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GURUTVA KARYALAY
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अनुक्रभ
गणेश ितुथॉ त्रवशेष
सवाप्रथभ ऩूजनीम कैसे फने श्री गणेश? 6 गणेशबुजॊगभ ् 32
क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी 10 भनोवाॊसित परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद गणऩसत 33
की? स्तोि
गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता 11 सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकभ ् 34
गणेशजी को दव
ु ाा-दर िढ़ाने का भॊि 19 गणेश वाहन भूषक केसे फना 37
ऋण भुत्रि त्रवशेष
ऋण हयण श्री गणेश भॊि साधना 42 ज्मोसतष औय ऋण 53
श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत स्तोि 43 भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय को शाऩ फदमा 57
स्थामी रेख
सॊऩादकीम 4 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 79
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदे व
बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा शुबायॊ ब से ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा-अिाना की जाती
हं । इस सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा उस कामा का "श्री गणेश कयना" कहाॊ जाता हं ।
प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने के ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” भॊि का उच्िायण फकमा जाता हं । बगवान
गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं के दाता भाना गमा है । क्मोफक सायी ससत्रद्धमाॉ बगवान श्री गणेश भं वास कयती हं ।
बगवान श्री गणेश सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ कृ ऩा के असत सुद
ॊ य भहासागय हं , तीनो रोक के
कल्माण हे तु बगवान गणऩसत सफ प्रकाय से मोग्म हं ।
शास्त्रोि विन से इस कल्मुग भं तीव्र पर प्रदान कयने वारे बगवान गणेश औय भाता कारी हं । इस सरमे कहाॊ गमा
हं ।
करा िण्डीत्रवनामकौ
अथाात ्: करमुग भं िण्डी औय त्रवनामक की आयाधना ससत्रद्धदामक औय परदामी होता है ।
सिॊतन जोशी
6 ससतम्फय 2011
प्रथभ ऩूजे जाने के त्रवषम भं कुि िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा।
त्रवशेष रोक कथा प्रिसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का िक्कय रगाने के सरए अऩने
कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं । अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩड़े । रेफकन, गणेशजी
इस के सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कैसे
भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी ब्रह्माण्ड के तीन िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर
ने सरखा था। अडम कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ ितुय थे।
सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो? भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉिे सनणाामक
ब्रह्माजी के ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूिा फक वे क्मं नहीॊ गए
कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम
ब्रह्माण्ड के िक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक
हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो
7 ससतम्फय 2011
भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा, उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रविाय फकमा फक उनका
सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान होते हं । स्वमॊ का एक सेवक होना िाफहमे, जो ऩयभ शुब,
अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत की ऩरयक्रभा ऩूयी कय कामाकुशर तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन कयने भं
री, तो इसका तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की प्रदस्ऺणा ऩूयी कबी त्रविसरत न हो। इस प्रकाय सोिकय भाता ऩावाती नं
गणेशजी की ऩौयास्णक कथा Rs.550 से Rs.8200 तक सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्िा
के धड़ ऩय रगा फदमा, फारक जीत्रवत हो उठा। कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अडम दे वताओॊ के साथ भं
उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उडहं सबी रोक तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम
भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उडहं सवा अध्मऺ ऩूजे जामंगे एवॊ उनके ऩूजन के त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा
ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कॊद ऩुयाण ग्रहण नहीॊ कयं गे।
ब्रह्मवैवताऩुयाण के अनुसाय (गणऩसतखण्ड) – इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से
सशव-ऩावाती के त्रववाह होने के फाद उनकी कोई बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक
सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान
सवााग्रे तव ऩूजा ि भमा दत्ता सुयोत्तभ।
त्रवष्णु के शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती
के ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसडन हो कय सवाऩूज्मद्ळ मोगीडद्रो बव वत्सेत्मुवाि तभ ्।।
ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के (गणऩसतखॊ. 13। 2)
प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩडन हुवा। बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है ,
ऩुि जडभ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष, अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीडद्र हो जाओ।’
गॊधवा आफद सफ गण फारक के दशान हे तु ऩधाये । इन दे व ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अडम प्रसॊगाडतगात ऩुिवत्सरा
गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकडतु शसनदे व ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से
ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ के कायण फारक का दशान कहा –
नहीॊ फकमा। ऩयडतु भाता ऩावाती के फाय-फाय कहने ऩय
त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ ि हडतुॊ शिो गणेद्वय्। स्जतेस्डद्रमाणाॊ
शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारके उऩय ऩडी,
प्रवयो नफह हस्डत ि भस्ऺकाभ ्।।
उसी ऺण फारक गणेश का गदा न धड़ से अरग हो
गमा। भाता ऩावाती के त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्। दे वाद्ळाडमे
काटकय रामे औय गणेशजी के भस्तक ऩय रगा फदमा। (ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27)
गजभुख रगे होने के कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न बावाथा: स्जतेस्डद्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे
राखं-कयोड़ं जडतुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयडतु 3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी)
तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण के अॊश 4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न)
से उत्ऩडन हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण के ही सभान 5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु
है । अडम दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी
अग्रऩूजा होती है ।
बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व के असधऩसत होने के
शास्त्रीम भतसे कायण उनकी सशवसरॊग के रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान
शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं । हं । बगवान ् त्रवष्णु के आकाश तत्त्व के असधऩसत होने के
आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि केशवभ ्। कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं ।
ऩॊिदै वतसभत्मुिॊ सवाकभासु ऩूजमेत ्।। बगवती दे वी के अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने के कायण
उनका अस्ग्नकुण्ड भं हवनाफद के द्राया ऩूजा कयने का
(शब्दकल्ऩद्रभ
ु )
त्रवधान हं । श्रीगणेश के जरतत्त्व के असधऩसत होने के
बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड के ऩॊिबूतं के कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक
साथ सॊफॊध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩडन होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का
से फनते हं । औय ऩॊिबूत के आसधऩत्म के कायण से असधऩसत होने के कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म के
आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय केशव मे ऩॊिदे व असधकायी होते हं ।
बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी
आिामा भनु का कथन है -
हं -
“अऩ एि ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।”
आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी।
वामो् सूम्ा स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।। (भनुस्भृसत 1)
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10 ससतम्फय 2011
सिॊतन जोशी
गणऩसत शब्द का अथा हं ।
गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह के स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉि
ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को
िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ के भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश।
बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय के प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं ।
श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय के शुब
भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि
फक शत्रि को फढाने के सरमे भॊि के आगं ॐ (ओभ ्) आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं
के सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने
इस प्रािीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणे श जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक
ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते िरे आयहे हं ।
गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है -
कयके प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ के ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे
ऩहरे फकसका ऩूजन कयना िाफहमे ?
तफ व्मासजी ने कहा: त्रवघ्नं को दयू कयने के सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे। ऩूवक
ा ार भं
ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कडद
तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक के प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो
धभााियण के द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयके आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ ग
ू ी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कडद भमूय ऩय
आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतब
ा य भं सफ तीथं की स्डनान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा
कयके त्रऩताजी के सम्भुख खड़े हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्डनान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को
फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय के व्रत, भडि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन
भाता-त्रऩता के ऩूजन के सोरहवं अॊश के फयाफय बी नहीॊ हो सकते।
इससरमे मह गणेश सैकड़ं ऩुिं औय सैकड़ं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं
गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि के कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा
होगी। तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश के ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसडन हंजाते हं । इस सरमे तुभहं
सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे।
11 ससतम्फय 2011
कुॊकुॊभ: आबूषण:
ततऩद्ळमात कुॊकुॊभ अवीय-गुरार िढामे। ततऩद्ळमात आबूषण िढामे।
कुॊकुॊभ काभना फदव्मॊ काभना काभ सॊबवभ ्। अरॊकायाडभहाफदव्माडनानायतन त्रवसनसभातान।
कुॊकुॊभ नासिातो दे व गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥ गृहाण दे व-दे वेश प्रसीद ऩयभेद्वय॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् कुॊकुभॊ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आबूषण
सभऩामासभ॥ सभऩामासभ॥
ससॊदयू : इि:
ततऩद्ळमात ससॊदयू िढामे। ततऩद्ळमात इि अथाात ् सुगॊसधत तेर िढामे।
ससॊदयू ॊ शोबनॊ यिॊ सौबाग्मॊ सुखवधानभ ्। िम्ऩकाशो वकुरॊ भारती भोगयाफदसब्।
शुबदॊ काभदॊ िैव ससॊदयू ॊ प्रसतगृहमताभ। वाससतॊ स्स्नग्ध तासेरु तैरॊ िारु प्रगृहमातभ ्॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ससॊदयू ॊ सभऩामासभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् तैरभ ् सभऩामासभ॥
अऺत: धूऩ:
ततऩद्ळमात हल्दी मा कुॊकुॊभ से यॊ गे अऺत िढामे। ततऩद्ळमात धूऩ आफद जरामे।
अऺताद्ळ सुयश्रेद्ष कुॊकुभािा् सुशोसबता्। वनस्ऩसत यसोद्भूतो गॊधाढ्मो गॊध उत्तभ्।
भमा सनवेफदता बक्त्मा गृहाण ऩयभेद्वरय॥ आध्नम सवा दे वानाॊ धूऩोमॊ प्रसतगृह्यताभ ्॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अऺतान ् ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् धूऩॊ सभऩामासभ॥
सभऩामासभ॥
दीऩ:
ऩुष्ऩ: ततऩद्ळमात दीऩ आफद जरामे।
ततऩद्ळमात ऩुष्ऩ भारा आफद िढामे। आज्मेन वसताना मुिॊ वफह्नना ि प्रमोस्जतभ ् भमा।
भाल्मादीसन सुगडधीसन भारत्मादीसन वै प्रबो। दीऩॊ गृहाण दे वेश िेरोक्म सतसभयाऩह॥।
भमा नीतासन ऩुष्ऩास्ण गृहाण ऩयभेद्वय॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दीऩॊ दशामासभ॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩुष्ऩास्ण
सभऩामासभ॥ नैवेद्य:
ततऩद्ळमात नैवेद्य अत्रऩात कयं ।
दव
ू ाा: शका या खॊडखाद्यासन दसधऺीय घृतासन ि।
ततऩद्ळमात दव
ू ाा िढामे। आहायॊ बक्ष्मॊ बोज्मॊ ि गृहाण गणनामक।
दव
ु ाा कयाडसह रयतान भृतडभॊगर प्रदान। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् नैवेद्यॊ सनवेदमासभ॥
आनी ताॊस्तव ऩूजाथा गृहाण ऩयभेद्वय॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दव
ू ांकुयान ततऩद्ळमात नैवेद्य ऩय जर सिडके।
सभऩामासभ॥ गॊ गणऩतमे नभ्
16 ससतम्फय 2011
ततऩद्ळमात इस भॊि का उच्िायण कयते हुवे ऩाॊि फाय ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दस्ऺणाॊ
बोजन कयामे..... सभऩामासभ।
ॐ प्राणाम नभ्।
ॐ अऩानाम नभ्। प्रदस्ऺणा:
ताॊफुरॊ ि भमा दत्तॊ गृहाण गणनामक. रड्डु अन का बोग रगे सडत कयं सेवा॥ जम गणेश.....
