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आहत युग

***मह भटनागर

(१) सं ाम; और

जस व न को

साकार करने के िलए-

स पूण पीढ़ ने कया

संघष

अनवरत संघष,

सव व जीवन- याग;

वह

हआ
ु आगत !
*

कर गया अं कत

हर अधर पर हष,

चमके िशखर-उ कष !

ो वल हई

हर य के अंतःकरण म

आग,

अिभनव फूित भरती आग !

सं ा-शू य आहत दे श

नूतन चेतना से भर

हआ
ु जा त,

सघन नैरा य-ितिमरा छ न कलु षत वेश

बदला दशाओं ने,

हआ
ु गितमान जन-जन

प दन-यु कण-कण !

आततायी िनदयी

सा ा यवाद श को

लाचार करने के िलए-


नव- व ास से योितत

उतारा था समय-पट पर

जस व न का आकार

वह,

हाँ, वह हआ
ु साकार*!

ले कन तभी....

अ यािशत-अचानक

ती गामी / धड़धड़ाते / सव ाह ,

वाथ-िल सा से भरे

भूक प ने

कर दए खं डत-

म- विनिमत

गगन-चु बी भवन,

युग-युग सताये आदमी के

शा त के, सुख के सपन !

इसिलए; फर

ढ़ संक प करना है ,
वचन को पूण करना है ,

वकृ त और धुँधले व न म

नव रं ग भरना है ,

कमर कस कर

फर क ठन संघष करना है !

(२) अमानु षक

आज फर

खं डत हआ
ु व ास,

आज फर

धूिमल हई

अिभनव ज दगी क आस !

ढह गये

साकार होती क पनाओं के महल !

बह गये

अितती अित ामक

उफनते वार म,

युग-युग सहे जे

भ य-जीवन-धारणाओं के अचल !
*

आज छाये; फर

लय-घन,

सूय- सं कृ ित-स यता का

फर हण-आहत हआ
ु ,

ष यं -िघरा

यह दे श मेरा

आज फर

ममाहत हआ
ु !

फैली गंध नगर-नगर

वषैली ाणहर बा द क ,

व फोटक से

पट गयी धरती,

सुर ा-दग ू
ु टटे

और हर ाचीर

त- व त हई
ु !

ज मा जाितगत व े ष,
फैला धमगत व े ष,

भूँका ांत-भाषा े ष,

गँदला हो गया प रवेश !

सव दानव वेश !

घुट रह साँस

द ू षत वायु,

वष-घुला जल

छटपटाती आयु !

(३) फतहनामा

आतंक:◌ः िसयापा !

छलनी / खून-सनी

बेगुनाह लाश,

खेत -खिलयान म

िछतर लाश,

सड़क पर

बखर लाश !

िनर ह

माँ, प ी, बहन, पु याँ,


पता, ब धु, िम , पड़ोसी-

रोके आवेग

थामे आवेश

नत म तक

मूक ववश !

ज मनाता

पूजा-घर म

सतगु -ई र-भ

खुदा-पर त !

*** (४) ासद

दहशत : स नाटा

दरू-दरू तक स नाटा !

सहमे-सहमे कु े

सहमे-सहमे प ी

चुप ह।

लगता है -
ू र द र द ने

िनद ष मनु य को फर मारा है ,

िनममता से मारा है !

रात -रात

मौत के घाट उतारा है !

स नाटे को गहराता

गूँजा फर मजहब का नारा है !

खातरा,

बेहद खातरा है !

रात गुजरते ह

घबराए कु े रोएंगे,

भय- व ल प ी चीखगे !

हम

आहत युग क पीड़ा सह कर

इितहास का मलबा ढोएंगे !

(५) होगा कोई

*
एक आदमी / झुका-झुका / िनराश

दद से कराहता हआ

तबाह ज दगी िलए

गुजर गया।

एक आदमी / झुका-झुका / हताश

चोट से लहलु
ू हान

चीखता हआ
ु / पनाह माँगता / अभी-अभी

गुजर गया।

(६) हॉकर से

यह या

रोज-रोज

तरबतर खून से

अखबार फक जाते हो तुम

घर म मेरे ?

*********

********* तमाम हादस से रँ गा हआ


**********अंधाधुंध गोिलय के िनशान


*** पृ -पृ पर प उभरते !

*** छूने म.....पढ़ने म इसको

लगता है डर,

लपट लहराता

जहर उगलता

डसने आता है अखबार !

