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योग शास्त्र से 'आज्ञाचक्र' बारे में सं गृहीत कुछ शशक्षणीय जानकाररयां --

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आज्ञा-चक्र क्या है :--

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आज्ञा चक्र मनुष्य के शरीर का छठा मूल चक्र है । आज्ञा का अर्थ होता है आदे श। आज्ञा चक्र मस्तिष्क के
मध्य में,भ ह
ं ों के बीच स्तथर्त है । इस कारण इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है । आज्ञा चक्र स्पष्टता और बु स्ति
का केन्द्र है । यह ३ प्रमुख नाशियों, इिा (चंद्र नाडी), श ंगला (सू यथ नाडी) और सु षुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाडी)
के शमलने का थर्ान है । जब इन तीनों नाशियों की ऊजाथ यहां शमलती है और आगे उठती है , तब हमें
समाशि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है ।।

आज्ञा चक्र दो ंखुशियों र्वाला एक कमल है जो इस बात को दशाथ ता है शक चेतना के इस िर र ‘केर्वल


दो’-- आत्मा और रमात्मा ही हैं । सामान्य त र र शजस व्यस्ति की ऊजाथ यहां ज्यादा सशक्रय है तो ऐसा
व्यस्ति ब स्तिक रू से सं न्न, सं र्वेदनशील और ते ज शदमाग का बन जाता है ; लेशकन र्वह सब कुछ जानने के
बार्वजूद म न रहता है । इसे ही ब स्तिक शसस्ति कहा जाता हैं ।।

अगर आ की ऊजाथ आज्ञा में सशक्रय है , या आ 'आज्ञा' तक हं च गये हैं , तो इसका मतलब है शक ब स्तिक
िर र आ ने शसस्ति ा ली है । ब स्तिक शसस्ति आ को शां शत दे ती है । आ के अनुभर्व में यह भले ही
र्वािशर्वक न हो, लेशकन जो ब स्तिक शसस्ति आ को हाशसल हई है , र्वह आ में एक स्तथर्रता और शां शत लाती
है । आ के आस ास चाहे कुछ भी हो रहा हो, या कैसी भी ररस्तथर्शतयां हों, उस से कोई फकथ नही ं
डे गा।।

आज्ञा-चक्र का मंत्र :--

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इस चक्र का मन्त्र होता है –'ॐ'। इस चक्र को जाग्रत करने के शलए आ को ॐ मंत्र का जा करते हए
ध्यान लगाना होता है ।।

आज्ञा-चक्र का थर्ान :--

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आज्ञा-चक्र हमारी दोनों भ हों के मध्य में स्तथर्त होता है ।।


आज्ञा-चक्र जाग्रत करने की शर्वशि :--

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भृ कुटी के मध्य ध्यान लगाते हए साक्षी भार्व में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है । गोले शदखना आज्ञा
चक्र के जाग्रत होने का लक्षण है । इससे भू त-भशर्वष्य- र्वतथ मान तीनों प्रत्यक्षा दीखने लगते है और भशर्वष्य में
घशटत होने र्वाली घटनाओं के ूर्वाथ भास भी होने लगते हैं । सार् ही हमारे मन में ूणथ आत्मशर्वश्वास जाग्रत होता
है , शजससे हम असािारण कायथ भी शीघ्रता से सं न्न कर लेते हैं ।।

आज्ञा-चक्र के प्रभार्व :--

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जब मनुष्य के अन्दर आज्ञा चक्र जागृ त हो जाता है , तब मनुष्य के अंदर अ ार शस्तियां और शसस्तियां शनर्वास
करती हैं । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से मनुष्य के अन्दर सभी शस्तियां जाग डती हैं और मनुष्य
एक शसि ुरुष बन जाता है । अतः जब इस चक्र का हम ध्यान करते हैं , तो हमारे शरीर में एक शर्वशेष
चुम्बकीय उजाथ का शनमाथ ण होने लगता है । उस उजाथ से हमारे अन्दर के दु गुथण ख़त्म होकर, अ ार एकाग्रता
की प्रास्तप्त होने लगती है । शर्वचारों में दृढ़ता और दृशष्ट में चमक ैदा होने लगती है ।।

रन्तु शबना गु रु की आशीर्वाथ द से अ ने शरीर में शर्वराशजत इस चक्र को जगाना सम्भर्व नही ं हो ाता है ।।

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