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आ खर पड़ाव का द:ु ख

(कहानी सं ह)

लेखक
सभाष
ु नीरव

भावना काशन, द ल .110091

1
I.S.B.N. : 978-81-7667-202-3

कॉपीराइट : सभाष
ु नीरव

मू य : 150.00 पये ।

काशक : भावना काशन


109-ए, पटपड़गंज, द ल -110091
दरभाष
ू : 011-22756734

थम सं करण : सन ् 2007

श द संयोजन : पंकज ा फ स, द ल -92

आवरण प रक पना : राजकमल

मु क : पाराशर ं टस, सीलम परु, द ल -110053

Aakhiri Padav ka Dukh by Subhash Neerav

2
आ ख़र पड़ाव का द:ु ख
सभाष
ु नीरव क कहा नयाँ

म प सं ह च दे ल
एवं
बलबीर माधोपरु
के नाम....

3
लेखक क ओर से...

मेरा पहला कहानी-सं ह ''दै य तथा अ य कहा नयाँ'' वष


1990 म का शत हआ
ु था और दसरा
ू कहानी-सं ह ''औरत
होने का गनाह
ु '' वष 2003 म। बीच म लगभग 13 वष का
एक ल बा अंतराल रहा। इस ल बे अंतराल के जहाँ कई कारण
रहे , उनम एक मख
ु कारण यह रहा क अपने मौ लक लेखन
से अ धक म अनवाद
ु क ओर उ मख
ु हो गया था। पंजाबी
भाषा के े सा ह य- कहानी, उप यास, लघकथा
ु , आ मकथा
और क वता- का चरु मा ा म ह द अनवाद
ु इसी अव ध म
कया। अनवाद
ु काय अभी भी जार है ले कन अपने मौ लक
लेखन म इधर मने कसी कार का ग तरोध नह ं आने दया।
कहा नयाँ, लघकथाएँ
ु (और क वताएँ भी) नरं तर लखता रहा हूँ,
य प इसक ग त कभी तेज नह ं हो पाई, धीमी ह रह ।
अपनी कहा नय के बारे म अपनी ओर से 'कछ
ु कहना' मझे

कभी अ छा नह ं लगा। कहा नयाँ लखने के बाद पाठक के
लए छोड़ द ं। आ खर, अ छ या बरु का फैसला तो उ ह ह
लेना होता है । ''आ खर पड़ाव का द:ु ख'' मेरा तीसरा कहानी-
सं ह पाठक के स मख
ु है । इस सं ह क कहा नय के बारे म
म अपनी ओर से कोई ट पणी नह ं करना चाहता। ये कहा नयाँ
वयं पाठक से संवाद रचाएं गी और अपने बारे म बताएंगी।

इस भू मका के बहाने म अपने उन कछे


ु क अंतरं ग लेखक म
को याद कर लेना ज़ र समझता हूँ, िज ह ने न केवल समय-
समय पर मेर कहा नय को लेकर चचा क , बि क कसी भी

4
दं द-फंद से अलग बैठे मेरे जैसे लेखक का उ साहवधन भी करते
रहे । इनम प सं ह च दे ल, बलराम अ वाल, सरेु श यादव,
सु ी अलका स हा, बलबीर माधोपरु (पंजाबी क व) और
बल वं दर सं ह बराड़(पंजाबी कथाकार) मख
ु ह।

यहाँ ी सतीश च म ल, भावना काशन( द ल ) का भी म


दय से आभार हूँ, िज ह ने मेरे इस कहानी-सं ह को का शत
कर आप तक पहचाने
ुँ का बीड़ा उठाया।

- सभाष
ु नीरव

5
अनु म

आवाज़/8
अ तत:/15
दै य/22
चिु पय के बीच तैरता संवाद/33
वेलफेयर बाबू/46
इतने बरेु दन/59
साँप/66
आ खर पड़ाव का द:ु ख/84
लौटना/93
जीवन का ताप/108
सफ़र म आदमी/ 115
एक और क बा/117
मक ड़याँ/119
चटके घड़े/121

6
आवाज़

पापा को कह ं बाहर जाना था। कल रात दकान


ु से लौटकर पापा ने बस
इतना ह कहा क वह सबह
ु सात बजे वाल े न पकडग़े और परस
लौटगे, कुछ लोग के साथ। यह सब बोलते समय पापा का वर कतना
ठं डा था। ऐसा लगा, जैसे कछ
ु छपा रहे ह ।
सबह
ु वह पापा से पहले उठ गई। पापा को जगाया और खद
ु काम
म लग गई। पापा अममन
ू छह-साढ़े छह बजे तक उठ जाया करते ह। जब
तक वह नहा-धोकर तैयार होते ह, वह सारा कामकाज नपटा चक
ु होती
है। पापा आठ बजे तक नकल जाया करते ह- दकान
ु के लए। नौ बजे
तक वह भी कालेज के लए नकल पड़ती है। पं क का कल
ू उसके रा ते
म पड़ता है , इस लए रोज उसे अपने साथ लाती-ले जाती है वह।
आज छु ी का दन है। छु ी के दन वह खद
ु को बहत
ु अकेला
ू करती है। अकेलेपन का अहसास न हो, इस लए वह खद
महसस ु को घर
के हर छोटे -मोटे काम म जानबझकर
ू उलझाये रखती है।

पापा के चले जाने के बाद उसने परेू मन से घर क साफ-सफाई क ।


खड़क -दरवाज के पद धोकर सखने
ू के लए डाल दए। द वार पर क
ू को झाड़ा-प छा और खड़ कय के शीशे चमका दए। और तो और,
धल
सी लं ग-फैन को भी साफ कर दया है और से फ म इधर-उधर बखर पड़ी
पु तक भी कर ने से सजा द ह।
कल 'कछ
ु लोग' आ रहे ह, पापा के साथ। 'कछ
ु लोग...' उसके परेू
शर र म सहरन-सी दौड़ गई यह सोचकर। णांश, उसके तन और मन

7
म गदगद
ु ु -सी हई
ु और दसरे
ू ह ण भय और घबराहट। दय क धड़कन
बढ ग ।...
कैसे वह उन लोग के स मख
ु जा पाएगी ? वे या- या
करगे उससे ? पहला अवसर है न... वह तो एकदम नवस हो जाएगी।
म मी जी वत होती तो बहत
ु सहारा मल जाता। उसक सहे ल समन
ु ने
ऐसे अवसर के कतने ह क से एका त म बैठकर सनाये
ु ह उसे। उन
क स क याद आते ह उसका दल घबराने लगता है। कैसे अजीब-अजीब
से पछते
ू ू े शन कहाँ तक ल है ? स जे
ह ये लोग ! एजक स या-
या थे ? यह वषय ह य लया ? खाना बनाने के अलावा और या-
या जानती हो ? फ म दे खती हो ? कतनी ? कैसी फ म अ छ
लगती ह ? वगैरह-वगैरह। अ छा-खासा इंटर यू ! उ र 'हाँ' 'न' म नह ं
दया जा सकता। कछ
ु तो बोलना ह पड़ता है। शायद, मंशा यह रहती हो

ू ी तो नह ं, हकलाती तो नह ं। लड़क को जानबझकर


क लड़क कह ं गंग ू
इधर-उधर बठाएंगे-उठाएंगे, उसक चाल परखगे। कह ं पांव दबाकर तो
नह ं चलती ? यानी हर तरह से दे खने क को शश क जाएगी।

कई दन से पापा कछ
ु यादा ह परे शान से नज़र आते ह। कहते तो कछ

नह ,ं पर उनक चु पी जैसे बहत
ु कछ
ु कह जाती है। सबह
ु पापा के कमरे
म अधजल सगरे ट का ढे र दे खकर वह हैरत म पड़ जाती है। पहले तो
पापा इतनी सगरे ट नह ं पीते थे !... लगता है , पापा रात भर नींद से
कशमकश करते रहते ह। रातभर जझते
ू रहते ह अपने आप से, अपनी
अ तरं ग परे शा नय से।
ले कन, उसे लेकर अभी से इतना परे शान होने क या ज़ रत है ?
भीतर ह भीतर घटते
ु रहने क या आव यकता है ? या पापा अपनी
च ता को, अपनी परे शा नय को उससे शेयर नह ं कर सकते ? वह
जवान होने पर या इतनी परायी हो गई है ? इस तरह के न जाने
कतने उसके अंदर धमाचौकड़ी मचाये रहते ह आजकल।

8
पापा ऐसे न थे। कतना बड़ा प रवतन आ गया है, पापा म अब। म मी
क मौत ने उ ह भीतर से तोड़कर रख दया है जैसे। कतने हँसमख
ु थे
पहले ! इस घर म कहकहे गँूजते थे उनके ! दकान
ु पर भी यादा नह ं
बैठते थे। जब-तब कसी न कसी बहाने से घर आ जाया करते थे। यार
से उसे 'मोट ' कहा करते थे। म मी से अ सर कहा करते- ''दे खो,
बलकल
ु तु हार तरह नकल रह है। जब तु ह याहकर लाया था, तम

ठ क ऐसी ह थीं।...''
म मी पहले तो ल जा जातीं, फर नाराजगी जा हर करते हए

कहतीं, ''यह या हर समय मेर बेट को 'मोट -मोट ' कहा करते हो ?
नाम नह ं ले सकते ?''
म मी क याद आते ह उसक ऑ ं ख भीग ग । कतना चाहती थीं
उसे ! जवानी क दहल ज पर पांव रख ह रह थी क यकायक उसने
म मी को खो दया। वह दन उसे भल
ू सकता है या ?... नह ,ं कदा प
नह ं। वह य उसक ऑ ं ख के सामने अब भी तैर जाता है। िज़ दगी
और मौत के बीच संघष करती म मी। म मी मरना नह ं चाहती थी और
मौत थी क उ ह और िज दा नह ं रहने दे ना चाहती थी। ऐसे ददनाक
ण म म मी को उसी क च ता थी। आ खर सांस लेने से पहले म मी
ने पापा से कहा था- ''दे खो, सु म को अ छे घर याहना। मेर पर -सी बेट
का राजकमार
ु -सा द ू हा हो।''
पापा ने शायद तब पहल बार महसस
ू कया होगा क उनक बेट
जवान हो रह है। उसके लए अ छा-सा वर ढँू ढ़ना है। और शायद तभी से
पापा क खोज जार है।

पापा का उदास, चि तत चेहरा कभी-कभी उसे भीतर तक ला


दे ता है। ऐसे म, दौड़कर पापा क छाती से लपट जाने और यह कहने क
इ छा होती है क पापा, म अभी शाद नह ं क ँ गी। अभी तो म बहत

छोट हँू ।... ले कन, कहाँ कह पाती है यह सब। पापा और उसके बीच,
म मी क मौत के बाद जो खाई उभर आई है, चिु पय से भर , उसे वह

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मटा नह ं पाती। या जवान होने का अहसास, बाप-बेट के बीच इतनी
खाइयाँ पैदा कर दे ता है ! बस , वह सोचती भर रह जाती है यह सब।

''म ज दबाजी म कछ
ु नह ं करना चाहता।'' पापा का अ फट
ु -सा
वर।
''ठ क है , आप अ छ तरह सोच ल।'' बचौ लयानमा
ु य क
आवाज़।
''...''
''पर, नणय तो आपको ह करना है , द ु नया का या है ?''
दबी-दबी जबान
ु म होतीं इस कार क बात के कछ
ु टकड़े
ु बगल
के कमरे म बैठे हए
ु या कचन म चाय तैयार करते समय उसके कान म
अ सर पड़ते रहते ह। पछले कछु मह न से इन लोग का आना-जाना
बढ़ा है। कौन है ये लोग, वह नह ं जानती।
पछले कई दन से पापा कई बार मौसी और मामा के घर आये -
गए ह। िजतनी ज द -ज द उनके यहाँ आना-जाना हआ
ु है पछले दन ,
पहले नह ं होता था। पापा य आजकल बार-बार मौसी और मामा के यहाँ
आते-जाते ह ? आ खर, बेट का मामला ठहरा। कोई कदम उठाने से
पहले वह अपने से बड़ क राय ले लेना चाहते ह शायद। ले कन, यह भी
सह है, पापा जब-जब मौसी और मामा के घर से लौटे ह, यादा ह थके
और मायस
ू -से लौटे ह।

कभी-कभी वह सोचती है , अभी तो इ टर ह कया है उसने। घर


का सारा कामकाज उसी के कंध पर है। पं क क दे खभाल भी उसे ह
करनी पड़ती है। म मी क मौत के समय तो वह बहत
ु छोट थी। वह
उसके लए सब कछ
ु है- म मी भी, द द भी।
वह चल जाएगी तो कौन करे गा घर का सारा काम ? पापा तो
दकान
ु पर रहते ह, सारा-सारा दन। शायद, तब कोई आया रख ल। पर,
ऐसे म पं क क पढ़ाई, उसक दे खभाल, उसका वकास या सह ढं ग से

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हो पाएगा ? या सोचकर पापा इतनी ज द मचा रहे ह ? शायद, लड़के
वाले ज द म ह और पापा को लड़का जँच गया हो।
मन म उठते जाने कतने ह के उ र वह खद
ु ह गढ़ लेती है
और उनसे संतु भी हो जाती है। ले कन, जवान होती उ के साथ-साथ
दल म उमंग का वार कभी-कभी इतनी जोर से ठाठ मारने लगता है
क वह ज़मीन से उठकर आकाश छने
ू लगती है। अकेले बैठे-बैठे वह सपन
क रं गीन द ु नया म पहँु च जाती है। लड़ कयाँ शायद इस उ म ऐसे ह
व न दे खती ह। अपने सपन के राजकमार ु क श ल आसपास के हर
जवान होते लड़के से मलाती ह। उनका हर व न पहले से यादा हसीन
और खबसरत
ू ू होता है। आसपास गल -मोह ले म कह ं बारात चढ़े गी तो
दौड़कर बारात दे खने म आगे रहगी। और तो और, घोड़ी पर सवार कसी
के सपन के राजकमार
ु से अपने -अपने सपन के राजकमार
ु क तलना

करगी। हर बार उ ह अपने सपन का राजकमार
ु अ धक हसीन नज़र आता
है। तन-मन को एक सख
ु गदगदाता
ु ु हआ
ु बह जाता है। ऐसा सख
ु जो न
अपने म ज़ ब कए बनता है और न ह कसी से य कए। ऐसे म,
कसी अ तरं ग साथी क , म क , बेइंतहा ज़ रत महसस
ू होती है।
आजकल उसके साथ भी तो ठ क ऐसा ह हो रहा है। जब कभी वह
खाल होती है, वयं को ऐसे ह सपन से घरा हआ
ु पाती है। उसे लगता
है, वह गल -मोह ले क औरत से , अपनी स खय से घर बैठ है ,
शरमायी-सी ! हथे लय पर महद क ठं डक महसस
ू हो रह है। ढोलक क
आवाज़ के साथ-साथ गीत के बोल उसके कान म गँज
ू ते ह-
ब ने के सर पे सेहरा ऐसे साजे
जैसे सर पे बांध ताज, राजे -महाराजे
लाडो ! तेरा ब ना लाख म एक
काहे सोच करे ...।

और तभी उसे म मी क याद आ जाती है। सपन के महल जाद ू


क तरह गायब हो जाते ह। उसके इद- गद गीत गातीं, चहलबाजी
ु करती
ि याँ नह ं होतीं, खामोश द वार होती ह। चिु पय से भरा कमरा होता है।
सामने, ठ क ऑ ं ख के सामने, टे बल
ु पर रखा म मी का मु कराता च

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होता है। बेजान ! वह उठकर म मी का च अपने सीने से लगा लेती है।
भीतर ह भीतर कोई रो रहा होता है उसके। म मी के बोल फर एकबारगी
हवा म तैरने लगते ह- ''सु म को अ छे घर याहना। मेर पर -सी बेट का
राजकमार
ु -सा द ू हा हो।''

आज पापा को लौटना है। कछ


ु लोग के साथ। जाने कब लौट आएं। न
पं क को कल
ू भेजा है, न ह वह खद
ु कालेज गई है। पं क को और
ु को तैयार करने म िजतना अ धक समय उसने आज लगाया, पहले
खद
कभी नह ं लगाया। िजतनी दे र आइने के सामने बैठ रह , खद
ु के चेहरे म
म मी का चेहरा ढँू ढ़ती रह । साड़ी म कतनी अ छ लगती है वह ! आज
उसने म मी क पस द क साड़ी पहनी है - ह के पीले रं ग क । साड़ी
पहनते समय उसे लगा, जैसे म मी उसके आस-पास ह खड़ी ह । जैसे
कह रह ह - ''नज़र न लग जाए तझे
ु कसी क !''
रह-रहकर उसका दल जोर से धड़कने लगता है।
शाम के चार बजे ह। बाहर एक टै सी के कने क आवाज ने
उसके दय क धड़कन तेज कर द है। धक् ...धक् ... धड़कन क आवाज़
कान म साफ सनाई
ु दे ती है। पंक दौड़कर, खोजती हई
ु -सी उसके पास
आई और फर चपचाप
ु बना कछ
ु कहे -बोले बैठक म चल गई। उसक
सहमी-सहमी ऑ ं ख म कौतहल
ु साफ दखाई दे रहा था। बगल के कमरे म
होने के बावजद
ू उसने हर ण के य को अपनी ऑ ं ख से पकड़ने क
को शश क ।...
पापा क आवाज़ उसे प सन
ु ाई दे ने लगी। कैसे हँस-हँसकर बात
कर ह पापा ! पापा क आवाज़ म अचानक हए ु इस प रवतन को दे ख वह
च क गई। बलकल ु वैसी ह आवाज़ ! जैसी म मी के रहते हआ
ु करती
थी। उसके चेहरे पर एकाएक खशी
ु क एक लहर दौड़ गई। कब से तरस
रह थी वह, पापा क इस आवाज़ के लए।
पापा ने सहमी-सहमी-सी खड़ी पं क को शायद गोद म उठा लया
है। यार से चमते
ू ु बोले ह, ''यह है हमार
हए पं क ब टया...।''

12
''अरे बेटे, तमने
ु कसी को नम ते नह ं क ?... नम ते करो
बेटे... अ छा इधर दे खो... ये कौन है ?... ये ह... तु हार ... नई
म मी...।''
नई म मी !
वह त ध रह गई।
सहसा, उसे लगा क वह हवा म उड़ रह थी और अभी-अभी कसी
ने उसके पर काट दए ह। वह ज़मीन पर आ गर है -ध म ् से ! इसक
तो उसने क पना तक न क थी !
उसक समझ म कछ
ु नह ं आया। धराशायी हए
ु सपन पर ऑ ं सू
ु हो ! एकाएक, उसने खद
बहाये या अपनी नई म मी को पाकर खश ु को
संभालने क को शश क और अगले ण के लए वयं को तैयार करने
लगी। यह सोचकर क न जाने कब पापा उसे बला
ु ल, नई म मी से
मलवाने के लए !
अब उसके कान पापा क आवाज़ का इ तज़ार कर रहे थे।

13
अ तत:

उसके चेहरे पर भय क रे खाएं खं च आई थीं और वह हाँफ रहा था।


बेतहाशा भागते हए
ु उसने यह दे खने-जानने क को शश नह ं क थी क
वह कहाँ और कस रा ते पर दौड़ रहा है। जहाँ, िजस तरफ रा ता मला,
वह उसी ओर दौड़ता रहा...दौड़ता रहा और अब आगे गल ब द थी।
उसने तेजी से इधर-उधर दे खा और वह ं कह ं छपने क जगह
तलाश करने लगा। ज द ह , उसक नगाह गल के आ खर मकान पर
पड़ी। वह भीतर घसा।
ु ग मय क दोपहर का स नाटा मकान के अहाते म
पसरा हआ
ु था। अहाते के बायीं ओर क द वार से सटकर मु गय का
दड़बा था। उसी से लगकर कछु आड़-कबाड़ रखा हआ
ु था। इसी आड़-कबाड़
म दो ट न क परानी
ु चादर द वार से इस तरह सटाकर रखी हई
ु थीं क
द वार और उनके बीच कछ
ु जगह बन गई थी। उसने अब आगे कछ ु नह ं
सोचा और तेजी से वह उसी म छपकर बैठ गया- दम साधे !
कछे
ु क पल ह बीते ह गे क बाहर ह का-सा शोर होता सनाई

दया। शोर धीरे -धीरे कर ब और तेज होता गया।
''कहाँ गया साला...''
''इधर नह ं आया शायद।''
''नह ,ं इधर ह दे खा था भागते...''
वर झ लाये और खीझे हए
ु थे। शोर सनकर
ु उसक ऑ ं ख खद
ु -ब-
खद
ु मंद
ु ग और वह मन ह मन ई र को याद करने लगा।
काफ दे र बाद उसने महसस
ू कया क वे लोग चले गए ह। फर
भी, अभी बाहर नकलना उसे खतरनाक लगा। वह कछ
ु दे र और वह ं
दबककर
ु बैठा रहा।

14
कछ
ु पल बाद ह उसने वहाँ से नकलना बेहतर समझा, य क
यहाँ भी अ धक दे र बैठना खतरे से खाल नह ं था। घर के अंदर से कसी
के नकलकर इधर ह आ जाने का डर था। हो सकता था, उसे यँू छपा
हआ
ु दे ख वह च ला उठे या पछताछ
ू आरं भ कर दे ।
वह वहाँ से उठकर बाहर नकल आया- गल म। गल सनसान
ु पड़ी
थी। वह बहत
ु चौक ना होकर आगे बढ़ने लगा। हर मोड़ से पहले वह
कता, ि थ त का जायजा लेता और इ मीनान हो जाने पर तेजी से मड़

जाता।

अब वह सड़क पर था।
दरू-दरू तक वे कह ं नह ं दख रहे थे। वे लोग जो उसके पीछे भागे
थे। उसने महसस
ू कया क उसक साँस अभी भी तेज-तेज चल रह थीं
और सीने म धकधक
ु ु मची थी।
वह तेज कदम के साथ मखज
ु रोड पर हो लया।
यह उसका पहला अवसर था। इससे पहले उसने ऐसा कभी नह ं
कया था। घर से नकला था, दबे
ू जी के कल
ू गया था। वहाँ से बस-
टॉप तक उसके दमाग म यह कतई नह ं था क वह ऐसा करे गा !
करना तो दरू, इसक क पना तक नह ं क थी उसने। यह सब कैसे, कस

ु , वह खद
ेरणा से अक मात ् हआ ु अचि भत था।
कसी से मालम
ू हआु था क गल न बर दो के दबे
ू जी ने एक
छोटा-सा कलू खोला है। उ ह एक मा टर क त काल ज़ रत है।
'सम थग ं ' वाल बात सोचकर वह आज सबह
ं इज बेटर दै न न थग ु -सबह

ह दबे
ू जी से उनके कल
ू म मला था। जब वह पहँु चा, दबे
ू जी खद
ु ह
ब च को पढ़ा रहे थे। कोई पचास-साठ ब चे थे।
''हाँ, ज़ रत तो है भई, एक मा टर क ।'' दबेू जी ने उसे बैठने के
ु कहा, ''पर छह सौ
लए कहकर अपने च मे का शीशा साफ करते हए
पये से अ धक नह ं दे ते हम।''
च मा ऑ ं ख पर चढ़ाकर दबे
ू जी ने उसक ओर एकटक दे खा और

ु -से बोले, ''तम


फर पहचानते हए ु ... तम
ु राम काश जी के बड़े लड़के तो
नह ं ?''

15
''जी...'' उसके मँुह से बस इतना ह नकला।
''बड़े नेक आदमी ह। म उ ह अ छ तरह से जानता हँू ।'' दबेू जी
अब तक अपनी कस
ु पर बैठ चक
ु े थे।
उसे लगा, उसका काम बन जाएगा। कछ
ु न होने से तो छह सौ
पये ह ठ क। घर से अ धक दरू नह ं है कल
ू क आने जाने म कराया
खच होगा, पैदल ह आना-जाना हो जाएगा। और फर कौन-सा हमेशा यह ं
पढ़ाते रहना है। अ छ नौकर मलते ह इसे छोड़ दे गा।
दबे
ू जी कछ
ु ु -से बोले, ''क मो तु हार ह ब हन है ?''
सोचते हए
''जी।'' इस पर वह थोड़ा च का।
''बड़ी अ छ लड़क है।'' दबेू जी ने तार फ क । वह चपचाप
ु सनता

भर रहा। एकाएक, दबे
ू जी बोले, ''ऐसा य नह ं करते, तम
ु क मो से
कहो, वह ब च को पढ़ा दया करे गी। वैसे भी वह घर म खाल पड़ी रहती
होगी। समय भी कट जाया करे गा और कछ
ु आ थक मदद भी हो जाया
करे गी, घर क ।''
उसने सामने बैठे दबे
ू जी क ऑ ं ख म झांका। ऑ ं ख से परे उनके
दल म झांका। वहाँ एक वाथ , लोभी, कामक
ु य दखाई दे रहा था।
क मो हाई- कल
ू पास थी। वह भी थड- डवीजन से और वह ेजूएट था-
ू आउट फ ट लास ! पर क मो लड़क थी और वह लड़का।
''तम
ु तो लयट लड़के हो। ू आउट फ ट लास रहे हो। कह ं न
कह ं तो जॉब मल ह जाएगा। यहाँ मेरे कल
ू म छह सौ प ल क
नौकर कर य अपना के रयर खराब करते हो...।'' दबे
ू जी ने समझाने के
अ दाज म कहा। सहसा, वह आगे क ओर झक
ु आए और धीमी आवाज
म बोले, ''तम ु कहो तो क मो को सात सौ दे दया क ँ गा।''
ु ... तम
उस लगा, उसके अंदर कछ
ु खोलने लगा है। उसने एक बार मेज
पर रखे पेपरवेट क ओर दे खा और फर दबे
ू जी क खोपड़ी क ओर। दबे

जी अभी भी उसक ओर नज़र गड़ाये थे।
वह कछ
ु कर पाता, इससे पहले ह वह वहाँ से उठकर बाहर आ
गया। बाहर आकर उसने प च ् से थका।
ू थकते
ू व उसे लगा, उसने
ज़मीन पर नह ं मानो दबे
ू के चेहरे पर थका
ू हो।

16
बस- टॉप पर खड़ा वह अपने घर क दन- त दन दयनीय होती जाती
ि थ त के वषय म सोच रहा था। अपनी बेकार के बारे म सोच रहा था।
दो वष से वह नर तर सड़क नाप रहा है। कई जगह ए लाई कया। कई
जगह पर इंटर यू भी दया। पर उसक क मत के ब द दरवाजे खलने

का नाम ह नह ं ले रहे थे। कह ं सोस तो कह ं र त आड़े आ जाती।

अभी कछ
ु दन पहले क ह तो बात है...
शहर क मशहर ू गु ा एंड क पनी म लक क जगह खाल थी।
उसने वहाँ खद
ु जाकर दर वा त लगाई। दर वा त लेने वाले य िजसे
बार-बार अपनी नाक के बाल न चने क आदत थी, ने सवाल फका था-
''कह ं काम कया है ?'' िजसका जवाब था- नह ं। दसरा
ू सवाल जैसे पहले
से ह तैयार था, '' कसी क सोस है ?'' इसका भी जवाब था- नह ं। एक
ह तरह के जवाब पाकर वह बौखला गया, '' फर यहाँ या करने आए
हो?... बेकार है बेकार...जाओ कह ं ओर जाओ...।''
उसने उस य को अपने सभी माणपदखाते हए
ु कछ
ु कहने
क को शश क । ले कन वह य झ ला उठा और उसके सभी माणप

ु लगभग चीखा, ''अरे भई, जानता हँू , तुम


को एक ओर करते हए ेजूएट
हो... थरू् आउट फ ट लास रहे हो... बी.ए. आनस म कया है... यह न!
पर आजकल इनको कौन पछता
ू ु यहाँ ए लाई करो, पर
है। भले ह तम
रखा तो वह जाएगा, िजसक सोस होगी या जो... जो...'' कहते-कहते वह
क-सा गया और फर अपनी नाक के बाल न चने लगा।
कुछे क पल इधर-उधर दे खने के बाद वह बोला, ''जो... जो जेब
गरम करने क है सयत रखता हो। यहाँ तो यह होता है भई। होता आया
है, और होता रहे गा। यहाँ या, सभी जगह होता है। समझे न !''
और फर वह अपने काम म जट
ु गया। वह थोड़ी दे र तक उस
य के पास खड़ा-खड़ा सोचता रहा। आ खर, उसने धीमे से पछ
ू ह
लया, ''भाई साहब, यह जेब कतने तक म गरम हो जाती है।''

17
उस य ने एकबारगी उसे ऊपर से नीचे तक दे खा और फर
आ ह ता से बोला, ''ढाई हजार पये क नौकर है, है न ? इससे दगने

से कम म या जेब गरम होगी। और फर, एक ह क जेब म तो जाता
नह ,ं बंटता है सब। समझे न !''
इतने पय के इंतजाम क बाबत पता से कहना फजल
ू था। वह
उनक त या से बखबी
ू वा कफ़ था। पता वह संवाद जोर-जोर से
च लाने लगगे िजसे सनते
ु -सनते
ु उसके कान पकने लगे ह, ''कहाँ से लाऊँ
इतने पये ?... खद
ु को बेच दँ ू या डाका डालँ ू ?... चोर क ँ ?...''
चीखते समय उनके मँुह से झाग नकलने लगेगा और नथने
ु फलने
ू लगगे।
पता क ऐसी त या वाभा वक ह है। वह तीन-तीन जवान
होती लड़ कय का बाप भी है। बड़ी क शाद के लए फंड के पैसे के
अलावा और कोई पैसा उसके पास नह ं है। प ी है , जो सदै व बीमार रहती
है और िजसक दवा-दा के लए हर मह ने काफ पैसा डा टर को चला
ु दे ख रहा है ,
जाता है। बेटे को जैसे -तैसे पेट काटकर पढ़ाया है। वह खद
पता दन-रात प रवार क च ता म कमजोर होते जा रहे ह। अपनी
साम य म िजतना होता है, करते ह। घर क हालत बद से बदतर होती
जा रह है। समय से पहले ह राशन-पानी ख म हो जाता है। और मह ने
के आ खर दन म तो फाक क -सी ि थ त रहती है।
वह खद
ु चाहता था क उसे छोट -मोट ह नौकर मल जाए
िजससे घर का छट ु खच वह स भाल ले। पर उसे लगता है, दरू-दरू
ु -पट
तक फैला बेकार का म थल कभी ख म नह ं होगा शायद।

बस- टॉप पर खड़े-खड़े वह यह सब सोच रहा था। सहसा, उसने अपने


पास वाले य क ओर दे खा। वह य जेब म से बटआ
ु नकालकर
छु े पैसे नकाल रहा था। बटए
ु म सौ और पाँच सौ के नोट थे। कतने
ह गे, पता नह ं। नोट को दे खते ह उसे ढाई हजार पये क नौकर याद
हो आई। फर, घर क दयनीय हालत... जवान बहन... अपनी
बेकार ...बीमार माँ... असहाय पता... और... तभी बस आ गई। जाने कब
और कैसे उसका हाथ भीड़ म बस पर चढ़ रहे उस आदमी क पछल जेब
पर चला गया। बस, फर एक शोर मचा और वह उस आदमी क गर त

18
म था। लोग का हजम
ु ू उस पर टट
ू पड़ा था। और वह जाने कैसे लोग क
टांग के बीच से होता हआ
ु िजधर भी रा ता मला, तेजी से उसी ओर
दौड़ पड़ा था।
अगर वह पकड़ा जाता... सोचते ह उसे कंपकंपी छट
ू गई।
चलते-चलते उसने दे खा, वह शहर के बीच बीच पहँु च गया था।
आसपास बड़ी-बड़ी इमारत थीं। द तर थे। दकान
ु थीं।
वह सड़क के चौराहे के बीच बने पॉक क ओर बढ़ा और हर घास
पर लेट गया। थोड़ी ह दे र बाद उसे नींद आ गई। जब उसक ऑ ं ख खल
ु ं
तो सामने बहमं
ु िजला इमारत के पीछे सरज
ू छपने क तैयार कर रहा
था। वह घास पर से उठकर फश पर सी ढ़य से लगकर बैठ गया।
अचानक, उसे याद आया क आज तो मंगलवार है। उसके जेहन
म यह बात तेजी से उभर क आज वह ज़ र बजरं ग बल क कपा
ृ से ह
पकड़े जाने से बाल-बाल बचा है। जाने कहाँ से एक ताकत उसके शर र म
आ गई थी क वह वयं को मजबतू गर त से छड़ाु ते हए
ु लोग क भीड़
को चीरता हआ
ु बजल क -सी फतु से दौड़ पड़ा था। उसने मन ह मन
बजरं ग बल को याद कया। बचपन म माँ के कहने पर वह हनमान ु
चाल सा का पाठ हर मंगलवार कया करता था। माँ उसे बताती थी क
चाल सा पढ़ने से वप याँ भी रा ता बदल लेती ह। एकाएक, उसके हाथ
म कछ
ु हरकत हई।
ु उसने इधर-उधर दे खा और लाल ट का छोटा-सा
टकड़ा
ु उठाकर फश पर बजरं ग बल का च बनाने लगा। च बनाते
समय उसक मन:ि थ त कसी ाथनारत् य -सी रह । च बनाने म
वह इतना त ल न था क उसे अहसास ह नह ं हआ
ु क उसके आस-पास
भीड़ जमा होना शु हो गई है ! च अभी पराू भी नह ं हआ
ु था क
टन ्...टन ्... क आवाज हई
ु और एक स का फश पर गरा। धीरे -धीरे और
स के गरे । च परा ू करके वह वहाँ से उठा और थोड़ा हटकर बैठ गया।
उसने दे खा, आते-जाते लोग एक ण वहाँ कते, मन ह मन शायद
णाम करते और फर जेब टटोलते। 'टन...
् न' से एक स का फश पर
फकते और आगे बढ़ जाते।

अंधेरा गहराने लगा था और फश पर अब काफ स के इक ा हो गए थे।


कछे
ु क पल वह और इंतजार करता रहा। वह चाहता था क लोग कम ह

19
तो वह उठे । कछ
ु ह दे र बाद उसने दे खा, दरू-दरू तक कोई दखाई नह ं दे
रहा था। वह फत
ु से उठा और आनन-फानन म सारे स के उठाकर पट
क जेब म डाल लए। खड़े होकर एकबारगी इधर-उधर दे खा और आसपास
कसी को न पाकर तेजी के साथ पॉक से बाहर नकल सड़क पर हो
लया।
अब सड़क पर ब याँ जगमगाने लगी थीं और वह घर क ओर
बढ़ रहा था।