य प

यह खबर सुन कर

सोता हँू हर रात

क कोई कह ं

अ य घटना नह ं घट ,

तनाव है

क तु िनयं ण म है सब !

*** (७) आ मघात

हम खुद

तोड़ रहे ह अपने को !

ता जुब क
नह ं करते महसूस दद !

इसिलए क

मजहब का आ दम बबर उ माद

नशा बन कर

हावी है

दल पर सोच-समझ पर।

हम खुद

हथगोले फोड़ रहे ह अपने ह ऊपर !

पागलपन म

अपने ह घर म

बा द बछा कर सुलगा आग रहे ह

अपने ह लोग पर करने वार- हार !

हम खुद

छोड़ रहे ह प आदमी का

और पहन आये ह खाल जानवर क

गुराते ह

छ नने-झपटने जान

अपने ह वंशधर क !
*** (८) लोग

चल रहे ह लोग

िसफ पीछे भीड़ के !

जाना कहाँ

नह ं मालूम,

ह बेखबर

िनपट मह म,

घूमते या इद -

िगद अपने नीड़ के !

छाया इधर-

उधर जो शोर,

आया कह ं

न आदमखोर ?

सरसराहट आज

जंगल म चीड़ के !
(९) आपा काल

तूफान

अभी गुजरा नह ं है !

बहत ू चुका है
ु कुछ टट

ू रहा है ,
**** टट

मनहस
ू रात

शेष है अभी !

जागते रहो

हर आहट के ित सजग

जागते रहो !

न जाने

कब.....कौन

द तक दे बैठे-

शरणागत।

जहर उगलता

फुफकारता

आहत साँप-सा तूफान


आखर गुजरे गा !

सब कुछ लीलती

घनी याह रात भी

हो जाएगी ओझल !

हर पल

अल सुबः का इं तजार

अ त व के िलए !

(१०) जागते रहना

**** जागते रहना, जगत म भोर होने तक !

**** छा रह चार तरफ दहशत

**** रो रह इं सािनयत आहत

वार सहना, संग ठत जन-शोर होने तक !

**** मु हो हर य कारा से

**** जूझना वपर त धारा से

जन- वजय सं ाम के घनघोर होने तक !


*

**** मौत से लड़ना, नह ं थकना

**** अंत तक बढ़ना नह ं कना


हं सक के टटने - कमजोर होने तक !

****

(११) *ज र

इस थित को बदलो

क आदमी आदमी से डरे,

इन हालात को हटाओ

क आदमी आदमी से नफरत करे !

हमारे बुजुग

हम नसीहत द क

बेटे, साँप से भयभीत न होओ

हर साँप जहर ला नह ं होता,

उसक फू कार सुन

अपने को सहज बचा सकते हो तुम।

हं शेर से भी भयभीत न होओ


हर शेर आदमखोर नह ं होता,

उसक दहाड़ सुन

अपने को सहज बचा सकते हो तुम !

पशुओं से, प य से

िन छल ेम करो,

उ ह अपने इद-िगद िसमटने दो

अपने तन से उ ह िलपटने दो,

कोिशश करो क

वे तुमसे न डर

तु ह दे ख न भग,

पंख फड़फड़ा कर उड़ान न भर,

चाहे वह

िच ड़या हो, िगलहर हो, नेवला हो !

तु हारे छू लेने भर से बीरबहट


व-र ा हे तु

जड़ बनने का अिभनय न करे !

तु हार आहट सुन

खरगोश कुलाच भर-भर न छलाँगे


सरपट न भागे !

ले कन

दरू-दरू रहना

सजग-सतक

इस आदमजाद से !

जो-

न फुफकारता है , न दहाड़ता है ,

अपने मतलब के िलए

सीधा डसता है ,

िछप कर हमला करता है !

कभी-कभी य ह

इसके-उसके परखचे उड़ा दे ता है !

फर चाहे वह

आदमी हो, पशु हो, प ी हो,

फूल हो, प ी हो, िततली हो, जुगनू हो !

अपना, बस अपना

उ लू सीधा करने
यह आदमी

बड़ा मीठा बोलता है ,

सुनने वाले कान से मधुरस घोलता है !

ले कन

दबाए रखता है वषैला फन,

दरवाजे पर सादर द तक दे ता है ,

’जयराम जी‘ क करता है !

