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आि गत अनेक िषो से लोक एिं जन जीिन से समविात अिना अध्ययन मध्य िदे श के
सागर में स्थथत डॉ हरीवसंह गौर विश्वविद्यालय से कर रहे है । आिके द्वारा विविि िनिासी
समुदायों के सावहत्य का वहं दी में संग्रह िशासनीय सिेक्षर् वकया है । कबीर की छाि के
एक हज़ार लोक िदों को संग्रवहत तथा िकावशत वकया है । वहं दी भाषी क्षेत्रो की िरम्परा
में राम्कथािर केस्ित लोकगीतों को सं गृहीत वकया हे । दो मागादशाक सवमवत यो में आि
सदस्य भी है । में हमारे राजभाषा कायाा न्वयन सवमवत के अध्यक्ष जी से आग्रह करती हु की
िे डॉ कविल वतिारी जी का िुष्पगुच्छ से स्वागत करे ।