20
दै य

वे दन मेर बेकार के दन थे। म इ टर कर चका


ु था और नौकर क
तलाश म था। माता- पता मझे
ु और आगे पढ़ाने म अपनी असमथता कट
कर चक
ु े थे। घर म मझसे
ु बड़ी दो बहन थीं- वमला और शा ता। वमला
जैसे-तैसे हाई- कल
ू कर चक
ु थी ले कन, शा ता आठवीं जमात से आगे न
बढ़ सक । माता- पता वैसे भी, लड़ कय को अ धक पढ़ाने के प म
कतई नह ं थे। उनका वचार था क अ धक पढ़ - लखी लड़ कय के लए
अपनी बरादर म वर ढँू ढ़ने म काफ मिु कल आती ह।
दोन बहन घर के कामकाज म माँ का हाथ बँटाती थीं। उन दोन
क बा रयाँ बंधी थीं। सबह
ु का काम वमला दे खती थी, शाम का शा ता।
बीच-बीच म माँ दोन का साथ दे ती रहती थी। पड़ोस क अपणा आंट से
वमला सलाई-कढ़ाई सीख चक
ु थी और शा ता अभी सीख रह थी।
पता एक सरकार फै टर म वकर थे। फै टर म सबह
ु -आठ बजे
से लेकर शाम पाँच बजे तक वह लोहे से कु ती लड़ते और शाम को हारे
हए
ु यो दा क भां त घर म घसते
ु । पछले एक साल से फै टर म ओवर-
ु ब द था। ओवर-टाइम का ब द होना, फै टर के वकर पर
टाइम बलकल
गाज गरने के बराबर होता था। केवल तन वाह म जैसे-तैसे ह खींच-
खांचकर मह ना नकलता। हमारे घर क आ थक ि थ त ठ क न थी
बि क दन-ब- दन और चरमराती जा रह थी। ऊपर से जवान होती
लड़ कय और बेकार बैठे लड़के क च ता, ये दो मख
ु कारण थे िजसके
कारण पता दन-रात परे शान रहते। च ता म उनका वा य बगड़ता
जा रहा था। धीरे -धीरे उनके शर र पर से मास गायब हो रहा था और
हि डयाँ उभरने लगी थीं। वह नौकर से रटायर होने से पव
ू दोन
लड़ कय क शाद कर दे ना चाहते थे। ऐसी ि थ तय म उनक नज़र मझ

21
पर टक ं थीं और वह कह ं भीतर से आशाि वत भी थे क उनका बेटा
इस वकट ि थ त म उनका सहारा बनेगा और उनके कंध पर पड़े बोझ
को कछ
ु ह का करे गा। म उनक ऑ ं ख म तैरती अपने त उ मीद क
करण को ना-उ मीद के अंधेर म त द ल नह ं होने दे ना चाहता था।
इसी लए म उस समय कसी भी तरह क छोट -मोट नौकर के लए
तैयार था। ले कन, नौकर पाना इतना आसान नह ं था। बे कार के
म थल म भटकते हए
ु मझे
ु एक साल से भी ऊपर का समय होने जा
रहा था, पर कह ं से भी उ मीद क ह क -सी भी करण दरू-दरू तक नज़र
न आती थी।
मेरे सामने जो बड़ी द कत थी, वह यह क घर पर कोई अखबार
नह ं आता था। पड़ोस म म कसी के घर बैठकर अखबार पढ़ना नह ं
चाहता था। दरअसल, म हर उस सवाल से बचना चाहता था िजसे हर

ु दे खकर मेर तरफ उछाल दे ता था, '' य ? कह ं लगे या अभी


कोई मझे
यँू ह ...'' इस सवाल का नकारा मक उ र दे ते हए
ु मझम
ु ह नता का बोध

ु लगता, म एक बेकार, आवारा, फालतू, नक मा


पैदा हो जाता और मझे
लड़का हँू िजसे अपने बढ़ाते
ु बाप पर ज़रा भी तरस नह ं आता... उस जैसे
लड़के तो ऐसी ि थ त म माँ-बाप का सहारा बनते ह और एक म हँू क...
अखबार के लए म सबह ु नौ-दस बजे तक घर से नकल पड़ता।
दो-एक कलोमीटर पर बने पनवाड़ी के खोख
पर पहँु च हचकते हएु
अखबार उठाता। एक पर ह द का अखबार दे खता तो दसरे
ू पर अं ेजी
का। अखबार कोई दसरा
ू पढ़ रहा होता तो मझे
ु इंतजार भी करना पड़ता।
अखबार म से ' स यएशन
ु वेकट' के कालम दे खता, कागज पर नोट
करता और पो ट आ फस जाकर ए ल केशन पो ट करता।
ठ क इ ह ं दन पता का प रचय राधे याम से हआ
ु था। राधे याम
एक ठे केदार था जो सरकार , गैर-सरकार कारखान से तरह-तरह के ठे के
लया करता था। सन ् 47 के वभाजन म पता लाहौर के िजस गाँव से
अपना सबकछ
ु गवां कर भारत आए थे, राधे याम भी उसी के आस-पास
के इलाके का था। यह कारण था क पता उसम दलच पी लेने लगे थे
और एक दन राधे याम को अपने घर पर ले आये थे। जीप जब हमारे
सरकार वाटर के बाहर आकर क तो वह मौह ले के ब च के लए

22
कौतहल
ु का वषय थी। आस-पड़ोस वाल के लए ऑ ं ख फाड़कर दे खने क
चीज- खैरातीलाल और उसके घर के बाहर जीप !
पता ने राधे याम से अपने ब च का प रचय कराया था, ''ये ह
मेर दोन लड़ कयाँ- वमला और शा ता। और यह है मेरा बेटा सशील
ु ...
अभी पछले साल इ टर कया है, सेके ड डवीजन म।''
राधे याम ने ब द गले का कोट पहन रखा था। गले म मफलर,
सर पर रोयदार टोपी। कुल मलाकर वह हमारे लए आकषण का के
था। पता ने सनाते
ु ु , खासकर मझे
हए ु और माँ को, कहा था, ''अरे ,
इनक बहत
ु -सी फै ट रय म जान-पहचान है। ठे केदार का कारोबार है
इनका। लाहौर म िजस गाँव म हम लोग रहते थे, उसके पास के ह गाँव
म थे इनके पताजी।'' यानी राधे याम अपनी ह बरादर का आदमी है,
पता यह कहना चाहते थे। इसके बाद जैसा क ाय: होता, पता उन
दन क याद ताजा करने लगे थे। सन ् 47 के वभाजन के दहशतजदा
क से सनाने
ु लगे थे क कैसे वे लोग अपनी सार जमीन-जायदाद,
पया-पैसा, मकान आ द छोड़-छाड़कर कट हई
ु लाश के ढे र म छपते,
धँू-धँू कर जलते मौह ल , ग लय म से डर-डरकर भागते- नकलते, यास
लगने पर छ पड़ (पोखर ) का ग दा पानी पीते, जान बचाते कसी तरह
ह द ु तान म घसे
ु थे। उनका अ दाजेबयां ऐसा होता क हमारे र गटे खड़े
हो जाते।
दसर
ू बार जब राधे याम घर आया तो पता ने अपने मन क बात
कह द , ''आपक तो इतनी जान-पहचान है जी... कह ं कसी फै टर म
अड़ा दो न हमारे सशील
ु को... इंटर पास है।''
''हाँ-हाँ, क ँ गा म बात... आप च ता न कर,'' राधे याम ने

ु कहा, ''अरे अपन को नह ं लगवाएंगे तो कसे लगवाएंगे।


दलासा दे ते हए
आप फ न कर जी, जहाँ कहोगे लगवा दँ ग
ू ा।''
बस, फर या था। पता क दलच पी राधे याम म बढ़ गई।

ू होता, वह फै टर आया है, वह उसे जबरद ती


िजस दन उ ह मालम
अपने साथ घर ले आते।

23
इस कार, राधे याम का आना-जाना हमारे घर म बढ़ने लगा था।
अब वह जब कभी फै टर आता, सीधा हमारे घर पहँु चता, चाहे पता घर
पर होते या न होते।
पता क अनपि
ु थ त म राधे याम जब भी हमारे घर म घसता
ु ,
परेू घर म चहल-पहल शु हो जाती। घर म तेल -घी न होने पर पड़ोस से
मांग-तंूग कर याज क पकौ ड़याँ तल जातीं... चाय के कप उठाकर
राधे याम को पकड़ाने के लए दोन बहन के बीच होड़ लग जाती... माँ
राधे याम से 'अपना ह घर समझो' कहती रहतीं... खाने का व होता तो
जबरन खाना खलाया जाता। वह उठकर जाने लगता तो बहन उससे थोड़ी
दे र और कने का इसरार करने लगतीं, '' पताजी आ जाएं तो चले
जाइएगा।'' और राधे याम कई-कई घंटे हमारे यहाँ बताकर लौटने लगा।

इस बीच, कई मह ने बीत गए। राधे याम हमारे यहाँ आता, ठहरता,


ग प-श प करता और खा-पीकर चला जाता। वह आता तो बहन के चेहरे
खल उठते और जाता तो उ ह ं चेहर पर उदासी के रं ग पत
ु जाते। पता

ु उ मीद लगाए बैठे थे। हर रोज वह सोचते, आज वह आएगा


उससे बहत
और कहे गा, ''मने सशील
ु के बारे म फलाँ फै टर म बात कर ल है, कल
से उसे भेज दो...'' पर होता इसके उलट। राधे याम आता, इधर-उधर क
बात करता, हँसता-हँसाता, खा-पीकर चलता बनता। िजतनी दे र वह घर
पर कता, पता क ऑ ं ख और कान उसी क ओर लगे रहते।

ू रहा था। आ खर, उ ह ने ह मत


पता क बेस ी का बांध अब टट
कर एक बार फर राधे याम से मेरे बारे म बात क । वह जैसे सोते से
जागा था, ''अरे , म तो भल
ू ह गया। आपने भी कहाँ याद दलाया।''
राधे याम कछ
ु ु बोला, ''आप फ
सोचते हए न कर जी... अब आपने याद

ू ा।''
दलाया है तो इसे कह -ं न-कह ं ज़ र अड़ा दँ ग
इसके बाद उसने खाना खाया और चला गया।
पता इतने भर से फलकर
ू गु बारा हो गए थे। काफ दे र तक वह
हमारे सामने उसका गणगाण
ु करते रहे ।
और फर, परा
ू एक मह ना राधे याम दखाई नह ं दया।

24
एक दन दोपहर के समय हमारे वाटर के बाहर जीप आकर क।
शा ता दौड़कर बाहर नकल । दे खा, राधे याम था। उसके हाथ म एक
पैकेट था िजसे लेकर शा ता झमती
ू हई
ु भीतर दौड़ गई थी।
'' या है ?'' मेरे को उसने अनसना
ु कर दया था। अब वह
पैकेट वमला के हाथ म था। वमला के चेहरे पर भी खशी
ु के भाव तैर
आए थे। म चीख-सा उठा, '' या है इसम ?''
''तु ह या ?... कछ
ु भी हो। अंकल हमारे लए लेकर आए ह तो
तु ह य जलन होती है ?...'' शा ता ने पलटकर मेर चीख का जवाब
दया। मझे
ु उससे ऐसी उ मीद कतई नह ं थी। आज तक वह मझसे
ु ऊँची
आवाज म नह ं बोल थी। म कछ
ु और कहता क बीच म माँ आ गई,
''अरे कछ
ु नह ं है। दोन क सा ड़याँ है इसम। मने मंगवाई थीं।''
अब तक चप ु बोला, ''अहमदाबाद
ु बैठा राधे याम एकाएक हँसते हए
गया था। लौटते व सोचा लेता जाऊँ... स ती ह।'' फर मेर ओर
मखा ु बोला, ''तु हारे लए भी पट-शट दे खी थी, पर सोचा,
ु तब होते हए
मालम
ू नह ं तु ह कौन-सा रं ग पसंद है। इस लए नह ं ला सका। अबक
बार जाऊँगा तो पछकर
ू जाऊँगा।''
शाम छह बजे तक वह हमारे घर पर रहा। अहमदाबाद क बात
बताता रहा। माँ और बहन त मय होकर उसक बात सनती
ु रह ं। पता के
फै टर से लौटने का व हआ
ु तो राधे याम उठकर जाने लगा। माँ ने
कहा, ''उनके आने का व हआ
ु तो आप जा रहे ह... इतने दन बाद
आए ह, उसने मलकर ह जाते।''
राधे याम को कना पड़ा। कछ
ु ह दे र बाद पता आ गए। वह
तपाक से उनसे मला और उनके कछ
ु बोलने से पहले ह अपने
अहमदाबाद चले जाने क बात करने लगा। पता चपचाप
ु उसक बात
सनते
ु रहे । कछ
ु बोले नह ं। बहन उठकर पहले ह दसरे
ू कमरे म चल गई
थीं और माँ रसोई म चाय का पानी चढ़ाने लगी थी। कछे
ु क ण तक
कमरे म चिु पय का बोलबाला रहा। एकाएक, राधे याम ने मँह खोला,
''अगले ह ते फरोजाबाद-आगरा जा रहा हँू ... वहाँ क कई फै ट रय म
मझे
ु काम ह। सशील
ु के लए बात क ँ गा।''

25
पता अभी भी चप
ु थे। वह सन
ु रहे थे बस।
''सशील
ु को साथ लेता जाऊँगा। आमने-सामने बात हो जाएगी।''
राधे याम मेर ओर दे खकर बोला, ''कभी आगरा गए हो ?...ताज दे खने
क चीज है... इस बहाने तम ं ''
ु उसे भी दे ख लेना।... ऍ...।
मेरे मन म ताजमहल दे खने क इ छा पछले कई साल से थी।
ू गया था, छा -छा ाओं का। सबने सौ-सौ
कालेज क ओर से एक टर पये
मलाये थे। म सौ पय के कारण न जा सका था।
''इधर ह कह ं दे खते तो अ छा रहता।... इतनी दरू...।'' पता के
ू थे। लगता था, जबरन आवाज को भीतर
मँुह से काफ दे र बाद बोल फटे
से बाहर धकेलने क को शश कर रहे ह ।
''अरे भाई साहब... एक-दो साल उधर कर लेगा। कछ
ु ए सपी रयस
हो जाएगा तो इधर कसी अ छ फै टर म लगवा दँ ग
ू ा। आप फ यँ
करते ह ?...''

उस दन म बहत
ु खश
ु था। एक दन पहले ह मने अपनी इकलौती पट-
शट धोकर, ेस कराकर रख ल थी। और दन क अपे ा उस दन म
सबह
ु ज द उठ गया था और नहा-धोकर तैयार होकर बैठा था।
पता के फै टर चले जाने के तरु त बाद राधे याम पहँु चा था।
कछ
ु दे र बैठने के बाद उसने आवाज़ लगाई, ''अरे भई, तम
ु लोग ज द
तैयार होओ... नह ं तो लौटने म दे र हो जाएगी।''
म तैयार था और राधे याम मझे
ु दे ख चका
ु था। ले कन उसका 'तम

लोग' मझे
ु हैरान करने लगा। थोड़ी ह दे र म सार ि थ त साफ हो गई।
शा ता और वमला तैयार होकर बाहर नकल आई थीं।
मेरा सारा उ साह एकाएक ठं डा पड़ गया। मेर इ छा कपड़े
उतारकर फक दे ने क हई।
ु बहन क हँसी मझे
ु अ दर तक चभु रह थी।
राधे याम क चालाक पर मझेु गु सा आ रहा था। मेर और पता क
अनपि
ु थ त म राधे याम और बहन के बीच ज़ र कोई खचड़ी पकती है।
मझे
ु नौकर दलाने नह , इस बहाने वमला और शा ता के साथ मौज-
म ती के उ े य से जा रहा था वह।

26
''कोई नह ं जाएगा... न म, न शा ता, न वमला।'' म चीखकर
कहना चाहता था, पर चीख मेरे अ दर ह तड़फड़ा कर दम तोड़ गई।
माँ को भी शायद इस बारे म अ धक जानकार नह ं थी। दोन
लड़ कय को तैयार हआ
ु दे ख, उसने पछा
ू , ''तम
ु दोन कहाँ चल ं तैयार
होकर !''
राधे याम उठकर आगे बढ़ आया, बोला, ''बि चयाँ है , ताज दे खने
क उ सकता
ु होना वाभा वक है ब च म। इस बहाने सशील
ु के संग ये
ू लगी आगरा... कहाँ रोज-रोज जाना होता है।''
भी घम
''वो तो ठ क है पर, इनसे पछे
ू बना म कैसे लड़ कय को भेज
सकती हँू ।... ये फर कभी चल जाएंगी। अभी तो आप सशील
ु क नौकर
के लए जा रहे ह। जाने कहाँ-कहाँ, कन- कन फै ट रय म जाना- कना
पड़ेगा आपको... आप सशील
ु को ह ले जाएँ।''
माँ क बात पर राधे याम भीतर-ह -भीतर मन मसोस कर रह गया
था। ऐसा उसके चेहरे से लग रहा था। बहन के चेहरे लटक गए थे। लटके
हए
ु चेहरे लए वे पैर पटकती हई
ु अ दर दौड़ गई थीं। णभर को गमी
जैसा वातावरण बन गया था। राधे याम चप
ु था। माँ द ु वधा म थी। म
खश
ु भी था और नह ं भी।
''चलो...'' राधे याम ने मेर ओर दे खकर कहा और जीप म जा
बैठा। जीप टाट हो चक
ु थी ले कन म अभी भी माँ के पास असमंजस
क ि थ त म खड़ा था। माँ ने प लू म बंधे सौ पये मझे
ु थमाए और
कहा, ''रख ले। ज़ रत पड़ जाती है कभी-कभी।''
म चपचाप
ु जाकर जीप म बैठ गया। मेरे बैठते ह जीप झटके से
आगे बढ़ गई।

दोपहर का समय था जब फरोजाबाद क एक फै टर म हमार जीप


घसी।
ु परेू रा ते न राधे याम मझसे
ु बोला था, न म राधे याम से। जीप से
उतरकर वह सीधे फै टर म जा घसा
ु था। म वह ं जीप म बैठा रहा। कोई
एक घंटे के बाद वह फै टर से नकला। मझे
ु अब कछ
ु -कछ
ु भख
ू व यास
लग आई थी।

27
जीप अब फर सड़क पर दौड़ रह थी। आधे घंटे के सफ़र के बाद
जीप फर एक फै टर के बाहर क । मझे
ु उतरने का इशारा हआ।
ु म
उतरकर राधे याम के पीछे हो लया। रसे शन पर मझे
ु बठा, वह फै टर
म घस
ु गया। बीस-प चीस मनट बाद राधे याम लौटा तो बेहद खश
ु नज़र
आ रहा था। मने सोचा, नौकर क बात प क हो गई लगती है शायद।
रसे शन पर बैठे एक आदमी से उसने हँस-हँसकर बात क ं और फर उसे
लेकर फै टर के बाहर बने खोखे पर चाय पीने लगा। रसे शन के शीशे
के दरवाज के पार म उ ह चाय पीता दे खता रहा। दोन को चाय पीते
दे ख मेर भख
ू व यास एकाएक तेज हो उठ थी।
वहाँ से नकलने के बाद जीप फर दौड़ रह थी- सड़क पर।
राधे याम अब कोई फ मी गीत गनगनाते
ु ु हए
ु म ती म जीप चला रहा
था। एकाएक बोला, ''मालम
ू है, अभी हम िजस फै टर म गए थे, उस
फै टर से मझे
ु नेट डेढ़ लाख का मनाफा
ु होने जा रहा है... यह मेरा अब
तक का सबसे बड़ा ठे का होगा।'' उसके चेहरे पर रौनक थी। वह कसी
फ मी ह रो क तरह जीप चला रहा था। झमता
ू ... गाता... सीट बजाता।
''सरकार से हवाई जहाज म इ तेमाल होने वाल काँच क छोट
चम नय का ठे का मला है- एक लाख चम नय का। यह फै टर बनाने
को तैयार हो गई है। त चमनी फै टर का ढाई पया खच होगा। सोढ़े
तीन म मझे
ु दे गी। म उसे सरकार को पाँच म दँ ग
ू ा। यानी एक लाख
चम नय पर नेट डेढ़ लाख का लाभ !''
उसक खशी
ु का कारण अब मझसे
ु छपा
ु नह ं था। उसक खशी
ु के
पीछे मेर नौकर आ द क कोई बात नह ं थी। यह तो उसके ठे के म हो
रहे मनाफ
ु े क बात थी। मेर नौकर क बाबत उसने कोई बात भी क
होगी, इसम मझे
ु स दे ह हो रहा था।
राधे याम के अनसार
ु अब हम आगरा के बहत ु नज़द क चल रहे
थे। इससे पवू रा ते म एक छोट फै टर म राधे याम ने मेर नौकर क
बात क थी। मैनेजर ने फलहाल कोई वेकसी नह ं होने पर खेद कट
कया था। साथ ह , भ व य म ज़ रत पड़ने पर बलाने
ु का आ ासन दे ते
हुए मेरे पट कलस
ु आ द रख लए थे।

28
हमार जीप एक बार फर एक फै टर के बाहर क । इस बार राधे याम
भीतर घसा
ु तो दो घंट से भी अ धक समय लगाकर बाहर नकला। जीप
म बैठे-बैठे उसका इ तज़ार करते म तंग आ गया था। इस बीच मने
फै टर के बाहर बने हड प प से पानी पया था और व काटने के लए
इधर-उधर चहल-कदमी करता रहा था। पानी पीने के बाद मेर भख
ू तेज
हो उठ थी। सबह
ु ह का-सा ना ता करके ह चला था म। पास ह
ढाबेनुमा एक दकान
ु थी। सोचा, राधे याम के बाहर नकलने से पहले कछ

खा लँ ू। पैसे तो थे ह मेरे पास। मगर तरु त ह जाने या सोचकर मने
अपने इस वचार को झटक दया। दरअसल, म भीतर से भयभीत था क
कह ं राधे याम बाहर न नकल आए और मझे
ु खाता हआ
ु न दे ख ले।
म जीप म बैठ गया और अपना यान इधर-उधर उलझाने लगा।
ले कन यह सल सला अ धक दे र न चला। भख
ू के मारे मेरे सर म
ह का-ह का दद शु हो चका
ु था। तभी राधे याम बाहर नकला। शाम के
साढ़े चार का व ु राधे याम बोला,
हो रहा था तब। जीप म बैठते हए
''इस फै टर का मैनेजर बाहर गया है , होता तो तु हार बात प क थी।
अपना यार है , साथ-साथ पढ़े ह हम।''
जीप टाट कर वह बोला, ''तु ह ताज दखा द, फर लौटते ह।

ु दे र हो जाएगी नह ं तो। रात यारह से पहले नह ं पहँु च पाएंगे।''


बहत
म चप
ु था। ताज दे खने क इ छा ने थोड़ी दे र के लए मेर भख

को कम कर दया था। कछ
ु कलोमीटर चलने पर ह ताज दखने लगा
था। राधे याम बोला, ''वो दे खो... ताज। कतना संद
ु र लगता है। दरू से
ऐसा लगता है जैसे कोई खबसरत
ू ू सफेद प र दा आकाश म उड़ने को
तैयार बैठा हो।... है न ?''
म उ सकता
ु भर नज़र से ताज दे खने लगा।
''दे ख लया, अब यह ं से लौट चल।... य ?'' राधे याम जीप
धीमी करता हआ
ु ु लगा, मेर सार उ सकता
बोला। मझे ु का कसी ने जैसे
हाथ बढ़ाकर बेरहमी से गला घोट दया हो।

29
'' फर कभी आएंगे।... सभी... तो दे खगे कर ब से। प
ु म दे खने म
कछ
ु और ह मजा है।...'' जीप क गई थी। राधे याम क ऑ ं ख मेरे चेहरे
पर ि थर थीं। शायद वह मेर त या जानने क को शश कर रहा था।
''नह ,ं म तो आज ह ताज दे खकर जाऊँगा।... इतने नज़द क
पहँु चकर म बना दे खे नह ं जाऊँगा।'' म हैरान था, मेरे गले से यह सब
कैसे नकला। मेरा चेहरा तना हआ
ु था। ऑ ं ख अभी भी ताज को दे ख रह
थीं। राधे याम ने बना कछ
ु बोले जीप सड़क पर दौड़ानी आरं भ कर द
थी।
कोई आधे घंटे बाद हम ताज के पास थे। जीप पाक कर राधे याम
बोला, ''म यह ं ठहरता हँू । तम
ु आधे घंटे म दे खदाख कर आओ। म यह ं
ू ा। ठ क !''
पर मलँ ग
म अपनी अंत ड़य म तेजी से छर
ु क तरह कछ
ु घमड़ता
ु हआ

महसस
ू कर रहा था अब। भख
ू और सरदद क वजह से खबसरत
ू ू द खने
वाला ताज अब मझे
ु कतई अ छा नह ं लग रहा था। अनमने भाव से म
ताज क ओर बढ़ा। दरू से खबसरत
ू ू सफेद प र दे -सा द खने वाला ताज
मझे
ु अब कसी वशाल सफेद दै य-सा लग रहा था। उसक चार मीनार
मझे
ु ल बी-ल बी बांह के समान लग रह थीं। एक औरत क लाश को
अपन चंगुल म फँसाये दै य हँस रहा था।
लगता था, सर क नस फट पड़गी। पेट क अंत ड़य म ऐंठन हो
रह थी। म इस दै य के साये से खद
ु को ज द ह बाहर नकाल लाया।
बाहर नकलकर दे खा, राधे याम कह ं नह ं था। जीप भी खाल थी।

ु ू म म राधे याम को ढँू ढ़ता रहा था, कछ


लोग के आते-जाते हजम ु दे र
तक। भख ु च कर आ रहा था। लगता था,
ू और सरदद के कारण मझे
कसी भी ण गर पडँू ग़ा।
एकाएक, मझे
ु सामने कछ
ु ह दरू पर बने रे तरां के बाहर बछ
एक बच पर राधे याम पू रयाँ खाता दखाई दे गया। वह ज द -ज द मँुह
चला रहा था। ठ क इसी ण मने अपने भीतर, ऊपर से नीचे चीरती
जाती तेजाब क एक धार को महसस
ू कया। म अ धक दे र वहाँ खड़ा न
रह सका।

30
वहाँ से हटकर मने तरु त बस- टै ड के लए र शा कया। घर
पहँु चने के लए माँ के दए हए
ु सौ पये मझे
ु काफ लग रहे थे।

31
चिु पय के बीच तैरता संवाद

मझे
ु यहाँ आए एक रात और एक दन हो चका
ु था। पताजी के सी रयस
होने का तार पाते ह म दौड़ा चला आया था। रा ते भर अजीब-अजीब से
याल मझे
ु आते और डराते रहे थे। मझे
ु उ मीद थी क मेरे पहँु चने तक
ु े ह गे। पर, वे अभी
बड़े भैया कशन और मंझले भैया राज दोन पहँुच चक
तक नह ं पहँु चे थे। जब क तार अ मा ने तीन को एक ह दन, एक ह
समय दया था। वे दोन यहाँ से रहते भी नज़द क ह। उ ह तो मझसे

पहले यहाँ पहँु च जाना चा हए था, रह-रहकर यह सब बात मेरे जेहन म

ु बेचैन कर रह थीं। म जब से यहाँ आया था, एक-


उठ रह थीं और मझे
एक पल उनक ती ा म काट चका
ु था। बार-बार मेर ऑ ं ख वत: ह
दरवाजे क ओर उठ जाती थीं। मझे
ु तो ऐसे मौक का जरा-भी अनभव

नह ं था। कह ं कछ
ु हो गया तो म अकेला या क ँ गा, यह भय और
दिु ता मेरे भीतर रह-रहकर साँप क तरह फन उठा रह थी।
पताजी क हालत म र ीभर भी सधार
ु नह ं था। कल शाम जब से
म आया हँू, उ ह नीम-बेहोशी म ह दे ख रहा हँू । अ मा ने बताया था क
मेरे आने से चार-पाँच घंटे पहले तक तो उ ह ने दवा वगैरह ल थी। ट ी-
पेशाब भी कया था। शर र म हरकत भी थी। क तु, उसके बाद से न तो
ऑ ं ख खोल ह, न ह हले-डले
ु ह। अ मा कई बार उनका पायजामा वगैरह
भी दे ख चक
ु ह। ट ी-पेशाब तक लगता है , ब द हो गया है। अ मा अब
बेहद घबराई हई
ु -सी थीं। उनसे कह ं अ धक म घबरा रहा था।
पताजी को हला-डलाकर
ु बात करने क मेर को शश बेकार रह
थीं। सारा दन म उनके पास बैठा रहा था। बैठे-बैठे कभी लगता, अभी
पताजी करवट लगे... कभी लगता, अभी उनके ह ठ हलगे... कभी लगता,

32
वे गदन हलाने क को शश कर रहे ह... पर, ऐसा मझे
ु लगता था, होता
कछ
ु नह ं था।
परेू घर म स नाटे क एक चादर तनी थी। एक दिु ता और
चु पी क गर त म हम सब बरु तरह जकड़े हए
ु थे। हम लोग आपस म
बात भी करते थे, तो लगता था, फसफसा
ु ु रहे ह ।... गले से आवाज
खलकर
ु नकल ह नह ं पा रह थी। छोट बहन पं क और छोटा भाई
व क कल से ह मझसे ु बहतु कम बोले थे। उनके चेहरे पर चिु पयाँ
च पां थीं। मझे
ु आ य हो रहा था क व क जैसा शरारती बालक इतना
शा त और खामोश कैसे रह सकता है ! उसे तो उठते-बैठते, खाते-पीते
बस शरारत ह सझती
ू थी।
हम चप
ु थे। हमारा एक-एक पल भय और घबराहट म बीत रहा
था।
घड़ी ने शाम के छह बजाए तो म पताजी के पास से उठकर दसरे

कमरे म आ गया। व क कोई कताब खोले पढ़ रहा था चपचाप।
ु पं क
कसी पराने
ु कपड़े पर कढ़ाई कर रह थी।
बाहर, गल म ब चे खेल रहे थे। ह का-ह का शोर खल
ु खड़क
से कदकर
ू अ दर आ रहा था। शायद आइस-पाइस या छपा
ु -छपी
ु का खेल
था। कभी-कभी कोई ब चा हमारे घर से लगे जीने के नीचे छप
ु जाता था।
दसरा
ू ब चा उसे ढँू ढ़ते हए
ु जब वहाँ पहँु चता तो शोर तेज हो उठता और
हमारे घर म स नाटे क तनी हई ु चादर हलने लगती।
एक-दो बार अ मा बाहर नकलकर शोर न करने का इशारा कर
आई थीं ले कन ब चे तो आ खर ब चे थे। थोड़ी दे र बाद ह उनका शोर
फर सनाई
ु दे जाता। इस बार अ मा ने झ लाकर उ ह डपट दया था,
''तमसे
ु कहा न, यहाँ शोर न करो... जाओ, दरू जाकर खेलो...। अब इधर
आए तो...।'' और उ ह ने खल
ु हई
ु खड़क ब द कर द थी।
अ मा क डांट सनकर
ु ब चे चपचाप
ु खसक गए थे। अब, घर के
बाहर और भीतर दोन तरफ एक चु पी ह चु पी थी।
मेर पीठ म अब दद होना आरं भ हो गया था और मझे
ु नींद भी
आ रह थी। एक रात और एक दन बैठे-बैठे गजारना
ु ... और उससे भी
पहले एक दन का रे ल का सफ़र ! मझे
ु यँू अधलेटा-सा दे खकर अ मा

33
बोल , ''थक गया होगा तू भी... थोड़ी दे र लेट जा, कमर सीधी हो
जाएगी।'' अ मा बहत
ु पास से बोल रह थीं ले कन उनक आवाज मझे

बहत
ु दरू से आती लग रह थी। थक -थक -सी। मने अ मा क बात का
कोई जवाब नह ं दया। बस, दोन हथे लय म अपना मँुह ढककर मन ह
मन ई र से ाथना करने लगा था।
तभी, अ मा ने पछा
ू था, ''चाय पएगा ? बनाऊँ ?''
''नह ,ं इ छा नह ं है।'' म कहना चाहता था ले कन कह नह ं पाया।
ह ठ हले ह नह ,ं जड़-से हो गए थे जैसे। बस, णांश मने अ मा क
ओर नज़र उठाकर दे खा था। अपनी ओर मेरे दे खे जाने को मेर सहम त
समझकर वह चाय बनाने रसोई म चल गई थीं।
अब धीरे -धीरे मेरे अ दर कछ
ु खोल रहा था। धैय चक
ु रहा था और
ु गु सा भी आ रहा था। अपने पर नह ं, कशन
बेचैनी बढ़ने लगी थी। मझे
और राज भैया पर। अभी तक ये लोग नह ं आए ?... या उ ह तार नह ं
मला ?... इस छोटे -से क बे म कोई अ पताल तक नह ं है। बस, जगह-
जगह ककरम
ु ु ु क तरह उगे हए
ु न सग होम थे। जहाँ डा टर वयं चाहते
ह क उनका मर ज ज द ठ क न हो। उनके लए डा टर एक पेशा है ,
धंधा है। पैसा कमाने का धंधा ! बस , यहाँ से साठ मील दरू एक सरकार
अ पताल है। दोन बड़े भाई आ जाते तो पताजी को वह ं ले जाते। पर,
म अकेला... उ ह ऐसी हालत म ?... सोचते ह मेरे तो पसीने छटने

लगते ह।
अ मा चाय ले आई थीं। चाय का याला लेते हए
ु म वयं पर
ू , '' कशन और राज भैया को भी तो तार
नयं ण न रख सका। मने पछा
मल चका
ु होगा। आए य नह ं अब तक ?'' मेर आवाज म त खी थी
और उसम खीझ और गु से का रं ग मला हआ
ु था।
''जाने या बात है ? कोई बात होगी।... तार पाकर कने वाले तो
नह ं ह।.. आते ह ह गे।'' अ मा पास बैठकर आ ह ता-आ ह ता बोल रह
थीं, ''आजकल घर गह
ृ थी छोड़कर एकदम नकलना भी तो नह ं होता।''
अ मा क इस बात से म भीतर तक कढ़ ु गया था। हँु ह...
नकलना नह ं होता या नकलना नह ं चाहते। या घर-गह
ृ थी उ ह ं क

34
है, मेर नह ं। सोनू के कल से पेपर शु ह। न क और सधा
ु भी पछले
ह ते से ठ क नह ं ह। फर भी, म तार पाते ह दौड़ा चला आया। मेरे
भीतर एक घमासान मचा था, ले कन म इस घमासान को श द नह ं दे पा
रहा था। अ मा मेरे सामने बैठ कछ
ु सोच रह थीं और म भीतर ह भीतर
भन
ु रहा था।