तु हारे गुण गाता है !

और फर

सब कुछ तबाह कर

हर तरफ से तु ह तोड़ कर

तडपने-कलपने छोड़ जाता है !

आदमी के सामने ढाल बन कर जाओ,

भूख-े नंगे रह लो

पर, उसक चाल म न आओ !

ऐसा करोगे तो

सौ बरस जओगे, हँ सोगे, गाओगे !


*

इस थित को बदलना है

क आदमी आदमी को लूटे,

उसे लहलु
ू हान करे,

हर कमजोर से बला कार करे ,

िन नृशस
ं हार करे ,

अ याचार करे !

और फर

मं दर, मस जद, िगरजाघर, गु ारा जाकर

भजन करे ,

ई र के स मुख नमन करे !

(१२) इितहास का एक पृ

सच है -

िघर गये ह हम

चार ओर से

हर कदम पर

नर-भ य के च यूह म,
भ चक-से खड़े ह

लाश -ह डय के

ू म !
ढह

सच है -

फँस गये ह हम

चार ओर से

हर कदम पर

नर-भ य के दरू तक

फैलाए- बछाए जाल म,

छल-छ क

उनक िघनौनी चाल म !

बा द सुरंग से जकड़ कर

कर दया िन य

हमारे लौह-पैर को

हमार श शाली ढ़ भुजाओं को !

भर दया घातक वषैली गंध से

दग
ु ध से
चार दशाओं क हवाओं को !

सच है -

उनके ू र पंज ने

है दबा रखा गला,

भींच डाले ह

हर अ याय को करते उजागर

दहकते र म अधर !

म त क क नस-नस

ववश है फूट पड़ने को,

ठठक कर रह गये ह हम !

खं डत परा म

अ त व / स ा का अहम ् !

सच है क

आ ामक- हारक सबल हाथ क

जैसे छ न ली मता वरा-

अब न हम ललकार पाते ह

न चीख पाते ह,
वर अव

मानवता- वजय- व ास का,

सूया त जैसे

गित- गित क आस का !

अब न मेधा म हमार

ांितकार धारणाओं-भावनाओं क

कडकती ती व ुत क धती है ,

चेतना जैसे

हो गयी है सु न जड़वत ् !

चे ाह न ह / मजबूर ह,

है रान ह,

भार थकन से चूर ह !

ले कन

नह ं अब और

थर रह सकेगा

आदमी का आदमी के ित

हं सा- ू रता का दौर !


*

ढ़ संक प करते ह

क ठन संघष करने के िलए,

इस थित से उबरने के िलए !

(१३) वसुधैवकुटु बकम ्

जाित, वंश, धम, अथ के नामाधार पर

आदमी आदमी म करना

भेद- वभेद,

कसी को िन न

कसी को ठहराना े ,

कसी को कहना अपना

कसी को कहना पराया-

आज के उभरते-सँवरते नये व म

गंभीर अपराध है ,

अ य अपराध है ।

करना होगा न -
ऐसे य को / ऐसे समाज को

जो आदमी-आदमी के म य

वभाजन म रखता हो व ास

अथवा

िनधनता चाहता हो रखना कायम।

स दय के अनवरत संघष का

सह-िच तन का

िन कष है क

हमार -सबक

जाित एक है - मानव,

हमारा-सबका

वंश एक है - मनु- ा,

हमारा-सबका

धम एक है - मानवीय,

हमारा-सबका

वग एक है - िमक।

रं ग प क विभ नता
सु दर व वध पा कृ ित है ,

इस पर व मय है हम

इस पर गव है हम,

सुदरू आ दम युग म

ल बी स फ द ू रय ने

हम िभ न-िभ न भाषा-बोल दए,

िभ न-िभ न िल प-िच ह दए।

क तु आज

इन द ू रय को

ान- व ान के आलोक म

हमने बदल दया है नजद कय म,

और िल प-भाषा भेद का अँधेरा

जगमगा दया है

पार प रक मेल-िमलाप के काश म,

मै ी-चाह के अद य आवेग ने

तोड़ द ह द वार / रे खाएँ

जो बाँटती ह हम

विभ न जाितय , वंश , धम , वग म।


*** (१४) ाचार

गाजर घास-सा

चार तरफ

या खूब फैला है !