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् भुखवासॊ अॊधे को आॉख दे त कोफढ़न को कामा
अनॊत ऩूण्म परदभत् शाॊसतॊ प्रमच्ि भे॥। आयती फदखामे खुद आयती रेकय हाथ धोरे।
17 ससतम्फय 2011
ऩाॉडवं को जुए के सरए न केवर आभॊत्रित ही फकमा कंफडडम ऋत्रष ने सुशीरा से डोये के फाये भं ऩूिा तो
फस्ल्क उडहं जुए भं ऩयास्जत बी कय फदमा। उसने सायी फात स्ऩद्श कय दी। ऩयॊ तु ऐद्वमा के भद भं
ऩयास्जत होकय ऩाॉडवं को फायह वषा के सरए अॊधे हो िुके कंफडडम ऋत्रष को इससे कोई प्रसडनता नहीॊ
वनवास बोगना ऩड़ा। वन भं यहते हुए ऩाॉडव अनेक कद्श हुई, फस्ल्क क्रोध भं आकय उडहंने उसके हाथ भं फॊधे डोये
सहते यहे । एक फदन वन भं मुसधत्रद्षय ने बगवान श्रीकृ ष्ण को तोड़कय आग भं जरा फदमा।
से अऩना द्ु ख कहा तथा उसको दयू कयने का उऩाम मह अनॊतजी का घोय अऩभान था। उनके इस
ऩूिा। तफ श्रीकृ ष्ण ने कहा- हे मुसधत्रद्षय! तुभ त्रवसधऩूवक
ा दष्ु कभा का ऩरयणाभ बी शीघ्र ही साभने आ गमा।
अनॊत बगवान का व्रत कयो। इससे तुम्हाये साये सॊकट दयू कंफडडम भुसन द्ु खी यहने रगे।
हो जाएगा। तुम्हं हाया हुआ याज्म बी वाऩस सभर उनकी सायी सम्ऩत्रत्त नद्श हो गई। इस दरयद्रता का
जाएगा। कायण ऩूिने ऩय सुशीरा ने डोये जराने की फात दोहयाई।
मुसधत्रद्षय के आग्रह ऩय इस सॊदबा भं श्रीकृ ष्ण एक तफ ऩद्ळाताऩ कयते हुए ऋत्रष 'अनॊत' की प्रासद्ऱ के सरए वन
कथा सुनाते हुए फोरे- प्रािीन कार भं सुभडतु ब्राह्मण की भं सनकर गए।
ऩयभ सुॊदयी तथा धभाऩयामण सुशीरा नाभक कडमा थी। जफ वे बटकते-बटकते सनयाश होकय सगय ऩड़े तो
त्रववाह मोग्म होने ऩय ब्राह्मण ने उसका त्रववाह कंफडडम बगवान अनॊत प्रकट होकय फोरे- 'हे कंफडडम! भेये
ऋत्रष से कय फदमा। कंफडडम ऋत्रष सुशीरा को रेकय सतयस्काय के कायण ही तुभ द्ु खी हुए हो रेफकन तुभने
अऩने आश्रभ की ओय िरे तो यास्ते भं ही यात हो गई। ऩद्ळाताऩ फकमा है , अत् भं प्रसडन हूॉ। ऩय घय जाकय
वे एक नदी के तट ऩय सॊध्मा कयने रगे। त्रवसधऩूवक
ा अनॊत व्रत कयो। िौदह वषा ऩमाडत व्रत कयने
सुशीरा ने दे खा- वहाॉ ऩय फहुत-सी स्स्त्रमाॉ सुॊदय- से तुम्हाया साया द्ु ख दयू हो जाएगा। तुम्हं अनॊत सम्ऩत्रत्त
सुॊदय वस्त्र धायण कयके फकसी दे वता की ऩूजा कय यही हं । सभरेगी।
उत्सुकतावश सुशीरा ने उनसे उस ऩूजन के त्रवषम भं कंफडडम ऋत्रष ने वैसा ही फकमा। उडहं साये क्रेशं
ऩूिा तो उडहंने त्रवसधऩूवक
ा अनॊत व्रत की भहत्ता फता दी। से भुत्रि सभर गई। श्रीकृ ष्ण की आऻा से मुसधत्रद्षय ने बी
सुशीरा ने वहीॊ उस व्रत का अनुद्षान कयके िौदह गाॊठं बगवान अनॊत का व्रत फकमा स्जसके प्रबाव से ऩाॉडव
वारा डोया हाथ भं फाॉधा औय अऩने ऩसत के ऩास आ भहाबायत के मुद्ध भं त्रवजमी हुए तथा सियकार तक
गई। सनष्कॊटक याज्म कयते यहे ।
गणेशजी को दव
ु ाा-दर िढ़ाने का भॊि
गणेशजी को 21 दव
ु ाादर िढ़ाई जाती है । दो दव
ु ाा-
दर नीिे सरखे नाभभॊिं के साथ िढ़ाएॊ। ॐ ईशऩुिाम नभ:।
ॐ सवाससद्धप्रदाम नभ:।
ॐ गणासधऩाम नभ:। ॐ एकदडताम नभ:।
ॐ उभाऩुिाम नभ:। ॐ इबवक्िाम नभ:।
ॐ त्रवघ्ननाशनाम नभ:। ॐ भूषकवाहनाम नभ:।
ॐ त्रवनामकाम नभ:। ॐ कुभायगुयवे नभ:।
20 ससतम्फय 2011
'गणेश तुरसी ऩि दग
ु ाा नैव तु दव
ू ाामा' (कासताक भाहात्म्म)
सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ्
सॊकटनाशन गणेश स्तोिभ ् का प्रसत फदन ऩाठ कयने से सभस्त प्रकाय के सॊकटोका नाश होता है , श्री गणेशजी फक कृ ऩा एवॊ सुख
सभृत्रद्ध फक प्राद्ऱ होती है ।
वक्रतुॊड भहाकाम सूमक
ा ोफट सभप्रब । सनत्रवाघ्नभ ् कुरु भं दे व सवा कामेषु सवादा ॥ त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सूयत्रप्रमाम रम्फोदयाम सकराम
जगफद्रताम । नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबूत्रषताम गौयीसुताम गणनाथ नभोनभस्ते ॥
स्तोि:
प्रणम्म सशयसा दे वॊ गौयीऩुॊि त्रवनामकभ ् बिावासॊ स्भये सनत्मॊ आमुकाभाथाससद्धमे ॥ १ ॥
प्रथभॊ वक्रतुॊडॊ ि एकदॊ तॊ फद्रसतमकभ ् तृतीमॊ कृ ष्णत्रऩॊगाऺॊ गजवकिॊ ितुथक
ा भ् ॥ २ ॥
रॊफोदयॊ ऩॊिभॊ ि षद्शभॊ त्रवकटभेव ि सद्ऱभॊ त्रवघ्नयाजॊ ि धूम्रवणं तथाअद्शकभ ् ॥ ३ ॥
नवॊ बारिॊद्रॊ ि दशभॊ तु त्रवनामकभ ् एकादशॊ गणऩसतॊ द्रादशॊ तु गजाननभ ् ॥ ४ ॥
द्रादशैतासन नाभासन त्रिसॊध्मॊ म: ऩठे डनय: न ि त्रवघ्नबमॊ तस्म सवा ससत्रद्ध कयॊ प्रबो ॥ ५ ॥
त्रवद्यासथा रबते त्रवद्याॊ धनासथा रबते धनभ ् ऩुिासथा रबते ऩुिाॊभोऺासथा रबते गसतभ ् ॥ ६ ॥
जऩेत्गणऩसतस्तोिॊ षडसबभासै: परॊ रबेत सॊवतसये णससत्रद्धॊ ि रबते नािसॊशम् ॥ ७ ॥
अद्शभ्मोब्राह्मणोभ्मस्म सरस्खत्वा म: सभऩामेत ् तस्म त्रवद्या बवेत्सवाा गणेशस्म प्रसादत् ॥ ८ ॥
॥ इसतश्री नायदऩुयाणे ‘सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ्’ सॊऩूणभ
ा ्॥
21 ससतम्फय 2011
सिॊतन जोशी
तुरसी सभस्त ऩौधं भं उनसे उनका ऩरयिम ऩूिा औय उनके वहाॊ आगभन का कायण
श्रेद्ष भानी जाती हं । फहॊ द ू जानना िाहा। गणेश जी ने कहा भाता! तऩस्स्वमं का घ्मान
धभा भं सभस्त ऩूजन बॊग कयना सदा ऩाऩजनक औय अभॊगरकायी होता हं ।
कभो भं तुरसी को शुबे! बगवान श्रीकृ ष्ण आऩका कल्माण कयं , भेये घ्मान बॊग से
प्रभुखता दी जाती हं । उत्ऩडन दोष आऩके सरए अभॊगरकायक न हो।
प्राम् सबी फहॊ द ू इस ऩय तुरसी ने कहा—प्रबो! भं धभाात्भज की कडमा हूॊ औय
भॊफदयं भं ियणाभृत भं तऩस्मा भं सॊरग्न हूॊ। भेयी मह तऩस्मा ऩसत प्रासद्ऱ के सरए हं ।
बी तुरसी का प्रमोग अत: आऩ भुझसे त्रववाह कय रीस्जए। तुरसी की मह फात
होता हं । इसके ऩीिे सुनकय फुत्रद्ध श्रेद्ष गणेश जी ने उत्तय फदमा हे भाता! त्रववाह कयना
ऎसी काभना होती है फडा बमॊकय होता हं , भं ब्रम्हिायी हूॊ। त्रववाह तऩस्मा के सरए
फक तुरसी ग्रहण कयने से तुरसी अकार भृत्मु को हयने नाशक, भोऺद्राय के यास्ता फॊद कयने वारा, बव फॊधन से फॊध,े
वारी तथा सवा व्मासधमं का नाश कयने वारी हं । सॊशमं का उद्गभ स्थान हं । अत: आऩ भेयी ओय से अऩना घ्मान
ऩयडतु मही ऩूज्म तुरसी को बगवान श्री गणेश की हटा रं औय फकसी अडम को ऩसत के रूऩ भं तराश कयं । तफ
ऩूजा भं सनत्रषद्ध भानी गई हं । कुत्रऩत होकय तुरसी ने बगवान गणेश को शाऩ दे ते हुए कहा
फक आऩका त्रववाह अवश्म होगा। मह सुनकय सशव ऩुि गणेश
शास्त्रं भं उल्रेख हं :
ने बी तुरसी को शाऩ फदमा दे वी, तुभ बी सनस्द्ळत रूऩ से असुयं
तुरसीॊ वजासमत्वा सवााण्मत्रऩ ऩिऩुष्ऩास्ण गणऩसतत्रप्रमास्ण। द्राया ग्रस्त होकय वृऺ फन जाओगी।
(आिायबूषण) इस शाऩ को सुनकय तुरसी ने व्मसथत होकय बगवान
गणेशजी को तुरसी िोड़कय सबी ऩि-ऩुष्ऩ त्रप्रम हं ! श्री गणेश की वॊदना की। तफ प्रसडन होकय गणेश जी ने तुरसी
गणऩसतजी को दव
ू ाा असधक त्रप्रम है । से कहा हे भनोयभे! तुभ ऩौधं की सायबूता फनोगी औय
इनसे सम्फद्ध ब्रह्मकल्ऩ भं एक कथा सभरती हं सभमाॊतय से बगवान नायामण फक त्रप्रमा फनोगी। सबी दे वता
आऩसे स्नेह यखंगे ऩयडतु श्रीकृ ष्ण के सरए आऩ त्रवशेष त्रप्रम
एक सभम नवमौवन सम्ऩडन तुरसी दे वी नायामण ऩयामण
यहं गी। आऩकी ऩूजा भनुष्मं के सरए भुत्रि दासमनी होगी तथा
होकय तऩस्मा के सनसभत्त से तीथो भं भ्रभण कयती हुई गॊगा तट
भेये ऩूजन भं आऩ सदै व त्माज्म यहं गी। ऎसा कहकय गणेश जी
ऩय ऩहुॉिीॊ। वहाॉ ऩय उडहंने गणेश को दे खा, जो फक तरूण मुवा
ऩुन: तऩ कयने िरे गए। इधय तुरसी दे वी द:ु स्खत ह्वदम से
रग यहे थे। गणेशजी अत्मडत सुडदय, शुद्ध औय ऩीताम्फय
धायण फकए हुए आबूषणं से त्रवबूत्रषत थे, गणेश काभनायफहत, ऩुष्कय भं जा ऩहुॊिी औय सनयाहाय यहकय तऩस्मा भं सॊरग्न हो
स्जतेस्डद्रमं भं सवाश्रद्ष
े , मोसगमं के मोगी थे गणेशजी वहाॊ गई। तत्ऩद्ळात गणेश के शाऩ से वह सियकार तक शॊखिूड की
श्रीकृ ष्ण की आयाधना भं घ्मानयत थे। गणेशजी को दे खते ही त्रप्रम ऩत्नी फनी यहीॊ। जफ शॊखिूड शॊकय जी के त्रिशूर से भृत्मु
तुरसी का भन उनकी ओय आकत्रषात हो गमा। तफ तुरसी को प्राद्ऱ हुआ तो नायामण त्रप्रमा तुरसी का वृऺ रूऩ भं प्रादब
ु ााव
उनका उऩहास उडाने रगीॊ। घ्मानबॊग होने ऩय गणेश जी ने हुआ।
22 ससतम्फय 2011
ॐ वक्रतुॊडाम हुभ ् ।
बॊडाय प्रदान कयने वारा हं । फदमे गमे भॊिो भे से कोई बी एक भॊिका जाऩ कये।
(०१) गॊ ।
ॐ हस्स्त त्रऩशासि सरखे स्वाहा ।
(०२) ग्रॊ ।
आरस्म, सनयाशा, करह, त्रवघ्न दयू कयने के सरए (०३) ग्रं ।
त्रवघ्नयाज रूऩ की आयाधना का मह भॊि जऩे । (०४) श्री गणेशाम नभ् ।
ॐ गॊ स्ऺप्रप्रसादनाम नभ:। (०५) ॐ वयदाम नभ् ।
त्रवकास एवॊ आत्भफर की प्रासद्ऱ के सरए हे यम्फॊ (०९) ॐ नभो बगवते गजाननाम ।
ॐ श्री गॊ सौबाग्म गणऩत्मे वय वयद सवाजनॊ भं इस भॊि के जाऩ से दरयद्रता का नाश होकय, धन प्रासद्ऱ
वशभानम स्वाहा। के प्रफर मोग फनने रगते हं ।
त्रववाह भं आने वारे दोषो को दयू कयने वारं को िैरोक्म
भोहन गणेश भॊि का जऩ कयने से शीघ्र त्रववाह व अनुकूर
ॐ गणेश भहारक्ष्म्मै नभ्।
व्माऩाय से सम्फस्डधत फाधाएॊ एवॊ ऩये शासनमाॊ सनवायण एवॊ
जीवनसाथी की प्रासद्ऱ होती है ।
व्माऩय भं सनयॊ तय उडनसत हे तु।
ॐ वक्रतुण्डे क द्रद्शाम क्रीॊहीॊ श्रीॊ गॊ गणऩतमे वय वयद
ॐ गॊ योग भुिमे पट्।
सवाजनॊ भॊ दशभानम स्वाहा ।
बमानक असाध्म योगं से ऩये शानी होने ऩय, उसित ईराज
इस भॊिं के असतरयि गणऩसत अथवाशीषा, सॊकटनाशक, गणेश
कयाने ऩय बी राब प्राद्ऱ नहीॊ होयहा हो, तो ऩूणा त्रवद्वास
स्त्रोत, गणेशकवि, सॊतान गणऩसत स्त्रोत, ऋणहताा गणऩसत
सं भॊि का जाऩ कयने से मा जानकाय व्मत्रि से जाऩ
स्त्रोत भमूयेश स्त्रोत, गणेश िारीसा का ऩाठ कयने से गणेश
कयवाने से धीये -धीये योगी को योग से िुटकाया सभरता हं ।
जी की शीघ्र कृ ऩा प्राद्ऱ होती है ।
जऩ त्रवसध
ॐ अडतरयऺाम स्वाहा।
इस भॊि के जाऩ से भनोकाभना ऩूसता के अवसय प्राद्ऱ होने प्रात: स्नानाफद शुद्ध होकय कुश मा ऊन के आसन ऩय ऩूवा
इस भॊि का उच्िायण हो जाता है है उसके घय भं कबी बी हो, तो फकसी ब्राह्मण को उसित दस्ऺणा दे कय
ऋण मा दरयद्रता नहीॊ आ सकती। उनसे जाऩ कयवामा जा सकता हं ।
ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है । गुरुत्व कामाारम भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 75 ग्राभ तक फक साइज भे उसरब्ध है
.