दरवाजे पर द तक हई
ु तो म ठ क से होकर बैठ गया। पं क ने उठकर
दरवाजा खोला। कशन और राज भैया म से कोई नह ं था। पड़ोस वाल
रमा आंट थी। दन म भी पड़ोस से इ का-द ु का लोग पताजी का हाल
पता करने आ चक
ु े थे और अपनी-अपनी सलाह दे कर चले गए थे। रमा
आंट ने कमरे म घसते
ु ह अ मा को स बो धत करते हए ू , ''बहन
ु पछा
जी, अब कैसी तबीयत है भाई साहब क ?''
''उसी तरह बेहोश पड़े ह।... आज तो हल-डल
ु भी नह ं रहे । बस ,
रब ह मा लक है।'' कहते-कहते अ मा क हच कयाँ उभर आ ।
''धीरज रखो बहन, कछ
ु नह ं होगा। सब ठ क हो जाएगा।... ऊपर
वाले पर भरोसा रखो।'' रमा आंट अ मा का कंधा थपथपाकर उ ह धीरज
बंधाने लगीं, ''अब तो ज भी आ गया है। कशन और राज भी आते ह
ह गे। सब स हाल लगे। दल थोड़ा न करो। ह मत रखो।''
कछ
ु दे र अस वाद क ि थ त रह । अ मा फश क ओर टकटक
लगाए दे खती रह ं और म हथे लयाँ बगल म दबाए अपने को बेहद संजीदा
दशाने क को शश करता रहा। रमा आंट लगता था, अगल बात के लए
श द ढँू ढ़ रह थीं। एकाएक, द वार घड़ी क ओर दे खते हए
ु बोल ,ं ''आप
लोग ने खाना-वाना खाया क नह .ं .. चलो, म बनाती हँू । कब तक भखे

रहगे आप।... भाई साहब बीमार ह तो ह। ठ क हो जाएंगे।... ऐसे कोई
खाना-पीना छोड़ दे ता है। आ बेटा ज, मेरे यहाँ कछ
ु खा ले।''
मेरे जवाब क ती ा न करते हए
ु वह व क और पं क क ओर
ु तब होकर बोल ,ं ''चलो, तम
मखा ु दोन भी खा-पी लो।''

35
व क - पं क ने एकबारगी रमा आंट क ओर दे खा, फर मेर और
अ मा क ओर। हमार ओर से कोई त या न पाकर वे चपचाप
ु अपने -
अपने काम म य त हो गए।
''अ छा, म यह ं भजवा दे ती हँू ।'' हमार चु पी को दे खकर रमा
ू , ''नह ं बहन,
आंट बोल ं तो अ मा के मँुह से बोल फटे यँू तकल फ
करती हो। मेरा तो मन नह ं है। ज और ब च के लए दोपहर का ह
बना रखा है। खा लगे ये।''
''अ छा, म चलती हँ। मेर ज रत पड़े तो बला
ु लेना, बहन।''
कहती हई
ु रमा आंट चल ग । उनके आने पर हमारे घर क चिु पयाँ जो
थोड़ी दे र के लए कह ं दबक
ु गई थीं, उनके जाते ह उ ह ने फर से परेू
घर को अपने शकंजे म ले लया था। थोड़ी दे र बाद, अ मा पताजी के
कमरे क ओर चल गई थीं। मने फर अपनी टांग फैला ल थीं और ऑ ं ख
मँूदकर सर द वार से लगा लया था।

पताजी के शा त चेहरे पर ह क -सी हरकत दे खकर अ मा ने मेर तरफ


दे खा है।...हाँ, सचमच
ु पताजी के चेहरे पर ह क -सी हरकत हई
ु है। ह ठ
पर क पन साफ द ख रहा है।... अ मा उनके कर ब होकर कहती है ,
''सु नए, ऑ ं ख खो लए... दे खए, ज आया है। इससे नह ं मलोगे !''
म भी आगे बढ़कर पताजी का कमजोर और बेजान-सा हाथ अपनी

ु कहता हँू , ''म हँू पताजी... आपका


मु ी म लेते हए ज... ठ क है न
आप।...'' पताजी के काँपते ह ठ से लगता है , वे कछ
ु कहना चाह रहे ह।
म आगे झकक
ु र कहता हँू, '' पताजी, कछ
ु कहना चाहते ह ?... क हए,
म हँू न। आपका बेटा... ज।''
'' क...श... न... रा... ज...'' अ फट
ु श द हवा म तैरते ह।
''वे भी आते ह ह गे... आप...।''
वे एक बार अ मा क ओर दे खते ह, फर धीमे से गदन घमाकर

मेर ओर। टकड़ा
ु -टकड़ा
ु श द हवा म तैरते ह, ''अपनी अ मा क , छोटे
भाई-बहन क दे खभाल करना बेटा... इ ह तु हारे आसरे ह ...।'' बमिु कल
से बोले गए श द अधबीच म ह अपनी या ा ख म कर दे ते ह। और फर,

36
अ मा रोने लगती ह, मँुह म साड़ी का प लू दबाकर। म भीतर से काँपता
हआ
ु भयभीत-सा होकर ढाढ़स बंधाता हँू , ''आप च ता न कर... आपको
कछ
ु न होगा...।'' ले कन, अगले ह ण हो जाता है। पताजी क गदन
एक ओर... अ मा क चीख नकल जाती है ... पं क - व क रोना- च लाना
आरं भ कर दे ते ह। घर म तनी स नाटे क चादर तार-तार हो जाती है।
मेरे पांव के नीचे से जमीन खसकने लगती है। अब या होगा ! म
अकेला... घबराहट से मेरा परा
ू शर र काँपने लगता है। खद
ु को असहाय
पाकर म भी फट
ू -फटकर
ू रोने लगता हँू ।
तभी, मेर नींद टट
ू जाती है। पास ह खड़ी अ मा मझे
ु कंधे से
हला रह थी, '' ज... ज बेटा सो गया या ?... चल ब तर लगा
दया है, लेट जा। म बैठती हँू उनके पास। सो ले, कल रात से तू सोया
नह ं।''
म चपचाप
ु उठा था और कपड़े बदलने लगा था।

सोने से पहले म एकबार पताजी के कमरे म गया। वे उसी तरह बेहरकत


लेटे हए
ु थे। अ मा ने बताया क उ ह ने च मच से दवा पलानी चाह थी
ले कन दवा गले से उतर ह नह ं।
''डा टर को बला
ु लाऊँ ?'' मने अ मा से पछा
ू था।
''इस समय वह बलाने
ु से भी नह ं आएगा। सबह
ु अपने आप आ
जाएगा। फर भी तेर मज ।''
मने साइ कल उठाई थी और उ ह ं कपड़ म डा टर के घर पहँु च
गया था। अ मा क बात सह थी। उसने वह दवा दे ते रहने को कहकर
मझे
ु लौटा दया था। मने पताजी क न ज एकबार दे खी थी। वह चल रह
थी, म द-म द। मने पायजामा टटोलकर दे खा, गीला था। टांग पर से
क बल हटाया तो बदबू का एक तेज भभका मेरे नथन
ु म जबरन घस

आया। मने एकबारगी अ मा को आवाज द थी और फर खद
ु ह उनका
पायजामा बदलने लग गया था। अ मा ने गीला पायजामा उठाया और
बाथ म म डाल आ । आकर बोल , ''तू थोड़ा सो ले, ज। दे ख, ऑ ं ख
कैसे लाल हो रह ह तेर ।''

37
अ मा क बात पर म चपचाप
ु उठकर सोने चला गया था।
लेटते ह मुझे नींद ने अपनी गर त म ले लया था और अगले
दन सबह
ु दे र तक म सोता रहा था। अ मा ने जब मझे
ु जगाया तो घड़ी
म दस-प चीस हो रहे थे। मने उठते ह पताजी के बारे म पछा।

रात को उनके ारा दो बार कपड़े गंदे करने क बात अ मा ने मझे

बताई और बोल ं, ''आठ बजे मने दवा द थी। तू उठकर नहा-धो ले।
ना ता कर ले और फर जरा डा टर को बला
ु ला। रोज तो नौ बजे तक
ु आ जाता था, आज साढ़े दस होने को आए...।''
खद
नहा-धोकर, ना ता करके डा टर को बलाने
ु जा ह रहा था क
कशन और राज भैया आ गए। अ मा उ ह दे खकर रोने लगीं तो दोन दे र
से पहँु चने का अपना-अपना प ीकरण दे ने लगे। कशन भैया सरकार
काम से बाहर गए थे। लौटे तो तार मला और तभी चल दए। राज भैया
ने कहा, तार पर उनका पता गलत था इस लए तार दे र से मला। मलते
ह गाड़ी पकड़ ल ।
दोन सीधे पताजी के कमरे म चले गए थे। अ मा के पीछे -पीछे
म भी पताजी के कमरे म घसा।
ु पताजी वैसी ह बेहोशी क -सी हालत म
लेटे हए
ु थे। कशन भैया ने उनका हाथ पकड़कर न ज दे खी थी और फर
उनके ठं डे हाथ को अपनी हथे लय से मलकर गमाने लगे थे। तभी,
डा टर आ गया था। कशन भैया ने डा टर से बात क थी, अलग ले
जाकर। शहर के बड़े अ पताल म ले जाने क बाबत भी पछा
ू था। ''आप
लोग क मज है, वैसे...'' कहकर डा टर ने बात हमारे ऊपर छोड़ द थी।
डा टर ने इस बार दवा चज कर द थी। म दवा लेने बाजार जाने लगा तो
ु सौ का नोट थमाने लगे िजसे मने ह क -सी 'न-नकर
कशन भैया मझे ु '
के बाद ले लया था और साइ कल दबा द थी।
कशन भैया आते ह पताजी क तीमारदार म लग गए थे। कभी
उनके कपड़े बदलते, कभी च मच से पानी पलाते। कभी ठं डे हाथ-पांव
को अपनी हथे लय से गमाने क को शश करते।
राज भैया जब से आए थे, सु त लग रहे थे। वह कम बोल रहे थे।
चेहरे से वह भी मेर तरह भीतर से घबराये हए
ु लग रहे थे। अब मेर
घबराहट वैसे कछ
ु कम हो गई थी। कसी अनहोनी को अकेले फेस करने

38
का तनाव अब मेरे मि त क म नह ं रहा था। कशन भैया और राज भैया
ु भीतर बल मला था और लगा था, अब मझे
के आ जाने से मझे ु च ता
करने क ज़ रत नह ं है। दोन बड़े भैया सबकछ
ु संभाल लगे। वैसे भी वे
मझसे
ु अ धक अनभवी
ु थे। उनके रहते म कछ
ु ह का-सा अनभव
ु कर रहा
था। व क और पं क म कोई फक नह ं आया था। बि क वे अब यादा
ह ग भीर और चप
ु दखाई दे रहे थे।
बदल हई
ु दवा से पताजी क हालत म ह का-सा फक हआ
ु तो
उसे मने ह नह ,ं अ मा ने भी चट से पकड़ लया। पताजी ने हलकर
करवट बदलने क को शश क थी। उनके ह ठ से लग रहा था, वे कछ

कह रहे ह, पर श द आवाज़ह न थे। पताजी को कछ
ु नह ं होगा, अब यह
धारणा धीरे -धीरे बलवती हो रह थी।
इस प रवतन ने मेरे भीतर अब तक दबी, छपी
ु और कलबलाती
ु ु
बात को बाहर नकलने क ह मत बंधा द थी। दरअसल, िजस रात से
म यहाँ आया था, उसके अगले दन से ह म सोच रहा था क कशन
भैया और राज भैया के आते ह म लौट जाऊँगा। दोन बड़े भाई वयं
संभाल लगे। मझे
ु अपनी बीमार प ी और ब च क च ता सता रह थी।
सोनू के होने वाले पेपर क फ हो रह थी। आ फस से भी मझे
ु छु ी
इस लए मल थी क तार पहँु चा था, वरना... आजकल तो वैसे ह ऑ डट
चल रहा है।
कशन भैया को दौड़-दौड़कर पताजी क सेवा-सु ुषा करते दे ख
मझे
ु उ मीद होने लगी थी क भैया अव य काफ दन क छु ी लेकर
आए ह। अब, जब तक पताजी कछ
ु बेहतर ि थ त म नह ं आ जाते, वह
नह ं जाएंगे। दोन बड़े भाइय का वैसे भी ऐसे समय म यहाँ रहना ज़ र
है। जाने कब या हो जाए।
एकाएक, मझे
ु अपनी सोच पर ला न होने लगी। या उ ह ं का
रहना यहाँ ज़ र है , उसका नह ं ?... ले कन अगले ह ण, लौटने क
बात मेरे अ दर उछलकद
ू करने लगी और म अवसर क तलाश करने लग
गया। अ मा अ धक बात नह ं कर रह थी। म जब भी उ ह अकेले पाकर
अपने दल क बात कहने क चे ा करता, मेर जबान
ु को न जाने या

39
हो जाता। जैसे उसे उस ण लकवा मार जाता हो ! मँुह से कोई श द ह
नह ं फटता।

कशन और राज भैया के सामने पड़ते ह मेर ह मत जवाब दे
जाती। दोपहर खाने के व सोचा था, अपनी बात कह दं ग
ू ा। फर सोचा,
इतनी ज द ठ क नह ं रहे गा, शाम को कह दं ग
ू ा। रात नौ बजे क े न है,
उसी से लौट जाऊँगा।
शाम के साढ़े चार का व था, जब पताजी को कछ
ु -कछ
ु होश
आया था। उ ह ने मच मचाती ऑ ं ख से हम तीन को दे खा था। हाथ म

ु थी। शायद, वे हाथ उठाकर हम


ह क -सी जंु बश भी हई यार दे ना चाह
रहे थे।
बदल हईु दवा असर कर रह थी।
खतरे का अहसास धीरे -धीरे कम होता लग रहा था। पं क चाय
बना लाई थी और हम सब दसरे
ू कमरे म बैठकर चाय पीने लगे थे। चाय
पीते हए
ु मने वयं को भीतर ह भीतर तैयार कया था। भू मका व प
अपनी बात भी चलाई, मसलन, ''अब तो पताजी क हालत म सधार
ु हो
रहा है... घबराने क बात नह ं द खती अब...'' और जैसे, ''मझे
ु तीन दन
हो गए यहाँ आए... घर पर सधा
ु और बेट न क भी ठ क नह .ं .. सोनू
के कल से पेपर हो रहे ह गे ... पता नह ं, या करके आता होगा...'' आ द।
मेर इस बातचीत को कोई ग भीरता से नह ं ले रहा था। बस ,
चपचाप
ु सन
ु रहे थे।
म एक पल सबके चेहर क ओर दे खता, फर दल क बात दल

ु लगता, बड़े भैया


म ह दबा दे ता। कभी-कभी मझे वयं ह कहगे , '' ज,

ु चाहो तो चले जाओ, सधा


अब म आ गया हँू । सब संभाल लंूगा। तम ु
अकेल होगी। ऐसी-वैसी बात होगी तो बला
ु लगे तु ह।''
अ मा ने मझे
ु पताजी के कमरे से आवाज द तो म उठकर उनके
पास चला गया। वह पताजी के नीचे क चादर बदलना चाह रह थीं,
बोल ,ं ''जरा इ ह थोड़ा-सा ऊपर उठाना, म नीचे क चादर बदल दँ ।ू''
एकबारगी, मने बड़े भैया को अपनी मदद के लए बलाना
ु चाहा,
पर अगले ह ण मने खद
ु ह पताजी को अपनी दोन बाजओं
ु म लेकर

40
ऊपर उठा लया था और अ मा ने झट से उनके नीचे क चादर बदल द
थी।
अ मा को अकेले पाकर मेरे अ दर कछ
ु हलने-डलने
ु लगा था।
अ मा ने पताजी पर क बल ओढ़ाया और पास बैठकर उनके पैर दबाने
लगीं तो मेरे मँुह से नकला, ''अ मा... !''
'' या बेटा ?''
'' पताजी... '' बस, मेरे गले म जैसे कछ
ु फंस-सा गया। बमिु कल
श द नकले, '' पताजी, ठ क हो जाएंगे तो म कछ
ु दन के लए आप
लोग को अपने यहाँ ले जाऊँगा। हवा-पानी बदल जाएगा।'' मझे
ु अपने कहे
श द पर है रत हो रह थी। या म यह कहना चाहता था !
''ये ठ क हो ल पहले...।'' अ मा का कहते-कहते गला ँ ध आया
था, ''वैसे भी तु हारे सवा कौन है हमारा... तम
ु ह लोग तो हो।''
अ मा के श द मेरे मम को छू रहे थे, अ दर तक। म जानता था,
यह अ मा नह ,ं अ मा का दद बोल रहा था। उनको अपने यहाँ ले जाने
क बात, मने उनका दल रखने या उनका हौसला बढ़ान के लए कह
थी। सच कहँू तो म यह कहना ह नह ं चाह रहा था। म तो अपने लौटने
क बात कहना चाहता था। यह तो म भी अ छ तरह जानता था और
अ मा भी क हम तीन भाई अपनी-अपनी शाद के बाद उ ह कतनी बार
अपने-अपने यहाँ ले जा पाए ह !
अब मझे
ु शम महसस
ू हो रह थी। म अपनी शम को मटाने के
लए कमरे क द वार को यँू ह बेमतलब ताकने लगा था।

शाम को बाजार से स जी लेकर लौटा तो बड़े भैया अ मा से कह रहे थे,


''अ मा, म रात क गाड़ी पकड़ लेता हँू ... सबह
ु आ फस वाइन कर लंग
ू ा।
ू से लौटा था तो सीधे इधर ह आ गया, तार पाकर। आ फस से छु ी
टर
भी नह ं ल थी। अब तो पताजी क हालत म सधार
ु है। च ता क कोई
बात नह ं है , ठ क हो जाएंगे।'' भैया बोले जा रहे थे और अ मा चपचाप

सन
ु रह थी। राज भैया भी समीप ह बैठे थे। खामोश। कमरे म मेरे घसते

41
ह बड़े भैया बोले, ''राज और ज तो ह ह न। ऐसी-वैसी बात हो तो मझे

खबर कर दे ना।''
''भैया, जाना तो मझे
ु भी था...'' इस बार राज भैया के ह ठ हले
थे, ''आप तो जानते ह ह, मेर नौकर टे परे र है।... छु ी भी बड़ी
मिु कल से मल है।... वे लोग मौका दे खते ह, अपना आदमी फट करने
के लए। आप यहाँ रहते तो...।''
कशन भैया कछ
ु दे र सोच म पड़ गए थे, राज भैया क बात
समा होने पर। मेरे भीतर भी कलबलाहट
ु ु होने लगी थी। अब तक दबाकर
रखी बात बाहर नकलने को उतावल हो रह थी। ले कन, सहसा मेर
नज़र अ मा पर अटक ग । अ मा जहाँ बैठ थीं, वह ं ि थर हो गई थीं,
मू त क तरह !
काफ दे र बाद, तने हए
ु स नाटे को कशन भैया ने तोड़ा, ''अ छा
तो तम
ु भी चलो।... पताजी तो ठ क ह।... इतना घबराने या चं तत होने
क ज़ रत नह ं।... अब हम भी नौकर क वजह से जाना पड़ रहा है ,
वरना ऐसी ि थ त म हमारा जाने को मन करता है भला ?''
फर, मेर ु बोले, '' ज, तम
ओर दे खते हए ु तो यहाँ हो ह ।
पताजी को दवा वगैरह टाइम पर दे ते रहना।... कोई बात हो तो मझे
ु तार
कर दे ना। म आ जाऊँगा।'' और फर जेब से पये नकालकर मझे
ु थमाते

ु बोले, ''रख लो, व -बेव


हए काम आ जाते ह।''
अ मा अब सबकने
ु लगी थीं। उनक ऑ ं ख से ऑ ं सओं
ु क धाराएं
बहने लगीं। म आगे बढ़कर अ मा क बगल म बैठ गया था और अ मा
को सां वना दे ने लगा था। हाथ म पकड़े पय को दे खकर मेर ऑ ं ख भी
डबडबा आई थीं। समझ म नह ं आ रहा था, पये रख लँ ू या भैया को
लौटा दँ ।ू
जब थोड़ी दे र तक कोई कसी से नह ं बोला तो कशन भैया उठे
और तैयार करने लगे। अ मा ने पं क को आवाज लगाई, '' पं क बेटा,
खाना वगैरह तैयार कर ले। दोन भाइय को खलाकर भेजना, रात का
सफर है।'' और फर उठकर पताजी के कमरे म चल ग । शायद, वे

42
हमारे सामने रोना नह ं चाहती थीं। नि त ह , पताजी के कमरे म
जाकर वे खब
ू रोई ह गी।
कशन और राज भैया को ेन म बठाकर लौटा तो अ मा ने
ू , '' ज, तू तो छु ी लेकर आया होगा ?''
पछा
अचानक कए गए अ मा के इस पर म अचकचा गया था।
अ मा के इस के पीछे का दद म अ छ तरह महसस
ू कर रहा था।
अ मा से ऑ ं ख मलाने क मेर ह मत नह ं हई।
ु पं क - व क के पास

ु मने कहा, ''सोचता हँू, कल सबह


बैठते हए ु पो ट-आ फस जाकर सधा
ु को
च ी डाल दँ ू क चं ता न करे ... कछ
ु दन लग जाएंगे और साथ ह ,
आ फस म भी छु ी बढ़ाने क अज पो ट कर दँ ।ू''
अ मा ने आगे न कछ
ु ू , न कहा। फर वह चिु पयाँ हमारे
पछा
बीच तन ग । एकाएक, इन चिु पय से मझे
ु ऊब होने लगी। पताजी क
बीमार से हमम भय, घबराहट, दिु ता का होना वाभा वक था ले कन
लगातार चिु पय को अपने ऊपर ढोये रखना... मझे
ु ये चिु पयाँ
अनाव यक लगने लगीं। इनक गर त से बाहर होने क इ छा हई।ु म
चाहता था क बफ-सी जमीं चिु पयाँ गलकर बह जाएं।... परेू घर म
स नाटे क तनी चादर तार-तार हो जाए।... घर म फैल मनहू सयत से
नजात मले।... इ ह ं सब वचार म डबते
ू -उतराते हए
ु मने सहसा व क
से कया, ''तेर पढ़ाई कैसी चल रह है ?'' फर, उसका उ र जानने
से पहले ह अपने बेटे सोनू के बारे म बताने लगा। हाफ-ईअरल ए ज़ाम
म आए उसके न बर के बारे म... उसके सारा दन खेलते रहने के बारे
म... पढ़ाई क ओर यान न दे ने के बारे म... इसके बाद मने अपनी
छोट बेट न क क शैता नय का िज छे ड़ दया। पं क - व क सनकर

ु उनका हँसना अ छा लग रहा था। एकाएक,
हँसने लगे। मझे व क ने

ू , ''भैया, न क को पोयम आती ह ?''


पछा
''हाँ... बहत।
ु अरे , वह तो डांस भी करती है।''
''अ छा !'' पं क ने आ य य कया।
''ट .वी. पर च हार दे खती है तो खब
ू नाचती है, मटक-मटक
कर।''

43
''भैया, आज भी तो च हार है। ट .वी. चला दँ ू ?'' व क ने
सहमते हए
ु मेर ओर दे खकर पछा।

''चु प !'' पं क ने ऑ ं ख तरे र कर व क को तरु त डपट दया,
''तझे
ु ट .वी. क पड़ी है। लोग या कहगे ... घर म...।''
''घर म या ?'' पं क क बात पर एकाएक म चीख ह तो उठा,
'' या है घर म ? कोई मातम है या ?... पताजी बीमार है... दवा-दा
चल रह है... ठ क हो जाएंगे।''
मेर अनायास तेज हो उठ आवाज से कमरे का स नाटा काँपने
लगा था। मने ज द ह खद
ु को संयत कया और यार से धीमे वर म
बोला, ''तम
ु लोग खेलो, कदो
ू , पढ़ो... तु ह कसने रोका है ... ट .वी. भी
दे खो, पर यान रहे , पताजी ड टब न ह ... उनके आराम म खलल न
पड़े, बस।''

ु कहा,
मेर बात पर अ मा ने भी पं क - व क क ओर दे खते हए
''कछ
ु नह ं हआ
ु उ ह। बीमार ह तो ह, ठ क हो जाएंगे।''
तभी मने उठकर ट .वी. ऑन कर दया। वो यम
ू कम ह रखा।
अ मा उठकर पताजी के कमरे म चल ग । कछ
ु ह पल म न पर
फोटो उभर आई। च हार आरं भ हो चका
ु था। पहला ह गाना था।
अ मा भी पताजी के कमरे का दरवाजा ह का-सा भीड़कर हमारे
बीच आ बैठ ।

44
वेलफेयर बाबू

''राम-राम वलफेयर बाबू !''


''राम-राम !'' ह रदा दध
ू लेकर लौट रहे थे। ककर उ ह ने राम-
राम करने वाले को दे खा। ब था। उसे दे ख, सहसा उ ह कछ
ु याद आ
गया।
''अरे , सन
ु !'' ब को रोककर वह उसके नज़द क गए और बोले,
''दे ख ब , तेरे घर के पछवाड़े गंदगी बहत
ु बढ़ गई है आजकल। झाड़ भी
बहत
ु उग आया है। साफ य नह ं करता उसे ?... तझे ू है, इससे
ु मालम
म खी-म छर बढ़ते ह। अरे , जहाँ रहते हो, कम-से-कम वह जगह तो
साफ-सथर
ु रखो।''
ब को या मालम
ू था क सबह
ु क राम-राम के बदले म
वलफेयर बाबू का ल चर सनना
ु पड़ेगा।
''जी... व ू ा।''
नह ं मला। एक-दो रोज म साफ कर दँ ग
''ठ क है। परस तक सब साफ हो जाए,'' कहकर ह रदा आगे बढ़े
तो ब ने राहत क साँस ल , ''शु है , ज द ह ल चर ख म हो गया,
नह ं तो...।''
ह रदा सव य कालोनी म वेलफेयर बाबू के नाम से ह जाने जाते
ह। यह नाम उ ह इसी कालोनी के लोग ारा दया गया है। अब तो
कालोनी का ब चा-ब चा उ ह इसी नाम से जानता है। यहाँ तक क
पछले डेढ़-दो साल से तो वह खद
ु अपना नाम भल
ू -सा बैठे ह। कोई पराना

प र चत जब उ ह ह रदा कहकर बलाता
ु है तो णभर के लए वह सोच
म पड़ जाते ह और पकारने
ु वाले का मँुह ताकते रह जाते ह।

45
एक ाइवेट कंपनी म हैड- लक थे- ह रदा। सेवा- नव ृ होने से दो
वष पव
ू ह लॉट खर दा था उ ह ने- सव य कालोनी म। िजस समय
उ ह ने मकान बनवाया, उस व दो-चार मकान ह बने थे यहाँ। आगे -
पीछे , दरू-दरू तक उजाड़ था। प ी कहा भी करती, ''कहाँ जंगल- बयाबान
म मकान बनवाया ! दरू-दरू तक न आदम , न आदम क जात।... मझे
ु तो
डर लगता है यहाँ।''
इस पर ह रदा समझाते हए
ु कहा करते, ''शु -शु म सभी
कालो नयाँ ऐसी ह होती ह भागवान ! एक-डेढ़ साल म दे खना यहाँ मकान
ह मकान दखाई दगे। और, आजकल जमीन शहर के बाहर ह खाल है।
खाल भी और स ती भी। शहर म तो जमीन हाथ नह ं रखने दे ती।''
कालोनी म जब भी कोई नया मकान बनना आरं भ होता, ह रदा
वयं जाकर मकान मा लक से मलते, उ ह अपना प रचय दे ते। घर म
लाकर चाय-पानी पलाते और कहते, ''मकान बनते ह आप लोग आ
जाइए इधर। आपके आ जाने से रौनक बढ़ जाएगी।''
और फर, दे खते ह दे खते एक दन सव य कालोनी म मकान ह
मकान नज़र आने लगे। लोग आकर रहने लगे तो सनसान
ु -सी कालोनी
ु होकर प ी से कहा था, ''दे खा !
जीवंत हो उठ । तब ह रदा ने खश
कालोनी कतनी ज द आबाद होती है आजकल।''
ले कन, धीरे -धीरे ह रदा ने दे खा, सव य कालोनी सव य कहलाये
जाने लायक नह ं है। लोग के आकर रहने से बहत
ु गंदगी बढ़ने लगी थी।
ना लय के अभाव म घर का गंदा पानी, ग लय -रा त म जहाँ-तहाँ
फैलकर सड़ता रहता था और गंधाने लगता था। लोग को आने -जाने म भी
काफ परे शानी उ प न होने लगी थी। कड़े
ू -कचरे के ढे र जगह-जगह छोटे -
छोटे पवत का प धारण करने लगे थे। कालोनी के बड़े लोग तो दशा-
मैदान के लए दरू खेत अथवा गंदे नाले क ओर नकल जाते क तु
ब चे तो जहाँ-तहाँ बैठकर गंदा फैलाते रहते।

46
कालोनी म बढ़ इस गंदगी को दे ख ह रदा चं तत और दखी
ु थे,
'कौन कहे गा इसे सव य कालोनी ?... लोग बढ़ती गंदगी के त जरा
भी चं तत नज़र नह ं आते।'
एक दन उ ह ने मन-ह -मन बीड़ा उठा लया, 'वह अपनी इस
कालोनी को गंदगी से बचाएंगे।'
घर पर वह अकेले थे। औलाद थी नह ं। प ी थी और वह थे।
सेवा- नव ृ हो जाने के बाद से कोई काम-धाम भी नह ं रहा था। बस,
उ ह ने घर से बाहर नकलकर कालोनी के लोग से मलना-जलना
ु ारं भ
कर दया। वह लोग को इक ा कर समझाने लगे। लोग उनक बात
ु , सहमत भी होते, पर उनक बात को अमल म न लाते।
सनते काश
बाबू, शमा जी, घोष साहब और पांडे जी जैसे कछ
ु लोग थे जो कछ
ु करना
चाहते थे, पर कर नह ं पा रहे थे।
दसर
ू ू , ह रहर, गणेसी और असलम जैसे लोग
ओर कालोनी म दबे
भी थे जो ह रदा क बात को फालतू क बकवास समझते और जब तब
उनका मजाक उड़ाने को तैयार रहते। ले कन, ह रदा ने तो ह मत न
हारने का मन-ह -मन संक प लया था। उ ह जहाँ भी अवसर मला, वह
लोग को घेर-घारकर समझाने लगते, ''दे खो, आप लोग का एक सपना
रहा होगा।... हर आदमी का होता है क उसका एक अपना मकान हो,
यारा-सा ! और अब आपका सपना परा ू हआ
ु है... ई र क कपाृ से
आपका अपना मकान है... कतनी चाहत और हसरत से खन ू -पसीना एक
कर आपने अपने सपने को साकार कया है। या आप चाहगे क आप
जब कभी अपने दो त, र तेदार या सगे-संबंधी को अपने घर पर बलाएं

तो वह नाक चढ़ाकर आपसे कहे - अरे भाई, कैसी गंद कालोनी म मकान
बनवाया है आपने। नह ं न ? अपनी इस कालोनी को साफ-सथरा
ु हम-तम

मलकर ह रख सकते ह। गंदगी होगी तो बीमा रयाँ बढगी... बीमा रयाँ
बढगी तो आज के मँहगाई के जमाने म हम अपनी अनेक अहम ज रत
का गला घ टकर डा टर क जेब भरनी पडग़ी।...''