दे श को हर ण

पतन के गत म

गहरे ढकेला है ,

करोड़ के

बहमू
ु य जीवन से

ू र वहशी

खेल खेला है !

व जत गिलत

यवहार है ,

द ू षत

आचार है ।

** (१५) अंत

जमघट ठग का

कर रहा जम कर
पर पर मु जय-जयकार !

शीतक-गृह म बस

फलो-फूलो,

वजय के गान गा

िन त च कर खा,

हँ डोले पर चढ़ो झूलो !

जीवन सफल हो,

हर सम या शी हल हो !

धन सव व है , वच व है ,

धन-तेज को पहचानते ह ठग,

उसक असीिमत और अपर पार म हमा

जानते ह ठग !

क तु;

सब पकड़े गये

कानून म जकड़े गये

िस वामी; राज नेता सब !


धूत मं ी; धमचेता सब !

अच भा ह अच भा !

ह डं बा है ; नह ं र भा !

मुखौटे िगर पड़े नकली

मुखाकृ ित दख रह असली !

(१६) र ा

दे श क नव दे ह पर

िचपक हई

जो अनिगनत ज के-जलौक,

र -लोलुप

लोभ-मो हत

बुभु त

ज के-जलौक-

आओ

उ ह नोच-उखाड़े ,

धधकती आग म झ क !
उनक

आतुर उफनती वासना को

फैलने से

सब-कुछ लील लेने से

अ वल ब रोक !

दे श क नव दे ह

ू नह ,ं
य टटे

खुदगरज कुछ लोग

वकिसत दे श क स प नता

लूटे नह ं !

(१७) तमाशा

तुम भी िघसे- पटे िस के

फक कर चले गये*?

अफसोस

क हम इस बार भी छले गये*!

दे खो-
खोटा िस का है न

’धम-िनरपे ता‘ का ?

और दसरा
ू यह

’सामा जक याय- यव था‘ का ?

मा ये नह ं

और ह सपाट िघसे काले िस के-

’रा ीय एकता‘ के / ’सं वधान-सुर ा‘ के

जो तुम इस बार भी

वदषक
ू के काय-कलाप -सम

फक कर चले गये*!

तुम तो भारत-भा य- वधाता थे !

तुमसे तो

चाँद -सोने के िस क क

क थी उ मीद,

क तु क कैसी िम ट पलीद !

अ त
ु अंधेरे तमाशा है

घनघोर िनराशा है ,
यह कस जनतं - णाली का ढाँचा है ?

जनता के मुँह पर

तड़-तड़ पड़ता ती तमाचा है !

(१८) वोट क द ु नीित

दिलत क गिलय से

कूच और मुह ल से,

उनक झोप प ट के

बीच -बीच बने-िनकले

ऊबड़-खाबड़, ऊँचे-नीचे

पथर ले-कँकर ले सँकरे पथ से

िनकल रहा है

दिलत का

आकाश गुँजाता, नभ थराता

भ य जुलूस !

नह ं कराये के

गलफोडू नारे बाज नकलची

असली है , सब असली ह जी-


मोटे -ताजे, ह टे -क टे

मु टं डे-प ठे ,

कुछ त द िनकाले गोल-मटोल

ओढे महँ गे-महँ गे खोल !

सब दे ख रहे ह कौतुक-

दिलत के

नंग-धड़ं ग घुटमुंडे

काले-काले ब चे,

मैली और फट

च ड -बिनयान वाले

लड़के-फड़के,

झ पडय के बाहर

घूँघट काढ़े दिलत क माँ-बहन

या कहने !

िच -िलखी-सी दे ख रह ह,

पग-पग बढ़ता भ य जुलूस,

दिलत का र क, दिलत के हत म

भरता हँु कार, दे ता ललकार


िच खँचाता / पीता जूस !

िनकला अित भ य जुलूस !

कल नाना ट वी-पद पर

दिनया
ु दे खग
े ी

यह ह , हाँ यह ह -

दिलत का भ य जुलूस !

अफसोस !

नह ं है शािमल इसम

दिलत क टोली,

अफसोस !

नह ं है शािमल इसम

दिलत क बोली !

(१९) घटनाच

हमने नह ं चाहा

क इस घर के

सुनहरे - पहले नीले

गगन पर

घन आग बरसे !
*

हमने नह ं चाहा

क इस घर का

अबोध-अजान बचपन

और अ हड़ सरल यौवन

यार को तरसे !