।।गणऩसत अथवाशीषा।।
ॐ नभस्ते गणऩतमे। त्वभेव प्रत्मऺॊ तत्वभसस । त्वभेव केवरॊ कताा सस। त्वभेव केवरॊ धताासस। त्वभेव केवरॊ
हताासस । त्वभेव सवं खस्ल्वदॊ ब्रह्मासस। त्व साऺादात्भासस सनत्मभ ्। ऋतॊ वस्च्भ। सत्मॊ वस्च्भ। अव त्व भाॊभ ्। अव
विायभ ्। अव श्रोतायभ ्। अव दातायभ ्। अव धातायभ ्। अवा नूिानभव सशष्मभ ्।अव ऩद्ळातात ्।अव ऩुयस्तात ्। अवोत्तयात्तात ्।
अव दस्ऺणात्तात ्।
अव िोध्वाात्तात ्। अवाधयात्तात ्। सवातो भाॉ ऩाफह-ऩाफह सभॊतात ्। त्वॊ वाङ्भम स्त्वॊ सिडभम्। त्वभानॊदभसमस्त्वॊ
ब्रह्मभम्। त्वॊ सस्च्िदानॊदात ् फद्रतीमोसस। त्वॊ प्रत्मऺॊ ब्रह्मासस। त्वॊ ऻानभमो त्रवऻानभमोसस। सवं जगफददॊ त्वत्तो जामते।
सवं जगफददॊ त्वत्त स्स्तद्षसत। सवं जगफददॊ त्वसम वमभेष्मसत। सवं जगफददॊ त्वसम प्रत्मेसत। त्वॊ बूसभयाऩोनरो सनरो नब्।
त्वॊ ित्वारय वाकूऩदासन। त्वॊ गुणिमातीत: त्वभवस्थािमातीत्। त्वॊ दे हिमातीत्। त्वॊ कारिमातीत्। त्वॊ भूराधाय
स्स्थतोसस सनत्मॊ। त्वॊ शत्रि िमात्भक्। त्वाॊ मोसगनो ध्मामॊसत सनत्मॊ। त्वॊ ब्रह्मा त्वॊ त्रवष्णुस्त्वॊ रूद्रस्त्वॊ इॊ द्रस्त्वॊ अस्ग्नस्त्वॊ
वामुस्त्वॊ सूमस्
ा त्वॊ िॊद्रभास्त्वॊ ब्रह्मबूबव
ुा :स्वयोभ ्।
गणाफद ऩूवभ
ा ुच्िामा वणााफदॊ तदनॊतयभ ्। अनुस्वाय: ऩयतय्। अधेडदर
ु ससतभ ्। ताये ण ऋद्धॊ । एतत्तव भनुस्व रूऩभ ्।
गकाय: ऩूवरू
ा ऩभ ्। अकायो भध्मभरूऩभ ्। अनुस्वायद्ळाडत्मरूऩभ ्। त्रफडदरू
ु त्तयरूऩभ ्। नाद: सॊधानभ ्। सॉ फहतासॊसध: सैषा गणेश
त्रवद्या। गणकऋत्रष: सनिृद्गामिीच्िॊ द्। गणऩसतदे वता। ॐ गॊ गणऩतमे नभ्।एकदॊ ताम त्रवद्धभहे । वक्रतुण्डाम धीभफह। तडनो
दॊ ती प्रिोदमात ्। एकदॊ तॊ ितुहास्तॊ ऩाशभॊकुश धारयणभ ्। यदॊ ि वयदॊ हस्तै त्रवाभ्राणॊ भूषकध्वजभ ्। यिॊ रॊफोदयॊ शूऩा कणाकॊ
यिवाससभ ्। यिगॊधानु सरद्ऱाॊगॊ यिऩुष्ऩै: सुऩुस्जतभ ्। बिानुकॊत्रऩनॊ दे वॊ जगत्कायण भच्मुतभ ्। आत्रवबूत
ा ॊ ि सृद्शमादौ प्रकृ ते
ऩुरुषात्ऩयभ ्। एवॊ ध्मामसत मो सनत्मॊ स मोगी मोसगनाॊ वय्।
नभो व्रातऩतमे। नभो गणऩतमे। नभ: प्रभथऩतमे। नभस्ते अस्तु रॊफोदयामै एकदॊ ताम। त्रवघ्ननासशने सशवसुताम।
श्रीवयदभूतम
ा े नभो नभ्। एतदथवा शीषा मोधीते। स ब्रह्म बूमाम कल्ऩते। स सवा त्रवघ्नैनफ
ा ाध्मते। स सवात: सुखभेधते। स
ऩच्िभहाऩाऩात्प्रभुच्मते। सामभधीमानो फदवसकृ तॊ ऩाऩॊ नाशमसत। प्रातयधीमानो यात्रिकृ तॊ ऩाऩॊ नाशमसत। सामॊ प्रात:
प्रमुॊजानो अऩाऩो बवसत। सवािाधीमानो ड ऩत्रवघ्नो बवसत। धभााथक
ा ाभभोऺॊ ि त्रवॊदसत। इदभथवाशीषाभसशष्माम न दे मभ ्।
मो मफद भोहात ् दास्मसत स ऩाऩीमान ् बवसत। सहस्रावतानात ् मॊ मॊ काभभधीते तॊतभनेन साधमेत ्। अनेन गणऩसत
भसबत्रषॊिसत स वाग्भी बवसत । ितुथ्मााभनश्र्नन जऩसत स त्रवद्यावान बवसत। इत्मथवाण वाक्मभ ्। ब्रह्माद्यावयणॊ त्रवद्यात ् न
त्रफबेसत कदािनेसत। मो दव
ू ांकुयं मज
ा सत स वैश्रवणोऩभो बवसत। मो राजैमज
ा सत स मशोवान बवसत स भेधावान बवसत। मो
भोदक सहस्रेण मजसत स वाॊसित पर भवाप्रोसत। म: साज्मससभत्रद्भ माजसत स सवं रबते स सवं रबते। अद्शौ ब्राह्मणान ्
सम्मग्ग्राहसमत्वा सूमा विास्वी बवसत। सूमग्र
ा हे भहानद्याॊ प्रसतभा सॊसनधौ वा जप्त्वा ससद्धभॊिं बवसत। भहात्रवघ्नात ् प्रभुच्मते।
भहादोषात ् प्रभुच्मते। भहाऩाऩात ् प्रभुच्मते। स सवात्रवद् बवसत से सवात्रवद् बवसत । म एवॊ वेद इत्मुऩसनषद्ध।
उसका मश िायं औय फढता हं । त्रऩता के सुख भं वृत्रद्ध होकय के गुरु हं । गणेशजी का ऩूजन कयने से शसन से सॊफॊसधत
व्मत्रि का आध्मास्त्भक ऻान फढता हं । ऩीडा दयू होती हं । बगवान गणेश हाथी के भुख एवॊ ऩुरुष
बगवान गणेश िॊद्र के सभान शाॊसत एवॊ शीतरता के शयीय मुि होने से याहू व केतू के बी असधऩसत दे व हं ।
गणेशजी का ऩूजन कयने से याहू व केतू से सॊफॊसधत ऩीडा
प्रसतक हं । गणेशजी का ऩूजन-अिान कयने से िॊद्र के प्रसतकूर
दयू होती हं । इससरमे नवग्रह फक शाॊसत भाि बगवान
प्रबाव का नाश होकय व्मत्रि को भानससक शाॊसत प्राद्ऱ होती हं ।
गणेश के स्भयण से ही हो जाती हं । इसभं कोई सॊदेह
िॊद्र भाता का कायक ग्रह हं इस सरमे गणेशजी के ऩूजन से
नहीॊ हं । बगवान गणेश भं ऩूणा श्रद्धा एवॊ त्रवद्वास फक
भातृसुख भं वृत्रद्ध होती हं ।
आवश्मिा हं । बगवान गणेश का ऩूजन अिान कयने से
बगवान गणेश भॊगर के सभान सशत्रिशारी एवॊ
भनुष्म का जीवन सभस्त सुखो से बय जाता है । जडभ
फरशारी हं । गणेशजी का ऩूजन-अिान कयने से भॊगर के
कुॊडरी भं िाहं होई बी ग्रह अस्त हो मा नीि हो अथवा
अशुब प्रबाव दयू होते हं औय व्मत्रि फक फर-शत्रि भं वृत्रद्ध
ऩीफडत हो तो बगवान गणेश फक आयाधना से सबी ग्रहो
होती हं । गणेशजी के ऩूजन से ऋण भुत्रि सभरती हं । व्मत्रि
के अशुब प्रबाव दयू होता हं एवॊ शुब परो फक प्रासद्ऱ
के साहस, फर, ऩद औय प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं स्जस कायण
होती हं ।
27 ससतम्फय 2011
सिॊतन जोशी
गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध होने फक इस प्रकाय सिजीत ने ऩुख्ता सफूत जुटाए त्रफना ही सभथ्मा
ऩौयास्णक भाडमता हं । शास्त्रंि विन के अनुशाय जो प्रिाय कय फदमा फक श्री कृ ष्ण ने प्रसेनजीत की हत्मा
व्मत्रि इस फदन िॊद्रभा को जाने-अडजाने कयवा दी हं । इस रोकसनॊदा से आहत होकय
दे ख रेता हं उसे सभथ्मा करॊक रगता औय इसके सनवायण के सरए श्रीकृ ष्ण कई
हं । उस ऩय झूठा आयोऩ रगता हं । फदनं तक एक वन से दस
ू ये वन बटक
कथा कय प्रसेनजीत को खोजते यहे औय
एक फाय जयासडध के वहाॊ उडहं शेय द्राया प्रसेनजीत को
बम से बगवान कृ ष्ण सभुद्र भाय डारने औय यीि द्राया भस्ण
के फीि नगय फनाकय वहाॊ रे जाने के सिह्न सभर गए।
यहने रगे। बगवान कृ ष्ण ने इडहीॊ सिह्नं के आधाय ऩय श्री
स्जस नगय भं सनवास फकमा कृ ष्ण जाभवॊत की गुपा भं जा
था वह स्थान आज द्रारयका के ऩहुॊिे जहाॊ जाभवॊत की ऩुिी
नाभ से जाना जाता हं । भस्ण से खेर यही थी। उधय
उस सभम द्रारयका ऩुयी जाभवॊत श्री कृ ष्ण से भस्ण नहीॊ
के सनवासी से प्रसडन होकय सूमा दे ने हे तु मुद्ध के सरए तैमाय हो
बगवान ने सिजीत मादव नाभक गमा। सात फदन तक जफ श्री कृ ष्ण
व्मत्रि अऩनी स्मभडतक भस्ण वारी गुपा से फाहय नहीॊ आए तो उनके सॊगी
भारा अऩने गरे से उतायकय दे दी। साथी उडहं भया हुआ जानकाय त्रवराऩ कयते
मह भस्ण प्रसतफदन आठ सेय सोना प्रदान कयती थी। भस्ण हुए द्रारयका रौट गए। २१ फदनं तक गुपा भं मुद्ध
ऩातेही सिजीत मादव सभृद्ध हो गमा। बगवान श्री कृ ष्ण िरता यहा औय कोई बी झुकने को तैमाय नहीॊ था। तफ
को जफ मह फात ऩता िरी तो उडहंने सिजीत जाभवॊत को बान हुआ फक कहीॊ मे वह अवताय तो नहीॊ
से स्मभडतक भस्ण ऩाने की इच्िा व्मि की। स्जनके दशान के सरए भुझे श्री याभिॊद्र जी से वयदान
रेफकन सिजीत ने भस्ण श्री कृ ष्ण को न दे कय अऩने बाई सभरा था। तफ जाभवॊत ने अऩनी ऩुिी का त्रववाह श्री
प्रसेनजीत को दे दी। एक फदन प्रसेनजीत सशकाय ऩय गमा कृ ष्ण के साथ कय फदमा औय भस्ण दहे ज भं श्री कृ ष्ण को
जहाॊ एक शेय ने प्रसेनजीत को भायकय भस्ण रे री। मही दे दी। उधय कृ ष्ण जफ भस्ण रेकय रौटे तो उडहंने
यीिं के याजा औय याभामण कार के जाभवॊत ने शेय को सिजीत को भस्ण वाऩस कय दी। सिजीत अऩने फकए ऩय
भायकय भस्ण ऩय कब्जा कय सरमा था। रस्ज्जत हुआ औय अऩनी ऩुिी सत्मबाभा का त्रववाह श्री
कई फदनं तक प्रसेनजीत सशकाय से घय न रौटा कृ ष्ण के साथ कय फदमा।
तो सिजीत को सिॊता हुई औय उसने सोिा फक श्रीकृ ष्ण कुि ही सभम फाद अक्रूय के कहने ऩय ऋतु वभाा
ने ही भस्ण ऩाने के सरए प्रसेनजीत की हत्मा कय दी। ने सिजीत को भायकय भस्ण िीन री। श्री कृ ष्ण अऩने
फड़े बाई फरयाभ के साथ उनसे मुद्ध कयने ऩहुॊिे। मुद्ध भं
28 ससतम्फय 2011
जीत हाससर होने वारी थी फक ऋतु वभाा ने भस्ण अक्रूय गणेशजी शाऩ सुनकय िॊद्रभा फहुत दख
ु ी हुए। गणेशजी
को दे दी औय बाग सनकरा। श्री कृ ष्ण ने मुद्ध तो जीत शाऩ के शाऩ वारी फाज िॊद्रभा ने सभस्त दे वताओॊ को
सरमा रेफकन भस्ण हाससर नहीॊ कय सके। जफ फरयाभ ने सोनाई तो सबी दे वताओॊ को सिॊता हुई। औय त्रविाय
उनसे भस्ण के फाये भं ऩूिा तो उडहंने कहा फक भस्ण त्रवभशा कयने रगे फक िॊद्रभा ही यािी कार भं ऩृथ्वी का
उनके ऩास नहीॊ। ऐसे भं फरयाभ स्खडन होकय द्रारयका आबूषण हं औय इसे दे खे त्रफना ऩृथ्वी ऩय यािी का कोई
जाने की फजाम इॊ द्रप्रस्थ रौट गए। उधय द्रारयका भं फपय काभ ऩूया नहीॊ हो सकता। िॊद्रभा को साथ रेकय सबी
ििाा पैर गई फक श्री कृ ष्ण ने भस्ण के भोह भं बाई का दे वता ब्रह्माजी के ऩास ऩहुिं। दे वताओॊ ने ब्रह्माजी को सायी
बी सतयस्काय कय फदमा। भस्ण के िरते झूठे राॊिनं से घटना त्रवस्ताय से सुनाई उनकी फातं सुनकय ब्रह्माजी फोरे,
दख
ु ी होकय श्री कृ ष्ण सोिने रगे फक ऐसा क्मं हो यहा िॊद्रभा तुभने सबी गणं के अयाध्म दे व सशव-ऩावाती के
है । तफ नायद जी आए औय उडहंने कहा फक हे कृ ष्ण ऩुि गणेश का अऩभान फकमा हं । मफद तुभ गणेश के शाऩ
तुभने बाद्रऩद भं शुक्र ितुथॉ की यात को िॊद्रभा के से भुि होना िाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत यखो। वे
दशान फकमेथे औय इसी कायण आऩको सभथ्मा करॊक दमारु हं, तुम्हं भाप कय दं गे। िॊद्रभा गणेशजी को
झेरना ऩड़ यहा हं । प्रशडन कयने के सरमे कठोय व्रत-तऩस्मा कयने रगे।
