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नमस्कार, में विविन राठौर और में साक्षी माहे श्वरी

आज की इस िािन बेला में हम स्वागत करते है हमारे संसथान के वनदे शक महोदय –


डॉ. एन.एस.रघुिंशी जी, राजभाषा कायाा न्वयन सवमवत की संयोवजका – सूवि श्रीिास्ति
मेम, संयोजक डॉ िंकज स्वर्ाकार सर एिं याहा उिस्थथत सभी आदरर्ीय महानुभाि एिं
मेरे विय वमत्र। आज हमारे वबि उिस्थथत है डॉ कविल वतिारी जी।

आि एक िख्यात िक्ता ि संिादक है । आिने त्योहारों और आख्यानों िर 70 से अविक


वकताबो का संिादन और िकाशन वकया है । आि इं वडयन कौंवसल फॉर कल्िरल
रे लावतओंस में सदस्य मनोनीत है । आई.सी.सी.आर का केंद्र अब तक दे श की शास्त्रीय
कलाओ िर रहा है । आिके द्वारा वलखे गए उद्धरर् अत्यंत िेरर्ादायक ि गहरे अथो िाले
होते है ।

आि गत अनेक िषो से लोक एिं जन जीिन से समविात अिना अध्ययन मध्य िदे श के
सागर में स्थथत डॉ हरीवसंह गौर विश्वविद्यालय से कर रहे है । आिके द्वारा विविि िनिासी
समुदायों के सावहत्य का वहं दी में संग्रह िशासनीय सिेक्षर् वकया है । कबीर की छाि के
एक हज़ार लोक िदों को संग्रवहत तथा िकावशत वकया है । वहं दी भाषी क्षेत्रो की िरम्परा
में राम्कथािर केस्ित लोकगीतों को सं गृहीत वकया हे । दो मागादशाक सवमवत यो में आि
सदस्य भी है । में हमारे राजभाषा कायाा न्वयन सवमवत के अध्यक्ष जी से आग्रह करती हु की
िे डॉ कविल वतिारी जी का िुष्पगुच्छ से स्वागत करे ।

अब में डॉ वतिारी सर से आग्रह करुँगी की िे मंि िर ििारे और अिने िेरर्ादायाक


आवशिाच्नो से हमे अनुग्रवहत करे ।

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