47
ु क पल के लए बोलना ब द करते,
ह रदा जैसे ह बीच म कछे
गणेसी अजीब-सी मु ा बनाकर 'टणन
ु ु ' बोल उठता और सभी लोग
...टन
ठठाकर हँस पड़ते।
पर तु, ह रदा इस सबसे बेअसर रहते और उनका कहना जार
रहता, ''और भाइयो, गंदगी से बचने के लए हम-तु ह मलकर ह उपाय
करने ह गे। इस अन-अ ूड कालोनी म सरकार तो कछ
ु करने से रह । हम
ह अपनी ग लय म ना लय का नमाण करना होगा, ता क हमारे घर
का बेकार पानी यहाँ-वहाँ फैलकर गंदगी न फैलाए।''
''पर ना लय का पानी जाएगा कहाँ ?'' कोई करता।
''कालोनी के बाहर गंदे नाल म... और कहाँ।''
''इसके लए पया कहाँ से आएगा ?'' फर उछलता।
''चंदा करके... हर घर इसके लए चंदा दे गा।'' ह रदा का उ र
होता। चंदे के नाम पर चु पी याप जाती। लोग चपचाप
ु इधर-उधर
खसकने लगते।
पर ह रदा मायस
ू नह ं हए।
ु वह तो ढ़-संक प कए थे। उ ह
भीतर-ह -भीतर व ास था क एक दन वह लोग को इसके लए तैयार
कर ह लगे। वह चंदे के लए वयं घर-घर गए। कछ
ु का सहयोग मला,
कछे
ु क ने टका-सा जवाब दे दया। कछ
ु ने चंदा हड़प जाने वाल के क से
सनाकर
ु उ ह बरा
ु -भला भी कहा। पर ह रदा ने बरा
ु नह ं माना। वह तो
ठान बैठे थे। एक दन म पहाड़ नह ं खोदा जा सकता, यह वह अ छ
तरह जानते थे। यह काय धीमे-धीमे ह होगा। लोग को समझाना होगा,
व ास दलाना होगा। यह सब वह अपने लए ह नह ं कर रहे ह, इसम
सबका ह हत है।
कछ
ु दन क दौड़-धप
ू के बाद ह रदा का साथ कछ
ु लोग ने दे ना
आरं भ कर दया तो उ ह ं क दे खादे खी अ य लोग भी आगे आए। कालोनी
के आठ-दस घर को छोड़कर, सभी ने ना लय के नमाण हे तु चंदा दया।
एक हए
ु चंदे के पैस से कालोनी म ना लय का नमाण हआ
ु तो जहाँ-
तहाँ फैले पानी से लोग को नजात मल ।

48
इस छोट -सी सफलता से ह रदा
स न हए।
ु कछ
ु उ साह भी बढ़ा।
अब उ ह ने आगे के काय म नि त कए। जगह-जगह लगे कड़े
ू -कचरे के
ढे र और जहाँ-तहाँ उगे झाड़ को साफ करना था। यह अकेले य का
काम नह ं था, इसके लए भी कालोनी के लोग का सहयोग अपे त था।
यह काय ू हो सकता था। इ ह ं दन ,
मदान के ज रए ह परा कल
ू -
कालेज म छु याँ थीं। ह रदा ने कछ
ु छा और कछ
ु लोग क मदद से
एक दन 'सफाई अ भयान' शु कर दया। जगह-जगह लगे कड़े
ू -कचरे के
ढे र को साफ कया गया। ग लय के ग ढ़े भरे गए। झाड़-झंखाड़ को
उखाड़ फका गया। ग लय म म ी डालकर उ ह ऊँचा कया गया।
ह रदा मन ह मन बेहद खश
ु थे। खश
ु भी और उ सा हत भी।
उ ह ने जो बीड़ा उठाया था, वह आ ह ता-आ ह ता परा
ू हो रहा था।
सव य कालोनी को सव य बनाकर ह दम लगे, वह मन-ह -मन सोचते।
पर यह तभी संभव था जब कालोनी का हर य उनका साथ दे , अपनी
िज मेदार को समझे। कालोनी के आठ-दस लोग जो असहयोग क मु ा
अपनाए थे, ह रदा चाहते थे क वे भी उनका साथ द। असलम, गणेसी,

ू , ह रहर और मंगल आ द को ह रदा जब-तब समझाने क को शश


दबे
करते, परं तु वे तो जैसे चकने घड़े थे। कछ
ु असर ह नह ं होता था उन
पर !
असलम और गणेसी तो अपनी-अपनी तरकश म ह रदा के लए
यं य बाण सदै व तैयार रखते और अवसर पाते ह ह रदा क ओर चला
दे ते। दरअसल, कालोनी म यह दो य थे िजनक शह पर कछ
ु अ य
लोग असहयोग क मु ा अपनाए थे।
गणेसी ने पछले ह वष मकान बनाया था और एक छोटा कमरा
अपने पास रखकर शेष कराये पर उठा दया था। सारा दन सरती
ु फांकने
और इधर-उधर बैठकर व काटने के अलावा उसके पास कोई काम न
था। असलम िजसने गणेसी के पड़ोस म मकान बनाया था, गणेसी का
दो त था। असलम के कोई औलाद नह ं थी। प ी बहत
ु पहले मर चक

थी। दसर
ू शाद उसने क नह ं। ले कन गणेसी क तरह उसने अपना
मकान कराये पर नह ं चढ़ाया था। परेू मकान म अकेला ह रहता था।
ाय: वह कहता, ''मेर कौन-सी आस-औलाद है। शहर म रहता हँू तो बना

49
लया मकान। भाई गाँव म खेती-बाड़ी करते ह। गाँव छोड़कर वे शहर
आना नह ं चाहते। भतीजा-भतीजी ह, बड़े होकर रहना चाहगे तो रह लगे।''
एक ू , '' वलफेयर बाबू, कालोनी
दन असलम ने ह रदा से पछा
खा तर बड़ा काम कर रहे ह आप। कौन पाट से ह आप ?''
''पाट ?'' ह रदा असलम के पर च के ले कन तरंु त ह कहा,
''नह ,ं असलम भाई, मेर कोई पाट -वाट नह ं है।''
'' फर कोई सवारथ होगा ?''
'' वाथ ? कैसा वाथ !'' दसरा
ू भी च काने वाला था ले कन

ु जवाब दया, ''मेरा कोई


ह रदा ने फर हँसते हए वाथ नह ं है, असलम
भाई। बस, वाथ अगर है तो इतना क जहाँ िजस कालोनी म हम-तम

रहते ह, वह साफ-सथर
ु हो..लोग आपस म मलकर इसके वकास के लए
काय कर।''
'' बन सवारथ आजकल कोई जन-सेवा नह ं करता, वलफेयर बाब!ू
आप ठ हरे रटायड आदमी ! आप जैसा आदमी पहले छोट -मोट कालोनी
से ह अपनी पु ल ट स शु करता है। नेता बनने के आजकल बहत

ु लोक यता मल नह ं क बस, कउं सलर-
फायदे ह न !... जहाँ थोड़ी-बहत
फउं सलर के सपने दे खने लगते ह। अब ई पु ल ट स साल लोग का
दमाग खराब कए है, लोग का या कसरू ?''
ह रदा एकाएक ठहाका लगाकर हँस पड़े, असलम क बात पर।
बोले, ''अरे , नह ं असलम भाई, मेरा कोई इरादा नह ं है , काउं सलर आ द
बनने का।''
''शु म सब इ ह कहत ह वलफेयर बाबू...'' गणेसी सरती
ु फाँकते
हए
ु बोला और फर उसने सुरती वाल हथेल असलम क ओर बढ़ा द ।
असलम ने चटक
ु भर और उसे नचले ह ठ म दबाकर बोला, ''अगर
चनाव
ु -उनाव लड़ने का इरादा नह ं तो काहे दौड़-धप
ू कए रहते हो ?''
असलम ने समझाने के लहजे म कहना ारं भ कया, ''दे खए वलफेयर
बाब,ू आज क द ु नया म अपने काम से ह मतलब रखना चा हए।
सरब य को सरब य बनाने का ठे का आपने काहे उठा रखा है ?''

50
ह रदा समझ रहे थे क इतनी आसानी से ये लोग समझने वाले
नह ं ह। बोले, ''ठे का लेने क बात तो म नह ं कहता, ले कन आप लोग
साथ दो या न दो, पर म तो सव य के लए जो बन पड़ेगा, करता

ु पहले मकान बनवाया था,


रहँू गा। मने इस कालोनी म आप लोग से बहत
तब जब यहाँ जंगल- बयाबान था।... बस , समझ लो, इस कालोनी से

ु ।''
लगाव हो गया है मझे
तभी, दे श म चनाव
ु के दन आ गए। वोट के च कर म सरकार
ने अनअ ूड कालो नय को पास करना शु कर दया। सव य भी पास
हो गई। कालोनी के लोग खश
ु थे। सबसे अ धक ह रदा।
चनाव
ु के बाद कालोनी के कछ
ु लोग ने वेलफेयर एसो सएशन
बनाने का ताव रखा तो दस-बारह लोग को छोड़कर सभी तैयार हो
गए। एसो सएशन बनी। एसो सएशन के लए अ य , महामं ी तथा
सद य का चनाव
ु कया गया। पांडेय जी को अ य और ह रदा को
महामं ी पद हे तु चना
ु गया।
असलम ने ह रदा को बधाई द और साथ ह कहा, ''आ गए न
वलफेयर बाबू लाइन पर... हमने तो पहले ह कहा था, ये पाट पु ल ट स
का नशा यँू ह नह ं उतरता। आज एसो सएशन के महामंतर बने ह, कल
कछ
ु और भी बन जाइएगा। लगे र हए बस लाइन पर।''
ह रदा असलम के यं य पर नाराज नह ं हए।
ु बोले, ''असलम
भाई, मझे
ु पो ल ट स-वो ल ट स कछ
ु नह ं करनी है। म तो कालोनी के
लोग और कालोनी क न: वाथ सेवा करना चाहता हँू, बस।''
और सच म , सव य वेलफेयर एसो सएशन के महामं ी बनने के
बाद तो ह रदा और अ धक स य हो उठे । कमेट के द तर म आए दन
उनका च कर लगने लगा। अब वे कई ए ल केश स लखकर ले जाते और
परानी
ु द गई ए ल केश स के बारे म तहक कात करते क या हआ
ु ?
लोग के छोटे -मोटे काम करवाने म सदै व आगे रहते। कसी को बजल
का कने शन नह ं मल रहा तो उसको संग लेकर बजल द तर म जा
रहे ह। कसी को सीमट मलने म द कत हो रह है तो उसे सीमट
दलवाने म ऐड़ी-चोट का जोर लगा रहे ह। अखबार म सव य कालोनी

51
क सम याओं पर प छपवा रहे ह। उनक लखा-पढ़ से कालोनी म
बजल के खंभे लगे, क ची सड़क प क बनीं और सावज नक शौचालय
बने। नगर नगम ने कालोनी म एक ाथ मक पाठशाला और एक
ड पशर खोलने क घोषणा भी कर द । यह सब ह रदा क लगन और
त परता से हआ।

कालोनी के लोग भी आदर करते थे वेलफेयर बाबू का। कसी के
ु न है या ज म दन, लड़क क शाद है या लड़के
घर पर ब चे का मंड
क , अखंड-पाठ या भजनर्-क न, वेलफेयर बाबू को अव य याद कया
जाता और वह सहष सि म लत भी होते। पहँु चने म जरा दे र या होती
क लोग 'वेलफेयर बाबू नह ं आए', 'वेलफेयर बाबू को नह ं बलाया
ु या?'
आद करते दखाई दे ते।
अब कालोनी म न पानी क द कत थी, न बजल क । बस-सेवा
भी सबह
ु -शाम के अलावा अब दनभर रहने लगी थी।

ह रदा शाम के समय घर के बाहर खड़े थे क असलम सामान उठाए बस-


टड क ओर जाता दखाई दया।
'' य असलम भाई, कहाँ क तैयार हो गई ?''
''गाँव जा रहे ह वलफेयर बाबू, दो मह ने के लए।'' असलम ने
ककर जवाब दया, ''आजकल आप बहत
ु य त ह, वलफेयर बाब।ू लगे
र हए... नगर नगम के अब क चनाव
ु ह तो खड़े हो जाइएगा आप भी।
खदा
ु कसम, ज र जी तएगा आप।'' कहकर असलम बस- टड क ओर
बढ़ गया। ह रदा खड़े-खड़े सोचते रहे असलम के वषय म- कैसा आदमी है
यह भी !
जब से कालोनी के नकट एक हाउ सं ग सोसाइट के लैट बने ह,
मा कट आ द क सु वधा के अलावा अ य कई सु वधाएं भी कालोनी वाल
को मलने लगीं। यह नह ,ं चार-पाँच साल पहले शहर से कट हई
ु यह
कालोनी अब शहर से बलकुल जड़
ु -सी गई थी।
सब कछ
ु ठ क चल रहा था क एक दन ह रदा के ऊपर जैसे गाज
गर । वह त ध रह गए। वह समझ ह नह ं पाए एक पल के लए क
यह उनके साथ या होने जा रहा है !... ऐसा कैसे हो सकता है ?... फर

52
वयं से ह जैसे बोले उठे , ''ऐसा कैसे हो सकता है ?... अंधेरगद है
या? वह शहर के वकास ा धकरण के आ फस जाएंगे और पछगे
ू - यह
कैसे हो सकता है ?''
कालोनी के िजस कसी य ु , ह
ने भी सना भ रह गया- 'यह
वेलफेयर बाबू के संग या हआ
ु ?' हर कोई दौड़ा-दौड़ा उनके पास आया,
यह जानने के लए क जो कछ
ु ु है,
उ ह ने सना या वह वाकई सच है ?

ह रदा को शहर वकास ा धकरण क ओर से नो टस मला था। उनका


मकान कालोनी के न शे से बाहर दशाया गया था। और िजस जमीन पर
वह बना था, उसे सरकार जमीन घो षत कया गया था। नो टस म कहा
गया था क एक माह के भीतर वह अपना इंतजाम दसर
ू जगह कर ल
अ यथा मकान गरा दया जाएगा।
ह रदा और उनक प ी नो टस पढ़कर भख
ू - यास सब भल
ू बैठे।
यह या हो गया ? बैठे- बठाये ये कैसा पहाड़ टट
ू पड़ा उन पर ? ह रदा
भीतर से द:ु खी और परे शान थे- यह सरासर अंधेरगद और अ याय है।
पाँच साल के बाद उ ह होश आ रहा है क यह सरकार जमीन है। न शे
से बाहर दखा दया उनका मकान ! कहते ह, एक माह तक खाल कर
दसर
ू जगह चले जाओ। मकान गराया जाएगा।
''हंु ह ! गराया जाएगा। कैसे गरा दगे ! परू कालोनी खड़ी कर
ू ा अपने मकान के आगे।'' वह गु से म बदबदाने
दँ ग ु ु लगे।
शाम को वह मकान क छत पर टहलते रहे और दरू-दरू तक बने
कालोनी के मकान को दे खते रहे । उनका मकान कालोनी के पव
ू कोने म
है। एक तकोनी खल
ु जगह म उनका ह अकेला मकान है। उनके मकान
और कालोनी के बीच एक पतल सड़क है। सामने ह हाउ सं ग सोसायट
के लैट बने ह। बीच क खाल जगह पर शहर वकास ा धकरण
सनेमा-कम-शॉ पं ग सटर बना रहा है। टहलते हए
ु वह फर बदबदाने
ु ु लगे-
'परू कालोनी म एक उ ह ं का मकान दखा उ ह ! वह भी दे खते ह, कैसे
गराते ह उनका मकान !''

53
अंधेरा घरने लगा तो वह नीचे उतर आए। नीचे आकर चपचाप

ब तर पर लेट गए। दमाग म जैसे कोई चकर -सी घम
ू रह थी।
इस बीच सव य वेलफेयर एसो सएशन के कछ
ु लोगा◌े◌ं◌ं को संग
लेकर वह कहाँ-कहाँ नह ं दौड़े- फरे । शहर वकास ा धकरण के
अ धका रय से मले। चेयरमैन से भी। अपने इलाके के काउं सलर और
एम.पी. के पास जाकर भी गहार
ु लगाई। जहाँ-जहाँ जा सकते थे, गए। पर
घर लौटकर उ ह लगता था क उनक यह दौड़-धप
ू साथक नह ं होने
वाल ।
इलाके के काउं सलर और एम.पी. का दबाव पड़ने से ा धकरण ने
ह रदा को मआवजा
ु दे ना वीकार कर लया तो वह बौखला उठे ,
''मआवजा
ु दगे ! अरे , छह सौ पये गज से भी ऊपर का रे ट है यहाँ और
तम
ु दोगे मझे
ु बह र पये गज के हसाब से मआवजा
ु ! मझे
ु नह ं चा हए
तु हारा मआवजा
ु ... म लडंू ग़ा... इस अंधेरगद के खलाफ लड़ंू गा।''
अब ह रदा को न खाना अ छा लगता, न पीना। रात-रात भर
जागकर न जाने या सोचते रहते। प ी अलग द:ु खी थी। वह कहती,
''द:ु ख के पहाड़ कस पर नह ं टटते
ू । पर या कोई खाना-पीना छोड़ दे ता
है ? खाओगे- पओगे नह ◌ंतो लड़ोगे कैसे ?'' कालोनी के लोग को उनसे
परू सहानभ
ु ू त थी। वे उनके स मख
ु सरकार क आलोचना करते। पांडे जी
और कछ
ु अ य लोग ने ह रदा को मआवजा
ु ले लेने क सलाह द । उनका
वचार था क सरकार से लड़ा नह ं जा सकता। उ ह दसर
ू जगह लॉट
लेकर मकान बना लेना चा हए, या बना बनाया खर द लेना चा हए। इसी
कालोनी म मल भी जाएगा, ठ क रे ट पर।
प ी समझाती, ''आजकल र त का बोलबाला है। अफसर को
कछ
ु ु कर दो तो शायद...।'' चपचाप
दे - दलाकर खश ु सनते
ु रहते ह रदा।
'हाँ-हँू ' तक नह ं करते।
चं ता और भय के तले दन यतीत होते रहे और एक मास परा

हो गया। फर दसरा।
ू बीच-बीच म ह रदा ा धकरण ऑ फस म जाकर
पता करते रहे - यह मालम
ू होता क उनके ाथनाप पर वचार कया जा
रहा है , ले कन उ मीद बहत
ु कम है।

54
धीरे -धीरे तीन माह बीत गए तो ह रदा ने सोचा, शायद उनके
ाथनाप पर सहानभ
ु ू तपवक
ू वचार कया गया है। इसी लए मामला ठं डा
पड़ गया है और उनका मकान गराने का इरादा सरकार ने छोड़ दया है।
कालोनी के लोग भी ह रदा को तस ल दे त-े ''अब कछ
ु नह ं होगा,
वलफेयर बाबू ! होना होता तो अब तक दसरा
ू नो टस आ गया होता या
आ गए होते वे मकान गराने।''
धीरे -धीरे ह रदा चं तामु होने लगे थे क एक दन दलबल के
साथ ा धकरण के अ धकार आ पहँु चे- दै याकार बलडोजर
ु लेकर ! सबह

का व था। ह रदा ना ता करके उठे ह थे। ा धकारण के अ धका रय ने
आगे बढ़कर उ ह घंटेभर क मोहलत द , सामान नकालकर बाहर रख
लेने के लए। पर ह रदा तो त ध और स न ् रह गए थे। फट -फट ऑ ं ख
से वह अपने मकान के बाहर खड़ी भीड़ को दे खते रहे । कछ
ु सझा
ू ह नह ,ं
या बोल, या कर। चीख- च लाएं या रोएं। प ी घबराहट और भय म
रोने- च लाने लगी थी और बदहवास-सी कभी बाहर आती थी, कभी घर
के अंदर जाती थी। पु लस वाल ने घेरा बना रखा था। कालोनी के कसी
भी आदमी को अंदर नह ं जाने दया जा रहा था। पांडे जी, काश बाबू
और शंकर ने आगे बढ़कर वरोध कया तो अ धका रय ने कहा, ''हमने
इ ह पहले ह काफ समय दे दया है। यह सरकार जमीन है। मकान तो
अब गरे गा ह । आप हमारे काम म दखल न द और हम अपना काम
करने द।'' यह नह ं, पु लस वाल ने उ ह खदे ड़कर घेरे से बाहर भी कर
दया था।
अ धकार गण ह रदा को फर समझाने लगे। वे कछ
ु भी नह ं सन

रहे थे जैसे। सं ाशू य से बस अपलक दे खते रहे ।
घंटेभर क अव ध समा होते ह अ धका रय ने पु लस क मदद
से सामान बाहर नकालना आरं भ कर दया। ह रदा क प ी छाती पीट-
पीटकर रोने लगी। सारा सामान नकालकर बाहर खले
ु म रख दया गया।
पु लस वाल ने ह रदा और उनक प ी को मकान से बाहर खींच लया।
एकाएक ह रदा चीख उठे , ''नह ,ं तम
ु मेरा मकान नह ं गरा सकते। पहले
मझ
ु पर चलाओ बलडोजर
ु ! फर गराना मेरा मकान !... जीते-जी नह ं
ू ा म अपना मकान।'' और वह बलडोजर
गरने दं ग ु के आगे लेट गए।

55
सपा हय ने उ ह उठाकर एक ओर कया तो वह फर चीखने- च लाने
लगे, ''म तम
ु सबको दे ख लँ ूगा... म हाईकोट म जाऊँगा... तम
ु मेरा
मकान नह ं गरा सकते।'' और फर वह व -से होकर गा लयाँ दे ने
लगे। प थर उठाकर फकने लगे। सपा हय ने उ ह आगे बढ़क़र दबोच
लया।
ह रदा चीख रहे थे, च ला रहे थे ले कन उनक चीख- च लाहट
न कारखाने म तती
ू क आवाज-सी अपना दम तोड़ रह थी। वह अवश
थे, असहाय थे। कोई साथ नह ं दे रहा था। कोई द वार बनकर खड़ा नह ं
हो रहा था, इस अ याय के व द ! परू कालोनी शांत थी, हलचल
वह न ! डर -डर , सहमी-सी। बस, पु लस घेरे के बाहर खड़ी तमाशा
दे खती रह ।
दे खते-ह -दे खते, बलडोजर
ु ने ह रदा का मकान धराशायी कर दया।
'यह जमीन सरकार है' का बोड भी गाड़ दया गया वहाँ पर।
तभी, असलम गाँव से लौटा था। बस से उतरा तो वेलफेयर बाबू के
घर के बाहर भीड़ दे खकर हैरत म पड़ गया। आगे बढ़कर दे खा तो अवाक्
रह गया वह। वेलफेयर बाबू का मकान मलबे म त द ल हो चका
ु था।
पु लस और ा धकरण के अ धकार अब जाने क तैयार म थे। असलम
ने दे खा, वेलफेयर बाबू क प ी रो-रोकर बेहाल हो रह थी और कह रह
थी, ''दे ख लया, दे ख लया आपने ! बड़ा गमान
ु था न आपको कालोनी
के लोग पर ! कहते थे- द वार बनकर खड़े हो जाएंगे। अरे , कोई नह ं
आता, मसीबत
ु क घड़ी म आगे ... सब दरू खड़े होकर तमाशा दे खते रहे ...
हे भगवान ! कहाँ जाएंगे अब हम ?'' और वह मँुह म साड़ी का प लू
दबाकर रोने लगी।
असलम ने हाथ म उठाया सामान वह ं जमीन पर रखा और
वेलफेयर बाबू क प ी के नकट आकर बोला, ''आप ठ क कहती ह,
भाभीजान ! िजन वलफेयर बाबू ने बना वारथ इस कालोनी के लए
रात- दन एक कया, जो दौड़-दौड़कर लोग का काम करते रहे , उ ह ं का
मकान इनके सामने टटता
ू रहा और ये लोग चपचाप
ु खड़ा होकर तमाशा
दे खते रहे । कतने मतलबी और वारथी ह इह लोग...''

56
ह रदा मकान के मलबे के पास खड़े होकर पथराई ऑ ं ख से अपनी
तबाह का मंजर दे ख रहे थे और सोच रहे थे- यह कैसा अंधड़ था जो
अभी-अभी आया था और उनका सबकछ
ु तहस-नहस कर गया।
असलम ने आगे बढ़कर पीछे से उनके कंधे पर हाथ रखा और
कहा, ''मेरा मकान खाल पड़ा है, वलफेयर बाबू ! च लए, जब तक जी
चाहे , चलकर र हए।''
ह रदा ने मड़कर
ु असलम क ओर दे खा। एक पल टकटक लगाए
दे खते रहे पनील ऑ ं ख से असलम क ओर। सहसा, उनके ह ठ कांपे,
नथने
ु हले और वह वह ं ट के ढे र के पास बैठ फट
ू -फटकर
ू रोने लग
पड़े।

57
इतने बरेु दन

इतने बरेु दन ! गर बी, बदहाल और फ़ाकाकशी के दन ! औलाद के होते


हए
ु भी बेऔलाद-सा हाकर जीने को अ भश ! बढ़ापे
ु म ऐसी दगत
ु होगी,
ऐसे बरेु दन दे खने को मलगे, उ ह ने कभी व न म भी नह ं सोचा था।
पछले दो दन से घर म खाने को कछ
ु नह ं था सवाय ेड के।
दो दन से बढ़ा
ू -बढ़
ू इसी से गजारा
ु कर रहे थे। कल रात जब े ड के चार
पीस बढ़ेू ने बचाकर रखे थे तो उसके सामने यह फन फैलाकर खड़ा
हो गया था- इनके ख म होते ह या होगा ? रातभर वह इसी से
जझता
ू रहा था। लाला ने उधार दे ने से साफ इ कार कर दया था। पछले
कई दन से बढ़ा ू रहा था, पर चाहकर
ू काम क तलाश म मारा-मारा घम
भी चार पैसे कमाने का ह ला नह ं ढँू ढ़ पाया था। जब इस दे श म नौजवान
रोजगार के लए मारे -मारे घम
ू रहे ह तो भला बढ़
ू को कौन पछे
ू गा !
अपनी इसी लाचार और भखमर
ु से तंग और परे शान होकर कल
रात बढ़ेू ने एक फैसला लया था- घनौना और कटु फैसला ! उसक
आ मा इस फैसले से खश
ु नह ं थी। ले कन वह या करता ? सब रा ते
ब द पाकर एक यह रा ता उसने खोज नकाला था जो उसे मु का ार
तीत होता था। अपने इस फैसले को उसने प ी से छपाकर
ु रखा।
सबह
ु दो पीस पानी म भगोकर बढ़ेू ने अपनी बढ़
ू प ी जो हर
समय ब तर पर पड़ी रहती थी, को वयं अपने हाथ से खलाए थे और
शेष बचे दो पीस उसने शाम के लए संभालकर रख दए थे, ऐसी जगह
जहाँ वे चह
ू के आ मण से बचे रह सक।
बढ़ ु थीं, शायद वह सो रह थी। बढ़ेू ने
ू क ऑ ं ख मंद वयं को
घर से बाहर नकलने के लए तैयार कया। उसने पानी का जग और

58
ू के सरहाने रखा, पाँव म हवाई च पल पहनी और सोट उठा,
गलास बढ़
दरवाजे को ह का-सा भड़ाकर घर से बाहर हो गया।
बढ़ेू ने जो सोच रखा था, उसे वह अपने इलाके म नह ं करना
चाहता था। वहाँ अ धकांश लोग उसे जानते थे। प र चत लोग के बीच वह
ऐसा कैसे कर सकता है ?... उससे होगा भी नह ं। अपनी सोच को अंजाम
दे ने के लए उसने दसरा
ू इलाका चना।
ु इसके लए उसे काफ चलना पड़ा
था, िजसके कारण पैर म दद होने लगा था और सांस फलने
ू लगी थीं।
ले कन उसने ह मत नह ं हार और चलता रहा। 'चलना' श द शायद
उपयु नह ं है, वह चल नह ं घसट रहा था- सोट के सहारे । बांय पैर क
च पल तकल फ दे रह थी। उसम पैर ठ क से फंसता नह ं था। 'ले कन,
बार-बार रबड़ के नकल जाने से तो ठ क है' बढ़ेू ने मन ह मन सोचा।
दरअसल, परानी
ु और घसी होने के कारण बांय पैरे क च पल का अगला
छे द चौड़ा हो गया था। दो कदम चलने पर ह रबड़ नकल जाती थी। कल
ह उसने इसे अपने ढं ग से ठ क कया था। उसने कह ं से पतल -ल बी
क ल ढँू ढ़ नकाल थी। क ल को बार-बार नकलने वाले रबड़ के सरे के
आर-पार नकालकर इस कार फट कया क रबड़ का नकलना ब द हो
जाए। अपने इस काम म वह सफल भी रहा था। रबड़ अब नकलती न
ं ु च पल म पैर फंसाने म थोड़ा द कत होती थी।
थी कत
अब वह जहाँ खड़ा था, वह एक य त चौराहा था। सड़क पर
वाहन तेज ग त से दौड़ रहे थे। सड़क पार करते इधर-से-उधर, उधर-से-
इधर भागते लोग क भीड़ थी। वह चौराहे के एक कोने म सड़क के
नज़द क खड़ा हो गया। उसे यह ं पर अपने लए गए फैसले को अंजाम
दे ना सु वधाजनक तीत हआ।
ु उसने अपना ढ ला च मा जो बार-बार नीचे
सरक आता था, ठ क कया और सड़क पर दे खा। वाहन मोड़ पर और तेज

ु का तैयार कया, सोट को कसकर पकड़ा


ग त पकड़ लेते थे। उसने खद
और आगे बढ़ा क तभी... उसके हाथ-पैर कांपने लगे। 'नह -ं नह ं, उससे
नह ं होगा यह सब... वह ऐसा नह ं कर सकता...' उसक ह मत जवाब दे
गई। वह पीछे हटकर खड़ा हो गया। उसके दय क धड़कन बढ़ गई थीं।
वह हाँफ रहा था।

59
खड़ा-खड़ा वह वयं पर खीझता रहा। वह जो सोचकर घर से
नकला था, वह उससे यँू नह ं हो पाया। भख
ू मरने से तो अ छा है वह

ु काम को अंजाम दे । वह भी ... ले कन, सचमच


अपने सोचे हए ु उसक
ह मत जवाब दे गई थी। ऐसा काम उसने िज़ंदगी म कभी नह ं कया
था। करना तो दरू, इस बारे म सोचा तक नह ं था। कभी नौबत ह नह ं
आई थी। जीवन के आ खर पड़ाव पर ऐसा करना शायद क मत म
लखा था।
सामा य होने म बढ़ेू को कछ
ु समय लगा। उसने चेहरे पर कई
दन से बढ़ खरदर
ु दाढ़ पर हाथ फेरा, इधर-उधर दे खा और बदबदाया
ु ु ,
'नह ,ं यह जगह ठ क नह ं है।'
वह फर घसटने लगा था। तेज धप
ू और गरमी म वह पसीना-
पसीना हो उठा था, हलक सख
ू गया था और यास तेज हो उठ थी।
यास ह यँ,ू भख
ू भी सर उठा रह थी। भख
ू को तो जैस-े तैसे वह
मारता आ रहा था ले कन, यास को रोक पाना संभव न होता था। पानी
ह तो था िजससे भख
ू और यास दोन को ह शा त करने क लड़ाई वह
गत दो दन से लड़ रहा था।
उसने इधर-उधर नल क तलाश म घमाई।
ु कह ं आस-पास
नल नह ं दखाई दया। सड़क के पार पानी क रे हड़ीवाला खड़ा था ले कन
उसे दे खकर भी बढ़ेू ने अनदे खा कर दया।
हाँफता- घसटता हआ
ु वह अब थानीय बस-अ डे पर आ पहँु चा था,

ु भीड़ थी। जाने कहाँ से लोग आ रहे थे, जाने कहाँ को जा रहे
जहाँ बहत
थे। रे लमपेल मचा था। लोग बस से उतर रहे थे, लोग बस म चढ़ रहे
थे। यहाँ-वहाँ सामान-असबाब के साथ खड़े या बैठे थे।
एकाएक, बढ़ेू ने सोचा, वह अपना सोचा हआ
ु काम चलती बस म
भी तो कर सकता है। चलती बस म से...। उसने दे खा, बाहर जाने वाले
गेट पर कई बस चलने को तैयार खड़ी थीं, सवा रय से ठसाठस भर ं। कई
लोग खड़क पर भी लटके हए
ु थे। वह धीमे-धीमे कदम से उधर बढ़ा और
सबसे अगल बस क खड़क के पास जा खड़ा हआ। ु बस चलने ह वाल
थी। उसने अपने आप को तैयार कया। एक पल ठठका, फर सोट

60
पकड़े-पकड़े बस का डंडा पकड़ने का य करने लगा। तभी सवा रय ने
च लाना शु कर दया-
''अरे ओ बढ़ेू ! कहाँ जाना है ?''
''इसम बहत
ु भीड़ है, तू न चढ़ पाएगा... मरे गा गरकर।''
''दसर
ू बस म आ जा...।''
उसी समय कंड टर ने ि ह सल दे द और बस एक झटके से चल
पड़ी। वह गरते- गरते बचा।
यास फर सर उठाने लगी थी। उसने नल क तलाश म इधर-
उधर नज़र दौड़ा । ज द ह उसे यु न सपैि ट◌ी का नल नज़र आ गया।
शु था, उसम पानी आ रहा था। बेशक धीमे -धीमे। वह दे र तक नल से
चपका रहा।
पानी पी कर वह एक पे ड़ के नीचे बैठ गया और अपनी क मत
को कोसने लगा जो उसे ये दन दखा रह थी। बैठे-बैठे उसे अपने बेट
क याद हो आई जो अपने बीवी-ब च के संग दसरे
ू शहर म रहते थे,
िज ह बढ़ेू माँ-बाप क त नक भी च ता न थी। पछले सात-आठ मह न
म एक बार भी झांककर नह ं दे खा था क बढ़ा
ू -बढ़
ू िजंदा भी ह या नह ं।
पछले माह प ी के अ धक बीमार हो जाने व दवा-दा के लए पैसे न
होने पर, वह गया था बेट के पास। कत
ं ,ु अपमा नत होकर लौटना पड़ा

था और लौटकर उसने कसम खाई थी क जब तक सांस ह, वह बेट के


आगे गड़ गड़ाएगा नह ं। बेट क याद आते ह उसके ह ठ वत ृ णा म फैल
जाया करते ह। सहसा, बढ़ेू का यान बगल वाले पेड़ क ओर गया, जहाँ
एक बढ़ा
ू और एक बढ़
ू बैठे थे। दोन भीख मांग रहे थे। जब भी कोई
उनके सामने से गजरता
ु , वे अपना-अपना कासा खनखनाने लगते। बढ़ेू ने
गौर कया, परेू बस-अ डे पर अनेक भखार थे। जवान, बढ़ेू और ब चे !
उनम कई लंगड़े, लले
ू और अंधे थे या फर वे लंगड़ा, लला
ू और अंधा
होने का अ भनय कर रहे थे।
थके-टटे
ू पैर को घसीटते हए
ु बढ़ेू ने बस-अ डे का एक च कर
लगाया। फर वह गेट के पास खड़ा हो गया।
दोपहर हो चक
ु थी और वह अभी तक अपने लए गए फैसले के
अनसा
ु र कछ
ु भी न कर पाया था। तभी, उसने अंत ड़य म ऐंठन महसस

61
क । वह बदबदाया
ु ु , 'ऐसे कब तक चलेगा। कछ
ु ह मत तो करनी ह
होगी।' और अपने फैसले को अमल जामा पहनाने क को शश म वह
अ डे के अंदर तेजी से वे श करती एक बस क ओर बढ़ा। बस उसके
ब कल
ु कर ब आकर क । उतरने और चढ़ने को उतावल हई ु सवा रय
क ध का-मु क म वह ओंधे मँुह गर पड़ा। सोट हाथ से छट
ू गई और
च मा एक ओर जा गरा। कसी ने उसे उठाकर खड़ा कया और साथ ह ,
च मा और सोट भी उठाकर द ।
च मा टटने
ू से बच गया था। वह उसे ऑ ं ख पर बठाते हए
ु सोट
थामे एक ओर जा खड़ा हआ।
ु गरने से उसक कहु नयाँ छल गई थीं और
दद कर रह थीं।
कछ
ु ह दरू पर रे लवे टे शन था। भख
ू - यास से याकल
ु और थके-
टटे
ू शर र को घसीटता हआ
ु वह टे शन तक ले आया था। कोई गाड़ी
आकर लगी थी। र शेवाले सवा रय क ओर लपक रहे थे। लेटफाम पर
जाने वाले पल
ु पर भीड़ थी। वहाँ कई भखार कतार म बैठे भीख माँग रहे
थे और 'हे बाबू... रे बेटा... हे माई... तेरे ब चे िजएं... भगवान तेरा भला
करे ...' क गहार
ु लगा रहे थे।
पल
ु पर चढ़ना बढ़ेू के वश क बात नह ं थी। वह नीचे ह खड़ा-
खड़ा आते-जाते लोग क भीड़ को दे खता रहा। जहाँ वह खड़ा था, वहाँ से
एक रा ता पट रय क ओर जाता था। कई लोग वह ं से होकर लेटफाम
क ओर बढ़ रहे थे। वह भी उसी रा ते से होता हआ
ु पट रय को पार
करके लेटफाम पर चढ़ गया। े न अभी भी खड़ी थी। वह इंजन के पास
जाकर खड़ा हो गया और जहाँ तक उसक जाती थी, उसने रे ल के
ड ब पर नज़र दौड़ाई, खड़ कय से झांकती सवा रय और लेटफाम पर
खड़े लोग को दे खा।
बढ़ेू को यह जगह उपयु लग रह थी। धीरे -धीरे वह अपने अंदर
ह मत बटोरने लगा। इस बार उसके हाथ-पैर नह ं कांपे। उसे लगा, वह
अपने भीतर पया ताकत बटोर चका
ु है। अब उसे आगे बढ़कर... तभी,
एक तेज सीट क आवाज के साथ इंजन ने खसकना ारं भ कर दया।
धीरे -धीरे रे ल ग त पकड़ती गई और एक के बाद एक ड बा उसके आगे से
गजरता
ु चला गया। वह कछ
ु न कर पाया। जहाँ खड़ा था, वह ं खड़ा रह