श्रीकृ ष्ण िॊद्रभा के दशान फक फात त्रवस्ताय ऩूिने बगवान गणेश िॊद्रभा की कठोय तऩस्मा से प्रसडन हुए
ऩय नायदजी ने श्रीकृ ष्ण को करॊक वारी मह कथा फताई औय कहा वषाबय भं केवर एक फदन बाद्रऩद भं शुक्र
थी। एक फाय बगवान श्रीगणेश ब्रह्मरोक से होते हुए रौट ितुथॉ की यात को जो तुम्हं दे खेगा, उसे ही कोई सभथ्मा
यहे थे फक िॊद्रभा को गणेशजी का स्थूर शयीय औय करॊक रगेगा। फाकी फदन कुि नहीॊ होगा। ’ केवर एक ही
गजभुख दे खकय हॊ सी आ गई। गणेश जी को मह अऩभान फदन करॊक रगने की फात सुनकय िॊद्रभा सभेत सबी
सहन नहीॊ हुआ। उडहंने िॊद्रभा को शाऩ दे ते हुए कहा, दे वताओॊ ने याहत की साॊस री। तफ से बाद्रऩद भं शुक्र
'ऩाऩी तूने भेया भजाक उड़ामा हं । आज भं तुझे शाऩ दे ता ितुथॉ की यात को िॊद्रभा के दशान का सनषेध हं ।
हूॊ फक जो बी तेया भुख दे खेगा, वह करॊफकत हो जामेगा।
कवि के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवि के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के नकायात्भक प्रबाव को
शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ
उडनसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते हं । स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद
व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मफद नौकयी कयता होतो उसभे उडनसत होती हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं सवाजन वशीकयण कवि के सभरे होने की वजह से धायण कयता
की फात का दस
ू ये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवि के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय भाॊ भहा
सदा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद
रक्ष्भी, (२)-धाडम रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम
रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं तॊि यऺा कवि के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू
होती हं , साथ ही नकायत्भन शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस
कवि के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺाहोती हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं शिु त्रवजम कवि के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत
सभस्त ऩये शासनओ से स्वत् ही िुटकाया सभर जाता हं । कवि के प्रबाव से शिु धायण कताा
व्मत्रि का िाहकय कुि नही त्रफगड सकते।
फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवि दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं ।
GURUTVA KARYALAY
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॥गणेशबुजॊगभ ्॥
यणत्ऺुद्रघण्टासननादासबयाभॊ िरत्ताण्डवोद्दण्डवत्ऩद्मतारभ ् ।
रसत्तुस्डदराङ्गोऩरयव्मारहायॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ १ ॥
ध्वसनध्वॊसवीणारमोल्राससवक्िॊ स्पुयच्िुण्डदण्डोल्रसद्बीजऩूयभ ् ।
गरद्दऩासौगडध्मरोरासरभारॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ २ ॥
प्रकाशज्जऩायियडतप्रसून- प्रवारप्रबातारुणज्मोसतये कभ ् ।
प्ररम्फोदयॊ वक्रतुण्डै कदडतॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ३ ॥
उदञ्िद्भज
ु ावल्रयीदृश्मभूरो- च्िरद्धभ्रूरतात्रवभ्रभभ्राजदऺभ ् ।
भरुत्सुडदयीिाभयै ् सेव्मभानॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ५ ॥
भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इडद्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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33 ससतम्फय 2011
सिॊतन जोशी
प्रसतफदन इस स्तोि का ऩाठ कयने से
भनोवाॊसित पर शीघ्र प्राद्ऱ होते हं ।
भनोवाॊसित पर प्राद्ऱ कयने हे तु गणेशजी
के सिि मा भूसता के साभने भॊि जाऩ कय सकते
हं । ऩूणा श्रद्धा एवॊ ऩूणा त्रवद्वास के साथ भनोवाॊसित
पर प्रदान कयने वारे इस स्तोि का प्रसतफदन
कभ से कभ 21 फाय ऩाठ अवश्म कयं ।
असधकस्म असधकॊ परभ ्।
जऩ स्जतना असधक हो सके उतना अच्िा है । मफद भॊि
असधक फाय जाऩ कय सकं तो श्रेद्ष।
प्रात् एवॊ सामॊकार दोनं सभम कयं , पर
शीघ्र प्राद्ऱ होता है ।
काभना ऩूणा होने के ऩद्ळमात बी सनमसभत स्त्रोत रा ऩाठ कयते यहना िाफहए। कुि एक त्रवशेष ऩरयस्स्थसत भं ऩूवा
जडभ के सॊसित कभा स्वरूऩ प्रायब्ध की प्रफरता के कायण भनोवाॊसित पर की प्रासद्ऱ मा तो दे यी सॊबव हं !
भनोवाॊसित पर की प्रासद्ऱ के अबाव भं मोग्म त्रवद्रान की सराह रेकय भागादशान प्राद्ऱ कयना उसित होगा।
अत्रवद्वास व कुशॊका कयके आयाध्म के प्रसत अश्रद्धा व्मि कयने से व्मत्रि को प्रसतकूर प्ररयणाभ फह प्राद्ऱ होते हं ।
शास्त्रोि विन हं फक बगवान (इद्श) फक आयाधना कबी व्मथा नहीॊ जाती।
भॊि:-
गणऩसतत्रवाघ्नयाजो रम्फतुण्डो गजानन्। द्रै भातुयद्ळ हे यम्फ एकदडतो गणासधऩ्॥
त्रवनामकद्ळारुकणा् ऩशुऩारो बवात्भज्। द्रादशैतासन नाभासन प्रातरुत्थाम म् ऩठे त॥्
त्रवद्वॊ तस्म बवेद्रश्मॊ न ि त्रवघ्नॊ बवेत ् क्वसित।् (ऩद्म ऩु. ऩृ. 61।31-33)
बावाथा: गणऩसत, त्रवघ्नयाज, रम्फतुण्ड, गजानन, द्रै भातुय, हे यम्फ, एकदडत, गणासधऩ, त्रवनामक, िारुकणा, ऩशुऩार औय
बवात्भज- गणेशजी के मह फायह नाभ हं । जो व्मत्रि प्रात्कार उठकय इनका सनमसभत ऩाठ कयता हं , सॊऩूणा त्रवद्व
उनके वश भं हो जाता हं , तथा उसे जीवन भं कबी त्रवघ्न का साभना नहीॊ कयना ऩड़ता।
कयने वारी उजाा हे तु फाधक होने ऩय वास्तु भं उसे द्रायवेध भाना जाता हं । द्रायवेध होने ऩय वहाॊ यहने वारं भं
उच्िाटन होता हं । ऐसे भं बवन के भुख्म द्राय ऩय गणोशजी की फैठी हुई प्रसतभा (भूसता) रगाने से द्रायवेध का सनवायण
होता हं । रगानी िाफहए फकॊतु उसका आकाय 11 अॊगुर से असधक नहीॊ होना िाफहए।
ऩूजा स्थानभं ऩूजन के सरए गणेश जी की एक से असधक प्रसतभा (भूसता) यखना वस्जात हं ।
उडहं गॊधवा को श्राऩ दे ते हुए कहा, तुभने िोय की बाॊसत भेयी सहधसभानी का हाथ ऩकड़ा हं , इस कायण तुभ अफसे
भूषक होकय धयती के नीिे औय िोयी कयके अऩना ऩेट बयोगे।’
ऋत्रष का श्राऩ सुनकय गॊधवा ने ऋत्रष से प्राथाना की- हे ऋत्रषवय, अत्रववेक के कायण भंने आऩकी ऩत्नी के हाथ का स्ऩशा
फकमा। भुझे ऺभा कय दं ।
ऋत्रष फोरे: कंि! भेया श्राऩ व्मथा नहीॊ होगा। तथात्रऩ द्राऩय भं भहत्रषा ऩयाशय के महाॊ गणऩसत दे व गजरूऩ भं
प्रकट हंगे। तफ तुभ उनका वाहन फन जाओगे। इसके ऩद्ळमात तुम्हाया कल्माण होगा तथा दे वगण बी तुम्हाया सम्भान
कयं गे।’
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतडम मुि
फकमे जाते हं । स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं ।
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38 ससतम्फय 2011
गणेश स्तवन
श्री आफद कत्रव वाल्भीफक उवाि
ितु:षत्रद्शकोटमाख्मत्रवद्याप्रदॊ त्वाॊ सुयािामात्रवद्याप्रदानाऩदानभ ्। कठाबीद्शत्रवद्याऩाकॊ दडतमुग्भॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
स्वनाथॊ प्रधानॊ भहात्रवघडनाथॊ सनजेच्िात्रवसृद्शाण्डवृडदे शनाथभ ्। प्रबुॊ दस्ऺणास्मस्म त्रवद्याप्रदॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
त्रवबो व्माससशष्माफदत्रवद्यात्रवसशद्शत्रप्रमानेकत्रवद्याप्रदातायभाद्यभ ्। भहाशािदीऺागुरुॊ श्रेद्षदॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
त्रवधािे िमीभुख्मवेदाॊद्ळ मोगॊ भहात्रवष्णवे िागभाज शॊकयाम। फदशडतॊ ि सूमााम त्रवद्यायहस्मॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
भहाफुत्रद्धऩुिाम िैकॊ ऩुयाणॊ फदशडतॊ गजास्मस्म भाहात्म्ममुिभ ्। सनजऻानशक्त्मा सभेतॊ ऩुयाणॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
िमीशीषासायॊ रुिानेकभायॊ यभाफुत्रद्धदायॊ ऩयॊ ब्रह्मऩायभ ्। सुयस्तोभकामॊ गणौघासधनाथॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
सिदानडदरूऩॊ भुसनध्मेमरूऩॊ गुणातीतभीशॊ सुयेशॊ गणेशभ ्। धयानडदरोकाफदवासत्रप्रमॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
अनेकप्रतायॊ सुयिाब्जहायॊ ऩयॊ सनगुण
ा ॊ त्रवद्वसद्धब्रह्मरूऩभ ्। भहावाक्मसॊदोहतात्ऩमाभूसता कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥
इदॊ मे तु कव्मद्शकॊ बत्रिमुिास्स्त्रसॊध्मॊ ऩठडते गजास्मॊ स्भयडत:। कत्रवत्वॊ सुवाक्माथाभत्मद्भत
ु ॊ ते रबडते प्रसादाद् गणेशस्म भुत्रिभ ्॥
॥इसत श्री वाल्भीफक कृ त श्रीगणेश स्तोि सॊऩूणभ
ा ्॥
पर: जो व्मत्रि श्रद्धा बाव से तीनोकार सुफह सॊध्मा एवॊ यािी के सभम वाल्भीफक कृ त श्रीगणेश का स्तवन कयते उडहे
सबी बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होकय उसे भोऺ को प्राद्ऱ कय रेता हं , एसा शास्रोि विन हं ।
त्रवष्णुकृतॊ गणेशस्तोिभ ्
श्री नायामण उवाि
अथ त्रवष्णु: सबाभध्मे सम्ऩूज्म तॊ गणेद्वयभ ्। तृद्शाव ऩयमा बक्त्मा सवात्रवघस्डवनाशकभ ्॥
श्री त्रवष्णु उवाि
ईश त्वाॊ स्तोतुसभच्िासभ ब्रह्मज्मोसत: सनातनभ ्। सनरूत्रऩतुभशिोऽहभनुरूऩभनीहकभ ्॥1॥ प्रवयॊ सवादेवानाॊ ससद्धानाॊ मोसगनाॊ
गुरुभ ्। सवास्वरूऩॊ सवेशॊ ऻानयासशस्वरूत्रऩणभ ्॥2॥ अव्मिभऺयॊ सनत्मॊ सत्मभात्भस्वरूत्रऩणभ ्। वामुतुल्मासतसनसराद्ऱॊ िाऺतॊ
सवासास्ऺणभ ्॥3॥ सॊसायाणावऩाये ि भामाऩोते सुदर
ु ब