हमने नह ं चाहा

क इस घर क

मधुर वर-लह रयाँ

खामोश हो जाएँ,

यहाँ क भूिम पर

कोई

घृणा ितशोध हं सा के

वषैले बीज बो जाए !

हमने नह ं चाहा

लय के मेघ छाएँ

और सब-कुछ द बहा,
गरजती आँिधयाँ आएँ

चमकते इं धनुषी

व न-महल को

हला कर

एक पल म द ढहा !

पर,

अनचाहा सब

सामने घटता गया,

हम

दे खते केवल रहे ,

सब सामने

मशः


उजड़ता टटता हटता गया !

*** (२०) िन कष

उसी ने छला

अंध जस पर भरोसा कया,

उसी ने सताया

कया सहज िनः वाथ जसका भला !


*

उसी ने डसा

दध
ू जसको पलाया,

अनजान बन कर रहा दरू

या खूब र ता िनभाया !

अप रिचत गया बन

वह आज

जसको गले से लगाया कभी,

अजनबी बन गया

यार,

भर-भर जसे गोद-झूले झुलाया कभी !

हमसफर

मुफिलसी म कर गया कनारा,

ज दगी म अकेला रहा

और हर बार हारा !

*** (२१) आ म-संवेदन

हर आदमी
अपनी मुसीबत म

**** अकेला है !

यातना क रािश-सार

मा उसक है !

साँसत के ण म

आदमी ब कुल अकेला है !

संकट क रात

एकाक बतानी है उसे,

घुप अँधेरे म

करण उ मीद क जगानी है उसे !

हर चोट

सहलाना उसी को है,

हर स य

बहलाना उसी को है !

उसे ह

झेलने ह हर कदम पर
आँिधय के वार,

ओढने ह व पर चुपचाप

चार ओर से बढ़ते-उमड़ते वार !

सहनी उसे ह ठोकर-

दभा
ु य क,

अिभश जीवन क ,

क ठन चढ़ती-उतरती राह पर

कटु यं य करतीं

**** ू र- ड़ाएँ

अशुभ ार ध क !

उसे ह

जानना है वाद कड़वी घूँट का,

अनुभूत करना है

असर वष-कूट का !

अकेले

हाँ, अकेले ह !

य क सच है यह-

क अपनी हर मुसीबत म
अकेला ह जया है आदमी !

(२२) दशा-बोध

िनर ह को

दय म थान दो

सूनापन-अकेलापन िमटे गा !

जनको ज रत है तु हार -

जाओ वहाँ,

मुसकान दो उनको

अकेलापन बँटेगा !

अनजान ाणी

जो क

चुप गुमसुम उदास-हताश बैठे ह

उ ह बस, थपथपाओ यार से

मनहस
ू स नाटा छँ टेगा !

*
ज दगी म य द

अँधेरा-ह अँधेरा है ,

न राह ह, न डे रा है ,

रह-रह गुनगुनाओ

गीत को साथी बनाओ

यह णक वातावरण गम का

******* हटे गा !

ऊब से बो झल

अकेलापन कटे गा

(२३) वीकार

अकेलापन िनयित है,

हष से

झेलो इसे !

अकेलापन कृ ित है ,

कामना-अनुभूित से

ले लो इसे !

*
इससे भागना-बचना-

वकृ ित है !

मा अंगीकार करना-

एक गित है !

इसिलए वे छा वरण,

मन से नमन !

(२४) अवधान

कश-म-कश क ज दगी म

आदमी को चा हए

कुछ ण अकेलापन !

कर सके

गुजरे दन का आकलन !

कसका सह था आचरण !

कौन कतना था ज र

या क कसने क तु हार चाह पूर ,

यार कसका पा सके,

कसने कया वंिचत कपट से

क उपे ा
और झुलसाया

घृणा-भरती लपट से !

जानना य द स य जीवन का

**** त य जीवन का

अकेलापन बताएगा तु ह,

**** साथक जलाएगा तु ह !

वरदान -

सूनापन अकेलापन !

कसी को मत पुकारो,

पा इसे

मन म न हारो !

रे अकेलापन महत ् वरदान है ,

अवधान है !

(२५) सामना

प थर-प थर

जतना पटका
उतना उभरा !

प थर-प थर

जतना कुचला

उतना उछला !

क चड़ - क चड़

जतना धोया

उतना सुथरा !