62
गया मानो उसके पैर धरती से चपक गए ह । लेटफाम पर अब इ का-
द ु का लोग रह गए थे। वह फर असफल रहा था। घोर नराशा और
हताशा के च उसके चेहरे पर प दे खे जा सकते थे।
शाम होने को थी। उसे बढ़
ू बीमार प ी का याल हो आया।
मायस
ू -सा वह घर क ओर लौट पड़ा। दनभर चलने और खड़ा रहने के
कारण उसके पैर सज
ू गए थे और टांग दखने
ु लगी थीं।
ु , एक चहा
जैसे ह वह घर म घसा ू तेजी से बाहर क ओर भागा।
उसे यँू बाहर भागते दे ख बढ़ा
ू बदबदाया
ु ु , 'तम
ु भी घर छोड़कर भाग रहे हो
?... जाओ, यहाँ है ह ु रहना पसंद करोगे।' सहसा, उसे
या जो तम
छपाकर रखी ेड का याल हो आया- 'कह ं इसने...'। बढ़ेू ने लपककर
वहाँ हाथ मारा, जहाँ उसने ेड के दो सखे
ू पीस छपाकर
ु रखे थे। पीस
अपनी जगह सह -सलामत थे। बढ़ेू ने राहत क सांस ल ।
तभी, बढ़
ू ने उसक ओर दे खा। वह फसफसाई
ु ु , ''कहाँ चले गए
थे?... मेरा दम नकलने को है, कछ
ु खाने को दो...।''
बढ़ा
ू बचे हए
ु ेड के पीस भगोकर बढ़
ू के मँुह म डालने लगा,
''ले, बस यह ह, इ ह खा ले।''
''तमने
ु कछ
ु खाया ?''
''....'' बढ़ा
ू कछ
ु नह ं बोला, उसक ऑ ं ख म ऑ ं सू थे।
''मने पछा
ू , तमने
ु कछ
ु खाया ?''
बढ़ा
ू अब ससकने लगा था। बढ़ू के शर र म हरकत हई।
ु वह
अधलेट -सी होकर ब तर पर बैठ गई।
''नह ,ं तम
ु भी खाओ।'' अपने मख
ु क ओर बढ़ा हआ
ु बढ़ेू का हाथ
उसने अपने हाथ से पीछे क ओर धकेल दया। बढ़ेू ने भीगी ेड क
बरक
ु भर और शेष बची ेड बढ़ ु क ओर बढ़ा द । तभी, उसक
ू के मख
ू गई, ''मझे
लाई फट ु ऐसा नह ं करना चा हए था... इतनी मेहनत कसी
ओर काम के लए क होती तो शायद म कामयाब हो गया होता... मने
एक गलत फैसला लेकर सारा दन बरबाद कर दया।''
''फैसला ?... कैसा फैसला ?'' बढ़ू ने घबराकर पछा।

63
''म सारा दन भखा
ू - यासा शहर म घमता
ू रहा, पर जो सोचकर
नकला था, वह नह ं कर पाया... ह मत ह नह ं पड़ी... म ... म... लोग
के आगे हाथ नह ं फैला पाया... म भीख नह ं मांग पाया...'' कहते-कहते
बढ़ेू ने अपना चेहरा अपनी दोन हथे लय म छपा लया।

64
साँप

''र , ल खे तरखान के तो भाग खल


ु गए।''
''कौण ?... ओह स पां दा वैर ?''
''हाँ, वह । साँप का द ु मन ल खा सं ह।''
''पर, बात या हई
ु ?''
''अर , कल तक उस गर ब को कोई पछता
ू नह ं था। आज सोहणी
नौकर और सोहणी बीवी है उसके पास। बीवी भी ऐसी क हाथ लगाए
मैल हो।''
जहाँ गाँव क चार ि याँ इक ा होतीं, ल खा सं ह तरखान क
क मत का क सा छे ड़ बैठतीं। उधर गाँव के बढ़ेू - जवान मद भी कहाँ
पीछे थे। उनक जबान पर भी आजकल ल खा ह ल खा था।
''भई ब तावर, ल खा सं ह क तो लाटर खल
ु गई। दोन हाथ म
ल डू लए घमता
ू है।''
''कौन ?... बशने तरखान का लड़का ? साँप को दे खकर जो
पागल हो उठता है...।''
''हाँ, वह ।''
''र ब भी जब दे ता है तो छ पर फाड़कर दे ता है । कल तक यह
ल खा रोट के लए अ न और चू हा जलाने के लए र न(बीवी) को
तरसता था।''
''हाँ भई, क मत के खेल ह सब।''
गाँव म िजस ल खा सं ह के चच हो रहे थे, वह बशन सं ह
तरखान का इकलौता बेटा था। जब पढ़ने- लखने म उसका मन न लगा
और दसर
ू जमात के बाद उसने कल
ू जाना छोड़ गाँव के ब च के संग

65
इधर-उधर आवारागद करना शु कर दया, तो बाप ने उसे अपने साथ
काम म लगा लया। दस-बारह साल क उ म ह वह आर -रं दा चलाने म
नपण
ु हो गया था।
बशन सं ह तरखान एक गर ब आदमी था। न उसके पास जमीन
थी, न जायदाद। गाँव के बाहर प क सड़क के कनारे बस एक क चा-सा
मकान था िजसक छत के गरने का भय हर बरसात म बना रहता। गाँव
म खाते-पीते और ऊँची जात के छह-सात घर ह थे मिु कल से, बाक
सभी उस जैसे गर ब, खेत म मजरू करने वाले और जैसे -तैसे पेट पालने
वाले ! बशन सं ह इ ह ं लोग का छोटा-मोटा काम करता रहता। कभी
कसी क चारपाई ठ क कर द , कभी कसी के दरवाजे - खड़क क चौखट

ू जाती- ले भई बशने, ठ क कर दे । कसी


बना द । कसी क मथानी टट
क चारपाई का पाया या बाह टट
ू जाती तो बशन सं ह को याद कया
जाता और वह तरंु त अपनी औजार-पेट उठाकर हािजर हो जाता। कभी
कसी का पीढ़ा और कभी कसी के ब चे का रे हड़ा ! दाल-रोट बमिु कल
चलती।
जब ल खा सं ह क मस भींजने लगीं तो बशन सं ह आस-पास के
गाँव म भी जाने लगा- बढ़ई गर का काम करने। सबह
ु घर से नकलता
तो शाम को लौटता। काम के बदले पैसे तो कभी-कभार ह कोई दे ता।
गेहू ं, आटा, चावल, दाल वगैरह दे कर ह लोग उससे काम करवाते। थोड़ा-
बहत
ु ल खा सं ह भी घर पर रहकर कमा लेता। इस कार, उनके प रवार
क दाल-रोट चलने लगी थी।
दन ठ क-ठाक गजर
ु रहे थे और ल खा सं ह क शाद - याह क
बात चलने लगी थीं क एक दन...
चौमास के दन थे। एक दन शाम को जब बशन सं ह अपने
गाँव लौट रहा था, लंबरदार के खेत के पास से गजरते
ु समय उसे एक
साँप ने डस लया और उसक म ृ यु हो गई।
तभी से ल खा सं ह को साँप से नफरत हो गई। बाप के मरने के
बाद कई दन तक वह लाठ लए खेत म पागल क भाँ त घमता
ू रहा
था। बाँ बय को ढँू ढ़-ढँू ढ़कर न करता रहा था, साँप को खोज-खोजकर

66
मारता रहा था। गाँव के बड़े-बजग
ु ु के समझाने-बझाने
ु के बाद उसने ऐसा
करना छोड़ा था।
ले कन, गाँव म जब कसी के घर या पशओं
ु के बाड़े म साँप घस

आने क खबर उसे मलती तो वह साँप मारने वाल म सबसे आगे होता।
साँप को दे खकर उसक बाजओं
ु क मछ लयाँ फड़कने लगती थीं। साँप
कतना भी भयानक य न होता, ल खा सं ह लाठ लए बेखौफ होकर
उसे ढँू ढ़ नकालता और जब तक उसे मार न ले ता, उसे चैन न पड़ता।
मरे हए
ु साँप क पंछ
ू पकड़कर हवा म लटकाए हए
ु जब वह गाँव क
ग लय म से गजरता
ु , ब च का एक हजम
ु ू उसके पीछे -पीछे होता, शोर
मचाता हआ।
ु घर के खड़क -दरवाज , चौबार , छत पर दे खने वाल क
भीड़ जट
ु जाती।
कछ
ु समय बाद ल खा सं ह क माँ भी चल बसी। अब ल खा
सं ह अकेला था।
इसी ल खा सं ह को कोई अपनी लड़क याह कर राजी नह ं था।
जब तक माँ-बाप िजंदा थे, उ ह ने बहत
ु को शश क क ल खे का कसी
से लड़ बंध जाए। इसका चू हा जलाने वाल भी कोई आ जाए। ऐसी बात
नह ं क र ते नह ं आते थे। र ते आए, लड़क वाले ल खा सं ह और
उसके घर-बार को दे ख-दाखकर चले गए, पर बात आगे न बढ़ । माँ-बाप
के न रहने पर कौन करता उसक शाद क बात ! न कोई बहन, न भाई,
न चाचा, न ताऊ, न कोई मामा-मामी। बस, एक मौसी थी फगवाड़े वाल
जो माँ-बाप के िजंदा रहते तो कभी-कभार आ जाया करती थी ले कन,
उनके परलोक सधारने पर उसने भी कभी ल खा सं ह क सध
ु नह ं ल
थी।
जब ल खा सं ह पतीस पार हआ
ु तो उसने शाद क उ मीद ह
छोड़ द । गाँव क जवान और बढ़
ू ि याँ अ सर आते-जाते राह म उससे
मखौल कया करतीं, ''वे ल खया ! तू तो लगता है, कुं वारा ह बु ढ़ा हो
जाएगा। नह ं कोई कड़ी
ु मलती तो ले आ जाके य.ू पी. बहार से... मोल दे
के। कोई रोट तो पका के दे ऊ तैनू.ं ..।''

67
मगर ल खा सं ह के पास इतना पया-पैसा कहाँ क मोल दे कर
बीवी ले आए। ऐसे म उसे गाँव का चरना कु हार याद हो आता जो अपनी
बीवी के मरने पर बहार से ले आया था दसर
ू बीवी- पया दे कर। दसर

बीवी दो मह ने भी नह ं टक थी उसके पास और एक दन सारा सामान
बांधकर चलती बनी थी। पया-पैसा तो खू-खाते म गया ह , घर के
सामान से भी हाथ धोना पड़ा। चरना फर बन औरत के- रं डवा का रं डवा
!
चरना को याद कर ल खा सं ह कान को हाथ लगाते हए
ु मसखर
करती औरत को उ र दे ता, ''मोल दे कर लाई बीवी कल अगर भांडा- टंडा
लेकर भाग गई, फर ?... न भई न। इससे तो क◌ु
ु ◌ंवारा ह ठ क हँू ।''
फर, कभी-कभी ल खा सं ह यह भी सोचता, जब उस अकेले क
ह दाल-रोट मिु कल से चल रह है , तब एक और ाणी को घर म लाकर
बठाना कहाँ क अकलमंद है।
इसी ल खा सं ह तरखान का सतारा एकाएक यँू चमक उठे गा,
कसी ने सपने म भी न सोचा था। खद
ु ल खा सं ह ने भी नह ं। घर बैठे-
बैठे पहले नौकर मल , फर सु दर-सी बीवी।
सचमच
ु ह उसक लॉटर लग गई थी।
सन ् पसठ के दन थे। ह द ु तान-पा क तान क जंग अभी ख म
ह हई
ु थी। एक रात उधर से गजर
ु रह एक सेठ क कार ऐन उसके गाँव
के सामने आकर खराब हो गई। आस-पास न कोई शहर, न क बा। ाइवर
ने बहत
ु को शश क मगर कार ठ क न हई।
ु इंजन क कोई छोट -सी
गरार टटू गई थी। सेठ और ाइवर ने ल खा सं ह का दरवाजा जा
ू , ''आस-पास कोई मोटर-मैके नक
थपथपाया और सार बात बताई। पछा
मलेगा या ?''
ल खा सं ह उनका सनकर
ु हँस पड़ा।
''बादशाहो, यहाँ से दस मील दरू है क बा। वह ं मल सकता है
कोई मके नक। पर इतनी रात को वहाँ भी कौन अपनी दकान
ु खोले बैठा
होगा। आप लोग मेर मानो, रात यह ं गाँव म गजारो।
ु तड़के कोई सवार
लेकर चले जाणा क बे और मके नक को संग ले आणा।''

68
सेठ और ाइवर परे शान-सा होकर एक-दसरे
ू का चेहरा दे खने लगे।
''वैसे हआ
ु या है , ग डी को ?''
''यह गरार टट
ू गई'' ाइवर ने हाथ म पकड़ी गरार दखाते हए

कहा।
''हँू...'' कछ
ु ु ल खा सं ह बोला, ''बादशाहो, तसी
सोचते हए ु बैठो।
दे खता हँू, या हो सकता है।''
ल खा सं ह ने अपनी औजार-पेट खोल , औजार नकाले और
लकड़ी क एक गाँठ लेकर बैठ गया। लै प क रोशनी म आधे घंटे क
मेहनत-मश कत के बाद उसने हू-ब-हू लकड़ी क गरार तैयार कर द और
बोला, ''चलो जी, इसे फट करके दे खते ह।''
ाइवर और सेठ हैरान थे क यह लकड़ी क गरार या करे गी ?
ले कन जब ल खा सं ह ने स चे पातशाह को याद करते हए
ु गरार को
उसक जगह पर फट कया और गाड़ी टाट करने को कहा तो न केवल
गाड़ी टाट हई
ु बि क गयर म डालते ह चल भी पड़ी।
''लो भई बादशाहो, ये मेर गरार आपको शहर तक तो पहँु चा ह दे
शायद।''
सेठ और ाइवर बहत
ु खश
ु थे। सेठ ने ल खा सं ह को पये दे ने
चाहे िज ह लेने से ल खा सं ह ने इ कार कर दया। बोला, ''बादशाहो,
आपक गाड़ी हमारे गाँव के पास आकर खराब हई।
ु आप हमारे मेहमान
हए।
ु मेहमान से या कोई पैसे लेता है ? आपक हम िजतनी सेवा कर
सकते थे, कर द । पये दे कर हम शर मं दा न करो।''
और जब वाकई कार ने सेठ को उसके शहर तक पहँु चा दया तो
सेठ ल खा सं ह से बहत
ु भा वत हआ।
ु उसका अपना लकड़ी का कारोबार
था। दे हरादन
ू और पौढ़ -गढ़वाल म आरा मशीन और फरनीचर के कारखाने
थे उसके। उसने अगले दन ह अपना आदमी भेजकर ल खा सं ह को
अपने पास बला
ु लया।
ू , ''मेरे यहाँ नौकर करोगे ? सौ
सेठ ने पछा पया मह ना और
रहने को मकान।''

69
ल खा सं ह को और या चा हए था। उसने 'हाँ' कर द । शहर म
सेठ का बड़ा गोदाम था। फलहाल, सेठ ने उसे वह ं रख लया।
इधर शहर म उसक नौकर लगी, उधर फगवाड़े वाले मौसी एक
लड़क का र ता लेकर आ गई। ल खा सं ह क हाँ मलते ह लड़क वाले
अगले मह ने ह शाद के लए राजी हो गए। शाद म सेठ भी शर क हआ।

ल खे क बीवी ल खे क उ से छोट ह नह ,ं बेहद खबसरत
ू ू भी
थी।
गाँव वाले कहते, ''ल खया, वोहट तो तेर इतनी सोहणी है क

ु ।''
हाथ लगाए मैल हो। रात को द वा बालने क भी ज रत नह ं तझे
ल खा सं ह क बीवी का नाम वैसे तो परमजीत था, पर गाँव क
ि य ने आते-जाते उसे सोहणी कहकर बलाना
ु आरं भ कर दया था। अब
ल खा भी उसे सोहणी कहकर ह बलाने
ु लगा। शाद के बाद िजतने दन
वे गाँव म रहे या तो ल खा सं ह क क मत के चच थे या फर उसक
बीवी क खबसरती
ू ू के।
ल खा सं ह खद
ु अपनी क मत पर हैरान और मु ध था।
छु ी बताकर बीवी को संग लेकर जब वह काम पर लौटा तो सेठ
बोला, ''ल खा संह, गोदाम वाला मकान और नौकर तेरे लए ठ क नह ं।
अब तू अकेला नह ं है। साथ म तेर बीवी है। तू ऐसा कर, गढ़वाल म
मेरा एक कारखाना है। वहाँ एक आदमी क ज रत भी है। तू वहाँ चला
जा। रहने को मकान का भी बंध हो जाएगा। कोई द कत हो तो
बताना।''
यु र म ल खा सं ह कछ
ु नह ं बोला, दाढ़ खजलाता
ु रहा।
''मेर राय म तू बीवी को लेकर वहाँ चला ह जा। तेरे जाने का
बंध भी म कर दे ता हँू । पहाड़ से घरा खला
ु इलाका है, तझे
ु और तेर
बीवी को पसंद आएगा।''
सेठ क बात सनकर
ु ल खा सं ह बोला, ''घरवाल से पछकर

बताता हँू ।''
सेठ के पास उसका ाइवर भी बैठा था। ल खा सं ह का उ र
सनकर
ु बोला, ''पछना
ू या ? तू जहाँ ले जाएगा, वह चपचाप
ु चल

70
जाएगी। तेर बीवी है वो। लोग पहाड़ पर हनीमन
ू मनाने जाते ह। समझ
ले, तू भी हनीमन
ू मनाने जा रहा है। हनीमन
ू का हनीमन
ू और नौकर क
नौकर !'' कहकर ाइवर हँस पड़ा।
ल खा सं ह सेठ क बात मान गया।

पहाड़ और जंगल से घर कलाल घाट । इसी घाट क तराई म जंगल से


सटा था सेठ का छोटा-सा लकड़ी का कारखाना। क बे और आबाद से दर।

शा त वातावरण और समीप ह बहती थी- मालन नद । लकड़ी के लए
जंगल के ठे के उठते। पेड़ काटे जाते और दन-रात चलती आरा मशीन

ु लकड़ी जब कारखाने के अंदर जाती, तो


कने का नाम न लेतीं। कट हई
फर खबसरत
ू ू व तओं
ु म त द ल होकर ह बाहर नकलती- व भ न कार
क कु सय , मेज , सोफ , पलंग और अलमा रय के प म ! क पर
लादकर यह सारा फन चर शहर के गोदाम म पहँु चा दया जाता। तैयार
माल क दे खरे ख और उसे क पर लदवाकर शहर के गोदाम म पहँु चाने
का काम करता था- ताप, चौड़ी और मजबत
ू कद-काठ वाला यवक।

सेठ के कहे अनसार
ु इसी ताप से मला ल खा सं ह इस कलाल
घाट म, सेठ के फन चर कारखाने पर। ताप ने उसे मैनेजर से
मलवाया। मैनेजर ने ताप से कहा, '' ताप, सरदार जी को पाँच नंबर
वाले मकान पर ले जा। सरदार जी वह ं रहगे।'' फर, ल खा सं ह क

ु तब होकर बोला, ''सरदार जी, आज आप आराम कर। सफर म


ओर मखा
थक गए ह गे। कल से काम पर आ जाना।''
कारखाने से कोई एक कोस दरू पहाड़ी प थर से बने थे पाँच-छह
मकान। खले
ु -खले
ु । ताप उ ह िजस मकान म ले गया, वह सबसे पीछे
क ओर था। उसके पीछे से जंगल शु होता था। जंगल के पीछे पहाड़ थे।
मकान खला
ु और हवादार था। पहले छोटा-सा बरामदा, फर एक बड़ा
कमरा, उसके बाद रसोई और आ खर म पछवाड़े क तरफ शौच-
गसलखाना।
ु आगे और पीछे क खल
ु जगह को पाँचेक फ ट ऊँची द वार
से घेरा हआ
ु था।

71
ल खा सं ह सचमच
ु पहाड़ क खल
ु वाद को दे खकर खश
ु था। मकान
ु हो गया। ले कन, ल खा सं ह क घरवाल घबराई
दे खकर और भी खश
हई
ु थी।
''मने नह ं रहना यहाँ, इस जंगल- बयाबान म... दे खो न, कोई भी
चोर-लटेु रा आगे-पीछे क द वार कदकर
ू अंदर घस
ु सकता है। आप तो चले
जाया करोगे काम पर, पीछे म अकेल जान... न बाबा न !''
सोहणी के डरे हए
ु चेहरे को दे खकर ल खा सं ह मु करा दया।
बोला, ''ओ सोह णयो, पंजाब क कड़ी
ु होकर डर रहे हो ?''
ताप ने समझाने क को शश क , ''नह ं भाभी जी, आप घबराओ
नह ं। चोर -डकैती का यहाँ कोई डर नह ं। बेशक खड़क -दरवाजे खले

छोड़कर चले जाओ। हाँ, कभी-कभी साँप ज र घर म घस
ु आता है।''
''साँप !''
सोहणी इस तरह उछल जैसे सचमच
ु ह उसके पैर तले साँप आ
गया हो।
ल खा सं ह भी साँप क बात सनकर
ु सोच म पड़ गया और मन-
ह -मन बदबदाया
ु ु - यहाँ भी साँप ने पीछा नह ं छोड़ा।
सोहणी बहत ु बोल ,
ु घबरा गई थी। ल खा सं ह क ओर दे खते हए
''सनो
ु जी, वापस द ल चलो... सेठ से कहो, वह वह ं गोदाम पर ह
काम दे दे । हम नह ं रहना यहाँ साँप के बीच। साँप से तो मझे
ु बड़ा डर
लगता है जी।''
ल खा सं ह ने ेमभर झड़क द , ''ओए, पागल न बन। कछ

ु ।''
दन रहकर तो दे ख। कोई साँप-सँूप नह ं डसता तझे फर घबराई हई

बीवी के कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला, ''अगर आ ह गया तो दे ख

ू ा। बड़े साँप मारे ह मने अपने पं ड म...।''


लंग
''अ छा तो म चलता हँू । कोई तकल फ हो तो बला
ु लेना। म
सामने वाले दो मकान छोड़कर तीसरे म रहता हँू ।'' जाते-जाते ताप ने
कहा, ''वैसे म सारा दन घर पर ह रहता हँू । सबह
ु थोड़ी दे र के लए
कारखाने जाता हँू और लौट आता हँू। फर शाम को चार-पाँच बजे जाता
हँू । बस, दनभर म यह दो-ढाई घंट का काम होता है मेरा।''

72
सेठ के कारखाने म मैनेजर को मलाकर कल
ु सात लोग काम करते थे।
रघबीर, कांती और दलाबर फन चर तैयार करते थे जब क बंसी और
मु ना का काम वा नश, रं ग-रोगन आ द का था। ताप का काम था-
तैयार माल क दे खरे ख करना और उसे शहर के गोदाम म भेजना। ल खा
सं ह को फन चर तैयार करने के काम पर लगा दया गया था।
ल खा सं ह सबह
ु काम पर चला जाता और शाम को लौटता।
दनभर सोहणी घर पर अकेल रहती, डर -डर , सहमी-सहमी-सी। ल खा
सं ह लौटता तो उसका डर से कु हलाया चेहरा दे खकर परे शान हो उठता।
अंधेरा होने के बाद तो सोहणी रसोई क तरफ जाने से भी डरती थी।
शौच-गसल
ु तो दरू क बात थी। ल खा सं ह ने टाच खर द ल थी।
बजल न होने के कारण दये क म दम रोशनी म सोहणी नीचे फश पर
पैर रखते हए
ु भी भय खाती थी। हर समय उसे लगता मानो साँप उसके
पैर के आस-पास ह रग रहा हो। र सी का टकड़ा
ु भी उसे साँप तीत
होता।
कछ
ु ह दन म ल खा सं ह ने महसस
ू कया क सोहणी के चेहरे
का सोहणापन धीमे-धीमे पीलेपन म बदलता जा रहा है। ल खा सं ह उसके

ु को शश करता, उसे समझाता मगर


भीतर के डर को नकालने क बहत
सोहणी थी क उसका डर जैसे उससे चपट गया था- ज क क तरह। वह
हर बार द ल लौट चलने क बात करती। इतवार को ल खा सं ह क
छु ी हआ
ु करती थी। उस दन वह सोहणी को शहर ले जाता। उसे
घमाता
ु , गढ़वाल के ाकृ तक य दखलाता। मालन नद पर भी ले

ू रह होती, उसके
जाता। सोहणी घर से बाहर जब ल खा सं ह के संग घम
चेहरे पर से डर का साया उतर जाता। वह खश ु नज़र आती। ले कन,
ु -खश
घर म घसते
ु ह सोहणी का सोहणा चेहरा कु हलाने लग पड़ता।
सोहणी के इसी डर के कारण ल खा सं ह अब दन म भी एक
च कर घर का लगाने लगा था। साथ काम करते कार गर उससे चु क
लेते तो मैनेजर भी उनम शा मल हो जाता।
एक दन ताप भी मैनेजर के पास बैठा था जब ल खा सं ह ने
दोपहर को घर हो आने क इजाजत मांगी।

73
''सरदार जी, माना आपक नई-नई शाद हई
ु है , पर उस बेचार को
थोड़ा तो आराम कर लेने दया करो।'' मैनेजर मु कराकर बोला।
''ऐसी कोई बात नह ं है जी... वो तो बात कछ
ु और ह है।
दरअसल...'' कहते-कहते ल खा सं ह क गया तो दलाबर बोल उठा,
''दरअसल या ?... साफ-साफ यँू नह ं कहता क बीवी क याद सताने
लगती है।''
मु ना और कांती एक साथ हँस पड़े।
''नह ं जी, दरअसल बात यह है क मेर घरवाल को हर समय
साँप का डर सताता रहता है।''
''साँप का डर ?'' रघबीर ने है रानी कट क ।
''बात यह है जी क पहले दन ह ताप ने कह दया था क घर
म साँप घस
ु आते ह कभी-कभी। मेर बीवी को साँप से बड़ा डर लगता है।
बेचार दन भर डर -डर -सी रहती है।''
'' य ताप ? यह ु ? तने
या बात हई ू ल खा सं ह क बीवी को
डरा दया।'' मैनेजर ने पास बैठे ताप के चेहरे पर नज़र गड़ाकर हँसते
हए
ु पछा।

''मने झठ
ू कहाँ कहा ? साँप का घर म घस
ु आना तो यहाँ आम
बात है।'' ताप ने सफाई द । फर उसने ल खा सं ह के आगे एक
ताव रखा, ''ल खा सं ह जी, इतना घबराने क ज रत नह ं। म पास
ह रहता हँू । अगर ऐसी ह बात है तो दन म म दे ख आया क ँ गा भाभी
को।''
ल खा सं ह को ताप क बात जँच गई, बोला, ''तु हार बड़ी
मेहरबानी होगी।''
एक डेढ-माह बाद ल खा सं ह ने महसस
ू कया क सोहणी के
चेहरे पर अब पहले जैसा डर नह ं रहा है। अब शाम को अंधेरा हो जाने के
बाद पछवाड़े क ओर वह अकेल चल जाती थी। यह दे खकर ल खा सं ह
ने राहत क साँस ल थी।

74
एक दन दोपहर म काम नह ं था। ल खा सं ह का मन घर पर हो
आने को हआ।ु काफ दन से वह दन म घर पर गया भी नह ं था।
मैनेजर से कहकर वह घर क ओर चल पड़ा।
घर पर ताप सोहणी से बात कर रहा था। सोहणी खश
ु नज़र आ
रह थी। सोहणी को खश
ु दे खकर ल खा सं ह भी खश
ु हो गया।
''ल खा सं ह जी, अब आप चं ता न कर। इनका डर अब ख म
होता जा रहा है। अगर मझे
ु मालम
ू होता क ये साँप से इतना ह डरती ह
तो म साँप वाल बात करता ह नह ं।'' ताप ल खा सं ह को दे खकर
बोला।
''नह ं जी, डर तो मझे
ु अभी भी लगता है। साँप का या भरोसा
जी, कब आ जाए। जब से दन म एक-दो बार ताप भाई आकर पता कर
जाते ह, थोड़ा ह मत-सी बंध गई है।'' सोहणी ने कहा।
कछ
ु दे र बाद ताप चला गया तो ल खा सं ह ने दे खा, सोहणी के
चेहरे पर रौनक थी। वह ऐसी ह रौनक उसके चेहरे पर हर समय दे खना
चाहता था।
''सोह णय ! मलाई दे डो नय !! आज तो बड़े ह सोहणे लग रहे
हो...'' कहकर ल खा संह ने सोहणी को अपने आ लं गन म ले लया।
''हटो जी, आपको तो हर व मसखर सझती
ू रहती है।'' सोहणी
लजाते हए
ु अपने आपको छड़ाते
ु हए
ु बोल ।
पहले तो सोहणी दन के उजाले म ह रात का खाना बना लया
करती थी ता क रात को रसोई क तरफ न जाना पड़े। ल खा सं ह से भी
उजाले-उजाले म घर लौट आने क िज करती थी। ले कन, अब ऐसी बात
न थी। शाम को अंधेरा होने पर जब ल खा सं ह लौटता तो वह रसोई म
अकेल खड़ी होकर खाना बना रह होती। दन म धोकर पछवाड़े क र सी
पर डाले गए कपड़े रात को सोने से पहले खद
ु ह उतार लाती।

जाड़े के सहावने
ु दन शु हो गए थे। गनगनी
ु ु धप
ू म बैठना अ छा लगता
था। ऐसी ह एक गनगनी
ु ु धप
ू वाले दन ल खा सं ह दोपहर को काम पर
से आ गया। सोहणी क खनखनाती हँसी घर के बाहर तक गँूज रह थी।
बेहद यार , मन को लभा
ु दे ने वाल हँसी ! जैसे गदगद
ु ु करने पर ब चे

75
के मख
ु से नकलती है। वह हँसी ल खा सं ह को बड़ी यार लगी।
ले कन, वह अकेल य और कस बात पर हँस रह है ? वह सोचने
लगा। तभी पु ष हँसी भी उसे सनाई
ु द । घर पर ताप था। ल खा सं ह
को यँू अचानक आया दे खकर दोन क हँसी गायब हो गई।
''वो जी... आज... मने साँप दे खा... गसल
ु खाने म। म तो जी डर
के मारे काँपने ह लगी...'' सोहणी के वर म कंपन था, '' क तभी ताप
भाई आ गए। इ ह ने ह उसे भगाया।''
''भगाया ? मारा य नह ं ?''
''म तो मार ह दे ता, पर वह बचकर नकल गया।'' ताप के मख

से नकला।
सोहणी फर परानी
ु रट पकड़ने लगी, ''जी, मने नह ं रहना यहाँ।
आज तो दे ख ह लया साँप... कभी आप आओगे तो मर पड़ी मलंग
ू ी
म... ।''
''पगल है तू, एक साँप दे खकर ह डर गई।''
उस दन ल खा सं ह दबारा
ु काम पर नह ं गया। ताप से मैनेजर
को कहलवा दया।

रघबीर के बेटा हआ
ु तो उसने सभी को ल डू खलाए। पछले बरस ह
उसक शाद हई ु थी।
''लो भई, रघबीर ने तो ल डू खला दए। ल खा सं ह जी, तम

कब मँुह मीठा करवा रहे हो ?'' मैनेजर ने आधा ल डू मँुह म डाल, आधा
हाथ म पकड़कर ल खा सं ह से कया।
''हम भी करवा दगे ज द ह अगर र ब ने चाहा तो...'' ल खा
सं ह लकड़ी पर रं दा फेरते हए
ु मु कराकर बोला।
'' सफ मँुह मीठा करवाने से बात नह ं बनेगी। पाट होगी, पाट ...।''
बंसी अपने हाथ का काम रोककर कहने लगा।
''अरे , इसके तो जब होगा तब दे खी जाएगी, पहले रघबीर से तो ले
लो पाट । ल डू से ह टरका रहा है।'' मु ना भी बोल उठा।

76
''हाँ-हाँ, य नह .ं ..'' रघबीर ने कहा, ''पर तम
ु सबको मेरे घर पर
चलना होगा, ब चे के नामकरण वाले दन।''

खब
ू अ छ रौनक लगी नामकरण वाले दन रघबीर के घर। ल खा सं ह
सोहणी को लेकर ताप के संग पहँु चा था। उधर कांती भी अपनी प ी को
लेकर आया था। मैनेजर, दलाबर, बंसी और मु ना पहले ह पहँु चे हए
ु थे।
रघबीर ने दा का भी इंतजाम कया हआ
ु था। बंसी को छोड़कर सभी ने
पी। ल खा सं ह क सोहणी और कांती क बीवी घर क ि य के संग घर
के कामकाज म हाथ बंटाती रह थीं। खाने-पीने के बाद शाम को घर क
ि याँ ऑ ं गन म दर बछाकर ढोलक लेकर बैठ ग । रघबीर ने ऑ ं गन म
एक ओर दो चारपाइयाँ बछा द ं िजन पर मैनेजर, दलाबर, मु ना, बंसी,
ल खा और ताप बैठ गए और ि य के गीत का आनंद लेने लगे।
तभी, ताप अपनी जगह से उठा और एक ी के पास जाकर उसके कान
म कछ
ु फसफसाया।
ु ु
अब सभी ि याँ सोहणी को घेर कर बैठ ग । वह 'न-नकर
ु ' करने
लगी तो ल खा सं ह बोल उठा, ''सोह णय , सना
ु भी दो अब...।''
काफ दे र तक लजाती-सकचाती
ु सोहणी ने आ खर ढोलक पकड़ ह
ल।
इसके बाद तो सब च कत ह रह गए। खद
ु ल खा सं ह भी।
सोहणी िजतनी अ छ ढोलक बजाती थी, उतना ह अ छा गाती थी।
उसने पंजाब के कई लोकगीत सनाए।
ु एक के बाद एक।
आजा छ ड के नौकर मा हया
क ल दा मेरा दल न ल गे...