ा े। कणाधायस्वरूऩॊ ि बिानुग्रहकायकभ ्॥4॥ वयॊ वये ण्मॊ वयदॊ
वयदानाभऩीद्वयभ ्। ससद्धॊ ससत्रद्धस्वरूऩॊ ि ससत्रद्धदॊ ससत्रद्धसाधनभ ्॥5॥ ध्मानासतरयिॊ ध्मेमॊ ि ध्मानासाध्मॊ ि धासभाकभ ्।
धभास्वरूऩॊ धभाऻॊ धभााधभापरप्रदभ ्॥6॥ फीजॊ सॊसायवृऺाणाभङ्कुयॊ ि तदाश्रमभ ्। स्त्रीऩुडनऩुॊसकानाॊ ि रूऩभेतदतीस्डद्रमभ ्॥7॥
सवााद्यभग्रऩूज्मॊ ि सवाऩूज्मॊ गुणाणावभ ्। स्वेच्िमा सगुणॊ ब्रह्म सनगुण
ा ॊ िात्रऩ स्वेच्िमा॥8॥ स्व्मॊ प्रकृ सतरूऩॊ ि प्राकृ तॊ प्रकृ ते:
ऩयभ ्। त्वाॊ स्तोतुभऺभोऽनडत: सहस्त्रवदनेन ि॥9॥ न ऺभ: ऩञ्िवक्िद्ळ न ऺभद्ळतुयानन्। सयस्वती न शिा ि न
शिोऽहॊ तव स्तुतौ॥10॥ न शिाद्ळ ितुवेदा: के वा ते वेदवाफदन्॥11॥ इत्मेवॊ स्तवनॊ कृ त्वा सुयेशॊ सुयसॊसफद। सुयेशद्ळ सुयै:
साद्र्ध त्रवययाभ यभाऩसत्॥12॥ इदॊ त्रवष्णुकृतॊ स्तोिॊ गणेशस्म ि म: ऩठे त ्। सामॊप्रातद्ळ भध्माह्ने बत्रिमुि: सभाफहत्॥13॥
तफद्रघस्डनघन ् कुरुते त्रवघनेद्व्सततॊ भुने। वधाते सवाकल्माणॊ कल्माणजनक: सदा॥14॥ मािाकारे ऩफठत्वा तु मो मासत
बत्रिऩूवक
ा भ ्। तस्म सवााबीद्शससत्रद्धबावत्मेव न सॊशम्॥15॥ तेन दृद्शॊ ि द:ु स्वऩन ् सुस्वऩडभुऩजामते। कदात्रऩ न बवेत्तस्म
ग्रहऩीडा ि दारुणा॥16॥ बवेद् त्रवनाश: शिूणाॊ फडधूनाॊ ि त्रववधानभ ्। शद्वफद्रघस्डवनाशद्ळ शद्वत ् सम्ऩफद्रवधानभ ्॥17॥ स्स्थया
बवेद् गृहे रक्ष्भी: ऩुिऩौित्रववसधानी। सवैद्वमासभह प्रासम ह्यडते त्रवष्णुऩदॊ रबेत ्॥18॥ परॊ िात्रऩ ि तीथाानाॊ मऻानाॊ मद्
बवेद् रुवभ ्। भहताॊ सवादानानाॊ श्री गणेशप्रसादत्॥19॥
39 ससतम्फय 2011
गणऩसतस्तोिभ ्
सुवणावणासड
ु दयॊ ससतैकदडतफडधुयॊ गृहीतऩाशकाङ्कुशॊ वयप्रदाबमप्रदभ ्। ितुबज
ुा ॊ त्रिरोिनॊ बुजङ्गभोऩवीसतनॊ
प्रपुल्रवारयजासनॊ बजासभ ससडधुयाननभ ्॥ फकयीटहायकुण्डरॊ प्रदीद्ऱफाहुबूषणॊ प्रिण्डयत्नकङ्कणॊ
प्रशोसबतास्ङ्घमत्रद्शकभ ्। प्रबातसूमासड
ु दयाम्फयद्रमप्रधारयणॊ सयत्नहे भनूऩुयप्रशोसबतास्ङ्घ्रऩङ्कजभ ्॥
सुवणादण्डभस्ण्डतप्रिण्डिारुिाभयॊ गृहप्रदे डदस
ु ड
ु दयॊ मुगऺणप्रभोफदतभ ्। कवीडद्रसित्तयञ्जकॊ भहात्रवऩत्रत्तबञ्जकॊ
षडऺयस्वरूत्रऩणॊ बजे गजेडद्ररूत्रऩणभ ्॥ त्रवरयञ्ित्रवष्णुवस्डदतॊ त्रवरूऩरोिनस्तुतॊ सगयीशदशानेच्िमा सभत्रऩातॊ
ऩयाम्फमा। सनयडतयॊ सुयासुयै: सऩुिवाभरोिनै: भहाभखेद्शकभासु स्भृतॊ बजासभ तुस्डदरभ ्॥
भदौघरुब्धिञ्िरासरभञ्जुगुस्ञ्जतायवॊ प्रफुद्धसित्तयञ्जकॊ प्रभोदकणािारकभ ्। अनडमबत्रिभानवॊ प्रिण्डभुत्रिदामॊ
नभासभ सनत्मभादये ण वक्रतुण्डनामकभ ्॥ दारयद्रमत्रवद्रावणभाशु काभदॊ स्तोिॊ ऩठे दे तदजस्त्रभादयात ्। ऩुिी
करिस्वजनेषु भैिी ऩुभान ् बवेदेकवयप्रसादात ्॥
इस स्तोिा का प्रसतफदन ऩाठ कयने से गणेशजी की कृ ऩा से उसे सॊतान राब, स्त्री प्रसत, सभि एवॊ
स्वजनो से एवॊ ऩरयवाय भं प्रेभ बाव फढता हं ।
गणेश कविभ ्
सॊसायभोहनस्मास्म कविस्म प्रजाऩसत्। ऋत्रषश्िडदद्ळ फृहती दे वो रम्फोदय: स्वमभ ्॥
धभााथक
ा ाभभोऺेषु त्रवसनमोग: प्रकीसतात्। सवेषाॊ कविानाॊ ि सायबूतसभदॊ भुने॥
ॐ गॊ हुॊ श्रीगणेशाम स्वाहा भे ऩातु भस्तकभ ्। द्रात्रिॊशदऺयो भडिो रराटॊ भे सदावतु॥
ॐ ह्रीॊ क्रीॊ श्रीॊ गसभसत ि सॊततॊ ऩातु रोिनभ ्। तारुकॊ ऩातु त्रवघनेश: सॊततॊ धयणीतरे॥
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीसभसत ि सॊततॊ ऩातु नाससकाभ ्। ॐ गं गॊ शूऩक
ा णााम स्वाहा ऩात्वधयॊ भभ॥
दडतासन तारुकाॊ स्जह्वाॊ ऩातु भे षोडशाऺय्॥
ॐ रॊ श्रीॊ रम्फोदयामेसत स्वाहा गण्डॊ सदावतु। ॐ क्रीॊ ह्रीॊ त्रवघडनाशाम स्वाहा कणा सदावतु॥
ॐ श्रीॊ गॊ गजाननामेसत स्वाहा स्कडधॊ सदावतु। ॐ ह्रीॊ त्रवनामकामेसत स्वाहा ऩृद्षॊ सदावतु॥
ॐ क्रीॊ ह्रीसभसत कङ्कारॊ ऩातु वऺ:स्थरॊ ि गभ ्। कयौ ऩादौ सदा ऩातु सवााङ्गॊ त्रवघस्डनघडकृ त ्॥
प्राच्माॊ रम्फोदय: ऩातु आगनेय्माॊ त्रवघडनामक्। दस्ऺणे ऩातु त्रवघनेशो नैऋात्माॊ तु गजानन्॥
ऩस्द्ळभे ऩावातीऩुिो वामव्माॊ शॊकयात्भज्॥ कृ ष्णस्माॊशद्ळोत्तये ि ऩरयऩूणत
ा भस्म ि॥
ऐशाडमाभेकदडतद्ळ हे यम्फ: ऩातु िोध्वात्। अधो गणासधऩ: ऩातु सवाऩूज्मद्ळ सवात्॥
स्वसने जागयणे िैव ऩातु भाॊ मोसगनाॊ गुरु्।
इसत ते कसथतॊ वत्स सवाभडिौघत्रवग्रहभ ्। सॊसायभोहनॊ नाभ कविॊ ऩयभाद्भत
ु भ ्॥
श्रीकृ ष्णेन ऩुया दत्तॊ गोरोके यासभण्डरे। वृडदावने त्रवनीताम भह्यॊ फदनकयात्भज्॥
भमा दत्तॊ ि तुभ्मॊ ि मस्भै कस्भै न दास्मसस। ऩयॊ वयॊ सवाऩूज्मॊ सवासङ्कटतायणभ ्॥
गुरुभभ्मच्मा त्रवसधवत ् कविॊ धायमेत्तु म्। कण्ठे वा दस्ऺणे फाहौ सोऽत्रऩ त्रवष्णुना सॊशम्॥
अद्वभेधसहस्त्रास्ण वाजऩेमशतासन ि। ग्रहे डद्रकविस्मास्म कराॊ नाहास्डत षोडशीभ ्॥
इदॊ कविभऻात्वा मो बजेच्िॊ कयात्भजभ ्। शतरऺप्रजद्ऱोऽत्रऩ न भडि: ससत्रद्धदामक्॥
॥ इसत श्री गणेश कवि सॊऩूणभ
ा ्॥
॥गणेशद्रादशनाभस्तोिभ ्।।
शुक्राॊम्फयधयभ ् दे वभ ् शसशवणं ितुबज
ुा भ ् । प्रसडनवदनभ ् ध्मामेत्सवात्रवघ्नोऩशाॊतमे ।।१।।
अबीस्ससताथाससद्धध्मथं ऩूजेतो म: सुयासुयै्। सवात्रवघ्नहयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्।।२।।
गणानाभसधऩद्ळण्डो गजवक्िस्स्त्ररोिन्। प्रसडन बव भे सनत्मभ ् वयदातत्रवानामक ।।३।।
सुभुखद्ळैकदडतद्ळ कत्रऩरो गजकणाक: रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्ननाशो त्रवनामक्।।४।।
धूम्रकेतुगण
ा ाध्मऺो बारिॊद्रो गजानन्। द्रादशैतासन नाभासन गणेशस्म म: ऩठे त ् ।। ५ ।।
त्रवद्याथॉ रबते त्रवद्याभ ् धनाथॉ त्रवऩुरभ ् धनभ ् । इद्शकाभभ ् तु काभाथॉ धभााथॉ भोऺभऺमभ ् ।। ६ ।।
त्रवद्यायभ्भे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा सॊग्राभे सॊकटे द्ळैव त्रवघ्नस्तस्म न जामते ।। ७ ।।
॥इसत श्री गणेशद्रादशनाभ स्तोिभ ् सम्ऩुण॥
ा
42 ससतम्फय 2011
फीजाम नभ् गुह्य,े गॊ शिमे नभ् ऩादमो, गं कीरकाम नभ् कश्मसवादीनाॊ, वधाथे त्रवष्णुनासिात्॥२॥
नाबौ, भभ सकर ऋण नाशाथे जऩे त्रवसनमोगाम नभ् भफहषस्म वधे दे व्मा, गण-नाथ् प्रऩूस्जत्। तायकस्म वधात ् ऩूव,ं
नभ्, वये ण्मॊ भध्मभाभ्माॊ नभ्, हॊु अनासभकाभ्माॊ नभ्, नभ् वृद्धमथं, ऩूस्जतो गण-नामक्।
गणेशजी को त्रप्रम हं ससॊदयू : गणेश ऩूजन भं ससॊदयू का उऩमोग अत्मॊत शुब एवॊ राबकायी होता हं । क्मोफकॊ
बगवान गणेशजीको ससॊदयू अत्मासधक त्रप्रम हं । गणेश जी को शुद्ध घी भं ससॊदयू सभराकय रेऩ िढाने से सुख औय
सौबाग्म फक प्रासद्ऱ होती हं । ससॊदयू ी यॊ ग के उऩमोग से व्मत्रि के फुत्रद्ध, आयोग्म, त्माग भं वृत्रद्ध होती हं । इसी सरमे
प्राम् ज्मादातय साधु-सॊत के वस्त्र का यॊ ग ससॊदयू ी फह होता हं ।
गणेशजी फक सूॊड फकस ओय हो?: भॊफदय औय घय भं स्थात्रऩत फकजाने वारी बगवान गणेश प्रसतभा भं सूॊड
फकसी प्रसतभा भं दाईं तो फकसी प्रसतभा भं फाईं ओय दे खने को सभरती हं । घय भं फाईं ओय सूॊडवारे गणेशही
स्थात्रऩत कयना शुब परप्रद भानागमा हं । क्मोफकॊ जहाॊ फाईं सूॊड वारे गणॆश सौम्म स्वरूऩ के प्रसतक हं , वहीॊ दाईं
ओय तयप सूॊड वारे गणॆशजी अस्ग्न (उग्र) स्वरुऩ के भाने जाते हं ।
45 ससतम्फय 2011
"आऩको जो पर प्राद्ऱ होता हं वह केवर आऩके कभो का त्रवद्रानो के भत से याजा दशयथ ने अनजाने भं श्रवण
पर नहीॊ होता, फस्ल्क आऩको अऩने ऩूवज
ा ं के कभो के कुभाय को तीय भाय स्जससे श्रवण कुभाय की भृत्मु से
पर बी बोगने ऩडता हं ।" दख
ु ी होकय उसके भाता-त्रऩता ने याजा दशयथ को मह
शाऩ फदमा "जैसे हभ ऩुि त्रवमोग भं भय यहे हं उसी भं जो ग्रह ऩीफडत हो वहीॊ ग्रह ऩीफडत अवस्था भं
प्रकाय आऩ बी ऩुि त्रवमोग के कायण भृत्मु को प्राद्ऱ ऩरयवाय के अडम व्मत्रिमं की जडभ कुॊडरी भं बी
कयं गे।" होते हं ।
रारफकताफ भं जो ग्रह अऩने घय भं, अऩने कायक घय
याजा दशयथ ऩुि त्रवमोग भं भृत्मु को प्राद्ऱ हुवे। श्रवण
भं मा शिु के घय भं स्स्थत हो तो उस ग्रह को ऩीफडत
कुभाय को तीय से भायना याजा दशयथ का कभा था। ऩयॊ तु
याभ का कोई अऩयाध न होने ऩय बी उडहं त्रऩता की भाना जाता हं ।
गरती के कायण 14 सार का वनवास बोगना ऩडा। ऩीफडत ग्रह स्जस रयश्तेदायं के कायक होते हं उडहीॊ
रयश्तेदायं का दष्ु कभा मा ऩाऩकभा अथवा उडहं सभरने
भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिफडभाय को शाऩ
वार शाऩ त्रऩतृदोष होता हं ।
फदमा:
भॊगर मॊि से
ग्रह सॊकेत:
ऋण भुत्रि
"भा सनषाद! प्रसतद्षाभ ् त्वभ गभ्
मफद फकसी जडभ कुॊडरी भं 2,
शाइवनी सभा।" 5, 9, 12, बावो भं कोई बी ग्रह हो तो
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना
जातक त्रऩतृ ऋण से प्रबात्रवत होगा ।
उसी कार से अफ तक हजायो राखो
का प्रमोग असत राब प्रद कुॊडरी भं 2,5,7 भं से फकसी
सिफडभाय हुवे हंगे रेफकन ् भहत्रषा के
होता हं । बी बाव भं फुध, शुक्र मा याहु हो तो
शाऩ के कायण फकसी को बी प्रसतद्षा
प्राद्ऱ नहीॊ हुई। इन फातो से अनुभान
कजा के दरदर भं पसे गुरु ऩीफडत हो जाता हं ।
ऩॊिभ भं फुध औय नवभ भं सूमा हो । कुॊडरी भं मफद सनम्नानुसाय ग्रह स्स्थसत हो तो त्रऩतृऋण
षद्षभ भं फुध औय नवभ भं केतु हो । होता हं ।
दशभ मा एकादश भं फुध औय नवभ भं शसन हो । याहु, केतु मा शिु ग्रह 5 भं हो औय सूमा 1 मा 11 भं
नोट: रारफकताफ भं ऋण से सॊफॊसधत मोग केवर जडभ कुॊडरी भं रागु होते हं वषापर मा अडम
कुॊडरी भं इसका त्रविाय नहीॊ होता।
48 ससतम्फय 2011
जाती हं ।
जातक को सभाज भं भान हासन, फनते कामो भं
