह ं करन
बहत
ु िनराश मन
बहत
ु हताश मन
तय है क अब यह ज दगी
**** मुहलत नह ं दे गी
अब और तुमको ज दगी
**** *फुरसत नह ं दे गी !
य खेलने क , ज दगी
अब और तुमको ज दगी
**** कूवत नह ं दे गी !
**** ज नत नह ं दे गी,
**** क मत नह ं दे गी !
ज दगी जब दद है तो
हर दद सहने के िलए
मजबूर ह हम !
*
राज है यह ज दगी जब
मजबूर ह हम !
है न जब कोई कनारा
मजबूर ह हम !
ज दगी य द जलजला है
ू ढहने के िलए
तो टट
मजबूर ह हम !
आग म जब िघर गये ह
मजबूर ह हम* !
स य कतना है भयावह !
अँिधयारे जीवन-नभ म
तुलसी-चौरे पर आ कर
सूने घर-आँगन म आ
(३१) सहसा
****
(३२) वागत१
ल बी लचक ली ह रआई
आज छायी है घटा
मह न क
तपन के बाद
अहिनश
तन-जलन के बाद
हवाओं से िलपट
लहरा उठा
कसी ने
डाल द तन पर
सलेट बादल क
रे शमी चादर !
मोद दे ती है घटा,
(३४) कामना-सूय
*(१)** हर य सूरज हो
**** ऊजा-भरा,
******* आग हो,
*(२)** हर य सूरज-सा
**** खर,
**** रोशनी का छ द हो !
******* जाए जहाँ-
******* क -बाहर हो !
(३) हर य सूरज-सा
**** ऊ मा भरा
******* हर य सूरज-सा
**** (३५) एक स य
****
**** ब धन
**** व ोह / बल / ितरोध /
*
**** ब धन
**** जगाता -
** (३६) उपल ध
****
**** एक ल बी उ
**** हमने
******* सहन से
******* स से !
**** हमने
**** अटल व ास के
**** दन के, रै न के
**** हमने
**** सपनो !
****
****
**** जस दन
**** हर भेद-भाव से
**** भूल
**** उस दन सपना !
**** व लगेगा
**** उस दन अपना !
****
****
**** आह और कराह से
**** नह ं िमटे गी
**** आहत तन क , आहत मन क पीर !
**** ढ़ आ ोश उगलने से
**** नह ं कटे गी
**** नह ं घटे गी
****
**** आओ -
**** पीड़ा सह ल,
**** बािधत रह ल,
**** पल-पल दह ल !
****
**** हर य कु दन बने,
**** अ ात ार ध का
**** हर वार हँ स कर सहे !
**** आओ
**** घन चोट कर -
**** क पन होगा,
******* चटखगी,
ू ,
**** अवरोधक टटगे
**** आओ
**** लह-लह
****
**** आओ
**** टकराएँ,
**** आखर
******* हलेगा,
******* खुलेगा !
**** कोने-कोने म
**** आओ
**** टकराएँ,
****
****
**** आखर,
**** गया थम !
**** उठा-
**** चीखता
**** लीलता
**** ु अंधड़ !
*
**** इधर भी; उधर भी
**** द खते
**** अनिगनत शव !
**** सव िन त धता,
**** थम गया रव !
**** दबे,
**** िधर - िस
**** खा गया
**** लकवा !
**** अपा हज
**** खो
**** बलखते
**** बेसहारा !
**** असह
**** का णक
**** य सारा !
**** चलो,
**** तेज अंधड़
**** गया थम !
**** वहगो !
**** उड़ो,
**** दरू तक
**** आकाश यह
**** असीिमत
**** शू याकाश म
****
**** अपने ा य को
**** दरू तक
**** न हो
**** बाधक न हो
**** वाधीन ह सब
**** हम-राह ह
(समा )
**** *
संपक:
डा. मह भटनागर
११० बलवंतनगर, गांधी रोड,
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