प पल दया प या केह खड़-खड़ लाई वे...


प ु ,
झड़े पराण त न वयां द आई वे...
प पल दया प याँ, ते रयाँ ठं डयाँ छाँवाँ...
झड़क दयाँ ससाँ, चेते आउं दयाँ ने माँवाँ...

ऐधर कणकाँ, ओधर कणकाँ

77
व च कणकाँ दे टोया
माह मेरा बु ढ़ा िजहा
दे ख के दल मेरा रोया...
ु लयाँ, लै लो दाल-छोले...
लै लो दाल फि

इस गीत को सोहणी ने िजस अंदाज म गाया, उससे सभी


खल खलाकर हँस पड़े। मैनेजर ल खा सं ह क जाँघ पर हाथ मारकर
बहत
ु दे र तक हँसता रहा।
अब ढोलक कांती क घरवाल को दे कर सोहणी उठकर खड़ी हो गई
और चु नी को कमर म बांधकर ग दा डालने लग पड़ी।

बार बरसीं खटण गया सी,


खट के लयादाँ ताला
तेरे िजहे लख छोकरे ...
मेरे नाम द जपदे माला...
सोहणी को नाचते दे ख ल खा सं ह और ताप भी खड़े होकर
नाचने लगे। मह फल म रं गत आ गई।
ग े वच नचद द गु खल
ु जाँद आ
ड गया परांदा दे ख स प वरगा
तेरा लारा वे शरा बयाँ द ग प वरगा

इस बार सोहणी ने ल खा सं ह क ओर इशारा कया तो मैनेजर,


ताप और मु ना क हँसी छट
ू गई।
म रा पड़ोस दया
कंध ट प के आ जा तू
माह मेरा क म ते गया...

ू उठा, ''ब ले-ब ले ओ सोह णय ... खश


ल खा सं ह झम ु कर द ा
तसी
ु तां...''
जब नाचते-नाचते सोहणी हाँफने लगी तो वह बैठ गई। ले कन
गाना उसने ब द नह ं कया था। अब ढोलक फर उसके हाथ म थी।
आ जो गया, फेरा पा जो गया...

78
साडा रोग बरा
ु हटा जो गया...फेरा पा जो गया
आ गया नी, फेरा पा गया नी
सानंु फनीअर नाग लड़ा गया नी... जोगी आ गया नी
आ गया नी, फेरा पा गया नी
सानंु रोग जदाइयाँ
ु दा पा गया नी... जोगी आ गया नी

सोहणी का यह प तो ल खा सं ह ने दे खा ह नह ं था। वह इतना


उ मु होकर नाच-गा रह थी जैसे वह पंजाब म अपने गाँव म नाच-गा
रह हो।

नीं स प ल ड़या, मनंू स प ल ड़या


जद माह गया मेरा क म ते
घर वच आ व ड़या... स प ल ड़या
मनंू सु ी जाण के अ ड़यो
मंजे उ े आ च ढ़या... स प ल ड़या

दे र रात गए जब ताप, ल खा सं ह और सोहणी घर क ओर


लौट रहे थे तो सोहणी बेहद खश
ु और उमंग से भर लग रह थी। रा ते
भर ताप उसक तार फ करता रहा और वह खल खलाकर हँसती रह ।
लगता था, उसके पाँव जमीन पर नह ं पड़ रहे थे, वह हवा म उड़ रह
थी। इधर ल खा सं ह मन-ह -मन सोच रहा था- साँप से डरने वाल
सोहणी के गीत म साँप कहाँ से आ गए ?
दलाबर क माँ बीमार थी और कांती को अपनी घरवाल को छोड़ने
जाना था। इस लए दोन एक ह ते क छु ी लेकर चले गए थे। काम परा

करने और समय पर दे ने के लए मैनेजर ने डबल- श ट लगा द थी। अब
रात म भी काम होने लगा था।
शु म सोहणी ने इसका वरोध कया, बोल , '' दन तो जैसे-तैसे
गजर
ु जाता है , रात म अकेले... मेर तो जान ह नकल जाएगी।''
जब ल खा सं ह ने मजबरू बताई और कहा क दो-चार दन क
ह बात है और चार पैसे बढ़कर ह मलगे तो वह मान गई।

79
उस रात काम कोई अ धक नह ं था। रात यारह बजे तक सब नबट गया
था। मैनेजर के कहने पर ल खा सं ह घर क ओर चल दया। ठं डी हवा
चल रह थी और परू वाद अंधकार म डबी
ू थी।
रात के समय सोहणी बाहर वाले दरवाजे म अंदर से ताला लगा
लया करती थी।
ल खा सं ह ने दरवाजे क ओर हाथ बढ़ाया अव य था ले कन वह
हवा म ह लटककर रह गया था। तेज साँस क आवाज उसके कान म
पड़ी थी। जैसे कोई साँप फँु कार रहा हो। वह घबरा उठा। तो या साँप ?
सोहणी साँप के डर से काँप रह होगी। ऐसे म वह दरवाजा कैसे खोल
सकती है ? वह सोच म पड़ गया। तभी, वह द वार पर चढ़ गया। वह
दबे पाँव घर म घसना
ु चाहता था, पर द वार से कदते
ू समय खटका हो ह
गया।
द ये का म दमकाश कमरे म पसरा हआु था। सोहणी बेहद
घबराई हई
ु दख रह थी। ब तर अ त- य त-सा पड़ा था।
'' या बात है सोहणी ? इतना घबराई हई
ु य हो ? या
साँप?..''
''हाँ-हाँ, साँप ह था... वहाँ... वहाँ ब तर पर...'' घबराई हई

ु से बमिु कल श द नकल रहे थे, ''म उधर जाती... वह
सोहणी के मख
भी उधर आ जाता। कभी इधर, कभी उधर... अभी आपके आने का खटका
हआ
ु तो भाग गया।''
ल खा सं ह ने हाथ म लाठ और टॉच लेते हए ू , '' कधर?...
ु पछा
कधर गया ?''
''उधर... उस तरफ।'' सोहणी ने घबराकर पछवाड़े क ओर संकेत
कया।
ल खा सं ह ने टॉच क रोशनी पछवाड़े म फक । सचमच
ु वहाँ
साँप था। काला, ल बा और मोटा साँप ! द वार पर चढ़ने क को शश
करता हआ।

80
''ठहर !'' ल खा सं ह के डोले फड़क उठे । उसने हाथ म पकड़ी
लाठ घमाकर
ु दे मार । एक पल को साँप तड़पा, फर द वार के दसर
ू ओर
गर गया।
''जाएगा कहाँ बच के मेरे हाथ ...'' ल खा सं ह टॉच और लाठ
लए द वार पर चढ़ने लगा। तभी, सोहणी ने उसक बांह पकड़ ल ।
'' या करते हो जी... छप
ु गया होगा वह जंगल क झा ड़य म।
ज मी साँप वैसे भी खतरनाक होता है।''
जाने या सोचकर ल खा सं ह ने अपना इरादा बदल दया।
''बच गया सा...ला, नह ं तो आज यह ं ढे र कर दे ता।''
उस रात सोहणी जब उससे लपटकर सोने का य कर रह थी,
ल खा सं ह उसके दल क धड़कन साफ सन
ु रहा था। कतना डरा रखा
था इस साँप ने। अब ह मत नह ं करे गा। या सोहणी सचमच
ु ह साँप से
डर रह थी ?

सबह
ु ह क -ह क बंद
ू ाबांद होती रह । आकाश म बादल ह बादल थे। ठं ड
भी बढ़ गई थी। बा रश कछ
ु थमी तो ल खा सं ह कारखाने पहँु चा।
सेठ द ल से आया हआ
ु था।
सेठ के एक ओर उसका ाइवर खड़ा था और दसर
ू ओर काला
कंबल ओढ़े ताप।
'' या बात है ताप ?'' सेठ ताप से पछ
ू रहा था
''कछ
ु नह ं सेठ जी, रात से तबीयत ठ क नह ं।''
''तबीयत ठ क नह ं ? दवा ल ? जा, जाकर आराम कर।'' सेठ
ताप से कह ह रहा था क उसक नज़र आते हए
ु ल खा सं ह पर पड़ी।
'' या हाल है ल खा सं ह ? कोई तकल फ तो नह ं ?''
''सब ठ क है सेठ जी, कोई तकल फ नह ं।'' पास आकर ल खा
सं ह ने कहा।
''कैसी है तेर बीवी ?... उसका दल लगा क नह ं ?''
''ठ क है वह भी, पर...''
''पर या ?''

81
''कछ
ु नह ं सेठ जी, साँप ने उसे तंग कर रखा था। मेरे पीछे घर
म घस
ु जाता था। कल रात मेरे हाथ पड़ गया। वो जोरदार लाठ मार है
क अगर बच गया तो दबारा
ु घर म घसने
ु क ह मत नह ं करे गा।''
इधर ल खा सं ह ने कहा, उधर कंबल लपेटे खड़े ताप के परेू
शर र म कँपकँपी दौड़ गई और उसक पीठ का दद अचानक तेज हो उठा।

82
आ खर पड़ाव का द:ु ख

न जाने रात का या बजा होगा। ऑ ं ख से नींद उड़ी पड़ी है और दल से


चैन। कभी ब तर पर उठकर बैठ जाती हँू , कभी लेट जाती हँू । कभी 'वाहे
गु -वाहे गु ' का पाठ करने लगती हँू । गरमीत
ु और हरजीत क कल वाल
बात मेरे कान म अभी भी गंज ू रह ह। मझ
ु बढ़
ू का कलेजा चाक हआ

पड़ा है तब से। हाय ओ रबा ! उ के आ खर दन के लए ये कैसा द:ु ख
बचा कर रखा था तने
ू !
छाती पर अचानक आ पड़े पहाड़ जैसे द:ु ख को तो भर जवानी म
झेल गई थी जब ब च का बापू, मेरे सर का सां एक सड़क हादसे म
चल बसा था। पीछे रह गई थी म अकेल , अपने दो छोटे -छोटे ब च के
संग, बेसहारा ! शु था क वह एक कमरा और एक रसोई डालकर सर-
छपाने का इ तज़ाम कर गया था। मने कैसे अपने ऑ ं चल म इन ब च
को संभाल कर रखा, यह म ह जानती हँू या मेरा रब ! लोग के घर
जाकर बतन मांजने पड़े तो मांजे, कपड़े धोने पड़े तो धोये , खेत म मजरू
करनी पड़ी तो क , गोबर-कड़ा
ू उठाना पड़ा, उठाया, पर कसी के आगे
हाथ नह ं फैलाया। खद
ु कम खाकर, ब च को भरपेट खलाती रह । मेरे
दो बेटे मेर दो ऑ ं ख थीं, दो हाथ थे, दो पैर थे। इनके लए जो कछ
ु कर
सकती थी, मने कया। इ ह पढ़ाया- लखाया। मेहर हई
ु परमा मा तेर क
गरमीत
ु पढ- लखकर एक कल ू म ट चर लग गया और छोटा बेटा हरजीत
दसवीं पास करके एक एजे ट के ज रये यू.के. चला गया।
हरजीत से मने जो उ मीद लगाई थीं, सो लगाई थीं, पर गरुमीत
को अपने छोटे भाई से कछ
ु अ धक ह उ मीद थीं। उसने इधर-उधर से
कजा पकड़कर एजट क जेब भर थीं और हरजीत को हवाई-जहाज पर
चढ़ाया था। गांव के कई लड़के वदे श जा चक
ु े थे। उनके घर म अब टोर
थी। क चे मकान को ठय म बदल गए थे। घरवाले मा तय म घमते
ू -

83
फरते ह। पर हरजीत... उसने तो वहाँ जाकर पीछे क सध
ु ह नह ं ल ।
उसने वह ं ववाह करवा लया। कहता था- वलैत म प का होने के लए
वहाँ क लड़क से शाद करना ज र था। शु -शु म वह पैसे भेजता
रहता था - बड़े भाई गरमीत
ु को। फर उसने पैसे भेजने ब द कर दए।
गुरमीत के खत का भी जवाब नह ं दया उसने।
गरमीत
ु नकलते-घसते
ु कढ़ता
ु , गा लयाँ नकालता, ''हमारखोर !
वहाँ जाकर मेम क गोद म जा बैठा ! कोई फ है उसे मेरे सर से कजा
उतारने क ! याज तो हनमान
ु क पंछ
ू -सा बढ़ता ह जाता है।''

फर एक दन हरजीत चपचाप
ु बगैर बताये इं डया आ गया। परेू
पाँच बरस बाद वह लौटा था, वह भी अकेला। हरजीत आया था तो मेरे
ऑ ं सू थमने का नाम नह ं ले रहे थे। पाँच बरस बाद जो उसक सरत

दे खने को मल थी ! उसे बार-बार छाती से लगाकर उसका माथा चमती

रह , ''रे हरजीते, तने
ू तो वहाँ जाकर मझे
ु बलकल
ु ह भुला दया। तझे

मेर कभी याद नह ं आई रे ! और तू अकेला य आया है ?... बहू को
भी साथ ले आता। ऑ ं ख ब द होने से पहले म भी तो दे ख लेती अपनी
बहू को, कैसी दखती है।''
गरमीत
ु और उसक घरवाल ने हरजीत को खब
ू खर -खोट सना

थीं। उलाहन दए थे। गरमीत
ु अपने सर पर चढ़े कज और बढ़ते याज
का रोना रोता रहा था। वे दोन हरजीत पर सारे समय यह जोर डालते
रहे क अब आया है तो ऊपर दो कमरे डलवाकर जाए। ले कन, हरजीत
सफ कोठे पर अंगरे जी बाथ म बनवाकर और नीचे मकान का फश प का
करवाकर लौट गया था, यह कहकर क वह ज द ह गरुमीत को पैसे
भेजेगा- ऊपर कमरे डलवाने के लए।

उन दन िजतने दन हरजीत रहा, मेर पछताछ


ू होती रह । उसके
लौट जाने के बाद फर पहले जैसा हाल हो गया था।
जब तक हाथ-पैर चलते थे, म टक कर नह ं बैठती थी। हर व
कछ
ु न कछ
ु काम मेरे हाथ म होता। घर क साफ-सफाई करती, झाडू-
बहार
ु करती, दो व का खाना बनाती, बतन मांज दे ती, कपड़े धोकर कोठे
पर डाल आती। बहू ीतो के सर म बैठकर तेल झस दे ती। तब ीतो भी
मझसे
ु खश
ु रहती थी। 'माँ जी-माँ जी' करती घमती
ू थी। ले कन दे ह तो

84
दे ह है। उ के साथ-साथ थकने लगती है। हार -बीमा रयाँ इस पर हमला
करने लगती ह। मेर दे ह ने भी धीरे -धीरे मेरा साथ दे ना ब द कर दया।
घटन
ु म दद रहने लगा। दे ह ब तर मांगने लगी। म इस छोटे -से कमरे म
समट कर रह गई।
वैसे कमरा या है, एक छोटा-सा टोर है िजसम एक परानी

चारपाई पर मेरा ब तर लगा है। ब तर के सरहाने क ओर थोड़ी-सी
जगह है , जहाँ लकड़ी के एक टटे
ू हए ु मेज को ट के सहारे खड़ा करके
उस पर छोटा-मोटा सामान रखा हआ ु है। मेर दवाई क शी शयाँ ह, एक
पराना
ु कांच क चमनी वाला लै प है , एक छोट -सी संदकची
ू है िजसम
मेरे कपड़े ह। और इसी पर एक तरफ ब च के बापू का फोटो रखा है।
बायीं द वार से सट हई
ु है मेर चारपाई और उसके ऊपर है पील रोशनी
फकता ब ब। दायीं तरफ थोड़ी-सी जगह आने -जाने के लए बची हईु है।
इसी ओर, सरहाने क तरफ एक टल ू पर पानी का जग, एक गलास,
एक च मच और एक कटोर रखी है। द वार म न कोई खड़क है, न
रोशनदान। बस एक दरवाजा है जो कभी ब द नह ं होता। कड़ाके क ठं ड
म भी म इसे ब द नह ं करती। दरवाजा ब द होने पर मेर सांस घटने

लगती है। इस म परानी
ु मोट चादर का एक पदा हमेशा लटका रहता है
िजसके कारण बाहर आने -जाने वाले य को अ दर ब तर पर पड़ी म
दखाई नह ं दे ती। इस कमरे के साथ ह ऊपर कोठे पर जाने के लए
जीना बना है। जीने के नीचे छोटा-सा शौच-गसलखाना
ु है और पानी क
एक टट
ू लगी है। इसे अब म ह इ तेमाल करती हँू । घर के बाक सद य
के लए कोठे पर अंगरे जी टाइल म बड़ा-सा बाथ- म है। जीने से आगे
एक बड़ा कमरा है और एक रसोई। गरमीत
ु , उसक प ी और दोन ब चे
इसी म रहते ह। घर म घसते
ु - नकलते हर आदमी को मेरे कमरे के आगे
से ह होकर जाना पड़ता है।
कछ
ु बरस पहले जब मेर तबीयत ठ क हआ ु करती थी, म कमरे
से बाहर नकलकर छोटे -से आंगन म बैठ जाया करती थी, कभी घर से
बाहर नकलकर गल म भी चल जाती थी। पर जबसे ब तर पर पड़ी हँू
और घटन
ु म दद रहने लगा है , ब तर मझे
ु नह ं छोड़ता और म ब तर
को नह ं छोड़ती। बस, तभी उठती हँ, जब मझे
ु ह का होना होता है। अपने
ब तर पर पड़ी छत को नहारती रहती हँू या फर द वार को। या फर
'वाहे गु -वाहे गु ' का जाप करती रहती हँू । पहले म अ सर अपने आप

85
से बात करती रहती थी। या कह लो, द वार के संग बात कया करती
थी। सना
ु है, द वार के भी कान होते ह। वे सन
ु सकती ह। पर द वार के
मँुह नह ं होते। वे बात नह ं करतीं।
अब कोई मेरे कमरे म नह ं घसता
ु , मेरा हालचाल नह ं पछता
ू , न
बेटा और न बह।ू बं दर और िजंदर, गरमीत
ु के दोन बेटे कभी-कभार पदा
उठाकर मेरे कमरे म आ घसते
ु थे, मेरे ब तर पर बैठकर खेला करते थे
तो मझे
ु बड़ा अ छा लगता था। म ब च के संग बात करके खश ु हआु
करती थी। मेरा व अ छा गजर
ु जाता था। ले कन, जबसे म बीमार पड़ी
हँू, ब च ने भी मेरे पास आना ब द कर दया है । शायद, बहू ने ह रोक
दया हो। पहले गरमीत
ु द तर जाते समय और द तर से लौटते व मेरे
पास घड़ी भर के लए ज़ र बैठा करता था। मे रा हालचाल पछता
ू था।
दवाई के बारे म पछता
ू था।
ले कन, आ ह ता-आ ह ता उसने भी हालचाल पछना
ू , मेरे पास
बैठना ब द कर दया। छु ी वाले दन एक-दो बार अव य पदा उठाकर
झांक लेता है। पर अब कोई मेर बात नह ं पछता।
ू एक गंठ
ू म पड़ी हँू,
आलतू-फालतू सामान-सी !
'वाहे गु ... पालनहार ! करपा कर... बढ़ापे
ु म नरक न दखा...'
कई दन से मेर दवा ख म हईु पड़ी है। कोई इधर झांके तो उससे
कहँू । इ ह ने तो मझे
ु बलकल
ु ह ' छनक' दया है जैसे। 'अरे नम हयो,
कभी पदा उठाकर मझ
ु करमजल को भी एक नज़र दे ख लया करो, जीती
हँू क मर ...'
कभी-कभी सोचती हँू क यँू कलपती हँू म... जो क मत मे◌े◌ं
लखा है, वो तो भोगना ह है... यह या कम है क दो व क रोट
मल रह है... घर से बाहर तो नह ं फक रखा... परमा मा का शु मना
क बहू पद के नीचे से खाने क थाल सरका जाती है , बतन उठाकर ले
जाती है। या हआु जो कभी पास बैठकर या घड़ी भर खड़े होकर बात
नह ं करती। इधर म भी न जाने या- या बात दल म लए बैठ रहती हँू
उससे साझा करने के लए, पर वह है क मौका ह नह ं दे ती।
पहले म ब तर पर पड़े-पड़े बहू या ब च को हांक लगाती रहती
थी। कभी पानी के लए, कभी रोट के लए, कभी दवा के लए या फर
ट ी-पेशाब जाने के लए। आवाज लगाते-लगाते मेरा गला सख
ू जाता, पर
कोई झांकता नह ं था मेर ओर। हार कर मैने ह हांक लगानी ब द कर

86
द ं। खद
ु सोट उठाकर घटनेु पर हाथ रखकर उठती हँू, नलके पर से पानी
लेती हँू, या फर ह का हो आती हँू । अब तो मझे
ु आदत-सी पड़ गई है।

'वाहे गु , तू ह ब शणहार...'
दायीं तरफ क द वार पर एक कैलडर टं गा है - गु नानक दे व जी
का। जब भी कैलडर क ओर दे खती हँू , मझे ु लगता है , बाबा नानक मेर
तरफ ह दे ख रहे ह और मु करा रहे ह। म 'वाहे गु -वाहे गु ' करते हएु
अरदास करती हँू - ''हे स चे पातशाह ! बढ़ापे
ु म और दखु न दखा। अपने
पास बला
ु ले। अब बरदा त नह ं होता।''
कभी मेज पर रखी गरमीत
ु -हरजीत के बापू क फोटो को नहारने
लगती हँू । उससे बात करने लगती हँू -''दे ख रहा है न तू ! तेरे जाने के बाद
मेर या दगत ु हो रह है ?''

पछले दो-तीन दन से घर म चहल-पहल-सी है। गरमीत


ु भी मेरा
हालचाल पछने
ू आने लगा है। कभी-कभी ब चे भी आकर झांक जाते ह।
मेर दवा भी आ गई है। म हैरान हँू । फर पता चलता है क हरजीत
इं लड से आ रहा है , बहू और ब च के संग, प ह दन के लए। यह
खबर सनकर
ु म खशु हो जाती हँू , 'चलो, रब ने ऑ ं ख ब द होने से पहले
हरजीत और उसके ब च को दे खने का सख ु तो ब शा!'
हरजीत आया तो घर म रौनक-सी हो गई। हरजीत क प ी परू
मेम है। उसके ब चे बहत
ु सु दर ह- गोल-मटोल से, गोरे - च े । वे भी
गरमीत
ु के ब च के संग पदा उठा-उठाकर मेरे कमरे म जब-तब झांकते
रहते ह। हरजीत क प ी ने दो-तीन बार मेरे कमरे म आकर मेरे संग
बात क ह। अंगरे जी म न जाने या गट- पट करती रह , मेर समझ म
कछ
ु नह ं आया। बीच-बीच म पंजाबी - ह द के एक-दो श द ज़ र मेरे
कान म पड़े। पर उसका मेरे संग बात करना मझे
ु अ छा लगा। मेरा मन
कया क वह मेरे पास ह बैठ रहे ।
पछले कछ
ु दन से मआं ु पेशाब बहत
ु आ रहा है। रात को दो-तीन
बार मझे
ु उठना पड़ता है। घटन
ु के दद के कारण जान नकल जाती है
मेर ! मन करता है, कमरे के बाहर वाल नाल पर ह बैठ जाऊँ, पर बहू
क झड़क से डरती नह ं बैठती। एक बार बैठ थी तो अगल सबह ु बहू ने
नाक-मँुह को द ु पटे से ढककर मेर वो आरती उतार थी क म तौबा-तौबा

87
कर उठ । परस रात जब म पेशाब के लए बाहर नकल तो गरमीत
ु के
कमरे से झगड़ने क आवाज आ रह थीं। गरमीत
ु और उसक घरवाल
तेज आवाज म हरजीत से झगड़ रहे थे। म ह का होकर गरमीत
ु के कमरे
क ओर बढ़ । मन म आया, दरवाजा खलवाकर ु उनसे कहँू-''पु र ! यँू
झगड़ते हो आपस म ? जो बात करनी है , आराम से बैठकर करो।... इतनी
रात गए ऊँची आवाज म झगड़ रहे हो, पड़ोसी भी या सोचते ह गे...''
फर, न जाने या सोच कर कमरे के बाहर ह खड़ी रह , सोट के सहारे ।
भीतर क आवाज मझे
ु साफ सनाई
ु दे रह थीं-
''तू तो अ छा गया, यहाँ से ! जाते व तो कहता था, पैसा
भेजूंगा- ऊपर दो कमरे डलवाने के लए।'' ीतो, गरमी
ु त क घरवाल
हरजीत को ताना मार रह थी।
''हाँ, नह ं भेज सका। मेरा भी अब प रवार है। बहत
ु मंहगाई है
वहाँ। गजारा
ु मिु कल से होता है।'' हरजीत क आवाज थी।
''और जो मने लाख का कजा उठाकर तझे
ु बाहर भेजा, तो या
इसी लए भेजा था क तू वहाँ जाकर मौज कर और इधर म तेरा कजा
उतारता फ ँ । मेरा प रवार, मेरे ब चे नह ं ह या ?'' गरमीत
ु बहत
ु गु से
म लग रहा था।
''उतार दं ग
ू ा सारा कजा, पर धीरे धीरे ।''
''इतने साल हो गए तझे
ु वहाँ गए, या कया तने
ू ? गांव के दसरे

घर के लड़के भी तो बाहर गए ह। दो-चार साल म गांव म हवेल डाल ल
उनके घरवाल ने। घरवाले भी बार -बार से हवाई जहाज पर चढ़कर वदे श
घम
ू आए ह। एक तू है, पहले तो पाँच साल तक श ल नह ं दखाई। पाँच
साल बाद आया भी तो बस बाथ म बनवाकर और फश डलवाकर चलता
बना। फर चार साल गचका मार गया। न पैसा भेजा, न कसी च ी का
जवाब दया।'' गरमीत
ु लगातार बोले जा रहा था।
''तम
ु लोग को तो मेरे प ड ह नज़र आते ह। अरे , एक-एक प ड
के लए कैसे दे हतोड़ मेहनत मझे
ु वहाँ दन-रात करनी पड़ती है , यह म ह
जानता हँू । तम
ु यहाँ बैठे या जानो ?''
''तो शाद करने क या ज द पड़ी थी तझे
ु ! कछ
ु पैसा-वैसा कमा
लेता, इधर का कजा उतार लेता, फर कर लेता शाद , बसा लेता
प रवार।...''

88
''भाजी, शाद नह ं करता तो वहाँ ठहर नह ं सकता था। शाद क है
तो प का हआु हँू । प का होने के लए यहाँ से याहे गए आदमी भी वहाँ
शा दयाँ करवाते ह। नह ं ◌ंतो...।'' हरजीत सफाई दे रहा था।
''पर म तो कज के याज से मरा पड़ा हँू, मल
ू तो य का य
छाती पर पहाड़-सा पड़ा है। मेर जान आफत म आई पड़ी है। कजा दे ने
वाले ताने मारते ह। कहते ह- अब तो तेरा भाई वदे श म कमा रहा है ,
अब कैसी कमी तझे
ु पैस क ! दे ख भाई, तू मेरे सर से ये कजा उतार
ता क म भी दो सांसे सख
ु क ले सकूँ ।'' गरमीत
ु क आवाज रोनी-सी हो
उठ थी।
'' हसाब से दे खो तो इस मकान म मेरा भी ह सा है। समझ लो,
मने वह छोड़ दया।'' हरजीत का वर भी तेज हो उठा।
''ओए, ह सा तू कल लेता हो, आज ले ले।'' गरमीत
ु क आवाज
तेज हो उठ , ''चला है , ह सा मांगने! अरे म कजा उठाकर तझे
ु न भेजता
तो दे खता कैसे जाता तू बाहर।... म यहाँ जो इतने साल से माँ को रखे
हँू, उस पर तेरा भी कोई फज बनता है। ले जा उसे अपने संग। और मेरा
कजा उतार दे , बस। और कछ ु नह ं चा हए मझे
ु ।''
''माँ को म कैसे ले जा सकता हँू ।'' हरजीत का वर धीमा हो आया
था, ''माँ, वहाँ नह ं रह पाएगी। वो यह ं ठ क है। म उसक दे खभाल के पैसे
भेज दया क ँ गा।''
''उँ ह ! पैसे भेज दँ ग
ू ा... यह तने
ू अ छ कह । अरे कज के पैसे तो
उतारे नह ं जा रहे तेरे से, माँ क दे खभाल के लए तू पैसे भेजेगा ?''
गरमीत
ु जैसे अ दर से भरा बैठा था।
मेरे से और अ धक वहाँ खड़ा होना क ठन हो गया, तो म चपचाप

आकर अपने ब तर पर लेट गई थी। रात दे र गए तक दोन भाइय के
लड़ने क आवाज आती रह थीं।
कल दोपहर हरजीत मेरे पास काफ दे र तक बैठकर बात करता
रहा। हरजीत ने जो कछ
ु मझसे
ु कहा, वह सनकर
ु मेर तो ऊपर क सांस
ऊपर और नीचे क नीचे रह गई। 'हाय र बा ! यह म या सन ु रह हँू ?
यह सनने
ु से पहले म मर य न गई ◌ं? वाहे गु ! तू ये कैसा बदला
ले रहा है मझसे
ु । िजन ब च के लए मने अपनी िज दगी गला द , उ फ
तक नह ं क , वह यह सब सोचे बैठे ह।'

89
शाम को गरमीत
ु भी आकर हरजीत वाल बात मझे
ु समझाने क
को शश करता रहा।
मेर समझ म कछ ु नह ं आ रहा था। मेरा तो कलेजा चाक हआ ु
पड़ा था। ऑ ं ख से ऑ ं सू झर-झर बह रहे थे, ''दख
ु दे णे, अपनी माँ को ह
बोझ समझने लगे है...।'' मेरे मँुह से आवाज नह ं नकल रह थी। म
अ दर ह अ दर गड़ गड़ा रह थी, ''पु र, म तु ह कछ
ु नह ं कहती। जब
तक दो सांस बची हई
ु ह, मझे
ु इसी कमरे म अपने पास रहने दो... मझ

बढ़
ू को इस आ खर व म य अपनी ऑ ं ख से ओझल करते हो ?...
मझे
ु कछ
ु नह ं चा हए, मझे
ु बस यह ं रहने दो, परमा मा के वा ते। वाहे
गु तु हार और तु हारे ब च को ल बी उ दे ।...''

'हे स चे पातशाह, इस आ खर व म ये नरक न दखा।' म मन


ह मन अरदास करती हँू ।
ब तर पर पड़ी-पड़ी म करवट बदल रह हँू । नगोड़ी नींद को या
हो गया है ? जाने य ठ बैठ है। वह भी या करे ? जब दल म
हाहाकार मचा हो, तो वह कैसे पास फटक सकती है। मेरे पेट जाये ये
गरमीत
ु और हरजीत इतने नम ह कैसे हो गए ?... उ के इस आ खर
पड़ाव म यह द:ु ख भी दे खने को मलेगा, मने वाब म भी नह ं सोचा था।
मेर ऑ ं ख के आगे गरमीत
ु और हरजीत के बचपन के दन आ खड़े होते
ह।
उनके बचपन क एक घटना मरण हो आती है। गरमीत
ु और
हरजीत दोन ने नंबरदार के लड़के को पीट दया था। नंबरदारनी उलाहना
लेकर आई थी मेरे पास। वह उछल-उछल कर पड़ रह थी। कहती थी,
''तेरे बेट क
ह मत कैसे हईु , हमारे लड़के को हाथ लगाने क ! अगर
फर कभी हाथ लगाया, तो इनके हाथ-पैर तोड़ दगे।'' नंबरदारनी जब खब

अबा-तबा बोलकर चल गई तो मने दोन बेट क खबर ल थी। ऑ ं ख म
ऑ ं सू भरकर उन दोन को खब
ू डांटा था, ''रे तमने
ु य इन नंबरदार के
लड़के से पंगा लया। मझे
ु गांव म रहने दे ना है क नह ं।'' इस पर गरमीत

ने कहा था, ''माँ, कोई मझे
ु कछ
ु कह ले, बापू को कछ
ु कह ले , पर तझे

कोई कछ
ु कहे , यह म बरदा त नह ं कर सकता। चाहे वो नंबरदार का
बेटा ह य न हो।'' हरजीत भी आगे बोला था, '' माँ, वो हम माँ क

90
गाल दे ता था, हम कैसे चप
ु रहते ?... तझे
ु कोई गाल नकाले, हम
उसका मंह
ु तोड़ दगे।''
अपने बेट क बात सनकर
ु मेर छाती चौड़ी हो गई थी। यह
गरमीत
ु कहा करता था, '' माँ, तू फकर न कर। मझे
ु बड़ा हो लेने दे ।
फर तझेु कभी काम नह ं करने दं ग
ू ा। बस, तू ब तर पर बैठ हु म कया
करना, म तेरा हु म बजाया क ँ गा।''
आज ब तर पर पड़ी म वह माँ हँू, पर बेटे वे नह ं रहे । आज म
इनके लए बोझ बन गई हँ। सार उ म यह को शश करती रह क मेरे
ब चे सखी
ु रह। सारे द:ु ख अपनी छाती पर झेलती रह क इ ह कोई
द:ु ख-तकल फ न हो। माँओं क छा तयाँ होती ह इस लए ह। पहले ब च
को दध
ू पलाती ह, फर उनके द:ु ख-दद अपने ऊपर झेल लेती ह !
मेर नज़र बाबा नानक के कैलडर क ओर उठ जाती ह। फर मेज
पर रखी गरमीत
ु -हरजीत के बापू क फोटो पर। मझे
ु लगता है मानो वे
दोन मझसे
ु कछ
ु कह रहे ह , ''अपने ब च के सख
ु चाहने वाल सखदे
ु ई !
अब भी तू ब च के सख
ु के बारे म ह सोच ! अगर इ ह इसी बात म
सख
ु मलता है, तो तू इनके सख
ु म व न न बन। वे तझे
ु व ृ द-आ म ह
तो छोड़ने जा रहे ह, ड़ी(कडे
ू ) पर फकने तो नह ं...''
बाहर च ड़याँ चहचहाने लगी ह। शायद, भोर का समय हो गया है।
'वाहे गु -वाहे गु ' करती म घटन
ु पर हाथ रखकर उठ खड़ी होती हँू ,
संदकची
ू म से अपने दो जोड़ी कपड़े नकालती हँू , उ ह एक थैले म रखती
हँू । अपनी दवा, गलास, कटोर और च मच समेटती हँू । द वार पर से
बाबा नानक का कैलडर उतारकर रख लेती हँू । मेज पर रखे फोटो म
गरमीत
ु -हरजीत का बापू हँस रहा है - ''मझे
ु यह ं छोड़े जा रह हो,
सखदे
ु ई!'' मेर ऑ ं ख गंगा-जमना हो उठती ह। म मेज पर से फोटो उठाकर
उसे द ु पटे के प लू से प छते हए
ु बदबदाती
ु ु हँू, ''नह ,ं तेरा यहाँ या
काम? तू भी चल मेरे संग !''