रूकावट, सुख की जगह द:ु ख तथा सनयाशा प्राद्ऱ होती
ऋण भुत्रि कवि
हो। सनदोष होने ऩय बी जेर जाना ऩडता हं ।
स्जन व्मत्रिमं को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने
उऩाम: के फाद बी कजा से भुत्रि नहीॊ सभर यही हं
ऩरयवाय मा खानदान के हय एक सदस्म से ऩैसा उस व्मत्रि को ऋण भुत्रि कवि धायण कयना
इकट्ठा कयके धभा स्थान ऩय दान दं मा अऩने राबप्रद होता हं ।
नजदीकी भॊफदय की सेवा भं दे तो ऐसे असनद्श पर का
ऋण भुत्रि कवि को धायण कय व्मत्रि त्रफना
शभन हो जामेगा ।
ऩीऩर के ऩेड की दे खबार कयं ।
फकसी त्रवशेष ऩूजा अिाना के त्रवशेष राब प्राद्ऱ
ससय ऩय ऩगड़ी (टोऩी) ऩहने अथाात फार खुरे न यखे कय सकता हं । क्मोफक ऋण भुत्रि कवि का
ससय ढॊ क कय यखे मा कऩार ऩय केसय अथवा ऩीरे सनभााण ईसी उद्दे श्म से फकमा जाता हं की जो
यॊ ग का सतरक रागाएॊ। व्मत्रि ऩूजा-ऩाठ भॊि जऩ इत्माफद कयने भं
फकसी बी कामा को कयने से ऩूवा अऩनी नाक को साप
असभथा हं उडके सरमे त्रवशेष रुऩ से फनामा
कयरे।
जाता हं । ऋण भुत्रि कवि को व्मत्रि त्रफना
स्व ऋण फकसी ऩये शानी से शीघ्र राब प्राद्ऱ कय सकं।
मफद कुॊडरी भं सूमा ऩॊिभ बाव भं ऩाऩी ग्रह से ऩीफडत ऩये शान यहने ऩय भाता को कद्श दे ना इत्माफद से भातृ
खुशी के अवसय ऩय अिानक अशुब सभािाय प्राद्ऱ हो, जैसे कबी कबी जातक को ऩुि सॊतान के जडभ के सभम
फकसी की भृत्मु हो जाना फकसी को रकवा होना मा कोई बी दब
ु ााग्म से सॊभुख्खीन होना ऩडता हं ।
सनकट सॊफॊसध बमॊकय योग से ऩीफडत हो जाए। जातक का स्वास्थ्म दफ
ु र
ा होने रगता हं उसके दाॊत
जातक का अॊगूठा त्रफना फकसी कायण सनस्ष्क्रम मा फेजान फेकाय हो जाते हं ।
हो जामे, स्वसनदोष, त्विा के योग से ग्रस्त तो मह सूॊघने की शत्रि सभाद्ऱ हो जाती हं । दाॊऩत्म जीवन भं
स्त्रीऋण होने का सॊकेत होते हं । काभशत्रि का अबाव होने रगता हं ।
उऩाम:
उऩाम:
अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान
अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान
फहस्से भं धन रेकय गामं को बोजन कयाना िाफहए।
फहस्से भं ऩीरे यॊ ग की कोफड़माॊ रेकय उसे जराकय उनकी
साप-सुथये वस्त्र सरीके से धायण कयने ऩय बी शुक्र के
याख को फहते ऩानी भं प्रवाफहत कयना िाफहए।
असनद्श से फिाता हं ।
दाॊत साप यखे। नाक अवश्म सिदवामं इससे फुध का
फुया प्रबाव कभ हो जाता हं ।
फहन-फेटी का ऋण
फकसी की रड़की मा फहन ऩय अत्मािाय फकए हं
सॊफॊसधमं (रयश्तेदायी) का ऋण
मा उसकी हत्मा की हं। दस
ू यं के भासूभ फच्िं को फेि
फकसी सभि मा सॊफसॊ ध को जहय दे दे ना, फकसी की
दे ना मा उनकी हत्मा की हो तो फहन-फेटी का ऋण ऩैदा तैमाय पसर को आग रगवा दे ना मा फकसी का भकान
होता हं । आग रगा दे ना। फकसी की बंस को भायने मा भयवाने से
सॊफॊसध का ऋण होता हं ।
ग्रह सॊकेत:
ग्रह सॊकेत:
51 ससतम्फय 2011
मफद जातक के जडभ कंडरी भं प्रथभ व अद्शभ बाव भं फुध अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान
मा केतु हो तो भॊगर ऩीफडत होता हं औय भॊगर ऩीफडत फहस्से भं ऩैसा इकट्ठ कयके गयीफं के सरमे दवाइमाॊ
होने से सॊफॊसध ऋण का रगता हं । खयीद कय धभा कामा हे तु फकसी वैद्य, हकीभ मा
ऩहिान: डोक्टय मा औषधारम भं भुफ्तदे ।
जातक रयश्तेदाय एवॊ सॊफॊसधमं से सॊऩका अच्िे नहीॊ ताॊफे का ससक्का नदी भं प्रवाफहत कये ।
जातक ने अस्जात की हुई सफ धन-सॊऩत्रत्तमाॊ स्वाहा हो अऩॊग हो जाते हं मा ऩरयवाय के सदस्मं की भृत्मु
होती हं ।
जाती हं ।
जातक के ससय के फारं का झड़ जाते हं कबी-कबी
सभथा होते हुवे सॊतान उत्ऩडन नहीॊ हो ऩाती। मफद
ऩरको औय बोहं के फार बी झड जाते हं ।
सॊतान होती हं तो असधक फदन तक जीवीत नहीॊ
िोयी आफद असनद्श स्स्थसतमं का साभना कयना ऩड़ता
यहती मा अऩॊग हो जाती हं । है ।
जातक का शयीय फरहीन होने रगता हं । उऩाम:
एक आॊख भं कभजोयी हो जाती हं मा खयाफी आजाती अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान
हं । फहस्से भं एक ही फदन 100 भजदयू ं को उत्तभ बोजन
जातक स्वबाव से क्रोधी सिड़सिड़ा हो जाता है । कयामं।
भिरी ऩकड़कय को आटे की गोसरमाॊ स्खरामं।
अनावश्म रोगो से रडाई झगडे कयने ऩय उतारु हो
जाता हं मह सफ रयश्तेदायी ऋण के कायण होता हं ।
अजडभा ऋण
उऩाम:
52 ससतम्फय 2011
जातक का स्जन कोगं से वास्ता ऩडता हं उनके साथ भं ऩरयवाय के साथ यहं । सशखा अवश्म यखं। ससुयार के
धोखाधडी कयके उनके वॊश को सभडाने से अजडभं का रोगं से सॊफॊध भधुय यखे।
ऋण रगता हं ।
दै वी ऋण
ग्रह सॊकेत:
जातक ने फुयी सनमत से मा िर से दस
ू ये की
स्जस जातक की जडभ कुॊडरी भं द्रादश बाव भे
सॊतान का नाश कय फदमा हो मा कुत्ते को भाय फदमा हो
सूम,ा िडद्रभा मा भॊगर स्स्थत हो तो याहु ऩीस्िडत हो जाता
अथवा रारि के कायण फकसी का धन हड़ऩ सरमा हो तो
है । याहु ऩीफडत होने ऩय जातक के उऩय अनजान मा
दै वी ऋण ऩैदा होता हं ।
अजडभे का ऋण रगता हं ।
ग्रह सॊकेत:
ऩहिान:
जातक के घय के दस्ऺणी फहस्से की तयप वीयान िठे बाव भं िडद्र मा भॊगर हो तो केतु ऩीस्िडत होता हं औय
होती हं । ऩहिान:
घय के भुख्म दयवाजे के फाहय गॊदेऩानी की नारी फह दस
ू ये की औराद को खत्भ कय दे ना कुत्तं को भाय
यही होगी। दे ना।
असनद्श पर: रयश्तेदायं से फुयी नीमत यखना औय उसके वॊशजं को
याहु के प्रबाव से जातक ऩय अिानक असनद्श पर सभाद्ऱ कय दे ना।
प्राद्ऱ होते हं । असनद्श पर:
जातक का बाग्म दब
ु ााग्म भं फदर जाता हं । केतु ऩीफडत होने से ऩुि का नाश होता हं । ऩुि होती
डमाम के स्थान ऩय अडमाम प्राद्ऱ होता हं ।
ही नहीॊ मफद हुई बी तो वह भय जाती हं औय मफद
िोयी, डाका, हत्मा, आगजनी, फरात्काय जैसे झुठे
जीत्रवत यही तो वह अऩाफहज,गूॊगी-फहयी होती हं ।
आयोऩ रगते हं ।
जातक का ऩरयवाय नद्श होता है , धन हासन होती है औय
सनदोष होकय बी जेर जान ऩडता हं ।
कारे जानवय भय जाते हं , नाखून झड ने रगते हं । फॊद-ु फाॊधव त्रवद्वासघात कयते सभरते हं ।
अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं धन रेकय कुत्तं को बोजन कयाना िाफहए।
फहस्से भं एक-एक श्रीपर (नारयमर) इकट्ठा कय फकसी त्रवधवा की भदद कयके आशीवााद प्राद्ऱ कयं ।
ऩानी भं प्रवाफहत कयं ।
ज्मोसतष औय ऋण
सिॊतन जोशी
ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से री धन यासश को दौगुना, िौगुना मा सौगुना कय के कुि
व्मत्रि को उदास, स्खडन मा अवसाद भहसूस होता हं । धन यासश जभा हो जाने ऩय मा भेया उद्दे श्म ऩूणा हो जाने
क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक ऩय भं कजा रौटा दॊ ग
ु ा। रेफकन वास्तत्रवक जीवन भं
सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा कबी-कबी ऎसा होना असधक कफठन हो जाता हं औय
सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय व्मत्रि कजा के दरदर भं ढस जाता हं ।
सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर कजा एक एसा जार हं, स्जसभे व्मत्रि मफद एक
जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की फाय पस गमा तो पसता ही िरा जाता हं ।
उसे कजा के त्रऩॊड से भुत्रि कफ ज्मोसतष शास्त्र के ग्रॊथो भं
सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? गणेश रक्ष्भी मॊि त्रवसबडन प्रकाय के याजमोग, धनमोग
व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं आफद त्रवशेष मोगो का उल्रेख सभरता
औय न ही यात भं शकून सभरता हं । हं । फकसी जडभ कुॊडरी भं त्रवशेष प्रकाय
व्मत्रि के यातो की सनॊद हयाभ हो जाती के याजमोग, धनमोग आफद होने के
हं । उऩयाॊत बी व्मत्रि अऩने जीवन भं
आज सभाज भं व्मत्रि आसथाक सभस्मा से िस्त यहता हं । इस
बौसतकता के दौड भं अॊधा हो गमा हं । का एक प्रभुख कायण हं जातक कई
असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि फाय कजा मा ऋण के फोझ के तरे दफ
फदन यात एक कयके फकसी ना फकसी जाता हं औय कजा उसका ऩीिा नहीॊ
प्रकाय से असधक से असधक भािा भं प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि िोडता। भूर तो भूर व्मत्रि को कजा
धन एकत्रित कयना िाहता हं । असभय को अऩने घय-दक
ु ान-ओफपस- िुकाने के सरमे कजा रेना ऩडता हं ।
औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा स्जसके परस्वरुऩ कजा फदन-प्रसतफदन
असभय फनना िाहता हं । क्मोफक एसा मा अरभायी भं स्थात्रऩत कयने कभने के फजाम फढता ही जाता हं
बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ को मा व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता औय व्मत्रि अऩने जीवन का असधकतभ
भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩड़ता हं हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं फहसा केवर कजा िुकाते िुकाते व्मसतत
फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना उडनसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ व्माऩय कय दे ता हं । याजमोग, धनमोग आफद
ऩड़ जाता हं । भं वृत्रद्ध होती हं एवॊ आसथाक शुब मोग होने ऩय बी ऎसा क्मं होता
व्मत्रि सोिता हं अभुक राख, स्स्थभं सुधाय होता हं । गणेश हं ? क्मो जातक कजा के दरदर भं
कयोड सभर जामे तफ आयभ करुॊ गा रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से पसता िरा जाता हं ?