कािलख - कािलख

जतना साना

जतना पोता

उतना िनखरा !

असली सोना

बन कर िनखरा !

जंजीर से

तन को जब - जब
कस कर बाँधा

खुल कर बखरा

उ र - द ण

पूरब - प म

बह - बह बखरा !

भार भरकम

चंचल पारा

बन कर लहरा !

हर खतरे से

जम कर खेला,

वार तु हारा

बढ़ कर झेला !

(२६) अकारथ

दन रात भटका हर जगह

सुख- वग का संसार पाने के िलए !

किलका खली या अध खली


झूमी मधुप को जब रझाने के िलए !

सुनसान म तरसा कया

तन-गंध रस-उपहार पाने के िलए !

या- या न जीवन म कया

कुछ पल तु हारा यार पाने के िलए !

डू बा व उतराया सतत

व ास का आधार पाने के िलए !

रख ज दगी को दाँव पर

खेला कया, बस हार जाने के िलए !

** (२७) असह

बहत
ु उदास मन

थका-थका बदन !

बहत
ु उदास मन !

उमस भरा गगन


थमा हआ
ु पवन

घुटन घुटन घुटन !

िघरा ितिमर सघन

नह ं कह ं करन

भटक रहे नयन !

बहत
ु िनराश मन

बहत
ु हताश मन

सुलग रहा बदन

जलन जलन जलन !

*** (२८) मूरत अधूर

तय है क अब यह ज दगी

**** मुहलत नह ं दे गी

अब और तुमको ज दगी

**** *फुरसत नह ं दे गी !

गुजरे दन क याद कर, कब-तक दहोगे तुम ?

वपर त धार से उलझ, कतना बहोगे तुम ?


रे कब-तलक तूफान के ध के सहोगे तुम ?

य खेलने क , ज दगी

**** नौबत नह ं दे गी,

अब और तुमको ज दगी

**** कूवत नह ं दे गी !

साकार हो जाएँ अस भव क पनाएँ सब,

आकार पा जाएँ चहचहाती चाहनाएँ सब,

अनुभूत ह मधुमय उफनती वासनाएँ सब,

यह ज दगी ऐसा कभी

**** ज नत नह ं दे गी,

यह ज दगी ऐसी कभी

**** क मत नह ं दे गी !

*** (२९) मजबूर

ज दगी जब दद है तो

हर दद सहने के िलए

मजबूर ह हम !
*

राज है यह ज दगी जब

खामोश रहने के िलए

मजबूर ह हम !

है न जब कोई कनारा

तो िसफ बहने के िलए

मजबूर ह हम !

ज दगी य द जलजला है

ू ढहने के िलए
तो टट

मजबूर ह हम !

आग म जब िघर गये ह

अ वराम दहने के िलए

मजबूर ह हम* !

स य कतना है भयावह !

हर झूठ कहने के िलए


मजबूर ह हम !

*** (३०) एक रात

अँिधयारे जीवन-नभ म

बजुर -सी चमक गयीं तुम !

सावन झूला झूला जब

बाँह म रमक गयीं तुम !

कजली बाहर गूँजी जब

िु त- वर-सी गमक गयीं तुम !

महक गंध यामा जब

पायल-सी झमक गयीं तुम !

तुलसी-चौरे पर आ कर

अलबेली छमक गयीं तुम !

सूने घर-आँगन म आ

द पक-सी दमक गयीं तुम !


*

(३१) सहसा

आज तु हार आयी याद,

मन म गूँजा अनहद नाद !

**** बरस बाद

**** बरस बाद !

साथ तु हारा केवल सच था,

हाथ तु हारा सहज कवच था,

**** सब-कुछ पीछे छूट गया, पर

**** जी वत पल-पल का उ माद !

**** आज तु हार आयी याद !

बीत गये युग होते-होते,

रात -रात सपने बोते,

**** ले कन उन मधु चल-िच से

**** जीवन रहा सदा आबाद !

**** आज तु हार आयी याद !

****
(३२) वागत१

जूह मेरे आँगन म महक ,

रं ग- बरं गी आभा से लहक !