91
लौटना

छु ी क एक सबह
ु और संजना का फोन

िजस समय फोन क घंट बजी, सबह


ु के नौ बज रहे थे और
के.के. ब तर म था। छु ी का दन होने के कारण वह दे र तक सोना
चाहता था। बड़े बेमन से लेटे-लेटे उसने फोन का चोगा उठाया और 'हैलो'
कहा। दस
ू र तरफ क आवाज को पहचानने म उसे कोई परे शानी नह ं हई।

संजना थी। संजना का 'हैलो' कहने का अंदाज ह कछ
ु ऐसा था क के.के.
के कान म मधरु-मधरु घं टयाँ बजने लगती थीं। पर, आज यह 'हैलो'
बहत
ु धीमी थी और उदासी के गहरे सम दर म डबी
ू हई
ु लग रह थी। वह
ब तर पर उठकर बैठ गया। द वार से पीठ लगाकर और गोद म त कया
ू , '' या बात है ? बेहद उदास लग रह हो। तबीयत तो
रखकर उसने पछा
ठ क है ?''
''हाँ, तबीयत तो ठ क है।''
'' फर बता, कैसे याद कया सबह
ु -सबह
ु ?''
''बस, यँू ह । सोचा, तमने
ु तो याद करना ह छोड़ दया, म ह
कर लँ ।ू '' संजना क आवाज़ म एक उलाहना था, यारा-सा। वह इस
उलाहने क वजह जानता था, उसने पछने
ू क को शश नह ं क ।
''आज कोई काम तो नह ं तझे
ु ?'' संजना ने पछा।

'' य ? बता।'' के.के. ने पछा
ू जब क वह कहना तो चाहता था
क तू हु म कर, बंदा तो तेरे लए हर व हािज़र है।
''खाल है तो आ जा।''

92
''कोई खास बात ?'' उसे फर लगा, उसने गलत कर दया
है। वह इतने यार से बला
ु रह है, कोई न कोई तो बात होगी। उसने मन
ह मन अपने आप को झड़का।
''नह ,ं कोई खास बात नह ं। बस, कछ
ु दन से कछ
ु भी अ छा
नह ं लग रहा। शायद, तझसे
ु मलकर और दो बात करके द ु नया अ छ
लगने लग जाए।'' इसके साथ ह एक ह क -सी हँसी क खनक दसर

तरफ से सनाई
ु द , जब क के.के. को इस हँसी म भी उदासी का रं ग मला
हआ
ु तीत हआ।
ु एक खबसरत
ू ू उदास-सा चेहरा उसक ऑ ं खा◌े◌ं के सामने
तैर गया। वह बेस हो उठा। उसने इस उदास चेहरे के नमं ण को तरु त
ू , ''कब आऊँ ?''
वीकार कर लया। पछा
''जब चाहे आ जा। म घर पर ह हँू । पर म चाहती हँू ,दोपहर का
खाना तू मेरे साथ खाये।''
''ठ क है , म पहँु चता हँू तेरे पास, यारह बजे तक।''

संजना से पछल मलाकात


ु और के.के. का ला नबोध

ब तर से नकला तो अनेक छोटे -मोटे काम िज ह वह छु ी के


दन के लए मु तवी कर दया करता था, मँुह बाये उसके सामने खड़े हो

ू घर अ त- य त पड़ा था, जैसा क छड़े लोग का हआ


गए। परा ु करता है।
कसी को याह कर लाया होता तो यह घर यंू बेतरतीब ढं ग से बखरा-
बखरा न होता। द वार घड़ी पर नज़र पड़ते ह सबसे पहले पानी भर लेने
क च ता उसे हई।
ु शु था, पानी अभी आ रहा था। उसने खाल हो चक
ु े
म और दो बाि टय को भरने के बाद ज क खाल बोतल एक-एक
करके भर ं। फर छोटे -मोटे काम तरत
ु -फरत
ु नपटाये। रात के खाने के

ु , एक कप चाय बनाई, दो
बतन उठाकर धोये। नहा-धोकर तैयार हआ
लाइस गरम कए। चाय पीते हए
ु वह संजना के बारे म ह सोचता रहा।
जैसे यह क पछले दन संजना से उसक मलाकात
ु कब और कहाँ हई

थी। शायद, दो-ढाई मह ने पहले वे दोन एक पाट म थोड़ी दे र के लए

93
मले थे। ब रा ने अपने ववाह क पांचवीं साल गरह पर एक पाट रखी
थी अपने घर पर। ब रा क बीवी बहत
ु खबसरत
ू ू थी। और कभी वह अपने
घर पर बलाये
ु , न बलाये
ु , पर शाद क साल गरह पर अपने कछ
ु खास
म को अव य आमं त करता था। इस दन उसक बीवी ठ क उसी
ू -पालर जाकर सजती-संवरती थी, जैसे शाद के दन सजी-संवर
तरह यट
होगी। उस पाट म वह समय से पहँु चा था और एकाएक बहत
ु ज़ र काम
याद आ जाने पर पाट बीच म ह छोड़कर जा रहा था क तभी, संजना
का वेश हआ
ु था। इस पर ब रा ने चटक
ु ल थी, '' म. कृ ण कमार

उफ के.के., तु हार संजना पाट म या पहँु ची क तम
ु पाट छोड़कर भाग
रहे हो। कछ
ु झगड़ा-वगड़ा हो गया या ?'' उस व , ब रा का 'तु हार
संजना' कहना उसे अ छा नह ं लगा था। अभी वह कछ
ु कहने ह जा रहा
था क संजना कर ब आ गई थी। के.के. ारा पाट बीच म छोड़कर जाने
ू होने पर संजना ने कहा था, ''म इतनी बरु तो नह ं के.के.
क बात मालम

ु आया दे ख, तू पाट छोड़कर भाग रहा है।'' संजना क आवाज़


क मझे

ु थी, पर उसके अधर पर मह न-सी मु कराहट भी


ग भीर और ठहर हई
थी िजससे वह समझ नह ं पाया क संजना ने यह बात हँसी म कह थी
या ग भीर होकर।
''नह ,ं ऐसी कोई बात नह ं। दरअसल, मझे
ु एक बहत
ु ज़ र काम
है, इसी लए जा रहा हँू । पर तू इतनी लेट य ?''
''तझे
ु पाट के दौरान ज़ र काम है, मझे
ु पाट से पहले ज़ र
काम था।''
''अ छा संजना, म लेट हो रहा हँू । म मलंग
ू ा तझे
ु ज द ह या
फर फोन क ँ गा।'' कहकर वह चला आया था। ले कन, अपनी य तताओं
के कारण न वह संजना से मल सका, न ह फोन पर बात कर सका।
इसी वजह से वह अपने अ दर एक ला नबोध को महसस
ू कर रहा था।

94
संघष भरे दन और संजना का साथ

के.के. जब घर से बाहर नकला तो बहत


ु जोर क बा रश हो रह
थी। दरअसल, बंद
ू ाबांद तो कल रात से ह हो रह थी। ले कन, बाहर ऐसी
झमाझम बा रश हो रह होगी, अपने कमरे से नकलते हए
ु उसने सोचा न
था। कछ
ु दे र खड़े रहकर उसने बा रश के थमने या धीमी हो जाने का
इ तजार कया। क तु ऐसा होने क उ मीद न के बराबर थी। वह ताला
खोलकर फर घर म घसा
ु और छतर लेकर बाहर रोड पर आ गया।
उसक क मत अ छ थी क इतनी बा रश म भी उसे ज द ह ऑटो
मल गया, वरना द ल म ऑटो ! वह भी इतनी बा रश म ! अस भव-
सी बात थी।
इधर, मसलाधार
ू बा रश म ऑटो सड़क पर दौड़ रहा था, उधर
उसके जेहन म परानी
ु म ृ तयाँ दौड़ लगा रह थीं। यह महानगर के.के. के

ु नीरस और उदास कर दे ने वाला होता, अगर उसे संजना न


लए बहत
मलती। एक ह कालेज से एम.ए. क पढाई दोन ने साथ-साथ क थी।
कालेज के आरं भक दन म हईु ह क -सी जान-पहचान धीरे -धीरे सघन
और सु ढ़ होती चल गई थी। संजना कताब के प न क तरह उसके
सामने खलती
ु चल गई। हर मलाकात
ु म वह अपनी छोट -बड़ी बात के.के.
से साझा करके खद
ु को ह का महसस
ू करती थी। बचपन म ह संजना के
माँ-बाप चल बसे थे। उसे उसक मौसी ने पाल-पोसकर बड़ा कया था। वह
मौसी क कत
ृ थी क उसने उस बेसहारा को सहारा दया, पढ़ाया-
लखाया, क तु वह अ सर अपने मौसा को लेकर परे शान रहती थी। वह
के.के. से कई बार कह चक
ु थी क उसका मन करता है क वह मौसी का
घर छोड़ दे और कराये पर एक छोटा-मोटा कमरा लेकर अलग रहने लगे।
पर ऐसा करना द ल जैसे शहर म उसके लए तब तक असंभव था, जब
तक वह खद
ु न कमाने लगे। ऐसा नह ं था क पढाई के साथ-साथ उसने
पाट टाइम काम क खोज नह ं क हो। उसक इस को शश म के.के. भीं
मदद करता रहा था, पर कोई ढं ग का काम नह ं मल सका था।

ू रह थी, कमोबेश
द ल महानगर म िजस संघष से संजना जझ
के.के. भी वैसे ह संघष से जझ
ू रहा था। वह यहाँ एक सपना लेकर बहार

95
के एक गाँव से आया था, पढ़ाई- लखाई और अ छे रोजगार क तलाश म।
शु के दन बहतु ह क ठन और भयानक थे उसके। कई-कई दन तो
फाकाकशी रहती। ह मत जवाब दे जाती और वह अपने सपने को बीच म
ह छोड़कर गाँव लौट जाना चाहता। वह द ल क धरती पर अपने पैर
रखना चाहता था, पर द ल रखने नह ं दे रह थी। पैर जमने क तो
बात ह अलग थी। रे लवे- लेटफाम, सड़क के फटपाथ
ु , द ल के गरु ारे
ह उसका रै न-बसेरा थे। उन दन द ल का कोई भी गरु ारा ऐसा नह ं
था, जहां का लंगर छककर उसने अपने पेट क आग को शा त न कया
हो।

हनमान
ु -कपा
ृ और ेम क फटती
ू क पल

जैसे-तैसे एम.ए. क पढ़ाई परू करने के बाद, वे द न जोर-शोर से

ु गए। दोन एक साथ फाम भरते, पर


नौकर क तलाश म जट ाओं म
बैठते, इंटर यू दे ते और हर मंगलवार कनॉट- लेस ि थत हनमान
ु मं दर म
साद चढ़ाते।
इसे हनमान
ु -कपा
ृ क हये या उनका भा य क इधर संजना का
द ल के ह एक बक म पी.ओ. के प म चयन हो गया और उधर
के.के. को भी इसी शहर म एक ायवेट फम म नौकर मल गई। ठ-
ठ -सी रहने वाल द ल ने अपने ऑ ं चल म थोड़ी-सी जगह दे ना वीकार
कर लया था। नौकर लगने के एक माह बाद ह संजना ने मौसी का घर
छोड़ दया और कराये का मकान लेकर अलग रहने लगी। के.के. रै गरपरा

के िजस बदबदार
ू सीलन भरे छोटे -से कमरे म कसी के संग रहता था,
उसने भी पहाड़गंज म एक छोटा-सा कमरा कराये पर ले लया था। शाम
को आ फस से छटने
ू के बाद या अवकाश के दन म वह और संजना
एक-दसरे
ू से मलते रहे । द ल अब उ ह खशनमा
ु ु लगने लगी थी। हर
शु वार को लगने वाल नई फ म वे एकसाथ दे खते, कोई अ छ दशनी
लगी होती, कोई सां कृ तक या सा हि यक काय म होता, या फर कोई
सेल लगी होती, दोन पहले से तय करके वहाँ पहँु च जाते।

96
यह वे दन थे जब के.के. के मन म संजना को लेकर कछ
ु -कछ

होने लगा था। उसने महसस
ू कया था क उसके मन म संजना के लए
कोई जगह बनती जा रह है। एक खास जगह। संजना का साथ उसे पहले
से अ धक अ छा लगने लग पड़ा था। उसके संग अ धक से अ धक समय
ु को आतरु पाने लगा। शायद, उसके मन म संजना को
बताने को वह खद
लेकर एक चाहत पैदा हो गई थी। जब भी संजना उससे मलती, वह
उसक ऑ ं ख म झांककर यह जानने क को शश करता क या ऐसी ह
चाहत उधर भी है।

के.के. का टटना
ू और संजना क उड़ान

इ ह ं दन उसने महसस
ू कया क संजना के वाब कछ
ु बड़े और
ऊँचे हो गए थे। वह कछ
ु ऊँची ह उड़ान भरने लग पड़ी थी। वह अब
समझने लग गया था क संजना उसे एक अ छे दो त से अ धक मह व
नह ं दे ना चाहती। अपने इस अहसास के साथ वह कई दन तक तड़पता
रहा। फर, उसने धीरे -धीरे अपनी मलाकात
ु को सी मत करना आरं भ कर
दया। एक दन संजना ने इस बारे म नाराजगी जा हर क और उसे
हनमान
ु मं दर पर मलने के लए कहा। न चाहते हएु भी वह उस शाम
संजना से मला। संजना का खला हआ
ु चेहरा बता रहा था क वह बहत

खशु थी। पहले उसने मं दर म साद चढ़ाया और फर बाहर नकलकर
जैसे मचल-सी उठ । बोल , ''के.के., आज म बहत ु हँू ।''
ु खश फर हाथ
पर महद लगवाती लड़ कय क ओर दे खकर बोल , ''सनो
ु , म भी महद
लगवा लँ ू ?'' के.के. के शा त चेहरे को दे खकर उसने चहल
ु क , ''ओ
दे वदास महाराज, कछ
ु बोलो भी।''
''...''
''अ छा, नह ं लगवाती। चलो, काफ होम चलते ह। वह ं बैठकर
बात करते ह।'' वह उसक बाजू पकड़कर खींचते हए
ु काफ होम क ओर
बढ़ने लगी थी। काफ होम म वह उसक बगल म बैठने लगी तो उसने
कहा, ''सामने बैठो।''
'' य ?'' संजना ने च ककर पछा।

97
''बगल म बैठती हो तो म तु हारा चेहरा ठ क से दे ख नह ं पाता।''
उसक दल ल सनकर
ु वह खल खलाकर हँसने लगी। सामने वाल
कस
ु पर इ मीनान से बैठकर वह बोल , ''अब ठ क ! या दे खना है मेरे
चेहरे म ? इतने दन से दे खते आ रहे हो, दल नह ं भरा ?''
के.के. ने कोई जवाब नह ं दया।
''आज तम
ु बहत
ु खश
ु नज़र आ रह हो। या बात है ?'' आ खर,
के.के. ने अपनी खामोशी को तोड़ा और काफ का आडर दे ने लगा।
''हँू....। बात ह कछ
ु ऐसी है।'' संजना का चेहरा और अ धक
दप दपाने लगा।
'' या ?''
''म शाद करने जा रह हँू ?'' फर, वह काफ क चिु कय के
बीच उ साह म भरकर बताती रह , ''मेरे बक के मैनेजर राकेश ने मझे

शाद के लए पोज कया है और बहत
ु -सोच वचार के बाद मने हाँ कर
द है। अब हम ज द ह ववाह-सू म बंधने वाले ह।''
एक खर च जैसी तकल फ को के.के. ने अपने अ दर महसस
ू कया
ले कन चेहरे से इस तकल फ को जा हर नह ं होने दया।

कतरे
ु हए
ु पंख और धराशायी सपने

न तो के.के. को ह पता था, और न संजना ह यह जानती थी क

ु आकाश म वह उड़ान भरने के लए इतनी लाला यत है, वह


िजस खले
आकाश उसक उड़ान को परवान नह ं करे गा। वह एकाएक पंख कटे पंछ
क तरह नीचे धरती पर आ गर थी। उसके सारे सपने चकनाचरू हो गए
थे। वह बहत
ु उदास और दखी
ु रहने लगी थी। अपने इ ह ं उदास और दखी

ण म उसने के.के. को एक दन बताया था क राकेश ने उसके संग
अ छा नह ं कया। वह बक क नौकर छोड़कर अमे रका चला गया था
कसी म ट नेशनल क पनी म और वह ं उसने शाद कर ल थी।
संजना को इस झटके से उबरने म काफ समय लगा। लगभग दो
बरस। धीरे -धीरे संजना नामल होती गई और उसने िज़ दगी को फर एक
नये सरे से जीने क को शश क । ज द ह उसके ह ठ पर हँसी वापस

98
लौट आई। एक बार फर उदा सय क जगह ऑ ं ख म हसीन सपने तैरने
लगे। पता नह ,ं के.के. को उस समय कैसी अनभ
ु ू त हई
ु थी जब संजना ने
उसे बताया था क वह ज द ह ववाह करने जा रह है। शहर का एक
यवा
ु यापार जो उसके बक म अ सर आया करता था और िजसका नाम
वेदपाल था, इन दन उसके सपन का शहजादा बन चका
ु था। संजना ह
ने के.के. को बताया था एक दन क वह वेदपाल के साथ एकबार शमला
भी हो आई थी। उन दन के.के. क मलाकात
ु संजना से बहत
ु कम होती
थीं, पर वह जब भी मलती, उसे लगता जैसे संजना के पैर धरती पर
नह ं पड़ रहे ह। वह हवा म उड़ती नज़र आती।

एक हसरत दल म लए माँ का चले जाना

के.के ने अब अपने आप को समेटना शु कर दया था। उसक


मलाकात
ु संजना से न के बराबर होने लगीं। गाँव से पता का प आया
था। माँ बहत
ु बीमार चल रह थी। पता ने उसे पटना के एक सरकार
अ पताल म दखाया था। कोई आराम नह ं आया था। वह चाहते थे क
के.के. कछ
ु दन का अवकाश लेकर गाँव आए और माँ से मल जाए।
अभी वह गाँव जाने क जगत
ु बना ह रहा था क एक सबह
ु माँ को लेकर
पता द ल आ पहँु चे। साथ म के.के. क छोट बहन सु म ा थी। माँ क
तबीयत वाकई बहतु खराब थी और बहत ु कमजोर हो गई थी। पं जर
लगती थी। वह माँ को ऐ स म ले गया। माँ स ाह भर वहाँ भत रह ।
दन म पता उसके पास कते, रात म सु म ा। रात म पता घर आते
तो गमसम
ु ु से एक ओर बैठ जाते या फर अकेले म रोने लगते। वह उ ह
समझाने और दलासा दे ने क को शश करता तो वे फट
ू -फटकर
ू रोने
लगते।
''हम जानत है , तु हार माई अब नाह ं बचत। डा टर कहत रह ं,
इसका पेट मां कै सर हई।''
''बापू तम
ु दल न छोटा करो। माई को कछ
ु नह ं होगा। ठ क हो
जाएगी।''

99
'' कतनी चाहत रह उसका मन मां तहार
ु शाद क , तहार
ु बीवी-

ु दे खन क । कहत रह ,
ब चन का मंह कशनवा शाद नाह ं करावत तो
सु म ा को ह याह दो।''
सु म ा शाद यो य हो चक
ु थी। पता ने एक दो जगह बात भी
चलाई थी पर सफलता नह ं मल थी। वह सोच रहा था, उसने इस ओर
यान य नह ं दया। अब वह इस ओर यान दे गा। बहन क शाद
करे गा। मां का इलाज करे गा। मां ठ क हो जाएगी, घर आ जाएगी तो
अपनी शाद क भी सोचेगा। पर माँ ठ क नह ं हई।
ु उसक मत
ृ दे ह ह
अ पताल से घर आई। फट ू कर रोते पता को, बहन को और अपने
ू -फट
आपको वह बमिु कल शा त कर पाया। माँ एक हसरत दल म लए इस
द ु नया से कच
ू कर गई थी। माँ क मौत से एक दन पहले क शाम के वे
ण उसे याद हो आए, जब वह अ पताल म माँ के सरहाने एक टल

पर बैठा माँ का चेहरा एकटक दे ख रहा था। माँ भी पथराई-सी नजर से
उसक ओर ह दे ख रह थी। उन ऑ ं ख म कछ
ु था। माँ उससे कछ
ु कहना
चाहती थी, पर श द गले के भीतर ह उमड़-घमड़
ु कर जैसे दम तोड़ रहे
थे। माँ के बांये हाथ म कंपन हआ
ु था तो उसने उस हाथ को अपने दोन
हाथ म ढक लया था। इ ह ं भावक ु ण म माँ क ऑ ं ख म तैरते
के उ र खोजते हएु उसे संजना क बेहद याद आई थी।
पता माँ क लाश गाँव म ले जाना चाहते थे। मगर उसने पता
को समझा-बझाकर
ु राजी कर लया था। माँ का दाह-सं कार यह ं द ल
म कया गया।
वह तो चाहता था क पता और बहन यह ं उसके पास रह। गाँव
म रखा भी या था। खेत-जमीन थी नह ं, बस एक छोटा अधक चा-सा
मकान था। पता बंटाई पर खेती करते थे। उसम सालभर का बमिु कल
गजारा
ु हो पाता था। कभी फसल खराब भी हो जाती थी। पर पता उसक
बात नह ं माने थे। वह बहन को लेकर गाँव लौट गए थे। जाते समय बोले
थे, ''बस बेटा, कसी तरह ब हन क शाद क सोचो और अपनी भी।
तहार
ु उमर भी नकर जात है।''

100
संजना से पन
ु : मलाकात

माँ के नधन के बाद जब पताजी और स म ा गाँव लौट गए तो


के.के. खद
ु को बहत
ु अकेला महसस
ू करने लगा। संजना से मले काफ
समय हो चका
ु था। न उसका फोन आया था, न ह के.के. ने वयं कया
था। वह संजना को भल
ू जाना चाहता था। वह सोचता- संजना ने वेदपाल
से शाद कर ल होगी। मालम
ू नह ं वह द ल म है भी क नह ं। उसक
पीड़ा इस बात क भी थी क संजना ने उसे अपनी शाद पर बलाया
ु तक
नह ं था।
एक दन अचानक संजना से उसक भट हो गई। जब मला तो
संजना पर-कटे पंछ क तरह धरती पर लहलहान
ु ू -सी गर मल । वह
बेहद दबल
ु हो गई थी और बीमार-सी लग रह थी। उसक ऑ ं ख म
उदासी का रे ग तान पसरा हआु था। के.के. से मलकर उसक ऑ ं ख
सजल हो उठ थीं। फर न जाने या हआ ु क वह के.के. के सीने पर
अपना सर टकाकर बहत ु दे र तक रोती रह । इस बार वेदपाल ने उसे
धोखा दया था। वह पहले से ववा हत था और उसके दो ब चे थे। संजना
के सपने एकबार फर धराशायी हए
ु थे। वह ड े शन क शकार हो गई
ु ु -सी रहने लगी थी। मन होता तो खा लेती, नह ं तो नह ं।
थी। गमसम
कभी द तर चल जाती, कभी नह ं। कई-कई दन, घर क चाहरद वार म
ब द पड़ी रहती। कसी को फोन करने, दो त -प र चत से मलने क
चाहत ख म-सी हो गई थी।

माँ क बरसी के बाद सु म ा का ववाह हो गया। पता अब उस


पर जोर डाल रहे थे क वह भी ज द ह शाद कर ले। एक-दो घर से
आये र त के बारे म भी उ ह ने के.के. को बताया था। पर के.के. ने 'हाँ'
या 'ना' म कछ
ु भी नह ं कहा था।

उस मलाकात
ु के बाद वह फर संजना से काफ ल बे समय तक
न मल सका। अचानक उसे क पनी क ओर से मु बई जाना पड़ा था ।
मु बई वास के दौरान उसको संजना क कई बार याद आई। कई बार
फोन करने को उसका मन हआ।
ु मगर भीतर कह ं कोई ट स थी, कसी

101
टटन
ू क करच शेष थी क वह चाहकर भी उससे कोई बात नह ं कर
पाया।

द ल लौट आने पर उसने संजना से मलने क को शश क । वह


उससे मलने उसके घर गया था। ले कन संजना घर बदल चक
ु थी और
उसका नया पता और फोन न बर उसके पास नह ं था। चाहता तो उसके
ू कर सकता था, पर त,ु उसके मन ने, जाने
बक जाकर मालम य उसे
ऐसा करने नह ं दया।
दन गजर
ु रहे थे। संजना क याद के.के. के दलो दमाग से
आ ह ता-आ ह ता धू मल हो रह थी क एक दन वह उसको फर
अचानक मल गई। एक मं दर के बाहर। वह मं दर से बाहर नकल रह
थी, जब के.के. क नगाह उस पर पड़ी। उसे दे खकर वह हैरान रह गया।
या यह वह संजना है ? उसके चेहरे क रं गत बगड़ी हुई थी। कपड़े भी
साधारण से। हाथ म साद का लफाफा और माथे पर तलक। वह उसके
सामने जा खड़ा हआ
ु तो वह च क उठ ।
''संजना, यह तझे
ु या हआ
ु है ?''
''मझे
ु या होना है ? अ छ -भल तो खड़ी हँू तेरे सामने।'' उसने
लफाफे म से ु उससे कहा, ''ले,
साद नकालते हए साद ले।''
के.के. ने साद लेकर मँुह म डाल लया। इससे पहले क वह कोई
और बात करता, वह बोल , ''तू बता, कहाँ था इतने बरस ? ववाह
करवा लया होगा ? मझे
ु बलाया
ु तक नह ं। चल कोई बात नह ं। अब
अपनी बीवी से मलवा दे । मझसे
ु तो अ छ ह होगी। य ?''
एक ण को उसे लगा था क संजना अपनी इन बात के पीछे
मानो अपने कसी दद को छपा रह हो।
''तम
ु सारे सवाल यह ं खड़े-खड़े करोगी ? चल, कह ं बैठते ह।''
के.के. ने कहा।
''कह ं य ? चल, मेरे घर चल। यह ं कर ब ह रहती हँू म।''
बातचीत म मालम
ू हआ
ु क संजना अकेल ह रहती थी और अब
उसने ववाह का वचार याग दया था। अब वह बक म मैनेजर हो गई
थी। दो-तीन र ते आये भी थे, पर संजना ने ह ना कर द ।

102
इसके बाद संजना से उसक दो बार मलाकात
ु हई।
ु एक बार वह
कसी काम से उसके बक म गया था तब और दसरू बार ब रा के घर
पाट म। उसके बाद संजना से वह नह ं मल पाया था, न ह फोन पर
कोई बात हो पाई थी।

अकेलेपन का खौफ और संजना का तीसरा फैसला

ऑटो जब संजना के घर के बाहर का, बा रश और तेज हो गई


थी। ऑटो से उतर कर जीने तक जाते-जाते छाते के बावजद
ू के.के. भीग
गया था। सी ढ़याँ चढ़कर जब वह ऊपर पहँु चा, संजना उसक ह ती ा
कर रह थी।
''मझे
ु उ मीद थी क तू ज़ र आएगा, इतनी तेज बा रश म भी।''
संजना ने उसे तौ लया पकड़ाया तो वह हाथ-पैर प छ कर सोफे पर
बैठ गया। सामने ट .वी. चल रहा था, धीमी आवाज म। पता नह ं कौन-सा
चैनल था। कोई भगवे व वाल औरत गले म क मती मनक क माला
पहने वचन कर रह थी। ज द ह संजना चाय बना लाई और के.के. के
सामने वाले सोफे पर बैठ गई। वह शायद कछ
ु दे र पहले ह नहाई थी।
उसके गीले बाल खलेु हए
ु थे। ह के नीले रं ग का सट
ू उस पर खब
ू फब
रहा था। चाय पीते हए
ु दो-चार बात इधर-उधर क हु । फर वह रसोई म
चल गई। वह सोफे से उठकर खड़क के समीप जा खड़ा हआ। ु
बा रश क गई थी। पानी से नहायीं सड़क चमक रह थीं और पेड़-
पौधे नखरे हए
ु थे। खड़क से हटकर वह साथ वाले कमरे म चला गया।
यह बैड म था। पलंग पर अं ेजी के दो अखबार बखरे पड़े थे। सरहाने
एक खल
ु हई
ु ु थी, जैसे कोई पढ़ते-पढ़ते छोड़
कताब उलटाकर रखी हई
दे ता है। कताब के कवर पर कसी जाने-माने बाबा का फोटो था। कताब
का टाइटल दे खकर वह च का। जीवन म सख
ु और शाि त कैसे ा क
जा सकती है , इस वषय पर कताब म उस बाबा के वचन थे शायद।
सामने क द वार पर पड़ी तो वह और अ धक हैरान हआ। ु कताब
वाले बाबा क एक बहत ु बड़ी त वीर द वार पर टं गी थी। त वीर म◌ं बाबा
ऑ ं ख मंद
ू े बैठा था और उसका एक हाथ आशीवाद क मु ा म उठा हआ ु
था।

103
दोपहर के दो बज रहे थे जब उसने और संजना ने मलकर लंच
कया। संजना के हाथ का बना खाना वह पहल बार खा रहा था। खाना
बेहद उ दा था। उसने तार फ क तो यु र म संजना ह का-सा मु करा
भर द ।
भोजन के उपरा त दोन के बीच बात का सल सला आरं भ हआ। ु
पहले इधर-उधर क बात होती रह ं। धीरे -धीरे संजना अपने बारे म बात
करने लग पड़ी। बचपन से अब तक जीवन म जो कछ
ु वह खोती रह ,
उसका दद उसके भीतर कह ं इक ा हआ
ु पड़ा था। जीवन म आये उतार-
चढ़ाव, सख ु , आशा- नराशा के पल को याद करते हए
ु -दख ु वह ढे र सार
ु सपन को लेकर,
बात उसके साथ साझा करती रह । अपने धराशायी हए
अपने एकाक पन को लेकर, अपने अवसाद के ण को लेकर वह क-
ककर बता रह थी। महानगर म रहती एक अकेल ी के भीतर ऐसे
ण म या उठापटक होती है , उन पर चचा कर रह थी। वह बेहद शांत
और ि थर मन से उसक हर बात सन
ु रहा था। बीच-बीच म वह कहते-
कहते अपने आप को रोक भी लेती थी। के.के. को लगता, जैसे संजना
अपने आप को अनाव ृ करते-करते कछ
ु छपाने क को शश भी करने
लगती है। वह या है, िजसे वह कहना चाहती है, पर कह नह ं पा रह
है। आ खर, उसने पछ
ू ह लया, ''संजना, मझे
ु लगता है , तेरे अ दर कोई
बात है, िजसे तू आज मझसे
ु शेयर करना चाहती है। पर कछ
ु है जो तझे

ऐसा करने से रोक भी रहा है। या बात है , बता तो।''
वह संजीदा हो उठ । पहले उसने एकटक के.के. क ऑंख म
झांका, फर कतनी ह दे र तक सामने द वार पर शू य म ताकती रह ।
फर उसने धीमे-धीमे कहना ारं भ कया।
''के.के., िज दगी मेरे संग हमेशा धप
ू -छांव का खेल खेलती रह ।
जब भी कोई खशी
ु मेरे कर ब आने को होती है, पीछे -पीछे गम के बादल
भी आ खड़े होते है। िजसे मने दल से चाहा, वह मझे
ु दगा दे ता रहा। म
अपने आप म समट कर रह गई। अपनी त हाई, अपने अकेलेपन को ह
अपना साथी बनाने क को शश करती रह । पर अकेलापन कतना

104
खौफनाक होता है , कई बार िज दगी म, इसे मने पछले दन ह महसस

कया है।''
वह ऐसे बोल रह थी, जैसे वह के.के. के कर ब न बैठ हो, कह ं
दरू बैठ हो। उसके बोल क- ककर बेहद मंद आवाज म के.के. तक पहँु च
रहे थे।
''के.के. पछले कछ
ु मह न से म अकेलेपन के खौफ म जी रह हँू ।
एक डर हर समय मेरा पीछा करता रहता है। लोग मझे
ु अजीब नगाह से
दे खते ह। हर य ु मु त क चीज समझता है। कतना क ठन है,
मझे
एक अकेल लड़क का महानगर म रहना ! घर, द तर, बाजार, शहर म
कह ं भी म होऊँ, मेरे भीतर क औरत डर -डर , सहमी-सहमी-सी रहती है।
बहत
ु को शश क है मने इस भय से मु होने क , पर नह ं हो पाई म...।
यह महानगर, मझे
ु लगता है, मेरा उपहास उड़ा रहा है। यहाँ से भागकर
दसरे
ू शहर म रहने क को शश भी क । पर, वहाँ भी अकेलेपन के डर ने
मेरा पीछा नह ं छोड़ा। म इस डर से , अपने अकेलेपन से मु होना चाहती
हँू । एक बार फर मझे
ु एक फैसला लेने को ववश होना पड़ा है। अपने
इसी फैसले को तझसे
ु ....।'' कहकर फर संजना ने के.के. के चेहरे पर
अपनी ऑ ं ख ि थर कर द ं।
''कैसा फैसला ?'' वह भी बेस हो उठा था।
कछ
ु पल का रे ला दोन के बीच से खामोश ह गजर
ु गया। के.के.
ु म से आवाज आई,
को ये पल बरस जैसे लगे। फर जैसे एक अंधे कएँ
''के.के., म ववाह करना चाहती हँू ।''
दोन के बीच समय जैसे ठहर गया।
'' ववाह ? अब ? इतने बरस बाद ?'' के.के. के भीतर एक
बेस ापन था जो उछल-उछलकर बाहर आना चाहता था। उसने कसी तरह
अपने इस बेस ेपन को रोके रखा।
'' या म जान सकता हँू, वह खशनसीब
ु कौन है ?'' उसके स का
बांध टटा।