तफ भं िैन की नीॊद रूॊगा। उस िैन बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सायावरी, जातकाबयण, स्कॊद
की नीॊद ऩाने के सरमे ऩहरे कजा रेता सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं । आफद ज्मोसतष के प्रभुख ग्रॊथो के
हं मह सोि कय अभुक धन यासश कजा Rs.550 से Rs.8200 तक अनुशाय व्मत्रि की जडभ कुॊडरी भं
रेता हं की कुि भहीने सार भं कजा िाहे फकतने बी याजमोग, धनमोग
54 ससतम्फय 2011
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55 ससतम्फय 2011
मफद जडभ कुॊडरी भं भीन यासश के 15 अॊश का फुध उि ग्रह स्स्थती से जातक शुक्र के कायण ऋणग्रस्त
मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं गुरु भकय मफद रग्न से िठे बाव भं सूमा औय िॊद्र स्स्थत हो
मफद जडभ कुॊडरी भं कका यासश का गुरु नवाॊश भं भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं ।
गुरु नीि का हो, वक्री हो औय केडद्र मा त्रिकोण भं स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो िॊद्र व
मफद जडभ कुॊडरी भं शसन केडद्र स्थान भं स्स्थत हो, जातक ऩय कजा फना यहता हं ।
िॊद्र रग्न भं औय गुरु द्रादश बाव भं स्स्थत हो, तो मफद जडभ कुॊडरी भं रग्न से 22वाॊ द्रे ष्कोण होने ऩय
जातक हभेशा कजा के दरदर भं पसा यहता हं । . बी धन घोतक बानो भं हो तो कजा होने की स्स्थते
मफद जडभ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश फनी यहती हं ।
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह केडद्र स्थान भं मफद 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं ऩाऩकतायी मोग भं फन
स्स्थत हो तो जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता जामे तो बी कजा फनता हं ।
हं । मफद रग्न भं कडमा का शुक्र, ऩॊिभ बाव भं भकय
मफद जडभ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश का गुरु, एकादश बाव भं कका का भॊगर औय तृतीम
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह तीसये बाव भं स्स्थत बाव भं वृस्द्ळक का िॊद्र हो तो व्मत्रि हभेशा कजा के
हो द्रादश बाव का स्वाभी दस
ू ये बाव भं हो तो जातक फोझ से रदा यहता हं ।
कजा के िक्कय भं िारू यहता हं ।
उऩय दशाामी गई दशा भं जातक न िाहते हुए बी
मफद िॊद्र शसन के नवाॊश भं मा शसन से मुि हो कय
ऋणग्रस्त हो जाता हं । कजा के फोझ से भुत्रि ऩाने हे तु
रग्नेश से द्रद्श हो तो कजा फना यहता हं ।
शास्त्रं भं त्रवसबडन मॊि, भॊि, तॊि के अनेक उऩाम फतामे
गुसरका के 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं स्स्थत होने से बी
गमे हं स्जसे कयने ऩय व्मत्रि को शीघ्रता से ऋण के फोझ
जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं ।
से िुटकाया सभर सके।
मफद जातक भं ये का नाभ का मोग हो तो बी बी
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57 ससतम्फय 2011
भेष यासश: हो, सूमा औय भॊगर वृष यासश, कडमा यासश भं हो तफ कजा
जफ गोिय भं भॊगर भकय यासश, भेष यासश, सभथुन से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।
जफ गोिय भं शसन कुॊब यासश मा तुरा यासश भं जफ गोिय भं शसन भकय यासश, कुॊब यासश मा वृष
हो, गुय धनु यासश, भीन यासश, ससॊह यासश मा भेष यासश भं यासश भं हो, गुरू भीन यासश, कका यासश, वृस्द्ळक यासश मा
हो, याहु कुॊब यासश, वृष यासश मा तुरा यासश भं हो अथवा धनु यासश भं हो, याहु वृष यासश, ससॊह यासश मा भकय यासश
सूमा औय भॊगर कुॊब यासश मा तुरा यासश भं भ्रभण कय भं हो, सूमा औय भॊगर वृष यासश मा भकय यासश भं भ्रभण
यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है । कय यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।
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62 ससतम्फय 2011
हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं , जो व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता
एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ हं । कवि को गरे भं धायण कयने
स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं ! से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व हं । गरे भं धायण कयने से कवि
त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
कंफद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं ।
जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उडहं अऩनी औय आकत्रषात कयना
िाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।
ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।
भूल्म:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उसरब्द्ध
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63 ससतम्फय 2011
से धन राब होता हं व व्मत्रि का सवांगी त्रवकाय होकय उसे सुख-सभृत्रद्ध, भानसम्भान की प्रासद्ऱ होती
हं । याभ यऺा मॊि सबी प्रकाय के अशुब प्रबाव को दयू कय व्मत्रि को जीवन की सबी प्रकाय की
हनुभानजी के बि हं उडहं अऩने सनवास स्थान, व्मवसामीक स्थान ऩय याभ यऺा मॊि को अवश्म
स्थाऩीत कयना िाफहमे स्जससे आने वारे सॊकटो से यऺा हो उनका जीवन सुखभम व्मतीत हो सके
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64 ससतम्फय 2011
त्रवशेष मॊि
भाससक यासश पर
सिॊतन जोशी
भेष: 1 से 15 ससतम्फय 2011 :भहत्वऩूणा कामो को कयने भं आऩ सपर हंगे। त्रऩता का स्वास्थ सिॊता का कायण हो
सकता हं । आसथाक स्स्थती कभजोय हो सकती हं । नमे रोगो से सभिता होगी। कोटा -
किहयी के कामो भं सावधानी फते। त्रवयोसध एवॊ शिु ऩऺ से ऩये शानी हो सकती हं । सभि
एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा। बूसभ-बवन-वाहन फक प्राद्ऱी हो सकती हं ।
16 से 30 ससतम्फय 2011: भहत्व ऩूणा मािाओॊ को कुि सभम के सरमे स्थसगत कयना ऩड
सकता हं । अऩने अनावश्मक खिो ऩय सनमस्डित कयने का प्रमास कयं । आऩके सबतय
कुि सनयाशावादी बाव यह सकते हं स्जससे भानससक अशाॊसत हो सकती है । क्रोध एवॊ वाणी ऩय ऩूणा सनमॊिण यखने का प्रमास
कयं एवॊ कोई बी शब्द का प्रमोग सोि त्रविाय कय कयं । ऩरयवाय के साथ रयस्ते भजफुत होने के सुअवसय प्राद्ऱ हंगे।
16 से 30 ससतम्फय 2011 : अऩने नाभ औय प्रसतद्षा कामभ यखने के सरमे आऩको ऩूणा
मोजनाफद्ध तरयके से कामा कयना आऩके सरमे शुब परदामक ससद्ध होगा। फकमे गमे ऩूॊस्ज
सनवेश द्राया आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे है । इसके असतरयि अऩने स्वबाव को
फदरते हुए सहमोग बाव स्वमॊ भं त्रवकससत कयं ।आऩके के स्वबाव भं दमा, भृदत
ु ा व त्रवनम्रता भं वृत्रद्ध हो सकती हं ।
67 ससतम्फय 2011
कका: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : व्मवसासमक कामो भं सपरता प्राद्ऱ कय सकते हं । दयू स्थ स्थान फक मािाएॊ राब प्रासद्ऱ
के मोग फना सकती हं । नौकयी-व्मवसाम भं फदराव का त्रविाय कय सकते है । आऩकी
भानससक सिडताओॊ भं फढोतयी होगी। आऩके स्वबाव भं सौम्मता राने का प्रमास कयं ।
ऩरयवाय भं फकसी सदस्म के स्जद्दी स्वबाव के कायण आऩके ऩरयवाय भं भानससक अशाॊसत
का भाहोर हो सकता है ।
16 से 30 ससतम्फय 2011 : ऩूवा कार भं फकमे गमे कामा एवॊ रुके हुवे कामा से
आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ होगा। बूसभ- बवन-वाहन के क्रम-त्रवक्रम से राब प्राद्ऱ हो
सकता हं । फकसी व्मत्रि त्रवशेष से वाद-त्रववाद से फिने का प्रमास कये । जीवन साथी से
सहमोग प्राद्ऱ होगा। शुब सभािाय फक प्रासद्ऱ हो सकती हं । ऩरयवाय भं खुसशमो का भाहोर
यहे गा औय ऩरयवाय भं फकसी नमे सदस्म फक वृत्रद्ध होने के मोग फन यहे है ।
ससॊह: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : नौकयी-व्मवसाम भं फदराव का त्रविाय कय सकते है । अऩने कामा उद्दे श्म भं एकाग्र यहे
रंगं की सनगाहं आऩके उऩय फटकी यहे गी। फकसी कामा भं राऩयवाही नुक्शान दे सकती
हं । आऩ अऩने अॊदय आत्भफर भहसूस कयं गे। सभिं औय रयस्तेदायं के साथ शाॊसत औय
प्रसडडता भहसूस होगी। आऩके अडतऻाान ऻान का त्रवकास हो सकता हं स्जस्से रक्ष्म
प्रासद्ऱ भे राब प्राद्ऱ होगा।
16 से 30 ससतम्फय 2011 : रम्फे सभम से रुके हुवे कामा से आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ
होगा। फकसी व्मत्रि त्रवशेष से वाद-त्रववाद से फिने का प्रमास कये । बूसभ- बवन-वाहन के
क्रम-त्रवक्रम से राब प्राद्ऱ हो सकता हं । गुद्ऱ त्रवयोसध-शिुओॊ के कायण आसथाक हासन हो
सकती है । भहत्व ऩूणाा कामो को स्स्थगीत कयना मा फकसी नमे व्मत्रि को दे ना नुक्शान दे ह हो सकता हं । स्वास्थ्म भं
सगयावट हो सकती हं ।
तुरा: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : धन सॊफॊसधत रेनदे न, बूसभ-बवन इत्मादी से सॊफॊसधत कामो भं इस अवसध के दौयान
आऩको सावधान औय सतका यहना िाफहए। अडमथा बायी हानी हो सकती हं । व्मवसामीक
मािाएॊ कद्शप्रद हो सकती हं उसिर राब प्राद्ऱ होने भं त्रवरॊफ औय ऩूयाने बूगतान प्राद्ऱ
होने भं त्रवरॊफ हो सकता हं । अनावश्मक खिो ऩय सनमॊिण कयने का प्रमास कयं
अडमथा कजा के फोझ तरे रम्फे सभम के सरमे दफ सकते हं ।
धनु: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : आऩके असधनस्थ कभािायी से सहमोग प्राद्ऱ कय सकते हं । आऩके सॊग्रफहत धन को
कहीॊ ऩूॊस्ज सनवेश कयना, धन सॊफसॊ धत रेन-दे न कयना इस सभम असधक राबदामक
होगा। ऩूणा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत के कामा का सनस्द्ळत राब प्राद्ऱ होगे। खान-ऩान का
त्रवशेष ध्मान यखने फक आवश्मकता यहे गी अडमथा आऩका ऩेट प्रबात्रवत हो सकता हं ।
भकय: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : इस अवसध भं आम के नमे स्त्रोत प्राद्ऱ होने के मोग फन यहे हं । इस दौयान
कुॊब: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : नमे कामो एवॊ मोजनाओॊ राब प्राद्ऱ होता यहे गा।
आऩके बौसतक सुख साधनो भं वृत्रद्ध होगी। व्मवसामीक कमो भं नमे अवसय प्राद्ऱ हो
सकते हं । ऋण रेने-दे न से सॊफॊसधत कामो एवॊ सनणामो को टारना राबप्रद हो सकता
हं । असनमभीत सभम ऩय बोजन कयना स्वास्थ्म को प्राबावीत कय सकता हं । इस दौयान
व्मवसामीक मािाएॊ स्थगीत कयना उसित यहे गा।
भीन: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : भहत्वऩूणा सनणमा रेने के सरए एवॊ भहत्वऩूणा मोजनाओॊ को अभर भं राने हे तु उत्तभ
सभम यहे गा। ऩूवा से िर यहे कामो भं साभाडम राब प्राद्ऱ कय सकते हं । आऩके शिु ऩय आऩका प्रबाव यहे गा। जीवन
साथी से सॊफॊधं भं सुधाय होगा। मािा सुखदाई औय परदाई यहे गी। ऩारयवारयक जीवन से
आऩको खुसशमॉॊ एवॊ सॊतोष सभरेगा।
यासश यत्न
भूॊगा हीया ऩडना भोती भाणेक ऩडना
Red Coral Diamond Green Emerald Naturel Pearl Ruby Green Emerald
(Special) (Special) (Old Berma)
(Special) (Special) (Special) (Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
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तुरा यासश: वृस्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कुॊब यासश: भीन यासश:
* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय
उसरब्ध हं ।
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92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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71 ससतम्फय 2011
1 गुरु बाद्रऩद शुक्र ितुथॉ 19:03:33 प्रायॊ ब, श्रीकृष्ण करॊफकनी ितुथॉ, आज िडद्र-दशान सनत्रषद्ध,
सौबाग्म ितुथॉ (ऩ.फॊ), जैन सॊवत्सयी उत्सव, सशवा ितुथॉ,
2 शुक्र बाद्रऩद शुक्र ऩॊिभी 16:10:36 (ऩॊिभी ऩऺ), गुरु ऩॊिभी, ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फद.जैन),
स्कडद (कुभाय) षद्षी व्रत, ऩमुष
ा ण ऩवा प्रायॊ ब-दशरऺण व्रत
10 फदन (फद.जैन)
4 यत्रव बाद्रऩद शुक्र सद्ऱभी 11:52:51 प्रायॊ ब (यात्रिकारीन अद्शभी से), सूमा भहाऩूजा, सनदोष-शीर
सद्ऱभी (जैन), नवाखाई, अऩयास्जता ऩूजा, दादा बाई
नौयोजी जमॊती
श्रीदग
ु ााद्शभी व्रत, श्रीअडनऩूणााद्शभी व्रत, श्रीयाधायानी-
जडभोत्सव, स्वाभी हरयदास जमॊती, ज्मेद्षा गौयी ऩूजन,
9 शुक्र बाद्रऩद शुक्र द्रादशी 10:37:30 भहाद्रादशी व्रत, श्रवण द्रादशी, हरयवासय प्रात: 10.36 फजे
तक, बुवनेद्वयी भहात्रवद्या जमॊती, त्रिजुगी नायामण भेरा,
74 ससतम्फय 2011
11 यत्रव बाद्रऩद शुक्र ितुदाशी 13:10:21 ऩासथाव गणेश-त्रवसजान, गणेशोत्सव ऩूण,ा ऩूस्णाभा व्रत,
श्रीसत्मनायामण व्रत-कथा, त्रवनोफा बावे जमॊती, ऺभाऩणी
ऩवा(फद.जैन),
फद्रतीमा (दज
ू ) का श्राद्ध, याद्सबाषा फहडदी फदवस, भहादे वी
14 फुध आस्द्वन कृष्ण फद्रतीमा 19:20:15
वभाा जमॊती,
20 भॊगर आस्द्वन कृष्ण सद्ऱभी /अद्शभी 06:35:22 काराद्शभी व्रत, अद्शभी का श्राद्ध, जीत्रवत्ऩुत्रिका व्रत,
75 ससतम्फय 2011
कुफेय मॊि
कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक
ृ सम्ऩत्ती एवॊ गड़े हुए धन से राब प्रासद्ऱ फक काभना कयने वारे
व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मडत सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं । कुफेय मॊि के ऩूजन से एकासधक
स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊिम होता हं ।
भॊगर मॊि
(त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीर राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म भाि Rs- 550
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78 ससतम्फय 2011
ओनेक्स
जो व्मत्रि ऩडना धायण कयने भे असभथा हो उडहं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना िाफहए।
उच्ि सशऺा प्रासद्ऱ हे तु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हे तु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे िोटी
उॊ गरी मा रॉकेट फनवा कय गरे भं धायण कयं । ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण
शत्रि का त्रवकास होता हं ।
79 ससतम्फय 2011
मोग पर :
कामा ससत्रद्ध मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं, एसा शास्त्रोि विन हं ।
फद्रऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।
त्रिऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।
गुरु ऩुष्माभृत मोग भं फकमे गमे फकमे गमे शुब कामा भे शुब परो की प्रासद्ऱ होती हं , एसा शास्त्रोि विन हं ।
फदन के िौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
यात के िौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
यत्रववाय सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन
सोभवाय िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र
फुधवाय फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
शुक्रवाय शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र
त्रवद्रानो के भत से इस्च्ित कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का िुनाव कयने से त्रवशेष राब
प्राद्ऱ होता हं ।
सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं ।
िॊद्रभा फक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
भॊगर फक होया कोटा-किेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं ।
गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं ।
शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं ।
शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं ।
82 ससतम्फय 2011
2 04:15:10 06:09:08 02:25:19 03:27:09 00:16:19 04:19:42 05:21:15 07:25:47 01:25:47 11:09:28 10:05:13 08:10:55
3 04:16:08 06:23:35 02:25:57 03:28:02 00:16:18 04:20:56 05:21:22 07:25:43 01:25:43 11:09:26 10:05:11 08:10:54