चमक ले झबर ले कतने

इसके कोमल-कोमल कसलय,

है इसक बाँह म मृदता


है इसक आँख म प रचय,

**** भोली-भोली गौरै या चहक

**** लटपट मीठे बोल म बहक !

ल बी लचक ली ह रआई

डाल डगमग-डगमग झूली,

पाया हो जैसे धन विगक

कुछ-कुछ ऐसी हली


ू -फूली,

**** लगती है कतनी छक -छक

**** गह-गह गहन -गहन गहक !


*

महक , मेरे आँगन म महक

जूह मेरे आँगन म महक !

*** (१ पौ ी इरा के ित।)

*** (३३) वषा-पूव

आज छायी है घटा

**** काली घटा !

मह न क

तपन के बाद

अहिनश

तन-जलन के बाद

हवाओं से िलपट

लहरा उठा

ऊमस भरा वातावरण-आँचर !

कसी ने
डाल द तन पर

सलेट बादल क

रे शमी चादर !

मोह लेती है छटा,

मोद दे ती है घटा,

**** काली घटा !

(३४) कामना-सूय

*(१)** हर य सूरज हो

**** ऊजा-भरा,

**** तप-सा खरा,

******* हर य सूरज-सा धधकता

******* आग हो,

******* बेलौस हो, बेलाग हो !

*(२)** हर य सूरज-सा

**** खर,

**** पाब द हो,

**** रोशनी का छ द हो !
******* जाए जहाँ-

******* कण-कण उजागर हो,

******* असमंजस अँधेरा

******* क -बाहर हो !

(३) हर य सूरज-सा

**** दमकता दखे,

**** ऊ मा भरा

**** करण धरे ,

******* हर य सूरज-सा

******* चमकता दखे !

**** (३५) एक स य

****

**** ब धन

**** उभरता है - चुनौती बन

**** अ वीकृ ित बन,

**** जगाता है सतत

**** व ोह / बल / ितरोध /

**** वाला / ोध।

*
**** ब धन

**** उभरता - नेह क उपल ध बन,

**** वीकार बन,

**** जगाता -

**** मोह / अ य स ध / अपण चाह /

**** जीवन - दाह।

** (३६) उपल ध

****

**** सपन के सहारे

**** एक ल बी उ

**** हमने

**** सहज ह काट ली -

**** बडे सुख से

******* सहन से

******* स से !

**** मन के गगन *पर

**** मु मँडराती व घहराती

**** गहन बदली अभाव क


**** उड़ा द , छाँट द

**** हमने

**** अटल व ास के

******* ढ़ वेगवाह वातच से

**** दन के, रै न के

**** अनिगनत सपन के भरोसे !

**** मौन रह अ वराम जी ली

**** यह क ठनतम ज दगी

**** हमने

**** अमन से, चैन से !

**** सपनो !

**** महत ् आभार,

**** वृहत ् आभार !

****

****** (३७) वचार- वशेष

**** सपने आनन-फानन साकार नह ं होते

**** पीढ़ -दर-पीढ़ म- म से सच होते ह,

**** सपने माणव-मं से िस नह ं होते


*** पीढ़ -दर-पीढ़ धृित- म से सच होते ह !

****

****** (३८) साथकता

**** जस दन

**** मानव-मानव से यार करे गा,

**** हर भेद-भाव से

**** ऊपर उठ कर,

**** भूल

**** अप रिचत-प रिचत का अ तर

**** सबका वागत-स कार करे गा,

**** पूरा होगा

**** उस दन सपना !

**** व लगेगा

**** उस दन अपना !

****

**** (३९) अलम ्

****

**** आह और कराह से

**** नह ं िमटे गी
**** आहत तन क , आहत मन क पीर !

**** ढ़ आ ोश उगलने से

**** नह ं कटे गी

**** हाथ -पैर से िलपट जंजीर !

**** जीवन-र बहाने से

**** नह ं घटे गी

**** लहराती लपट क तासीर !

****

**** आओ -

**** पीड़ा सह ल,

**** बािधत रह ल,

**** पल-पल दह ल !

**** करवट लेगा इितहास,

**** इतना रखना व ास !

****

****** (४०) चाह


**** जीवन अबािधत बहे ,

**** जय क कहानी कहे !

**** आशीष-त -छाँह म

**** जन-जन सतत सुख लहे !

**** दन-रात मन-बीन पर

**** य गीत गाता रहे !

**** मधु- व न दे खे सदा,

**** झूमे हँ से गहगहे !

**** मायूस कोई न हो,

**** लगते रहे कहकहे !

**** हर य कु दन बने,

**** अ तर-अगन म दहे !

**** अ ात ार ध का
**** हर वार हँ स कर सहे !

**** (४१) स भव (१)

**** आओ

**** चोट कर,

**** घन चोट कर -

**** प रवतन होगा,

**** धरती क गहराई म

**** क पन होगा,

**** च टान क परत

******* चटखगी,

ू ,