105
संजना को उ र दे ने म काफ समय लगा। शायद, वह भीतर ह
भीतर अपने आप को तैयार कर रह थी। फर, उसके अधर ह के-से हले,
'' म. म हो ा, वह जो हमारे बक म कै शयर ह।''
के.के. को लगा, जैसे धरती हल हो। जैसे एक तेज आंधी दोन के
बीच से बेआवाज गजर
ु गई हो।
म हो ा को वह जानता था। एक-दो बार संजना के साथ वह मला
था। अधेड़ उ का आदमी। कई बरस पहले उसक प ी कसर रोग से मर
चक
ु थी। य प संजना भी पतीस से ऊपर थी, पर कहाँ संजना और कहाँ
म हो ा !
''लगता है, तझे
ु मेरे इस फैसले पर खशी
ु ु ?'' उसे लगा,
नह ं हई
संजना ने सवाल कया है। पर नह ,ं संजना ने कछ
ु नह ं कहा था। वह
खामोश थी। बस, उसक ऑ ं ख म कछ
ु था जो के.के. के भीतर के भाव
को पढ़ लेना चाहता था। के.के. क समझ म कछ
ु नह ं आ रहा था क वह
संजना के इस फैसले पर अपनी या त या य करे । पर, कछ
ु तो
कहना ह था उसे। सोचते हए
ु उसने कछ
ु कहना चाहा, श द अभी उसके
मँुह म ह थे क संजना ने उसका दायां हाथ अपनी हथे लय म लेकर
नजर झकाये
ु ु कहा, ''शायद, इस बार...।'' इससे आगे वह कह नह ं
हए
पाई, आवाज उसके गले म ह खरखरा कर रह गई। के.के. ने अपना बायां
हाथ संजना के कंधे पर रखा तो वह उसके ऊपर गर-सी पड़ी। कछ
ु दे र
बाद, वह के.के. क छाती से अलग हई
ु तो संजना क ऑ ं ख म जलकण
तैर रहे थे। एकाएक, उठते हए
ु संजना ने अपनी ऑ ं ख प छ और रसोई म
जाकर चाय बनाने लगी।
शाम के चार बज रहे थे। बाहर बा रश भी ब द थी। के.के. को
लगा क अब चलना चा हए। जब वह चलने लगा तो उसने दे खा, संजना
के चेहरे पर धप
ू जैसी एक ह क -सी चमक थी। बाहर धप
ू खल हई
ु थी।
मालम
ू नह ं य , के.के. को यह धप
ू बलकल
ु अ छ न लगी। उसका दल
कया क बहतु जोर क बरसात हो और वह बना छतर खोले भीगता
हआ
ु घर को लौटे ।

106
जीवन का ताप

कड़ाके क ठं ड पड़ रह थी। उस पर पछले कई दन से सरज


ू दे वता न
जाने कहाँ दपक
ु े थे। दनभर धप
ू के दशन न होते। रोज क तरह आज भी
ु गई, जब क रात भर वह ठ क से सो
बशन सं ह क ऑ ं ख तड़के ह खल
नह ं पाया था। ऑ ं ख खलने
ु के बाद फर कहाँ नींद बशन सं ह को। गम
का मौसम होता तो उठकर सबह
ु क सैर को चल दे ता। पर भीषण ठं ड म
कसका मन होता है ब तर छोड़ने का। वह उठकर बैठ गया था। उसने
ठठरते
ु -कांपते अपने बढ़ेू शर र के चार ओर रजाई को अ छ कार से
लपेट-ख स कर द वार से पीठ टका ल थी। एक हाथ क दरू पर सामने
चारपाई पर उसक घरवाल सखव
ु ती रजाई म मँुह- सर लपेटे सोई पड़ी
थी।
'रात भर खांसती रह बे चार ! तड़के कह ं जाकर टक है। कतनी
बार कहा है , जो काम करवाना होता है , माई से करवा लया कर। दो टे म
आती है। पैसे दे ते ह, कोई मु त म काम नह ं करवाते। पर इसे चैन
कहाँ ! ठं ड म भी लगी रहे गी, पानी वाले काम करती रहे गी, बतन मांजने
बैठ जाएगी, पौचा लगाने लगेगी। और नह ं तो कपड़े ह धोने बैठ जाएगी।

ू शर र है, बढ़ा
अब पहले वाल बात तो रह नह ं। बढ़ा ू शर र ठं ड भी ज द
पकड़ता है। पर सखव
ु ती मानती कहाँ है।' सखव
ु ती को लेकर न जाने
कतनी दे र अपने-आप से बदबदाता
ु ु रहा बशन सं ह।
रात म उठ-उठकर वह प ी क पीठ मलता रहा था। व स भी
मला। सखव
ु ती को कछ
ु होता है तो वह खद
ु परे शान हो उठता है।
बाहर ऑ ं गन म च ड़य का शोर बता रहा था क सवेरा हो चका

था। बशन सं ह ने बैठे-बैठे व का अंदाजा लगाया- सबह
ु के छह बजे

107
ह गे। बशन सं ह का मन कया क उठकर खड़क खोले या ऑ ं गन वाला
दरवाजा खोलकर बाहर दे खे। पर तभी, खड़क -दरवाजे के खोलने के
वचार से ह उसके बढ़ेू शर र म ठठरन
ु क लहर दौड़ गई। उसे लगा,
ओढ़ -लपेट रजाई कह ं से उघड़ गई है। उसने फर से अपने इद- गद
रजाई को अ छ तरह लपेट लया और सोचने लगा- ठं डी हवा न जाने
कहाँ से कमरे म घसी
ु चल आ रह है। खड़क -दरवाजे तो अ छ तरह
ब द ह। तभी वह च ड़य के बारे म सोचने लगा- इन च ड़य को ठं ड
य नह ं लगती ? इस कड़कड़ाती ठं ड म भी कैसे चहचहा रह ह बाहर।
तभी, सखव
ु ती ने करवट बदल थी। करवट बदलने से रजाई एक
ओर लटक गई थी िजससे उसक पीठ नंगी हो गई। बशन सं ह का मन
हआ
ु क वह सखव
ु ती को आवाज़ लगाकर जगाये और रजाई ठ क कर
लेने के लए कहे । पर कछ
ु सोचकर उसने ऐसा नह ं कया। इससे उसक
नींद म खलल पड़ता। बशन सं ह ने खद
ु उठकर सखव
ु ती क रजाई को
ठ क कया, इतनी आ ह ता से क सखव
ु ती जाग न जाए। जाग गई तो
फर दबारा
ु सोने वाल नह ं। वैसे भी सखव
ु ती, ठ क हो तो इतनी दे र
तक कभी नह ं सोती। च ड़य के चहकने पर ह ब तर छोड़ दे ती है। पर
सार रात जागकर काट है बेचार ने। खाँसी ने सोने ह नह ं दया। आज
इसे डॉ टर के पास ज़ र ले जाऊँगा, चाहे कछ
ु हो जाए। अपने आप तो
जाने से रह । छोटा-मोटा ताप, खाँसी-जकाम
ु तो इसके लए माने नह ं
रखता। कहती है - यह भी कोई बीमार है ? खद
ु ठ क हो जाएगी। पैसे
फालतू आ रहे ह जो डॉ टर क जेब भर ?
अब फर वह अपने ब तर पर द वार से पीठ टकाकर बैठ गया,
रजाई को अ छ तरह ओढ़कर।

म ृ तयाँ अकेले आदमी का पीछा नह ं छोड़तीं। बढ़ेू अकेले लोग का तो ये


म ृ तयाँ ह सहारा होती ह िजनम खोकर या िजनक जगाल
ु करके वह
अपने जीवन के बचे-खचे
ु दन काट लेते ह। बशन सं ह भी अपनी याद
के सम दर म दन भर उतरता-डबता
ू रहता है। कभी जीवन के कड़वे दन
याद आते ह तो कभी सखभरे
ु दन।

108
सखव
ु ती याह कर आई थी तो उसके घर क हालत अ छ नह ं
थी। बस, दो व क रोट बमिु कल चलती थी। ज़मीन-जायदाद थी नह ं।
गाँव म छोटा-मोटा बढ़ई का काम करता था वह, जो उनका पु तैनी धंधा
था। पर सखव
ु ती का पैर उसके घर म या पड़ा क उसके दन फरने
लगे। उ ह ं दन गाँव के साथ वाले शहर म एक नया कारखाना खला
ु था।
बशन सं ह को वहाँ काम मल गया। साइ कल पर सवेरे काम पर जाना
और दन ढले लौट आना गाँव म। हर मह ने बंधी पगार आने से धीरे -धीरे
उसके घर क हालत सधरने
ु लगी। क चा घर प का हो गया। भांय-भांय
करता घर हर तरह क छोट -मोट व तओं
ु से भरने लगा। बशन सं ह ने
गाँव म ह ज़मीन का छोटा-सा टकड़ा
ु खर द लया। चार दकान
ु नकाल
ल ं। एक अपने पास रखकर बाक तीन कराये पर चढ़ा द ं। हर मह ने
बंधा कराया आने लगा। कारखाने क पगार और दकान
ु का कराया, और
दो जीव का छोटा-सा प रवार। पैसे क टोर हो गयी। याल तो बशन
सं ह सखव
ु ती का पहले भी रखता था, पर अब कछ
ु अ धक ह रखने
लगा। उसक हर वा हश परू करने लगा। लोग गाँव म बात कया करते-
सखव
ु ती या आई, बशने के घर सख
ु ह सख
ु हो गया।
सखव
ु ती ने फर करवट बदल । अब उसने मँुह पर से रजाई हटा
ल थी। बशन सं ह उसके चेहरे क ओर टकटक लगाये दे खता रहा।
ु उनक झोल म डाला था। बस, एक
ई र ने हर चीज़ का सख
औलाद का सख ु इलाज करवाया, पर कोई लाभ नह ं
ु ह नह ं दया। बहत
हआ।
ु सखव
ु ती चाहकर भी यह सख
ु बशन सं ह को न दे पाई। लोग
बशन सं ह को समझाते-उकसाते, दसरा
ू ववाह करवा लेने के लए यह

ु ज़ र है , जब बढ़ापे
कहकर क औलाद तो बहत ु म हाथ-पैर नह ं चलते
तब औलाद ह काम आती है। पर बशन सं ह ने इस ओर यान ह नह ं
दया कभी। बस, उसक यह चाहत रह क उसक सखव
ु ती सखी
ु रहे ।
इस बार, सखव
ु ती ने करवट बदल तो उसक ऑ ं ख खल
ु गई।
मच मचाती ऑ ं ख से घरवाले को ब तर पर बैठा दे खा तो वह उठ बैठ ।
ू , '' या बात है ? तबीयत तो ठ क है ?''
पछा

109
''हाँ, पर तू अपनी बता। सार रात तू सो नह ं पाई। खाँस-खाँसकर
ु हाल रहा तेरा। आज डॉ टर के पास चलना मेरे साथ।''
बरा
''कछ
ु नह ं हआ
ु ु ।'' सखव
मझे ु ती ने अपना वह पराना
ु राग
अलापा, ''मामल
ू -सी खाँसी है, ठं ड के कारण। मौसम ठ क होगा तो अपने
ु तो लगता है , तु हार तबीयत ठ क नह ं।
आप ठ क हो जाएगी। पर मझे
कांपे जा रहे हो।''
''बस, ठं ड के कारण कांप रहा हँू । इस बार तो ठं ड ने रकाड तोड़
डाला।'' बशन सं ह ने रजाई को अपने चार ओर ख सते हए
ु कहा।
''बैठे य हो ? लेट जाओ ब तर म। म चाय बनाकर लाती हँू ।''
''लेटे-लेटे भी जी ऊब जाता है। धप
ू नकले तो बाहर धप
ू म बैठ।
तीन ू को तरसते। पता नह ,ं आज भी
दन हो गए धप नकलेगी क
नह ं।''
''नह ,ं अभी पड़े रहो ब तर म। बाहर हवा चल रह होगी। जब
धप
ू नकलेगी तो चारपाई ू ी बाहर।'' घटन
बछा दँ ग ु पर हाथ रखकर
सखव
ु ती उठ और 'वाहे गु -वाहे गु ' करती हई
ु रसोई म घस
ु गयी। कछ

दे र बाद वह चाय का गलास लेकर आ गई। बशन सं ह ने गरम-गरम
चाय के घंट
ू भरे तो ठठरते
ु िज म म थोड़ी गरमी आई। उसने सखव
ु ती
को हदायत द , ''अब पानी म हाथ न डालना। अभी आ जाएगी माई।

ु कर लेगी सारा काम। तू भी आ जा मेरे पास, चाय का


खद गलास
लेकर।''
सखव
ु ती ने पहले अपना ब तर लपेटा, चारपाई को उठाकर
बरामदे म रखा और फर अपना चाय का गलास उठाकर बशन सं ह के
पास आ बैठ , उसी के ब तर म। बशन सं ह अपनी ओढ़ हई
ु रजाई को
ु बोला, ''थोड़ा पास होकर बैठ मेर रजाई म। गरमाहट बनी
खोलते हए
रहे गी।''
सखव
ु ती बशन सं ह के कर ब होकर रजाई म समटकर बैठ तो
उसे बशन सं ह का बदन तपता हुआ-सा लगा।

110
''अरे , तु ह तो ताप चढ़ा है।'' सखव
ु ती ने तरु त बशन सं ह का

ु , ''तमने
माथा छआ ु बताया नह ं। रात म गोल दे दे ती बखार
ु क । आज
ब तर म से बाहर नह ं नकलना।''
''कछ
ु नह ं हआ
ु ु । यँू ह न घबराया कर।'' बशन सं ह ने चाय
मझे
का बड़ा-सा घंट
ू भरकर कहा।
फर, वे कतनी ह दे र तक एक-दसरे
ू के पश का ताप महसस

करते रहे , न:श द ! बस , चाय के घंट
ू भरने क ह क -सी आवाज दोन
के म य तैरती रह , रह-रहकर।
फर, पता नह ं सखव
ु ती के दल म या आया, वह सामने शू य
म ताकती हई
ु बड़ी उदास आवाज म बदबदायी
ु ु , ''पता नह ,ं हमने रब का
या बगाड़ा था। हमार झोल म भी एक औलाद डाल दे ता तो या बगड़
जाता उसका। बढ़ापे
ु ु भोग लेते।''
म हम भी औलाद का सख
''औलाद का सख
ु ?'' बशन सं ह हँसा।
सखव
ु ती ने गदन घमाकर
ु बशन सं ह क ओर दे खा। उसक हँसी
के पीछे छपे दद को पकड़ने क उसने को शश क ।
बशन सं ह अपने दोन हाथ के बीच चाय का गलास दबोचे, चाय
म से उठ रह भाप को घरू रहा था।
''औलाद का सख
ु कहाँ है सखव
ु ती। िजनके है , वह भी रोते ह।
अब चरने को ह दे ख ले। तीन-तीन बेट के होते हए
ु भी नरक भोग रहा
है। तीन बेटे अपना-अपना ह सा लेकर अलग हो गए। बढ़ाू -बढ़
ू को पछने

वाला कोई नह ं।''
अपने-अपने हाथ म चाय के गलास थाम वे खामोश हो गए।
बशन सं ह ने ह कछ
ु दे र के बाद इस खामोशी को भंग कया।
बोला, ''वो अपने परमजीत को जानती हो ? अरे वह , श दर का बाप।
औलाद के होते हए
ु भी बेऔलाद-सा है। रोट -टु कड़ को तरसता। जब तक
औलाद नह ं थी, औलाद-औलाद करता था। जब रब ने औलाद द तो अब
इस उ म कहता घमता
ू है- इससे तो बेऔलाद अ छा था। सार जायदाद
बेट ने अपने नाम करवा ल । अब पछते
ू नह ं। कहता है- म तो हाथ

111
कटवा बैठा हँू । अगर पया-पैसा मेरे पास होता, तो सेवा के लए कोई
गर ब बंदा ह अपने पास रख लेता।''
''पर सार औलाद ऐसी नह ं होतीं।'' सखव
ु ती बशन सं ह के बहत

कर ब सटकर बैठ थी, पर बशन सं ह को लगा, जैसे उसक आवाज़
बहत
ु दरू से आ रह हो। थक -थक -सी !

चाय के गलास खाल हो चक


ु े थे। सखव
ु ती ने अपना और बशन
सं ह का गलास झककर
ु चारपाई के नीचे रख दया। उघड़ी हई
ु रजाई को
फर से अपने इद गद लपेटते हए
ु वह कछु और सरककर बशन सं ह के
साथ बैठ गई। बशन सं ह ने अपना दायां बाजू सखव
ु ती के पीछे से ले
जाकर उसे अपने और कर ब कर लया।
''िज दर ने भी हम धोखा दया, नह ं तो...।'' कहते-कहते
सखव
ु ती क गई।
''उसक बात न कर, सखव
ु ती। वह मेरे भाई क औलाद था, पर
मने तो उसे भाई क औलाद माना ह नह ं था। अपनी ह औलाद माना
था उसे। सोचा था, भाई के ब चे तंगहाल और गर बी के चलते पढ- लख
नह ं पाए। िज दर को म पढ़ाऊँगा- लखाऊँगा। पर...'' बशन सं ह कहते-
कहते चप
ु हो गया।
''जब हमारे पास रहने आया था, दस- यारह साल का था। कोई
कमी नह ं रखी थी हमने उसक परव रश म। इतने साल हमने उसे अपने
पास रखा। अ छा खाने को दया, पहनने को दया। जब कोई आस बंधी
तो उसने यह कारा कर दखाया...।'' सखव
ु ती का वर बेहद ठं डा था।
''सबकछ
ु उसी का तो था। हमारा और कौन था, िजसे हम यह सब
दे जाते। जब उसने तु हारे गहन पर हाथ साफ कया, तो द:ु ख तो बहत

हआ
ु था, पर सोचा था, अपने कये पर पछतायेगा।'' बशन सं ह ने
सखव
ु ती का दायां हाथ अपनी दोन हथे लय के बीच दबाकर थपथपाते

ु कहा, ''पर जब उसने दकान


हए ु और मकान अपने नाम लख दे ने क
बात क तो लगा हम तो इससे झठ
ू आस लगाये बैठे थे। यह तो अपना
कतई नह ं हो सकता।''

112
''अ छा हआ
ु , अपने आप चला गया छोड़कर।'' सखव
ु ती ने गहरा
न: ास लेते हए
ु कहा।
''सखव
ु ती, आदमी के पास जो नह ं होता, वह उसी को लेकर
द:ु खी होता रहता है उ भर। जो होता है , उसक क नह ं करता। जो
हमारे पास नह ं है, उसक हम य च ता कर। जो है, हम उसी का
आन द य न उठाय।'' कहकर बशन सं ह ने सखव
ु ती को अपने से
सटा लया। सखव
ु ती भी उसके सीने म मँुह छपाकर
ु कछ
ु दे र पड़ी रह ।
यह सेक, यह ताप दोन को एकमेक कये था। इधर बशन सं ह ने सोचा,
''जीवन का यह ताप हम दोन म बना रहे , हम और कछ
ु नह ं चा हए''
और उधर सखव
ु ती सोच रह थी, ''यह त पश...यह गरमाहट बशन
सं ह के बखार
ु के कारण है या फर उसके यार के कारण। काश! दोन के
बीच यह गरमाहट यँू ह बनी रहे ।''

तभी, धप
ू का एक छोटा-सा टकड़ा
ु खड़क के कांच से छनकर
कमरे म कदा
ू और फश पर खरगोश क भां त बैठकर मु कराने लगा।
सखव
ु ती हड़बड़ाकर बशन सं ह से यँू अलग हई
ु मानो कसी तीसरे ने
उन दोन को इस अव था म दे ख लया हो !

113
सफ़र म आदमी

''अबे, कहाँ घसा


ु आ रहा है !'' सर से पांव तक गंदे भखार नमा
ु आदमी
से अपने कपड़े बचाता हआ
ु वह लगभग चीख-सा पड़ा। उस आदमी क
दशा दे खकर मारे घ न के मन ह मन वह बदबदाया
ु ु , ''कैसे ड बे म चढ़
बैठा ?... अगर अज सी न होती तो कभी भी इस ड बे म न चढ़ता।
भले ह ू जाती।''
े न छट
माँ के सी रयस होने का तार उसे तब मला, जब वह शाम सात
बजे आ फस से घर लौटा। अगले दन, रा य म ब द होने के कारण रे ल
र कर द गई थीं और बस के चलने क भी उ मीद नह ं थी। अत: रात
क गाड़ी पकड़ने के आवाला उसके पास कोई चारा नह ं बचा था।
एक के बाद एक टे शन पीछे छोड़ती े न आगे बढ़ जा रह थी।
खड़े हए
ु लोग आ ह ता-आ ह ता नीचे फश पर बैठने लग गए थे। कई
अधलेटे-से भी हो गए थे।
''ज़ा हल ! कैसी गंद जगह पर लढ़क
ु े पड़े ह ! कपड़ तक का
ख़याल नह ं है।'' नीचे फश पर फैले पानी, संडास के पास क दग
ु ध और
ग दगी के कारण उसे घ न-सी आ रह थी। कसी तरह भीड़ के बीच म
जगह बनाते हए
ु आगे बढ़कर उसने ड बे के अ दर झांका। अ दर तो और
भी बरा
ु हाल था। ड बा असबाब और सवा रय से खचाखच भरा था। तल
रखने तक क जगह नह ं थी।
यह सब दे ख, वह वह ं खड़े रहने को ववश हो गया। उसने घड़ी
दे खी, साढ़े दस बज रहे थे। सबह
ु छह बजे से पहले गाड़ी या लगेगी
द ल ! रातभर यह ं खड़े-खड़े या ा करनी पड़ेगी। वह सोच रहा था।

114
े न अंधकार को चीरती धड़ाधड़ आगे बढ़ती जा रह थी। खड़ी हई

सवा रय म से दो-चार को छोड़कर शेष सभी नीचे फश पर बैठर् गई थीं
और आड़ी- तरछ होकर सोने का उप म कर रह थीं।
''इस हालत म भी जाने कैसे नींद आ जाती है इ ह !'' वह फर
बदबदाया।
ु ु
े न जब अ बाला से छट
ू तो उसक टांग म दद होना आरं भ हो
गया था। नीचे का गंदा, गीला फश उसे बैठने से रोक रहा था। वह कसी
तरह खड़ा रहा और इधर-उधर क बात को याद कर, समय को गजारने

का य करने लगा।
कछ
ु ह दे र बाद, उसक पलक नींद के बोझ से दबने लगीं। वह
आ ह ता-आ ह ता टांग को मोड़कर बैठने को हआ।
ु ले कन तभी अपने
कपड़ का ख़याल कर सीधा तनकर खड़ा हो गया। पर, खड़े-खड़े झप कयाँ
यादा जोर मारने लगीं और दे खते-दे खते वह भी संडास क द वार से पीठ
टकाकर, गंदे और गीले फश पर अधलेटा-सा हो गया।
कसी टे शन पर झटके से ेन क तो उसक नींद टट
ू ।
मच मचाती ऑ ं ख से उसने दे खा। ड बे म चढ़ा एक य एक हाथ म
ीफकेश उठाये, आड़े- तरछे लेटे लोग के बीच से रा ता बनाते हए
ु भीतर
जाने क को शश कर रहा था। उसके समीप पहँु चने पर गंदे, गीले फश पर
उसे यँू अधलेटा-सा दे खकर उसने नाक-भ सकोड़ी और बदबदाता
ु ु हआ

आगे बढ़ गया, ''ज़ा हल ! गंदगी म भी कैसा बेपरवाह पसरा पड़ा है !''

115
एक और क बा

दे हतोड़ मेहनत के बाद, रात क नींद से सबह


ु जब रहमत मयां क ऑ ं ख
खल
ु तो उनका मन परेू मड
ू म था। छु ी का दन था और कल ह उ ह
पगार मल थी। सो, आज वे परा
ू दन घर म रहकर आराम फरमाना
और प रवार के साथ बैठकर कछ
ु उ दा खाना खाना चाहते थे। उ ह ने
बेगम को अपनी इस वा हश से -ब-
करवाया। तय हआ
ु क घर म
आज गो त पकाया जाए। रहमत मयां का मड
ू अभी ब तर छोड़ने का न
था, लहाजा गो त लाने के लए अपने बेटे सु खन को बाजार भेजना
मना
ु सब समझा और खद
ु चादर ओढ़कर फर लेट गए।
सु खन थैला और पैसे लेकर जब बाजार पहँु चा, सबह
ु के दस बज
रहे थे। क बे क ग लय -बाजार म चहल-पहल थी। गो त लेकर जब
सु खन लौट रहा था, उसक नज़र ऊपर आकाश म तैरती एक कट पतंग
पर पड़ी। पीछे -पीछे , ल गी और बांस लये ल ड क भीड़ शोर मचाती
भागती आ रह थी। ज़मीन क ओर आते-आते पतंग ठ क सु खन के सर
के ऊपर च कर काटने लगी। उसने उछलकर उसे पकड़ने क को शश क ,
पर नाकामयाब रहा। दे खते ह दे खते, पतंग आगे बढ़ गई और
कलाबािजयाँ खाती हई
ु मं दर क बाहर द वार पर जा अटक । सु खन
द वार के बहत
ु नज़द क था। उसने हाथ म पकड़ा थैला वह ं सी ढ़य पर
पटका और फत
ु से द वार पर चढ़ गया। पतंग क डोर हाथ म आते ह
जाने कहाँ से उसम गज़ब क फत
ु आई क वह ल ड क भीड़ को चीरता
हआ ु दरू नकल गया, चेहरे पर वजय-भाव लये !
ु -सा बहत
काफ दे र बाद, जब उसे अपने थैले का ख़याल आया तो वह मं दर
क ओर भागा। वहाँ पर कहराम
ु मचा था। लोग क भीड़ लगी थी। पं डत
जी चीख- च ला रहे थे। गो त क बो टयाँ मं दर क सी ढ़य पर बखर

116
पड़ी थीं। उ ह ह थयाने के लए आस-पास के आवारा कु े अपनी-अपनी
ताकत के अनु प एक-दसरे
ू से उलझ रहे थे।
सु खन आगे बढ़ने क ह मत न कर सका। घर लौटने पर गो त
का यह ह हआ
ु जानकर यक कन उसे मार पड़ती। ले कन वहाँ खड़े रहने
का खौफ भी उसे भीतर तक थरा गया- कह ं कसी ने उसे गो त का थैला
मं दर क सी ढ़य पर पटकते दे ख न लया हो ! सु खन ने घर म ह
पनाह लेना बेहतर समझा। ग लय -बाजार म से होता हआ
ु जब वह अपने
घर क ओर तेजी से बढ़ रहा था, उसने दे खा हर तरफ अफरा-तफर सी
मची थी, दकान
ु के शटर फटाफट गरने लगे थे, लोग बाग इस तरह
भाग रहे थे मानो क बे म कोई खंख
ू ार दै य घस
ु आया हो!

117
मक ड़याँ

अ धक बरस नह ं बीते जब बाजार ने खद


ु चलकर उसके ार पर द तक
द थी। चकाच ध से भरपरू लभावने
ु बाजार को दे खकर वह दं ग रह गया

ु होगी, जो वह गलत जगह


था। अव य बाजार को कोई गलत-फहमी हई
पर आ गया - उसने सोचा था। उसने बाजार को समझाने क को शश क
थी क यह कोई पये -पैसे वाले अमीर य का घर नह ं, बि क एक
गर ब बाबू का घर है , जहां हर मह ने बंधी-बधाई तन वाह आती है और

ू मह ना खींच पाती है। इस पर बाजार ने हँसकर कहा था,


बमिु कल परा
''आप अपने आप को इतना ह न य समझते ह ? इस बाजार पर
िजतना पये-पैस वाले अमीर लोग का हक है , उतना ह आपका भी ?
हम जो आपके लए लाए ह, उससे अमीर-गर ब का फक ह ख म हो
जाएगा।'' बाजार ने िजस मो हत कर दे ने वाल मु कान म बात क थी,
उसका असर इतनी तेजी से हआ
ु था क वह बाजार क गर त म आने
से वयं को बचा न सका था। अब उसक जेब म सनहर
ु काड रहने लगा
था। अकेले म उसे दे ख-दे खकर वह मु ध होता रहता। धीरे -धीरे उसम
आ म- व ास पैदा हआ।
ु िजन वातानक
ु ू लत चमचमाती दकान
ु म घसने

का उसके अ दर साहस नह ं होता था, वह उनम गदन ऊँची करके जाने
लगा।
धीरे -धीरे घर का न शा बदलने लगा। सोफा, ज, रं गीन ट .वी.,
ं -मशीन आ द घर क शोभा बढ़ाने लगे। आस-पड़ोस और र तेदार
वा शग
म तबा बढ़ गया। घर म फोन क घं टयाँ बजने लगीं। हाथ म मोबाइल
आ गया। कछ
ु ह समय बाद बाजार फर उसके ार पर था। इस बार
बाजार पहले से अ धक लभावने
ु प म था। मु त काड, अ धक ल मट,

118
साथ म बीमा दो लाख का। जब चाहे व -बेव ज रत पड़ने पर
ए.ट .एम. से कैश। कसी महाजन, दो त-यार, र तेदार के आगे हाथ
फैलाने क ज रत नह ं।
इसी बीच प ी भंयकर प से बीमार पड़ गई थी। डॉ टर ने
आ ेशन क सलाह द थी और दस हजार का खचा बता दया था। इतने
पये कहां थे उसके पास ? बंधे-बंधाये वेतन म से बमिु कल गजारा
ु होता
था। और अब तो बल का भगतान
ु भी हर माह करना पड़ता था। पर
इलाज तो करवाना था। उसे चं ता सताने लगी थी। कैसे होगा ? तभी,
जेब मे रखे काड उछलने लगे थे, जैसे कह रहे ह - हम है न ! ध य हो
इस बाजार का! न कसी के पीछे मारे -मारे घम
ू ने क ज रत, न
गड़ गड़ाने क । ए.ट .एम.से पया नकलवाकर उसने प ी का आ ेशन
कराया था।
ले कन, कछ
ु बरस पहले बहत
ु लभावना
ु लगने वाला बाजार अब
उसे भयभीत करने लगा था। हर माह आने वाले बल का यनतम
ू चकाने

म ह उसक आधी तन वाह ख म हो जाती थी। इधर ब चे बड़े हो रहे
थे, उनक पढाई का खच बढ़ रहा था। हार -बीमार अलग थी। कोई चारा
न दे ख, आ फस के बाद वह दो घंटे पाट टाइम करने लगा। पर इससे
अ धक राहत न मल । बल का यनतम
ू ह वह अदा कर पाता था।
बकाया रकम और उस पर लगने वाले याज ने उसका मान सक चैन छ न
लया था। उसक नींद गायब कर द थी। रात म, बमिु कल ऑ ं ख लगती
तो सपने म जाले ह जाले दखाई दे ते िजनम वह खद
ु को बरु तरह फंसा
हआ
ु पाता।
छु ी का दन था और वह घर पर था। डोर-बैल बजी तो उसने
उठकर दरवाजा खोला। एक सु दर-सी बाला फर उसके सामने खड़ी थी,
मोहक मु कान बखेरती। उसने फटाक-से दरवाजा ब द कर दया। उसक
सांसे तेज हो गई थीं जैसे बाहर कोई भयानक चीज दे ख ल हो। प ी ने
ू , '' या बात है ? इतना घबरा
पछा य गए ? बाहर कौन है ?''
''मकड़ी !'' कहकर वह माथे का पसीना प छने लगा।

119
चटके घड़े

''सनो
ु जी, बाऊजी से कहो, लै न म पानी अ छ तरह डाला कर। भंगन
ु रोज साफ करनी पड़ती है।''
क तरह मझे
गड़प
ु ु !

''बाऊजी, दे खता हँू, आप हर समय बैठक म ह पड़े रहते ह। कभी


दसरे
ू कमरे म भी बैठ जाया कर। इधर कभी कोई यार-दो त भी आ जाता
है मलने।''
गड़प
ु ु !

''बाऊजी, आप तो नहाते समय कतना पानी बबाद करते ह। सारा


बाथ म गीला कर दे ते है। पता भी है, पानी क कतनी क लत है।''

''अ मा, हर समय बाऊजी के साथ य चपक रहती हो। थोड़ा

ु -शाम खटती रहती हँू , यह नह ं क दो


मेरा हाथ भी बटा दया करो। सबह
बतन ह मांज-धो द।''
गड़प
ु ु ! गड़प
ु ु !

''बाऊजी, यह या उठा लाए सड़ी-गल स जी ! एक काम कहा था


आपसे, वह भी नह ं हआ।
ु नह ं होता तो मना कर दे त,े पैसे तो बबाद न
होते।''
गड़प
ु ु !

120
''अ मा, आपको भी बाऊजी क तरह कम द खने लगा है। ये बतन
ु , न धले
धले ु बराबर ह। जब दबारा
ु मझे
ु ह धोने ह तो या फायदा आपसे
काम करा कर। आप तो जाइए बै ठये बाऊजी के पास।''
गड़प
ु ु !

दनभर श द के अनेक कंकर-प थर बढ़ा


ू -बढ़
ू के मन के शा त
और ि थर पा नय म गरते रहते ह। 'गड़प
ु ु '-सी आवाज होती है। कछ
ु दे र
बेचैनी क लहर उठती ह और फर शा त हो जाती ह।

रोज क तरह रात का खाना खाकर, ट .वी. पर अपना मनपसंद


सी रयल दे खकर बहू-बेटा और ब चे अपने -अपने कमरे म चले गए ह और
कलर
ू चलाकर ब ी बझाकर
ु अपने -अपने ब तर पर जा लेटे ह। पर इधर
न बढ़ेू क ऑ ं ख म नींद है, बढ़
ू क । पंखा भी गरम हवा फक रहा है।
''आपने आज दवाई नह ं खाई ?''
''नह ,ं वह तो दो दन से ख म है। राकेश से कहा तो था, शायद,
याद नह ं रहा होगा।''
'' या बात है , अपनी बांह य दबा रह हो ?''
''कई दन से दद रहता है।''
''लाओ, आयोडे स मल दँ ।ू''
''नह ं रहने दो।''
''नह ,ं लेकर आओ। म मल दे ता हँू, आराम आ जाएगा।''
''आयोडे स, उधर बेटे के कमरे म रखी है। वे सो गए ह। रहने
द िजए।''
''ये बहू-बेटा हम दन भर क चते य रहते ह ?'' बढ़
ू का वर
धीमा और आंसा-सा था।
''तम
ु दल पर य लगाती हो। कहने दया करो जो कहते ह। हम
तो अब चटके घड़े का पानी ठहरे । आज ह, कल नह ं रहे ग। फकने दो
कंकर-प थर। जो दन कट जाएं, अ छा है।''

121
तभी, दसरे
ू कमरे से एक प थर उछला।
''अब रात म कौन-सी रामायण बांची जा रह है ब ी जलाकर। रात
इ ी-इ ी दे र तलक ब ी जलेगी तो बल यादा तो आएगा ह ।''
गड़प
ु ु !

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