4 04:17:06 07:07:41 02:26:35 03:29:02 00:16:17 04:22:10 05:21:28 07:25:42 01:25:42 11:09:24 10:05:10 08:10:54
5 04:18:04 07:21:25 02:27:13 04:00:08 00:16:16 04:23:25 05:21:35 07:25:41 01:25:41 11:09:22 10:05:08 08:10:53
6 04:19:03 08:04:50 02:27:50 04:01:22 00:16:15 04:24:39 05:21:41 07:25:41 01:25:41 11:09:20 10:05:07 08:10:53
7 04:20:01 08:17:57 02:28:28 04:02:41 00:16:14 04:25:54 05:21:48 07:25:40 01:25:40 11:09:17 10:05:05 08:10:53
8 04:20:59 09:00:49 02:29:06 04:04:05 00:16:12 04:27:08 05:21:54 07:25:36 01:25:36 11:09:15 10:05:03 08:10:52
9 04:21:57 09:13:29 02:29:43 04:05:35 00:16:10 04:28:23 05:22:01 07:25:30 01:25:30 11:09:13 10:05:02 08:10:52
10 04:22:56 09:25:58 03:00:21 04:07:09 00:16:08 04:29:37 05:22:08 07:25:21 01:25:21 11:09:11 10:05:00 08:10:52
11 04:23:54 10:08:18 03:00:58 04:08:47 00:16:06 05:00:52 05:22:14 07:25:09 01:25:09 11:09:08 10:04:59 08:10:52
12 04:24:52 10:20:29 03:01:36 04:10:28 00:16:03 05:02:06 05:22:21 07:24:55 01:24:55 11:09:06 10:04:57 08:10:52
13 04:25:50 11:02:33 03:02:13 04:12:12 00:16:01 05:03:21 05:22:28 07:24:41 01:24:41 11:09:04 10:04:56 08:10:51
14 04:26:49 11:14:31 03:02:50 04:13:59 00:15:58 05:04:35 05:22:35 07:24:28 01:24:28 11:09:01 10:04:54 08:10:51
15 04:27:47 11:26:24 03:03:27 04:15:47 00:15:55 05:05:50 05:22:42 07:24:16 01:24:16 11:08:59 10:04:53 08:10:51
16 04:28:46 00:08:14 03:04:04 04:17:37 00:15:52 05:07:04 05:22:49 07:24:07 01:24:07 11:08:57 10:04:51 08:10:51
17 04:29:44 00:20:03 03:04:41 04:19:28 00:15:48 05:08:19 05:22:56 07:24:00 01:24:00 11:08:54 10:04:50 08:10:51
18 05:00:43 01:01:56 03:05:18 04:21:19 00:15:45 05:09:33 05:23:02 07:23:56 01:23:56 11:08:52 10:04:48 08:10:51
19 05:01:41 01:13:56 03:05:55 04:23:11 00:15:41 05:10:48 05:23:09 07:23:55 01:23:55 11:08:50 10:04:47 08:10:51
20 05:02:40 01:26:09 03:06:32 04:25:03 00:15:37 05:12:02 05:23:16 07:23:54 01:23:54 11:08:47 10:04:46 08:10:51
21 05:03:38 02:08:39 03:07:08 04:26:56 00:15:33 05:13:17 05:23:23 07:23:54 01:23:54 11:08:45 10:04:44 08:10:52
22 05:04:37 02:21:33 03:07:45 04:28:48 00:15:29 05:14:32 05:23:31 07:23:53 01:23:53 11:08:42 10:04:43 08:10:52
23 05:05:36 03:04:53 03:08:21 05:00:39 00:15:24 05:15:46 05:23:38 07:23:51 01:23:51 11:08:40 10:04:41 08:10:52
24 05:06:34 03:18:42 03:08:58 05:02:31 00:15:20 05:17:01 05:23:45 07:23:45 01:23:45 11:08:38 10:04:40 08:10:52
25 05:07:33 04:03:02 03:09:34 05:04:21 00:15:15 05:18:15 05:23:52 07:23:37 01:23:37 11:08:35 10:04:39 08:10:52
26 05:08:32 04:17:48 03:10:10 05:06:11 00:15:10 05:19:30 05:23:59 07:23:28 01:23:28 11:08:33 10:04:37 08:10:53
27 05:09:31 05:02:54 03:10:46 05:08:00 00:15:05 05:20:44 05:24:06 07:23:17 01:23:17 11:08:30 10:04:36 08:10:53
28 05:10:30 05:18:09 03:11:22 05:09:49 00:14:59 05:21:59 05:24:13 07:23:07 01:23:07 11:08:28 10:04:35 08:10:53
29 05:11:29 06:03:23 03:11:58 05:11:36 00:14:54 05:23:14 05:24:21 07:22:58 01:22:58 11:08:25 10:04:34 08:10:54
30 05:12:28 06:18:26 03:12:34 05:13:23 00:14:48 05:24:28 05:24:28 07:22:51 01:22:51 11:08:23 10:04:32 08:10:54
83 ससतम्फय 2011
उसित उऩिाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं , रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी असाध्मा
होजाते हं , मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं । हजायो राखो रुऩमे खिा कयने ऩय बी असधक राब प्राद्ऱ नहीॊ हो
ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं , एसस स्स्थती भं राबा प्रासद्ऱ के
सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दस
ू ये डॉक्टय के िक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं ।
बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हे तु त्रवसबडन आमुवेय औषधो के असतरयि मॊि,
भॊि एवॊ तॊि उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था।
फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदनिमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हं , एसे व्मत्रि
को त्रवसबडन योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं । रेफकन आज के फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग
से ग्रस्त होते फदख जाते हं । क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन हं । एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा
औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भं व्मत्रि योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं ।
इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो
को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हं ।
ज्मोसतष त्रवद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को उजागय कय
सकते हं । ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं , जहा आधुसनक सिफकत्सा शास्त्र
अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जड़) को ऩकड कय उसका सनदान कयना राबदामक एवॊ
उऩामोगी ससद्ध होता हं ।
हय व्मत्रि भं रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं , स्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्ध तयीके से होता यहता हं ।
जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो
उत्ऩडन होते हं । एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं । स्जस्से योगो के होने के कायणा व्मत्रिके
जडभाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गोिय भं स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं ।
सवा योग सनवायण कवि एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जडभाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ ऩीफडत
ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक
ा फकमा जासकता हं । जेसे हय व्मत्रि को ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ
ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं फठक उसी प्रकाय कवि एवॊ मॊि के भाध्मभ से ब्रह्माॊड फक उजाा के
सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुि कयने हे तु
सहामता सभरती हं ।
योग सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं । स्जस्से फहडद ू सॊस्कृ सत का प्राम् हय व्मत्रि
भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसित हं ।
84 ससतम्फय 2011
कवि के राब :
एसा शास्त्रोि विन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय फक
आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं ।
ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम मुि सवा योग सनवायण कवि फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग िाहे
स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं ।
जडभाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकूरता से योग उतऩडन होते हं ।
कुि योग सॊक्रभण से होते हं एवॊ कुि योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩडन होते हं । कवि
एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ कयने हे तु
सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं ।
आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं , स्जसका उऩिाय ओऩये शन औय दवासे बी
कफठन हो जाता हं । कुि योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग फहिफकिाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे योगो
को योकने हे तु एवॊ उसके उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं ।
प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा होती जाती हं । स्जसके साथ अनेक
प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩिाय हे तु सवायोगनाशक कवि एवॊ मॊि परप्रद होता हं ।
स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जडभ रेते हं, तफ उसकी भाता के सरमे
असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं । उऩिाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं ।
स्जस व्मत्रि का जडभ ऩरयसध मोगभे होता हं उडहे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सिॊता भं
उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं ।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम मुि सवा योग सनवायण कवि एवॊ मॊि के फाये भं असधक जानकायी हे तु हभ
से सॊऩका कयं ।
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types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your
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85 ससतम्फय 2011
कवि सूसि
सवा कामा ससत्रद्ध कवि - 3700/- ऋण भुत्रि कवि - 730/- त्रवयोध नाशक कविा- 550/-
सवाजन वशीकयण कवि - 1050/-* नवग्रह शाॊसत कवि- 730/- वशीकयण कवि- 550/-* (2-3 व्मत्रिके सरए)
अद्श रक्ष्भी कवि - 1050/- तॊि यऺा कवि- 730/- ऩत्नी वशीकयण कवि - 460/-*
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ कवि-910/- शिु त्रवजम कवि - 640/- * नज़य यऺा कवि - 460/-
बूसभ राब कवि - 910/- ऩदं उडनसत कवि- 640/- व्माऩय वृत्रद्ध कवि - 370/-
सॊतान प्रासद्ऱ कवि - 910/- धन प्रासद्ऱ कवि- 640/- ऩसत वशीकयण कवि - 370/-*
कामा ससत्रद्ध कवि - 910/- त्रववाह फाधा सनवायण कवि- 640/- दब
ु ााग्म नाशक कवि - 370/-
काभ दे व कवि - 820/- भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक कवि- 640/- सयस्वती कवक - 370/- कऺा+ 10 के सरए
जगत भोहन कवि -730/-* काभना ऩूसता कवि- 550/- सयस्वती कवक- 280/- कऺा 10 तक के सरए
स्ऩे -व्माऩाय वृत्रद्ध कवि - 730/- त्रवघ्न फाधा सनवायण कवि- 550/- वशीकयण कवि - 280/-* 1 व्मत्रि के सरए
Shastrokt Yantra
GURUTVA KARYALAY
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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
88 ससतम्फय 2011
GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩडना) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (भास्णक) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भास्णक) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (रार भूॊगा) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (रार भूॊगा) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (सफ़ेद भूॊगा) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (रहसुसनमा) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उफडसा रहसुसनमा) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (गोभेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जयकन) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (फफ़योजा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोऩज) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे रा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (उऩर) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गायनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुभारीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमका ाडत भस्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओनेक्स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (िडद्रकाडत भस्ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (स्फ़फटक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयगि) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (हीया) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
89 ससतम्फय 2011
In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
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90 ससतम्फय 2011
सूिना
ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।
रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रविायो से सहभत हं।
ऩत्रिका भं प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं ।
प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मफद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि
एक सॊमोग हं ।
प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं । इस कायण इन त्रवषमो फक
सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।
अडम रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक
फक नहीॊ हं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी
प्रकाय से फाध्म हं ।
ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना
त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने
का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।
हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशध
ॊ ान के आधाय ऩय सरखे होते हं । हभ फकसी बी व्मत्रि
त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोकी स्जडभेदायी नफहॊ रेते हं ।
मह स्जडभेदायी भॊि-मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक
भानदॊ डं , साभास्जक , कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा
प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं ।
हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अडम हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं
स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।
ऩाठकं फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं । ऩाठकं को एक रेख के ऩून्
प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं ।
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गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ससतम्फय -2011
सॊऩादक
सिॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
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92 ससतम्फय 2011
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदे व
जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता है । वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो जाता है , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि
जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता है , औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोफक
बावनाए फह बवसागय है , स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनफहत है । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय
सपरता है । सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय है । ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदै व आऩ के साथ है । आऩ
अऩने कामा-उद्दे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सिज वस्तु का हभंशा
प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्दे श्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध
प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि सबी प्रकाय के मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का है ।
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SEP
2011