**** अवरोधक टटगे

**** फूटे गी जल-धार !

**** आओ

**** चोट कर,

**** िमल कर चोट कर -

**** थितयाँ बदलगी,


**** प थर अँकुराएंगे,

**** लह-लह

**** पौध से ढक जाएंगे !

****

**** (४२) स भव (२)

**** आओ

**** टकराएँ,

**** पूर ताकत से टकराएँ,

**** आखर

**** लोहे का आकार

******* हलेगा,

**** बंद िसंह- ार

******* खुलेगा !

**** मु मशाल थामे

**** जन-जन गुजरगे,

**** कोने-कोने म

**** अपना जीवन-धन खोजगे !

**** नवयुग का तूय बजेगा,


**** ाची म सूय उगेगा !

**** आओ

**** टकराएँ,

**** िमल कर टकराएँ,

**** जीवन सँवरे गा,

**** हर वंिचत-पी ड़त सँभलेगा !

****

**** (४३) वपत

****

**** आखर,

**** गया थम !

**** उठा-

**** चीखता

**** तोड़ता - फोड़ता

**** लीलता

**** ु अंधड़ !

**** तबाह .... तबाह .... तबाह !

*
**** इधर भी; उधर भी

**** यहाँ भी; वहाँ भी !

**** द खते

**** ख डहर.... ख डहर.... ख डहर,

**** अनिगनत शव !

**** सव िन त धता,

**** थम गया रव !

**** दबे,

**** चोट खाये,

**** िधर - िस

**** मानव... मवेशी... प र दे

**** ववश तोड़ते दम !

**** भया ांत सुनसान म

**** सनसनाती हवा,

**** खा गया

**** अंग- ित-अंग

**** लकवा !
**** अपा हज

**** थका श -गितह न जीवन,

**** वगत-राग धड़कन !

**** भयानक कहर

**** अब गया थम,

**** बचे कुछ

**** उदासी-सने चेहरे नम !

**** सदा के िलए

**** खो

**** घर -प रजन को,

**** बलखते

**** बेसहारा !

**** असह

**** का णक

**** य सारा !

**** चलो,
**** तेज अंधड़

**** गया थम !

**** गहरा गमजदा हम !

**** (४४) व-तं

**** आकाश है सबके िलए,

**** अवकाश है सबके िलए !

**** वहगो !

**** उड़ो,

**** उ मु पंख से उड़ो !

**** ऊँची उड़ान

**** श -भर ऊँची उड़ान

**** दरू तक

**** वहगो भरो !

**** व ास से ऊपर उठो;

**** ग त य तक पहँु चो,


**** अभी सत ल य तक पहँु चो !

**** ऊँचे और ऊँचे और ऊँचे

**** ती विन-गित से उड़ो,

**** िनडर होकर उड़ो !

**** आकाश यह

**** सबके िलए है-

**** असीिमत

**** शू याकाश म

**** जहाँ चाहो मुड़ो,

**** जहाँ चाहो उड़ो

**** ऐसे मुड़ो; वैसे मुड़ो,

**** ऐसे उड़ो; वैसे उड़ो,

**** सु वधा व सुभीते से उड़ो !

****

**** अपने ा य को

******* हािसल करो !

**** व छं द हो, िन हो,


**** ऊ वगामी, ऊ वमुख;

**** गगनचु बी उड़ान

**** दरू तक

******* वहगो भरो !

**** न हो

**** कोई कसी क राह म,

**** बाधक न हो

**** कोई कसी क

**** पूण होती चाह म !

**** वाधीन ह सब

**** वानुशासन म बँध,े

**** हम-राह ह

**** सँभले सधे !

(समा )

**** *

संपक:

डा. मह भटनागर
११० बलवंतनगर, गांधी रोड,

वािलयर - ४७४ ००२ (म. .)

फोन : ०७५१-४०९२९०८

ई-मेल :

drmahendrabh@rediffmail.com

(इस पीड एफ़ ई-बुक का िनमाण व काशन रचनाकार – http://rachanakar.blogspot.com


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